Wednesday 26 October 2016

नारी की खोज –15



अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग -1 से  14 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफ़र  की आगे की कहानी.....




गतांक से आगे .......

नारी का चरित्र क्या है , उसके दिल में कब कौन सा तूफ़ान छिपा है या फिर किसके लिए कितना गुबार है या प्रेम का लावा है कौन जाने , बचपन में कहीं  पढ़ा था , की, नारी को कोई आसानी से नहीं समझ सकता, कहते है उसे तो बनाने वाला ब्रह्मा तक नहीं समझ पाया तो आम इन्सान की बिसात ही क्या है ?क्या नारी का चरित्र वाकई में इतना जटिल है या लोगों के व्यवहार  और समाज ने उसे इतना जटिल बना दिया है ?....

मैं, यह बात बहुत दावे से तो नहीं कह सकता की मेरी जीवन यात्रा में मेरे संपर्क में आई नारियों  के चरित्र को मैं भली भांति समझ पाया, पर जितना भी मैंने  उन्हें करीब से देखा ,समझा और परखा , मैंने  उसके पीछे छिपे भाव को जानने और समझने की एक  कोशिस जरुर की और इसी खोज में मैंने  जाना की इस दुनिया को बनाने वाले ने नारी के रहस्यमय चरित्र की एक  झलक जाने अनजाने  हमें किसी और तरीके से दिखानी और समझनी चाही है .....

अगर हम नर और नारी दोनों को प्राकृतिक अवस्था यानी बिना कपड़ो के देखे तो एक  बात कोई भी आसानी से देख कर बता सकता है , की कौन उत्तेजित यानी कामुक अवस्था में है या उनकी क्या मनोस्थिति है ? नर यानी पुरुष का मर्दना अंग प्रकृति ने ऐसा लगाया है की , उसकी स्थिति देख कर, पुरुष के मन में उठ रहे कामुक विचारों को आसानी से समझा जा सकता है ...

किन्तु इसके विपरीत किसी नारी के जननांग  यानी उसकी योनी को देख कर उसकी मनोस्थिति का पता लगाना इतना आसान  नहीं है ....हक़ीक़त  में नारी का वह अंग प्रकृति  ने नारी के शरीर में इस तरह से सजाया है की पहली नज़र  में वह दिखता  ही नहीं है अगर कोई उसके बारे में जाना चाहे तो उसे नारी के दिल और शरीर दोनों को समझना पड़ेगा , तभी आप किसी नतीज़े  पर पहुँच सकते है ,की नारी की सच्ची मनोवस्था क्या है ? क्या वह कामुक अवस्था में है या फिर झूठा व्यवहार  दिखा रही है ....

मेरे अनुभव से यही है नारी के चरित्र को समझने का गुरु मन्त्र , कहने का तात्पर्य यह है , की नारी के मन में झांकना , उसके व्यवहार  को समझना और उसकी परिस्थिति का सही अवलोकन करने के बाद ही आप किसी नारी के चरित्र को समझ सकने की कल्पना कर सकते है , बिना यह सब समझे आपका निष्कर्ष अधूरा  ही कहलायेगा ... ..नारी के व्यवहार  को देख उसके चरित्र का आकंलन गलत हो सकता है ...

यह मेरी जीवन यात्रा है जिसे मुझे ही ख़त्म करनी  है ,अब इसमें कितने सीधे , टेढ़े और मोड़ आयंगे और मुझे वह क्या अनुभव देते जायंगे यही मेरी यात्रा है ....विदेश में ,धीरे धीरे मेरी जिन्दगी अपनी रफ़्तार से चलने लगी और देखते ही देखते कई साल बीत गए , बीवी, बच्चे के साथ मैं आम आदमी की की भांति घर गृहस्थी की  जिम्मेदारियों में कोल्हू के बैल की तरह घिसटना लगा ... उस वक़्त मुझे अपने अकेलेपन के वे दिन याद आते थे ,जब मैं श्रीधर के साथ आवारा बादल बन इधर से उधर भटकता रहता था ...अब यह सब बीते ज़माने की बात हो चुकी थी ....दिन रात की तू तू , मैं मैं और बिना बात के स्यापों में उलझ जिन्दगी जीते जी एक जहन्नुम में तब्दील हो चुकी थी ....

मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं कभी अकेला इस दुनिया में रहा ही नहीं ,मैं दिन रात बच्चो और बीवी के लफड़ों और पचड़ों में उलझा रहता , बांकी  का वक़्त नौकरी की उलझन में गुज़रजाता , फिर भी कभी ना कभी किसी ना किसी बहाने अपनी जिन्दगी में आधी अधूरी सी झूठी ख़ुशी के पल ढूंड ही लेता ....

मेरे ऑफिस में साथ में काम करने वाले कुछ साथी लोग, शुक्र के दिन लंच में बाहर  किसी रेस्टोरेंट  में जाते थे , उस दिन सब लोग रिलेक्स के मूड में होते , की चलो काम का एक  हफ्ता ख़त्म हुआ और दो दिन का आराम शुरू होने वाला है , एक  दिन हमने ऑफिस से थोड़ी दूर एक  इंडो- पाक रेस्टोरेंट  में लंच खाने का प्रोग्राम बनाया , हम कोई 5/6 लोग दो गाड़ियों  में सवार लंच के लिए निकल पड़े ... गाड़ी पार्क करने के बाद हम करीब 3/4 लोग मस्ती में चलते हुए रेस्टोरेंट  की तरफ जा रहे थे , मैं कुछ अलग ही मूड में था इसलिए थोड़ा  ज़ोर ज़ोर  से गुन गुनाता हुआ जा रहा था , की अचानक सामने से एक  युवक और युवती आते हुए दिखलाई दिए ...युवक कोई 35/40 के बीच और युवती करीब 27/28 की उम्र की देसी सी लगने वाली लड़की थी ,जिसने अपनी तरफ से विदेशी जैसे दिखने की एक  असफल सी कोशिस की थी , उसे देख मुझे ऐसा लगा , इसे तो मैंने कहीं देखा है , पर अचानक से यूँ देखने पर याद नहीं आया की यह कौन है ?... उसने भी मुझे देखा और ऐसे मुंह  बिचका दिया की जैसे वह मुझे जानती तो है  पर पहचानती नहीं ...


उन दोनों के जाने के बाद , मेरे साथ वाले लड़कों ने मुझसे पुछा ,अरे , तू उन्हें क्यों घूर कर देख रहा था ? मैं बोला... यार यह लड़की कुछ जानी पहचानी सी लगती है , बस याद नहीं आ रहा , उन्होंने समझा की मैं बस ऐसे ही बहाना बना रहा हूँ , ख़ैर बात आई गई हो गई , हमने अपना लंच खत्म किया और रेस्टोरेंट  से बहार निकल आये , की वह लड़की फिर से दिखलाई दी , इस बार वह अकेली थी ...

मैंने  अपने दिमाग पर  ज़ोर  डाला तो मुझे याद आया , अरे यह तो वही रुख़्साना  है जो मेरे साथ 2/3 साल पहले AT&T  में काम करती थी ,मैंने  अपने साथ के लड़कों  से कहा अरे यह तो मेरे साथ पहले काम कर चुकी है और मुझे तो बहुत ही अच्छे से जानती भी है ... अभी हम बातें  ही कर रहे थे की  रुख़्साना हम लोगो की तरफ चली आई , इस बार मैंने  हिम्मत करके उससे पूछ लिया , अरे तुम वही हो ना , जो हमारे साथ उस ऑफिस में थी ...

उसने मुझे ऊपर से नीचे घूरा  और बोली , हाँ मैं तो वही हूँ , पर तुम अभी तक वैसे के वैसे ही लफंगे हो , यहां  भी सीटी बाज़ी से बाज नहीं आये , देखो कैसे लफंगो की तरह गाना गा रहे हो और ऐसा कह मेरी तरफ अपना मुंह बिचका कर निकल गई ...उसका इतना कहना था की मेरे साथ के लड़के मेरे पीछे पड़ गए और बोले , गुरु यह क्या मामला है , वह तो तुम्हे अच्छे से झाड पिला गई , मैंने एक  लंबी साँस ली और बोला , इसमें इसकी कोई गलती नहीं , इसका नाम  रुख़्साना  है और यह दिलजली है ... मेरी यह बात उनके समझ नहीं आई , मेरे साथ मेरा एक  करीबी दोस्त अमित भी था , ऑफिस में जब हम वापस आये तो वह मेरे पीछे पड़ गया और जिद्द  करके पूछने लगा , की  रुख़्साना  का क्या मामला था ?... मैंने  कहा मुझे अपने दिमाग पर  ज़ोर  डालने दे और फिर बताता हूँ ...

