Monday 13 November 2017

बहुत कोशिशें की ....

बहुत  कोशिशें  की...
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की, पर भुला नहीं पाया ...
पड़े है कुछ अधूरे ख़त तेरे नाम के , जिन्हें कभी पूरा लिख नहीं पाया
लिखे खतों में बिखरे है दिल के दर्द और कुछ अधूरे से अफ़साने
ऐसे जज्बातों  को चाह कर भी,मैं  तुझे भेज नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
जलाता रहा उम्मीद का दीया , तेरे इंतजार में हर रात
सोचता था  तेरे दिल में भी जागेगी, मुझसे मिलने की चाहत
कभी मेरी भी  होगी, उम्मीदों की चांदनी रात
उम्मीद के इस दीये  को , बुझाने की हिम्मत कर नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की, पर भुला नहीं पाया ...
यूँ तो दिए थे तूने मुझे बहुत से उलहाने
दिए  भी थे तुझे भूल जाने के ना जाने कितने बहाने
बताये  भी  थे दूसरों  के साथ ,दिल बहलाने के कई ठिकाने
ऐसे बहकाने  के सहारे को , मैं चाहकर भी ढूंड नहीं पाया
क्यों करता हूँ इंतजार, तेरे आने का मैं हर पल
इस सवाल का जवाब, मैं अब तक समझ नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की पर भुला नहीं पाया ...
शायद यह बात मेरे वश  में नहीं ,
तू इसे कहे आसक्ति या आदत ,यह भी ठीक नहीं
क्यों तेरे ही मोहनी सूरत ,मेरे ज़हन  में हर वक़्त है बसी
क्या इस दुनिया में कोई दूसरा और  नहीं है हसींन
इन बातों को समझकर भी , मैं समझ नहीं पाया
समझाया दिमाग को बहुत  , पर दिल फिर भी बहल नहीं पाया
बहुत  कोशिशे की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
सोचता हूँ की बची जिंदगी , तेरी यादों  के सहारे  जियूं
या तेरे ग़म के बहाने ,जीते जी हर पल मरता रहूं
कैसे जियूं मैं तेरे बिना एक  भी पल
इसका मतलब मुझे समझ नहीं आया
तू मेरी होगी या नहीं , यह दर्द फिर से उभर आया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
तू आ जा वापस फिर से, भक्ति के संगम पर
मैंने  खुलवा लिया है दरवाजा , मोहब्बत के मंदिर में
कुछ बातें कर ले तू भी अब , उसे बोलने वाले पेड़  से
एक  बार झुकने की ,थोड़ी सी ज़हमत तो उठा ले
चाहे तो  बाद में , मुझे अपने क़दमों में झुका ले
यह कविता नहीं तेरे लिए , मेरे दिल का एक  सन्देश है
उम्र है तमाम बाकी दोनों की ,अभी तो हमें प्रेम करना भी शेष है
फिर किसी संगदिल के लिए क्यों तेरे दिल में  यह प्रेम है
तू  भी समझ ले यह बात  की ,तेरा दिल  मेरे बिन रह नहीं पाया
बहुत  कोशिशें की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
उम्र भर कहीं   यह मलाल ना रह जाए
तूने मुझे बुलाया  ही नहीं ,यह ग़म  दिल में ही घुला  रह जाये
आ फिर से कुछ पल जी ले मिलकर
जुदाई में भी मौत है, तो क्यों ना मरे साथ मिलकर
अब तो यह क़ायनात  भी तुझे बुलाने के इशारे देने लगी है
क्यों तेरी गर्दन इतनी ज्यादा  अहम में अकड़ी है
आना तो तेरा दिल भी चाहता है
फिर तेरे पांवो में यह कौन सी जंजीर बंधी है
जिसे मेरा सच्चा प्रेम  अब तक तोड़ नहीं पाया
बहुत  कोशिशें की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...

बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की, पर भुला नहीं पाया ...
पड़े है कुछ अधूरे ख़त तेरे नाम के , जिन्हें कभी पूरा लिख नहीं पाया
लिखे खतों में बिखरे है दिल के दर्द और कुछ अधूरे से अफ़साने
ऐसे जज्बातों  को चाह कर भी,मैं  तुझे भेज नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
जलाता रहा उम्मीद का दीया , तेरे इंतजार में हर रात
सोचता था  तेरे दिल में भी जागेगी, मुझसे मिलने की चाहत
कभी मेरी भी  होगी, उम्मीदों की चांदनी रात
उम्मीद के इस दीये  को , बुझाने की हिम्मत कर नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की, पर भुला नहीं पाया ...
यूँ तो दिए थे तूने मुझे बहुत से उलहाने
दिए  भी थे तुझे भूल जाने के ना जाने कितने बहाने
बताये  भी  थे दूसरों  के साथ ,दिल बहलाने के कई ठिकाने
ऐसे बहकाने  के सहारे को , मैं चाहकर भी ढूंड नहीं पाया
क्यों करता हूँ इंतजार, तेरे आने का मैं हर पल
इस सवाल का जवाब, मैं अब तक समझ नहीं पाया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की पर भुला नहीं पाया ...
शायद यह बात मेरे वश  में नहीं ,
तू इसे कहे आसक्ति या आदत ,यह भी ठीक नहीं
क्यों तेरे ही मोहनी सूरत ,मेरे ज़हन  में हर वक़्त है बसी
क्या इस दुनिया में कोई दूसरा और  नहीं है हसींन
इन बातों को समझकर भी , मैं समझ नहीं पाया
समझाया दिमाग को बहुत  , पर दिल फिर भी बहल नहीं पाया
बहुत  कोशिशे की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
सोचता हूँ की बची जिंदगी , तेरी यादों  के सहारे  जियूं
या तेरे ग़म के बहाने ,जीते जी हर पल मरता रहूं
कैसे जियूं मैं तेरे बिना एक  भी पल
इसका मतलब मुझे समझ नहीं आया
तू मेरी होगी या नहीं , यह दर्द फिर से उभर आया
बहुत  कोशिशें  की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
तू आ जा वापस फिर से, भक्ति के संगम पर
मैंने  खुलवा लिया है दरवाजा , मोहब्बत के मंदिर में
कुछ बातें कर ले तू भी अब , उसे बोलने वाले पेड़  से
एक  बार झुकने की ,थोड़ी सी ज़हमत तो उठा ले
चाहे तो  बाद में , मुझे अपने क़दमों में झुका ले
यह कविता नहीं तेरे लिए , मेरे दिल का एक  सन्देश है
उम्र है तमाम बाकी दोनों की ,अभी तो हमें प्रेम करना भी शेष है
फिर किसी संगदिल के लिए क्यों तेरे दिल में  यह प्रेम है
तू  भी समझ ले यह बात  की ,तेरा दिल  मेरे बिन रह नहीं पाया
बहुत  कोशिशें की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
उम्र भर कहीं   यह मलाल ना रह जाए
तूने मुझे बुलाया  ही नहीं ,यह ग़म  दिल में ही घुला  रह जाये
आ फिर से कुछ पल जी ले मिलकर
जुदाई में भी मौत है, तो क्यों ना मरे साथ मिलकर
अब तो यह क़ायनात  भी तुझे बुलाने के इशारे देने लगी है
क्यों तेरी गर्दन इतनी ज्यादा  अहम में अकड़ी है
आना तो तेरा दिल भी चाहता है
फिर तेरे पांवो में यह कौन सी जंजीर बंधी है
जिसे मेरा सच्चा प्रेम  अब तक तोड़ नहीं पाया
बहुत  कोशिशें की तुझे भुलाने की ,पर भुला नहीं पाया ...
By
Kapil Kumar

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