Monday 13 November 2017

इसे मैं छोड़ आया हूँ ....

अपनी उम्मीदों की मीनारों को खुद अपने हाथो से तोड़ आया हूँ
चाहत का वह हसीन गुलिस्तां, जिसे  देख दिल मचलता था मेरा
उसे आज खुद अपने पैरो से रोंद आया हूँ
अब ना हसरत है ना कोई शिकवा, की मंजिल कब मिलेगी मुझको
मैं अपने दिल की किश्ती खुद, इश्क के समुन्द्र में डुबो कर आया हूँ ....
जिन आँखों ने देखे थे सपने ,कभी तुझे उनमें  बसाने के
उन आँखों पर  अब मैं, बेरुखी का पर्दा चढ़ा के आया हूँ
जिस जिस्म ने चाहा था तेरे दिल को  कभी उसमे बसाने को
आज उसी जिस्म को मैं,  नफरत की आग से  जलाने  लाया हूँ
अब मैं नहीं एक मज़लूम  आशिक , जो अँधेरे में जुदाई के गीत गायेगा
मैं हूँ एक आग का गोला , जो अपने साथ इस दुनिया को भी जलाएगा  ....
नहीं बची यह दुनिया किसी  मोहब्बत और रहमोकरम की
हर इन्सान है मतलबी , देखता है किस में उसका फायदा हर घड़ी
झूठ और फरेब बन गए, रोजाना की जिन्दगी के नए मायने
अपने थोड़े फ़ायदे  के आगे , दूसरों  के बड़े नुकसान की किसको पड़ी
अपनी हसरतों  और मोहब्बत का गला मैं खुद अपने हाथो से घोंट आया हूँ
ऐसी दुनिया में जीने से अच्छा , इसे  मैं छोड़ आया हूँ  ....

अपनी उम्मीदों की मीनारों को खुद अपने हाथो से तोड़ आया हूँ
चाहत का वह हसीन गुलिस्तां, जिसे  देख दिल मचलता था मेरा
उसे आज खुद अपने पैरो से रोंद आया हूँ
अब ना हसरत है ना कोई शिकवा, की मंजिल कब मिलेगी मुझको
मैं अपने दिल की किश्ती खुद, इश्क के समुन्द्र में डुबो कर आया हूँ ....
जिन आँखों ने देखे थे सपने ,कभी तुझे उनमें  बसाने के
उन आँखों पर  अब मैं, बेरुखी का पर्दा चढ़ा के आया हूँ
जिस जिस्म ने चाहा था तेरे दिल को  कभी उसमे बसाने को
आज उसी जिस्म को मैं,  नफरत की आग से  जलाने  लाया हूँ
अब मैं नहीं एक मज़लूम  आशिक , जो अँधेरे में जुदाई के गीत गायेगा
मैं हूँ एक आग का गोला , जो अपने साथ इस दुनिया को भी जलाएगा  ....
नहीं बची यह दुनिया किसी  मोहब्बत और रहमोकरम की
हर इन्सान है मतलबी , देखता है किस में उसका फायदा हर घड़ी
झूठ और फरेब बन गए, रोजाना की जिन्दगी के नए मायने
अपने थोड़े फ़ायदे  के आगे , दूसरों  के बड़े नुकसान की किसको पड़ी
अपनी हसरतों  और मोहब्बत का गला मैं खुद अपने हाथो से घोंट आया हूँ
ऐसी दुनिया में जीने से अच्छा , इसे  मैं छोड़ आया हूँ  ....
By
Kapil Kumar

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