ऐसा कह मैं उन यादों  में खो गया जिन्हें मेने अपने दिल और दिमाग से ना जाने कबका उखाड़ कर फैंक दिया था ...पर  रुख़्साना  की इस हरकत ने जैसे सब कुछ फिर से जीवित कर दिया .....

अगर यादें  हसीन और दिल को सकून  देने वाली हो तो इन्सान उन्हें संजो के रखता है किन्तु यादें  कडवी , डरावनी और झिंझोड़ने वाली हो तो उन्हें इन्सान अपनी दिल और दिमाग से दूर रखने की हर संभव कोशिस करता है ....मुझे याद आने लगा की  रुख़्साना  से कैसे मुलाकात हुई थी .....

यह बात उन दिनी की है जब मैं अकेला रहता था और श्रीधर मेरा रूम पार्टनर था , उन दिनों हम सब अकेले , कुवांरे लड़के / आदमी ऑफिस की कैंटीन में लंच किया करते थे , बाकी लोग ऑफिस के पास अपने घरों  में चले जाया करते थे , एक  दिन हम 3 लोगो कैंटीन की किसी बड़ी सी टेबल पर  बैठे लंच कर रहे थे की , किसी के अचानक एक्सक्यूस मी कहने से हमारी बातचीत भंग हो गई .....

मैंने  गर्दन उठा कर देखा तो सामने एक  कुछ देसी विदेशी सी लगने वाली युवती खड़ी थी , उसने हमसे कहा की कैंटीन में सारी टेबल भरी हुई है , क्या वह हमारी टेबल पर हमारे साथ ज्वाइन कर सकती है ....हम तीन लड़के , जिसमे दो कुवांरे और मैं एक  अकेला शादीसुदा  , ऐसे में किसी खुबसूरत बला को भला कौन अपने गले ना लगाता ? हमने ख़ुशी ख़ुशी में गर्दन हिलाई और वह धम्म से टेबल से लगे सोफे पर धस गई , उस वक़्त मुझे क्या पता था , यह एक  ऐसी बला है जिससे पीछा छुड़ाने में " के के बॉस " को दांतों तले पसीना आने वाला था ....

युवती धम्म से सोफे पर  धंस गई और हम सबका बारी बारी से मुआयना करने लगी , जैसे कोई सरकारी अफसर अपने छापे के दौरान विभाग का करता है , उसने बताया की उसका नाम  रुख़्साना  है , वह पाकिस्तानी मूल की अमेरिकन नागरिक है .... देखने में  रुख़्साना करीब 24/25 की , मंझले  कद की युवती थी , उसका रंग कुछ कुछ सुनहरा और सांवले रंग का अजीब सा कॉम्बिनेशन था , देखने में वह ठीक ठाक सी लगती थी , पर ऐसा कोई आकर्षण उसमे मुझे ना लगा , जो मेरी यादों  में रच बस जाता ...

 रुख़्साना  ने बैठते ही जो बोलना शुरू किया , ऐसा लगा जैसे किसी रेडियो का बटन   ऑन  करके उसे छोड़ दिया गया हो , हमारे पल्ले उसकी आधी बातें  पड़ी , कुछ तो उसकी तेज रफ़्तार की अंग्रेजी और कुछ हम लोगो की सुस्त रफ़्तार की समझ ,एक  अज़ीब  सा घालमेल कर रही थी ...की अचानक मेरे मुंह  से कुछ हिंदी में निकला , फिर क्या था रुख़्साना हिंदी / उर्दू में शुरू हो गई ,उर्दू भले ही लिखने में अलग हो पर बोल चाल में हिंदी जैसी ही हो जाती है , अंग्रेजी या उर्दू दोनों ही बोलने में उसकी रफ़्तार का मुकाबला करना कम से कम हम सब के लिए असम्भव था ....

थोड़ी ही देर में उसने हम सबका इंटरव्यू ले डाला , की कौन क्या करता है और कौन कुवांरा है ...जब मेरी बारी आई तो मेरे साथ बैठे दोनों लड़के हंसने  लगे , रुख़्साना ने मेरी तरफ अपनी गोल गोल आँखे नचाते हुए पुछा तो हज़रत  , आप अपने बारे में कुछ नहीं बतायंगे ?

पता नहीं मेरे साथ बैठे लड़के क्यों हंस रहे थे ,की मैं संजीदा होते हुए बोला , “अरे मैं तो शादी शुदा हूँ “ मेरा इतना कहना था की साथ बैठे दोनों लड़के फिर हंसने  लगे , उनको हँसता देख रुख़्साना  ने अपनी कटीली आँखों में ज़हर  के तीर बुझाये  और मेरे तरफ व्यंग  बाण चलाते हुए बोली तो जनाब अब फ़रमायेगें  की , “मैं एक  बच्चे का बाप भी हूँ”.... .. और ऐसा कह वह उन दोनों के साथ ज़ोर ज़ोर  से हंसने  लगी .....

मैंने  गंभीर होते हुए कहा , हाँ यह भी सच है , चाहे तो इन दोनों से पूछ लो , साथ बैठे लड़के बोले , हाँ यह इकदम सही बोल रहा है और ऐसा कह वह फिर से हंसने  लगे ...रुख़्साना ने बात बदल दी और लग गई अपनी किसी राम कहानी को सुनाने , वह जब बोलना शुरू करती तो रूकती ना थी , उससे ज्यादा बोलने वाला शख्स  मैंने आजतक नहीं देखा ...हम सबने अपना अपना लंच खत्म  किया और रुख़्साना से विदा ली और अपनी अपनी सीट पर चले गए ...

दो दिन बीते की मेरे ऑफिस में फोन की घंटी बजी ,मैंने  जब रिसीवर उठाया तो , वहां से एक  युवती की आवाज सुनाई दी , जो मेरे लिए इकदम अनजान थी , मैं अभी कुछ कहता की उसना अपनी रामायण शुरू कर दी और उसी दौरन उसने मुझे एक  अच्छी खासी झाड़ भी पिला दी की , मैं दो दिन में उसे कैसे भूल गया , जब उसने मेरा भेजा अच्छे से चाट लिया तब समझ आया , यह तो रुख़्साना नाम की मुसीबत थी ...

अब हर तीसरे चौथे दिन रुख़्साना नाम का जंतु मेरा भेजा चाट लेता , मैं भी अकेला था , इसलिए टाइम पास करने में मुझे कोई ऐतराज़  ना लगा , अब यह मुसीबत भी अपनी तरह का एक  जूनून थी , दिल अंदर से बल्ले बल्ले करता की एक जवान खुबसुरत लड़की लाइन दे रही है पर दूसरी तरफ उसकी बुल्ली गिरी से डर भी लगता , रुख़्साना के इतना ज़्यादा बोलने से मेरा उसके प्रति एक नर और नारी वाला आकर्षण ना जाने कहाँ लुप्त हो गया , वह मेरे लिए सिर्फ अकेलापन में शोर करने वाला रेडियो बन गई थी ...ना जाने किस जोश में मैंने  उसे अपने घर का फोन नंबर दे दिया , शायद मैंने  सोचा की ऑफिस में चटने से अच्छा है , जब घर में बोर लगेगा, टाइम पास हो जाएगा ....अब रुख़्साना का आये दिन घर में फोन बजा देती , उसका पहला सवाल होता , तो..

आजकल क्या एक्टिविटीज चल रही है ,शाम का क्या प्रोग्राम है ? इस वीक एंड पर कहाँ जाने का प्रोग्राम बना रहे हो ?....

मुझे समझ ना आता की इन सब का क्या मतलब है , यह लड़की बस घुमने फिरने और इधर उधर की बातों में ही लगी रहती है , मेरा जवाब होता , इस हफ्ते कपडे धोने है , कारपेट पर वैक्यूम  करना है घर बहुत गन्दा है , कल ग्रोसरी लानी है , अगले  हफ्ते बाहर जाना है , आदि आदि ...शुरू शुरू में श्रीधर को उसकी बातों  में बड़ा मजा आता की , किसी लड़की का घर पर फोन आता है और उसे भी गुफ़्तगू करने का मौका मिल जाता ....धीरे धीरे श्रीधर भी उसकी बातें  सुन कर पक गया , एक  दिन मेरे साथ काम करने वाली एक  लड़की ने रुख़्साना के बारे में बताया की उसे काम से निकाल दिया गया है , क्योंकि उसने ऑफिस में सबका भेजा इतना चाटा की हर कोई उसे देख भाग खड़ा होता , वह लड़की बोली , यह तो गर्दन का वह दर्द थी , जिसका इलाज़  किसी के पास ना था ...मैं मन ही मन खुश हुआ , चलो मुसीबत से पीछा छुटा ....

इस बीच कुछ दिन बीत गए , की एक  दिन उसका फिर से फोन आगया और बोली , जल्दी से तैयार हो जाओ आज तुम्हें मेरे साथ एक  फॅमिली पार्टी में चलना है , वहां मैं तुम्हे कुछ बड़े बड़े लोगो से मिलवायुंगी ....मैं बोला , मेरे पास तो गाडी ही नहीं है मैं कैसे पहुंचूंगा ?.. वह बोली ऐसा है मैं तुम्हे घर से पिक कर लुंगी ...अब चौंकने  की बारी मेरी थी , मैं बोला , वह क्या है मेरी बीवी आने वाली है तो उस चक्कर में कुछ कर रहा हूँ ..मेरी बात सुन वह हँसते हुए बोली , अरे नहीं जाना तो मत जाओ , पर बहाने तो अच्छे बनाओ , मैं बोला नहीं सच में , मेरी बीवी आने वाली है ...मेरा तो एक  बच्चा भी है , आजकल वह लोग फ्लोरिडा में है , बस उन्हें लेने जाना है उसकी तैयारी में लगा था .....

मेरा इतना कहना था की रुख़्साना का स्वर अचानक से कसैला  हो गया उसने मुझे फोन पर  मेरी अच्छी खासी हज़ामत  बना दी , यू चीट ,धोखेबाज ,झूठे , फरेबी , स्क्रौंडल , और न जाने कौन कौन सी गाली जो सब उसे आती थी उसने सब मुझे दे डाली , अब मुझे समझ नहीं आया की मैंने  इसके साथ ऐसा क्या कर दिया ? जो यह मेरी इतनी इज्जत अफ़ज़ाई कर रही है , हक़ीक़त  में तो मैंने  उसके साथ चाय या कॉफ़ी तक भी ना पी थी ...बाकी की और बात की कल्पना ही मुश्किल है ...जब वह थक गई तो फोन से उसके रोने की आवाज आने लगी , तब मैंने  बड़े ही आराम से पुछा , भाई मैंने  तुझे कौन सा धोखा दे दिया ?....

वह बोली तुमने मुझ से यह बात क्यों छिपाई की तुम शादीशुदा और एक  बच्चे के बाप भी हो , अब चौंकने की बारी मेरी थी , मैं बोला अरे याद है जब हम पहली बार कैंटीन में मिले थे , मैंने  तो कहा था की मैं शादी शुदा और एक  बच्चे का बाप भी हूँ , इस पर रुख़्साना निरुत्तर हो गई और रुवांसे स्वर में बोली , वह तो मैंने  मज़ाक समझा था , तुम लोग बातें  ही कुछ ऐसी कर रहे थे ...थोड़ी देर के शिकायत और शिकवे के बाद उसने यह धमकी देते हुए रिसीवर रखना चाहा की यह मैंने  जानबूझ कर नहीं किया , वरना वह मुझे एक  लड़की को धोखा देने के जुर्म में अंदर करवा देती ...मैं भडकते हुए बोला , मैंने  तेरे साथ क्या कर दिया जिसे तू धोखा कह रही है , मैंने  तो आजतक तुझे फोन भी नहीं किया , मुझे तो तेरा नंबर तक नहीं मालूम , मेरी बात सुन उसने एक  दो गाली और दी , फिर फोन काट दिया ,मैंने  भी राहत की साँस ली और सोचा चलो मुसीबत से हमेशा के लिए पीछा छूटा ...


पर मुझे रुख़्साना का व्यवहार  समझ नहीं आया की उसने ऐसा क्यों किया , उसका मन होता वह फोन करती थी , खुद ही इधर उधर घूमने की बात करती , उसकी मेरी कभी कोई ऐसी एक  भी बात हुई जिसे मैं किसी खास या दोस्ती जैसे सन्दर्भ में भी रख सकता और उसपर  उसने हमेशा ऐसा बर्ताव  दिखाया जैसे मैं उसका ख़रीदा हुआ गुलाम हूँ , जब उसकी मर्ज़ी होगी , मैं हाज़िर  हो जायूँगा ...सिर्फ अपने बारे में सोचना की कब उसे क्या चाहिए .....मेरे लिए नारी का यह चरित्र अपने आप में एक अज़ब पहेली था , की वह क्या चाहती है , उसका व्यवहार  , उसके दिल और दिमाग दोनों से एकदम  जुदा था ....

इस बात को कुछ दिन /महीने बीत गए , मैं भी सब कुछ भूल भाल कर आम आदमी वाली घर गृहस्थी की जिन्दगी में रम गया ...की , एक  दिन फोन पर  फिर से रुख़्साना  अवतरित हो गई , उस वक़्त घर में कोई न था , बीवी बच्चे बाहर  पार्क में थे , उसने वही पुराने अंदाज में अपना घिसा पीटा डायलॉग मार दिया , हाँ तो आजकल क्या एक्टिविटीज चला रही है ? मैं बोला , अब समय ही कहाँ  मिलता है सब बीवी बच्चों के  चक्कर में निकल जाता है , रुख़्साना  बोली , मैंने  इसलिए फोन किया था की , आज कोई फॅमिली फंक्शन है तो तुम्हे लेने आ जाऊं  ? मैं बोला ... तूने तो पिछली बार मुझे ना जाने क्या क्या कहा था , अब तेरा मेरा क्या रिश्ता ? मेरी इस बात पर  वह रूवांसी हो गई और माफ़ी मांगने लगी ...

मैं बोला वह सब तो ठीक है पर अब मैं अकेला कैसे आ सकता हूँ ,मेरी बीवी बच्चे सब साथ में ही है , उन्हें अकेला छोड़ कैसे आऊं  ? वह बोली कोई बात नहीं तुम अपने बीवी बच्चो को भी साथ ले आओ , मुझे कोई आपत्ति नहीं है , मैं बोला मेरी बीवी ना मानेगी तो वह जिद्द  करते हुए बोली ,कहो तो मैं तुम्हारे घर आकर तुम्हारी बीवी से बात करूँ ,अब उसे कौन समझाता की उसे तो आपत्ति नहीं है , पर मेरी बीवी जो चंडी बनकर नाचेगी उसे कौन संभालेगा ?...

मैंने रुख़्साना  को टालने  के लिए कह दिया , भाई अब मुझे फोन मत करना , बेकार में इस बात को आगे बढाने से क्या फायदा और ऐसा कह मैंने  उसका फोन काट दिया ? उसके बाद थोड़ी देर तक फोन की घंटी बजती रही, फिर मैंने  रिसीवर उठकर लाइन को बिज़ी करके छोड़ दिया ...पर यह मुसीबत इतनी जल्दी मुझे छोड़ने वाली ना थी , रुख़्साना आए दिन अब ऑफिस में नंबर मिला देती , मैंने  उसे कई बार समझाया की भाई तेरे साथ में गठजोड़ नहीं बनेगा ? मेरे तो पहले ही एक  बीवी है ,तो वह बोली ,मुझे तुम्हारी बीवी के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं ,उसकी बातों  से ऐसा लगता था जैसे वह मेरी दूसरी बीवी बनने के लिए तैयार थी ....

उसकी बात सुन मेरे दिमाग के पुर्जे पुर्जे हिल गए अब उसे कौन समझाता की , मेरी रूह तो उसके नाम से ही कांपती है , उसकी आवाज सुन कर तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है , अब उसके साथ घर में रहने की सोचने भर से किसी डरावनी फिल्म की याद आने लग जाती ......अब उसके बाद जब भी उसका फोन आता , उसकी आवाज सुन मैं रिसीवर रख भाग खड़ा होता , ऐसा लगता जैसे कोई भूतनी मेरे पीछे लग गई है , फिर कुछ महीनों  बाद  अचानक ही  उसके फोन आने  बंद हो गया और ऐसा कह मैंने एक  गहरी साँस ली और चुप होकर अमित की आँखों में देखने लगा ...

मेरी कहानी सुन अमित को एक  पल विश्वास न हुआ , वह बोला गुरूजी कुछ ऊँची हांक गए , वह तो ऐसे बात कर रही थी जैसे तुम उसके पीछे दीवाने थे , मैंने  अमित की आँखों में देखा और बोला , भाई वक़्त वक़्त की बात है ! 

“ कभी नाव पानी के अंदर तो कभी पानी नाव के अंदर हो जाता है “ और ऐसा कह मैंने  उस बात को वहीँ ख़त्म कर दिया ...

इन्सान की फ़ितरत भी अजीब है , जब हम किसी ऐसे इंन्सान को ठोकर मारते है जो हमारे पीछे दीवानों की तरह पड़ा हो तो हमें अपने अंदर एक गर्व महसूस होता है की , हम कितने स्मार्ट या आकर्षित हैं , पर वक़्त आने पर  उसी इन्सान की बेरुखी ना जाने क्यों अंदर ही अंदर हमारे अंदर एक  हलचल सी मचा देती है और इन्सान अपने आप से पूछने लगता है की , जो कल तक मेरे पीछे पागल दीवाना था , वह आज अचानक से इतना उदासीन क्यों हो गया , क्या मैं अपना आकर्षण खोने लगा हूँ ?

नारी का यह चरित्र मेरे लिए कुछ अजीब था , मुझे समझ नहीं आया की ,मैंने  कभी रुख़्साना में ना तो कोई दिलचस्पी ली , ना कभी इसके साथ कहीं बाहर  गया और ना ही मैंने  कभी इसे फोन किया , फिर भी इसकी गाली खाई और आज ऐसे दिखा रही थी जैसे मैं इसके पीछे पड़ा कितना बड़ा मज़नू था ...इसी कशमकश में पड़ा ऑफिस ख़त्म करने के बाद घर को चला आया ...घर पर  आया तो याद आया , अरे घर में तो कोई भी नहीं है ,बीवी बच्चे सब तो इंडिया में है , न जाने क्यों यह अकेलापन फिर से मुझे डराने लगा ....घर में पड़े पड़े जब मन किसी भी काम में ना लगा तो मैंने  अपने एक  कैनेडियन दोस्त रिकार्डो को फोन किया और बोला , यार बहुत बोर लग रहा है चलो आज कहीं  मस्ती करने चलते है ... रिकार्डो और मैं पहले एक  ही कंपनी में साथ काम करते थे , वह कुवांरा था और उन दिनों उसके पास टाइम पास का कोई ख़ास ठिकाना ना था उसने भी तुरंत फुरंत में अपनी गाडी उठाई और मेरे अपार्टमेंट में आ गया ....

रिकार्डो एक  28/30 साल का एक  आकर्षक युवक था , उसे भी मेरे साथ घुमने फिरने में मजा आता था, वह हमारे घर में सबसे अच्छे से घुला मिला हुआ था ,होने को तो वह गोरा था मेरी पर बीवी उसे जो भी खाने को देती वह पता नहीं कैसे सब कुछ खा लेता , अच्छा बुरा , इंडियन अंग्रेजी सब , उसने कभी उफ्फ तक ना की , दूसरे  मेरा लड़का उसे बहुत पसंद करता था , घर आते ही उसने पुछा बताओ कहाँ चलना है ? मैं बोला यार स्ट्रिप क्लब के बारे में सुना तो बहुत है , क्यों ना आज उसके दर्शन भी कर लिए जाए ?


मेरी फरमाइश सुन रिकार्डो ने एक  कुटिल मुस्कान मुझ पर  डाली , फिर ऊँची सी आह भरी और बोला , अगर मैं गलत नहीं हूँ ,तो , तुम तो एक  शादी शुदा आदमी हो , फिर स्ट्रिप क्लब जाने का क्या मतलब ? मैं बोला यार जब मैं कुवांरा था , तब स्ट्रिप क्लब मेरे देश में कंहा था , वैसे भी अब बीवी बच्चे सब इंडिया गए है , तो क्यों ना थोड़ी मस्ती कर ली जाए ..मेरी बात सुन रिकार्डो ने एक कुटिल मुस्कान मारी और सेल फोन से स्ट्रिप क्लब के एड्रेस ढूंढने  लगा ...उसने बताया घर से 20 मील की दूरी  पर दो स्ट्रिप क्लब है ..मैं बोला चल दोनों पर ही नज़र  मार लेते है और ऐसा कह , हम दोनों उसकी गाडी में सवार होकर निकल गए ...


करीब आधे घंटे की ड्राइव करने के बाद हम एक  स्ट्रिप क्लब पहुँच गए , रिकार्डो ने गाडी पार्क की और हम क्लब के सामने पहुँच गए , बाहर से देखने में यह एक आम सा रेस्टोरेंट   लगता था , जिस के साइन बोर्ड पर क्लब के नाम के साथ “जेंटलमैन क्लब “ लिखा था ...मैंने  नाम पढ़ा और रिकार्डो से बोला ,यहां जेंटलमैन क्लब क्यों लिखा है ? रिकार्डो हंसा और बोला , क्योंकि यहां हमारे तुम्हारे जैसे जेंटलमैन लोग जो आते है और ऐसा कह हम दोनों ज़ोर ज़ोर  से हँसते हुए क्लब में दाखिल हो गए .....

अभी क्लब में घुसते की दरवाजे पर  खड़े एक  हट्टे कट्टे मुस्टंडे ने ,जो शायद बाउंसर था , हमें रोक लिया और बोला अपनी आई डी दिखलाओ , मैंने पूछा आई डी किसलिए ?  , वह बोला देखने के लिए की तुम 18 साल से ऊपर  के हो या नहीं , इसपर मैंने  अपने टकले होते सर को उसके आगे किया और बोला , इससे बड़ी आई डी और क्या होगी ...मेरी इस बात पर  वह हंसा और हमें  अंदर जाने के लिए रास्ता देता हुआ बोला , नो फोटो , नो सेल फोन कॉल इनसाइड , हमने उसकी बात पर  सर हिलाया और दोनों अंदर चले आये ...


क्लब में अंदर घुसते ही मेरे होश उड़ गए , ऐसा कुछ माहौल  सिर्फ अंग्रेजी फिल्मों में देखा था , पर हकीकत  में तो यह उससे कंही ज्यादा उत्तेजक और रंगीन था , क्लब में कुछ अधेड़ उम्र के आदमी बैठे अपनी ढली हुई जवानी को खोज रहे थे ,क्लब में चारोँ   तरफ पूर्ण रूप से निर्वस्त्र नारियां उनके इर्द गिर्द मंडरा रही थी ...जिधर नज़र  उठाओ सांचे में ढली प्राकृतिक अवस्था में एक  से बढ़कर एक  हसीन , कमसीन ,दिलकश नारी के दर्शन उपलब्ध थे , क्या गोरी और क्या काली या कुछ और ....ऐसा माहौल  शायद जन्नत में भी ना होता होगा और इस दुनिया में भी कहीं  हो सकता है , इसकी कल्पना मेरे जैसे इन्सान को कदापि ना थी.....

क्रमश : ........ 

By
Kapil Kumar 

यह कैसी मोहब्बत ....


यह कैसी मोहब्बत ....
पहले तुमने मेरे कान फोड़े की मैं सच्ची बात सुन ही ना सकू
अब क्यों मीठे गीत सुनाते हो , जब मैं सुन ही नहीं सकता
फिर यह कैसा अफ़सोस जताते हो .....


फिर तुमने मेरी ज़बान काटी की मैं तुम्हें कुछ कह ना सकू
अब क्यों मुझसे हमदर्दी के बोल सुनना चाहते हो, जब मैं बोल ही नहीं सकता
फिर क्यों यह आसूं बहाते हो .....


फिर तुमने मेरी आँख फोड़ी की मैं तुम्हारी हक़ीक़त  से रूबरू ना हो सकूँ
फिर क्यों यह छद्म श्रृंगार सजाते हो , तुम्हें तो मैं अब देख भी नहीं सकता
फिर क्यों मुझे अपनी सुन्दरता की बातें बताते हो .......


फिर तुमने मेरे हाथ काटे की मैं तुम्हे यूँ बहकने से रोक ना सकूँ
फिर क्यों अपने हाथों  से मुझे पकवान बनाकर दिखाते हो
मैं कितना लाचार हूँ , इन्हें खा भी नहीं सकता
फिर क्यों इस बात पर  उदास हो जाते हो ...


फिर तुमने मेरे टाँगे तोड़ी की मैं तुम्हे गिरने से संभाल ना लूँ
अब क्यों अपनी पीठ पर  मुझे उठाते हो
मैं कहीं  अब चल  फिर भी नहीं सकता
फिर क्यों इस बात का ग़म  मनाते हो .....


फिर तुमने मेरा दिल चीरा की मैं इस दिल को तुमें कहीं  दे ना दूँ
अब क्यों उसके रिसते खून को को बहने से बचाते हो
मैं तो अब साँस ले भी नहीं सकता
फिर क्यों मुझे जिन्दा करवाते हो ....


अब तो बस मैं एक सड़ी हुई लाश हूँ
फिर क्यों इसका बोझ उठाये इधर उधर मारे फिरते हो
जब मैं एक  जिन्दा इन्सान था ,तब तुम्हे इल्म ही ना था
की मैं देख , सुन , बोल ,अहसास  और मोहब्बत भी कर सकता हूँ
अब जब मैं सिर्फ एक  मिटटी हूँ
फिर क्यों इसमें अपनी मोहब्बत को ढूंढने आते हो ...



By 

Kapil Kumar 

मेरा चाँद



तू देखती है क्यों चाँद को यूँ छिप छिप  कर
एक  बार अपना मुखड़ा देख ले मेरी आँखों में जी भरकर……

आज तुझे तो देख चाँद भी शरमाएगा 
यूँ बिना पर्दा ना जा, फिर वह कैसे घटाओं  से बाहर  आएगा……

मुझे एतराज़ है तेरी इस नादानी पर
कैसे बढ़ जायेगी मेरी उम्र तुझे यूँ भूख प्यासा रख कर…..

तेरे रसीले होंठ तो मेरे तरसते लवो का जाम है
जब यही है प्यासे तो फिर किसे आराम है ...

तेरे चेहरे का नूर ही तो मेरे अंधियारे का उजाला है
जब तू है भूखी प्यासी, फिर कैसे हो सकता मेरा गुज़ारा है…..

आ मेरी बांहो में आ जी भर कर प्यार करे
इस लंबी उम्र पर है धिक्कार जो तुझे मुझसे यूँ दूर करे ….

साथ साथ जीने के लिए ही तो बने है यह सारे अफ़साने
फिर मुझसे दूर जाने के क्यों बनाते ही नए नए बहानें  ….

छोड़ अपनी ज़िद  , अब तो मेरे करीब आ जा
तेरे दो पल के साथ के लिए कर सकता हूँ पूरी जिंदगी का सौदा ...

By
Kapil Kumar 

Sunday 2 October 2016

नारी की खोज –14

अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग –--1 से 13 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफ़र  की आगे की कहानी.....
गतांक से आगे .......

जैसे जैसे मनुष्य का विकास होता गया उसने अपने को खुश रखने और अपना मनोरंजन करने के कई साधन विकसित कर लिए ..उनमे से एक  था नृत्य और संगीत , मतलब नाच और गाना ...भारत के इतिहास को देखे तो राजा महाराजाओं के यहां  उनका मनोरंजन करने के लिए राज नर्तकी तो नवाब और सेठ लोग तवायफ़  के कोठो पर जाकर उनके नाच और गाने से अपना मनोरंजन कर लेते थे ...धीरे धीरे इनका रूप बदलता गया ....आजकल जवान लोग किसी डिस्को में जाकर इसका शगल पूरा करते है तो अधेड़ उम्र की औरतें  /लड़कियां किसी शादी के मौके पर लेडीज़ - संगीत के बहाने और आदमी सड़क पर बारात में नाच कर अपना अपना शौक पूरा कर लेते है ... ...

पर पश्चिम में लोग पार्टनर के साथ डांस करना पसंद करते है , क्योंकि ऐसा डांस एक  नर और नारी के बीच में जो सम्बन्ध स्थापित करता है , वह सिर्फ करने वाला ही समझ सकता है , बाल डांस या स्विंग या फिर कुछ और , आदमी और औरत के बीच एक  नयी तरह की केमिस्ट्री बना देता है ....जहां नर और नारी एक  साथ नाचते है ,वहां उनमें  नारी के प्रति प्रेम और सम्मान दोनों होता है ....यही वजह है पश्चिम में नारी को बराबर का अधिकार और सम्मान मिला हुआ है...

शायद आज की पीढ़ी में डिस्को का चलन भी इसलिए बढ़ा ...की कैसे दो अनजान लोग डांस के सहारे एक दूसरे को समझ सकते है ...हमारे देश में डांडिया के अलवा कोई ऐसा डांस नहीं, जहां मर्द और औरत एक  साथ नाचते हो और शायद यही वज़ह  है की जहाँ डांडिया होता है वहां औरत मर्द के साथ आजादी की साँस भी लेती है ....

मैं घर , बीवी और बच्चे से दूर एक अनजान शहर में अकेला अपना समय किसी तरह से काट रहा था .... की एक  दिन ऑफिस में मेरे साथ काम करने वाले किसी साउथ इंडियन लड़के ने अपने दोस्त श्रीधर को मेरे साथ रूम पार्टनर बनने का सुझाव दिया ,ताकि हम दोनों मिलकर अपार्टमेंट शेयर कर ले , जिसे मैंने  ख़ुशी ख़ुशी मान लिया ...

श्रीधर एक  24/25 साल का तेलगु लड़का था , जिसमे आत्मविश्वास और कंप्यूटर नॉलेज का टैलेंट कूट कूट कर भरा था , जहाँ एक तरफ मैं नौकरी में डरते , दबते हुए काम करता , क्योंकि एक  कड़वा अनुभव मेरे आत्मविश्वास को हिला चूका था ,वहीँ  दूसरी तरफ वह बिंदास होकर काम करता और साथ में पूरी ऐश भी करता , वह मेरे साथ काम करने वाले आम तेलगु लोगों  से थोडा जुदा था , जो पैसे खर्च करने के नाम पर उसे रूपये और डॉलर के मोल - तोल  में पड़ जाते थे ,उसे पैसे खर्च करने , पश्चिमी सभ्यता  का मज़ा मजा लेना आदि का भरपूर शौक था ...जैसे वह अमरीका की जिन्दगी को अच्छे से घोल कर पी जाना चाहता हो ...

इसके विपरीत, मैं एक  आम विवाहित आदमी वाली जिन्दगी बसर कर रहा था जैसे  नौकरी करना , घर पर खाना बनाना आदि और बाकी वक़्त में बीवी बच्चो का फोन पर हाल चाल पूछ कर गुज़ार  देता......शायद हम दोनों की उम्र और जिम्मेदारियों का फ़र्क  था की हम दोनों एक  घर में रहते हुए भी अलग लाइफ स्टाइल अपनाये हुए थे ....

एक  दिन शुक्र की शाम को श्रीधर जल्दी घर आ गया ....उसे यूँ आया देख मुझे हैरानी हुई ,तो वह मुझसे बोला , यार आज मैं कुछ दोस्तों के साथ डिस्को जाने वाला हूँ , आज तो मस्त माल के साथ फूल टू ऐश करेंगें , उसकी बात सुन मैं भी जोश में बोला यार डिस्को के बारे में सुना तो बहुत है पर देखा कभी नहीं ,मैंने भी अधीर होते हुए कहा ,क्या मैं भी तेरे साथ चलूँ ?  ....


इस पर वह असमंजस में पड गया और बोला , मैंने  भी कभी नहीं देखा , पर मैं अपने ऑफिस के कुछ दोस्तों  के साथ जा रहा हूँ , अगर वे  माने तो तू भी हमारे साथ चलना , अभी थोड़ी देर में वह लोग मुझे लेने आने वाले है ...मैंने  उसकी बात मान ली और सोचा देखते है क्या होता है ....

स्प्रिंग का महिना था और अभी भी रात में हल्की  ठण्ड हो जाती थी , इसलिए मैंने  जींस के साथ शर्ट और साथ में एक  हुडी वाला स्वेट शर्ट डाल लिया ,उधर श्रीधर ने कोई औपचारिक सा पेंट शर्ट पहन लिया ....मैं और श्रीधर तैयार हो कर उन लागों के आने का इंतजार करने लगे ...करीब आठ बजे एक  बड़ी सी स्पोर्ट्स वैन  हमारे घर आकर रुकी ,जिसमे से दो लड़के उतरे और अपार्टमेंट में आ गए .... श्रीधर ने मेरा उनसे परिचय कराया ,उनमे एक  देसी लड़का जिसका नाम रमन  और दूसरा वियतनामी जैसा जिसका नाम टुई था ,श्रीधर टुई से बोला यार , यह भी हमारे साथ चले तो कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ?.....

दोनों लडको की उम्र कोई 26/27  के करीब रही होगी , उन्होंने मुझे देखा और कुछ पल मन ही मन सोचा ...फिर औपचारिकता  वाले लहज़े  में बोले ...हाँ हाँ कोई बात नहीं कुछ एडजस्ट कर लेंगे ...फिर टुई मेरी तरफ देख कर बोला यार तुमने कपडे तो ऐसे ही डाल लिए कुछ डैशिंग जैसा पहनते ,अब कैनवास के जूतों और हुडी पहनकर कैसे डांस करोगे ? मुझे समझ ना आया की मैं क्या कहू , क्योकि मुझे लगा की ऐसे क्लब में कुछ भी पहनकर जा सकते है ...रमन  ने भी मुझे देख अपना मुंह  बिचका दिया ,जैसे मन ही मन कह रहा हो की यह अंकल हमारे साथ कैसे एडजस्ट होगा ....टुई यहीं  का पला बड़ा हुआ था जबकि रमन  इंडिया से कोई साल भर पहले आया था ......उस वक़्त दोनों अपने को बड़ा स्टाइलिश और स्मार्ट समझ रहे थे ...


वह तीन कुंवारे  और मैं 33/34 की उम्र का अधेड़ जिसके जिम्मे एक  बीवी और बच्चे का बोझ , उसपर  उसकी हल्की  सी निकलती तोंद और चेहरे पर  साफ़ साफ़ झलकता अधेड़पण ,यूँ भी देखने में मैं उनके साथ थोडा मिसफिट जैसा ही था ...मैंने  बदले में एक  मुस्कान मारी और सोचने लगा , की क्या दिन आगये , हम भी एक  ज़माने में "के के बॉस" हुआ करते थे ....उस वक़्त उनकी हिक़ारत को मैंने मज़ाक  में उड़ा दिया या यूँ कहे की मुझ पर डिस्को जाने का भूत इतना चढ़ा था ...मैंने  उनकी सोच और नज़रों  की परवाह ही नहीं की और उनके साथ में उनकी गाडी में लटक लिया ....गाडी रास्ते पर जा रही थी और मेरी सोच कहीं ओर  ...मेरा मन अपने आप को तसल्ली देने के लिए सोच रहा था ..की ...

“शेर कितना भी बुड्डा हो जाए घास फिर भी नहीं खाता और उसकी एक  दहाड़ और झपटे से खूंखार से खूंखार कुत्ते दुम दबाकर भाग जाते है ".....

मैं अपने दिल को तसल्ली दे रहा था , पर उस वक़्त मुझे क्या पता था की इस शेर की पूंछ को अभी कई बार और मरोड़ा जाना बाकी था ....थोड़ी देर चलने के बाद गाड़ी किसी अपार्टमेंट काम्प्लेक्स के पास आकर रुक गई , मुझे बड़ी हैरानी हुई की हम लोग इतनी जल्दी कैसे पहुँच गए .?.. .वहां डिस्को जैसा तो कुछ नज़र  नहीं आ रहा था ....मैंने हैरानी से पुछा क्या हम डिस्को क्लब पहुँच गए , इस पर तीनों  ने एक  ठहाका लगाया और बोले , अरे डूड सब्र करो , इतनी जल्दी भी क्या है , वहां  भी पहुँच जायंगे ?...

फिर श्रीधर ने मुझे बताया की यहाँ  से कुछ लड़कियां भी हमारे साथ चलेंगी और ऐसा कह तीनों एक अपार्टमेंट की तरफ बढ़ गए ....उनके पीछे पीछे घिसटता हुआ मैं भी अपार्टमेंट में दाखिल हो गया ..जैसे ही अपार्टमेंट का दरवाजा खुला की , दो गोरी लडकियां ख़ुशी में चिल्लाते हुए बाहर  आई ...एक  टुई से तो दूसरी रमन  से लिपट गई , फिर वो ,उन दोनों का हाथ पकड उन्हें अपार्टमेंट के अंदर ले गई....

उनकी नजर जब श्रीधर की तरफ पड़ी तो दोनों ने हाथ बढाकर उससे हाथ मिल लिया , मुझे देख उन्होंने औपचारिकता वाला हेल्लो कह कर अपनी अपनी नज़र  टुई और रमन पर  जमा दी ...वे चारों  आपस में बात बात पर  कभी “हैं” तो कभी “ऊ” करके हँसते और एक दूसरे  से लिपट जाते ....

मैं और श्रीधर कबाब में पड़ी हड्डी की तरह वह नज़ारा देख रहे थे ...हकीक़त  में श्रीधर तो कबाब में पड़ी हड्डी था और मैं तो हड्डी भी नहीं लग रहा था .....क्योंकि  श्रीधर उन लोंगों के वार्तालाप में कभी कभी कुछ हंस बोल देता और मैं मूक दर्शक बना हुआ , उनकी बातें सुन भर रहा था ....मैंने  श्रीधर से पुछा , यह कौन बला है तो श्रीधर बोला यह इसकी  गर्लफ्रेंड है , यह भी हमारे साथ डिस्को जायंगी ...

फिर श्रीधर ने जैसे मुझसे पूछ लिया , तुझे डांस वगैरह  आता तो है ना ? मैंने  श्रीधर की तरफ देखा और बोला , अभी तूने मुझे देखा ही कहाँ है और ऐसा कह मैंने एक गहरी साँस ली शायद श्रीधर भी मन ही मन मुझे ला कर पछता रहा था , की काहे एक  बीवी बच्चे वाले आदमी को साथ लेकर आ गया...वह इन सबके साथ कैसे एडजस्ट होगा ?... थोड़ी देर की उनकी मस्ती भरी बातों के बाद हम सब आकर वैन में बैठ गए और डिस्को की तरफ चल दिए ...

मैंने  उन दोनों लडकियों को गौर से देखा , दोनों करीब 22/24 के बीच की गोरी लड़कीयां थी , उनमे से एक  पतली दुबली सी और दूसरी देखने में थोड़े  भारी बदन की थी ,जो देखने में कहीं  से भी बहुत आकर्षित तो नहीं कही जा सकती, सिवाय इसके की वह दोनों गोरी थी ,जिनमें  दिखावा और झूठ ऊपर से नीचे  तक ठूंस ठूंस कर भरा था , दिखावे के लिए वह ऐसी बातें और नाटक कर रही थी की ना जाने कितनी समझदार और खुबसूरत है , पर ध्यान से देखने में मैंने  पाया की उन्होंने ढंग के कपडे तक नहीं पहने हुए थे ,एक  के स्वेटर का छेद और दूसरी की सैंडल का तलुआ उनकी माली हालत की पोल खोलता नज़र  आ रहा था ...उसपर उनके चेहरे पर पुता हुआ ढेर पाउडर , बेतरबी से लगी लिप ग्लॉस और बैडोल  सा शरीर उनकी मामूली सुन्दरता , और सलीके की हकीक़त  अपने ही शब्दों में बता रहा था ....

उन लोगो की मौज़ मस्ती में हज़ारों बातें  थी और बीच बीच में वह लोग मुझसे भी कोई एक  आध सवाल जवाब कर लेते , उन्हें मेरे कपड़े  देख ऐसा लगा , की यह डिस्को में क्या कर पायेगा ? .... शायद डिस्को में लोग हुडी वाला स्वेट शर्ट पहनकर नहीं जाते थे ... वहीं टुई और श्रीधर ने एक  लेदर की जैकेट तो रमन  ने स्पोर्ट्स कोट पहना हुआ था , लडकियों ने भी कोई पार्टी ड्रेस जैसा गाउन पहना हुआ था ...दोनों लडकियों ने एक बार भी ना मेरी तरफ देखा और ना ही मेरी किसी बात पर रेस्पॉन्स  दिया ....मुझ  से रिलेटेड कोई बात आती तो दोनों अपना मुह बिचका देती ,मैंने  भी उनकी बेरुख़ी को उनकी अदा समझ अपना ईगो थोड़ी देर के लिए मार लिया ...की अचानक  सब बोले अरे लौटते  हुए तो देर रात हो जायेगी , फिर गाडी कौन ड्राइव करेगा , क्योंकि डिस्को में जाकर सब पी कर टुन्न होने वाले थे ...

इसका भी एक  हल यह निकाल लिया गया की क्यों ना किसी और को साथ में ले लिया जाये जो पीता ना हो, लौटते हुए वह गाड़ी भी चला लेगा ....उनमे से जो लड़की दुबली पतली थी वह टुई की गर्लफ्रेंड एलेक्स थी, जिसका कुछ दिन पहले ही एक  लड़के से ब्रेकअप हुआ था , एलेक्स ने मुस्कराते हुए अपने एक्स बॉयफ्रेंड जिसका नाम माइकल था को बुलाने का सुझाव दिया , क्योंकि वह भी उन सबका दोस्त था , फिर उसने सबके सामने उससे कुछ चिकनी चुपड़ी बातें  की और उसे साथ में चलने को राज़ी कर लिया , रास्ते में माइकल को भी वैन में चढ़ा लिया गया ..अब वैन में हम 7 लोग किसी तरह ठूंस कर डिस्को पहुँच गए .....

डिस्को में एक  एंट्री फीस थी , सबने अपनी अपनी फीस दी और अंदर जाने से पहले मिलने का टाइम फिक्स कर लिया की करीब 2 बजे सब यहाँ एंट्रेंस वाले गेट पर सब मिल जायंगे और माइकल बियर और दारु से दूर रहेगा , ताकि लौटते हुए वह गाडी चला सके ...क्योकि पी कर गाडी चलाते हुए पकड़े  जाने पर ,लोगों को मोटा ज़ुर्माना और कभी कभी जेल की हवा भी खानी पड सकती थी ...

डिस्को के अंदर घुसते  ही सब उडन छू हो गए , मैं जिन्दगी में पहली बार डिस्को आया था , यहां क्या होता है , कैसे होता है इसकी मुझे भनक भी ना थी ,दूसरे  देश भी नया और उसके तौर- तरीके भी अलग , क्या करना है और कैसे करना है जैसे मुझे कुछ पता ही ना था , सब लोग पहले ही मुझसे दूर खिसक लिए, की , यह बला उनके साथ चिपकी ना रहे , टुई और रमन  , अपनी अपनी गोरियों के साथ तो श्रीधर और माइकल किसी और कोने में खिसक गए ...

मैं डिस्को के मैंन हॉल  में घुसा तो , मेरी हालत पुरानी  हिंदी फिल्मों के उस नायक जैसी हो गई जो जब गॉंव से शहर आता है और वहां की बड़ी बड़ी इमारतों  और ट्रैफिक को देख हैरान और परेशान  हो ,कभी इधर तो कभी उधर धक्के खाता फिरता है ....

मैंने किसी तरह अपने आत्मविश्वास को समेटा और डिस्को हाल के डांस फ्लोर पर अंदर दाखिल हो गया , यहां  का माहौल ही बहुत अजीब था ,म्यूजिक के नाम पर एक  कान फोडू शोर मच रहा था , जिस की धून पर चारों तरफ लड़के- लडकियां , आदमी -औरत अपनी ही मस्ती में कहीं अकेले तो कहीं एक दूसरे  से चिपक कर नाच रहे थे .... हॉल  में कुछ रंग बिरंगी सी लाइट बहुत तेजी से जल- बुझ रही थी ,पर वह भी इतनी हल्की की थी की वहां कौन है कुछ भी अच्छे से ना दीखता था , उसपर वह लाइट भी कुछ अजीब थी , जो कपड़ो और शरीर पर पड़ने के बाद इस तरह का  रिफ्लेक्शन पैदा करती ....की ..देखने में सब लोग भूत , चुड़ैल  या ड्रेकुला जैसे लगते थे ....मैंने  किसी तरह से आँखे बड़ी कर वहां  का जायज़ा  लिया ...

हॉल के एक  कोने में बार था और दो कोनों पर कुछ छोटे से स्टेज से बने हुए थे , जिस पर चढ़कर कुछ लड़के और लड़कियां मस्ती में नाच रहे थे ...मैं थोड़ी देर तो हाल में ऐसे ही घूमता रहा और वहां का नज़ारा लेता रहा , मुझे समझ नहीं आ रहा था , की कैसे यह लोग अपने आप में ही ठुमक कर नाच रहे है ...क्योंकि वहां नाच की ना कोई शुरुवात थी न ही कोई अंत...मैंने वहां  की जलती बुझती रौशनी में अपने साथ आये लोगो को टटोला , पर मुझे ढूंढे से भी कोई ना मिला ....

मेरी समझ में नहीं आ रहा था , की मैं नाचूँ तो कैसे ?  ना तो मुझे म्यूजिक का पता लग रहा था ना ही किसी गाने के बोल समझ आ रहे थे ,इतने शोर शराबे में अंग्रेजी गाने और म्यूजिक मेरी समझ और पहुँच से कोसों दूर थे , अब जोश में डिस्को मैं आ तो गया पर मन ही मन पछता रहा था की मैं यहां  क्या करने चला आया , यूँ भी मुझे अंग्रेजी गानों और म्यूजिक की समझ थी , ना ही लगाव और उसपर  मुझे डांस करना भी कोई बहुत ज्यादा पसंद नहीं थी .....शायद डिस्को देखने की ललक मुझे वहां खीँच लाइ थी ...


फिर मैंने वहां  नाचते लोगों को ग़ौर से देखा की अधिकतर लोग बस झूम से रहे थे , शायद कायदे से डांस करना कुछ को ही आता था , बांकी सब अपने पार्टनर से चिपक भर रहे थे , मैंने  भी सोचा , जब आये ही गए है तो क्यों न चलो कुछ शरीर हिला ही लिया जाए ,अब मरता क्या ना करता , मैं भी एक  कोने में जाकर अपने बदन को अपने ही तरीके से तोड़ने मरोड़ने लगा ... यूँ तो मुझे कोई  नियम वाला प्रोफेशनल डांस का ऐ बी सी भी नहीं आता , पर मेरा भी फलसफ़ा था की डांस में कोई नियम नहीं होता , जिस भी सुर और ताल में आपके कदम चले वही डांस है ....

मैंने  देखा कुछ लोग , अपनी ही मस्ती में बस अपने शरीर को एक रिदम  में लहरा रहे थे ,अधिकतर लोग जिस तरह का डांस कर रहे थे , उसमे दो चार तरह के स्टेप थे , जो मैंने  भी अब तक करने सीख लिए थे उसमे डांस जैसा कुछ खास ना था जैसा की मैं अपने मन में सोच रहा था , हॉल में हल्का सा अँधेरा था ,ऐसे में किसी की सूरत बहुत अच्छे से दिखलाई नहीं पड़ती थी , जब तक वह इन्सान आपके बहुत करीब ना आजाये , ऐसे में आप कैसा नाचते है इस बात की शर्म और लज्जा की परवाह जैसे किसी को ना थी , शायद इस बात को सोच मैं भी अपने आप क़दमों को एक  ताल में चलाने लगा ...

अचानक झूमते हुए मैंने  महसूस किया की एक  खुबसुरत सी लड़की , जिसके लम्बे लम्बे बाल उसके क़दमों  के साथ साथ लहरा रहे थे मेरे करीब अकेले ही नाच रही है , मैं भी मस्ती की रो में बहता हुआ उसके सामने जाकर अपने क़दमों  को एक  ताल में चलाने लगा...वह शायद अपनी सहेलियों के साथ आई थी पर इस वक़्त बिना पार्टनर के अकेली ही थिरक रही थी , ऐसे में उसे मेरे साथ थिरकने में कोई आपत्ति न लगी , वैसे भी वहां कौन किसके साथ डांस कर रहा था , इसका पता तो खुद नाचने वालों को भी नहीं था ...

थोड़ी देर जब वह मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर नाचने लगी, नाचते नाचते वह मेरे थोड़ा और करीब आ गई ,इस वक़्त उसकी पीठ मेरे सामने थी , मैं भी थोडा और करीब चला आया , अब हम दोनों एक दूसरे से लगभग चिपक कर डांस कर रहे थे , हम कितनी देर ऐसे रहे यह तो मुझे पता नहीं , तभी फ्लोर पर डांस के वक़्त घूमते हुए मेरी नज़र  टुई पर पड़ी जो अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ डांस कर रहा था, न जाने कब से टुई मुझे घूर रहा था , मैंने  उसे देखा तो उसकी आँखों में हैरानी के भाव थे , क्योंकि वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ भी थोडा दूर से डांस कर रहा था और मैं किसी अनजान  लड़की के साथ चिपक कर डांस कर रहा था , जिसका मुझे नाम क्या चेहरे का भी अच्छे से पता नहीं था .. .
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अचानक म्यूजिक बंद हुआ , शायद थोड़ी देर के लिए ब्रेक हुआ था , हाल में लाइट जली तो सबके चेहरे दिखलाई दिए , रमन  अपनी गर्लफ्रेंड के साथ चिपका हुआ मेरी तरफ ही घूर रहा था , जैसे ही लाइट जली थी मेरे साथ डांस करने वाली लड़की एक्स क्यूसमी बोलकर मुझसे विदा लेकर अपनी सहेलियों की तरफ चली गई ...उसे जाते हुए मैंने ग़ौर  से देखा तो वह इक 20/22  की एक निहायत  ही खुबसुरत लड़की थी , जिसे अँधेरे में मैंने  ढंग से देखा तक नहीं था ....

उसके जाते ही अचानक श्रीधर कहीं  से प्रगट हुआ और मेरी तरफ खिसक आया ....उसकी आँखों में हैरानी के भाव थे , उसने आते ही मुझसे पुछा , अरे अंकल , किसके साथ चिपक चिपक कर नाच रहे थे ....मैंने  हँसते’ हुए कहा , मुझे नहीं मालूम , मैं तो बस ऐसे ही डांस फ्लोर पर उसे मिल गया , श्रीधर को मेरी बात का विश्वास ना हुआ , मैंने  उससे पुछा तुम लोग कहाँ गायब हो गये थे , तो श्रीधर बोला , मैं नीचे  के फ्लोर पर गया था ,वहां  रॉक म्यूजिक था ,मैं बोला तो इस फ्लोर पर  कौन सा म्यूजिक था , वह बोला, इस फ्लोर पर  जैज़था  जो मुझे ज्यादा पसंद नहीं और तीसरे फ्लोर पर  क्लासिकल पॉप था ...

श्रीधर की बात सुन मुझे कुछ समझ ना आया की यह सब क्या है ? मेरी नज़र  में तो पॉप, क्लासिक म्यूजिक सब एक थे , फिर भी अपनी तसल्ली के लिए मैं दोनों फ्लोर पर देखने गया ,की हो सकता है की दूसरा म्यूजिक बेहतर हो , हर जगह मुझे  एक  जैसा ही कान फोडू शोर सुनाई दिया ...


थोड़ी देर डांस के बाद मुझे भी प्यास लगी तो मैंने  भी एक /दो बीयर गटक ली और फिर से अपनी ही लय और ताल में फ्लोर पर थिरकने लगा , पता नहीं नाचते हुए कौन मेरे पास कब आया और कितनी देर नाच कर आगे बढ़ा मुझे कुछ याद नहीं , बस मुझे इतना याद था , की मैं बीच बीच में कुछ मखमली ज़िस्मों के साथ चिपक कर उनके क़दमों  के साथ कदम मिला भर रहा था ...पता नहीं लडकियों को अनजान लोगो के साथ चिपक कर नाचने में क्या मज़ा आ रहा था ,यह भी अपने आप में खोज का एक  विषय था ....


शायद यह अपने तरह का एक  थ्रिल था , जिसमे हर इन्सान अपनी क़ाबलियत  और आकर्षण को अपने ही तरीके से देख और परख़ रहा था ....
ऐसी चिपका चिपकी में कब मेरे अंदर का मर्द जाग कर हुंकारे लेने लगा मुझे पता भी न चला , एक  तो बीयर का सरुर , साथ में चिपकते मखमली जिस्म की गर्मी और उसपर  डांस की थकवाट ,ऐसे में डांस करते करते मेरा शरीर पसीने से लथपथ हो चूका था ....मेरा मन अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था ...की अचानक मुझे पेशाब जाने की तलब हुई ...मैं जेंटस बाथरूम की तरफ चला गया ....बाथरूम के हाल में कुछ दरवाजे नुमा नार्मल टॉयलेट तो कुछ खुले हुए कमोड कमोड कमोड मर्दों के पेशाब करने के लिए लगे हुए थे ....

अपनी ही धुन में खोया मैं अंदर गया तो देखा सारे मर्दों वाले कमोड भरे हुए थे ,इसलिए मैं एक  टॉयलेट के कमोड पर  ज़िप खोलर पेशाब करने लगा की , तभी मैंने  कुछ लडकियों की आवाज सुनाई दी , जो हमारे बाथरूम में घुसी हुई थी और वहां पेशाब कर रहे लड़को से खाली टॉयलेट को इस्तमाल करने की गुज़ारिश  कर रही थी , कुछ लड़के नशे में धुत अपनी पेंट को नीचे किये हुए , अपनी मर्दानगी को लहरा लहरा कर उसके दर्शन उन्हें करा रहे थे , तो कुछ टॉयलेट के फ्लोर पर ही लेटे हुए थे .....

वहां  का नज़ारा  भी अजीब था ,अधिकतर लड़के अपने अपने मर्दों को खुले में हिलाते हुए कभी कमोड पर तो कभी फ्लोर पर  पेशाब कर रहे थे और कुछ लड्खडाते हुए बीच बीच में लडकियों को उसकी झलक भी दिखा देते , एक  दो को तो लडकियों ने संभाल तक रखा था , वरना वह उन्ही के ऊपर लुढकने के लिए तैयार थे ....तो कुछ लड़के लड़कियां आपस में एक दूसरे  से गूँथे  पड़े थे , वह शायद उनके साथ नशे की हालत में बाथरूम में आधे अधूरे सेक्स की चाहत में अंदर चली आई थी ...पर अधिकतर लड़कियां सब कुछ जानकर भी अनजान बनने का नाटक कर रही थी तो कुछ टॉयलेट में जल्दी से जल्दी बाथरूम करके वहां से निकल जाना चाहती थी ....

यूँ तो मुझपर  भी हल्का सरुर था , पर इतना भी ना था की मुझे कुछ समझ ना आये , मुझे हैरानी इस बात की थी की यह लड़कियां मर्दों के बाथरूम में क्यों चली आई ?.. अभी मैं एक  टॉयलेट का दरवाजा खोलकर पेशाब कर ही रहा था की टॉयलेट में पेशाब करते हुए अचानक मेरे कदम हल्के  से लड़खड़ाये , मैं अभी अपने को संभालता की दरवाजे के पास इंतजार में खड़ी एक  लड़की ने मेरी बांह थाम ली और बोली ,प्लीज यहां से जल्दी से हट जाए और मुझे बाथरूम करने दे और ऐसा कह वह मुझे वहां से जबरदस्ती खींच कर बाहर  की तरफ हटाने लगी ...

इस वक़्त मेरी ज़िप पूरी खुली हुई थी और मेरा मर्द अपनी ही हुंकार में बाहर  की दुनिया में झांक कर वहां के नज़ारों का मज़ा अपने ही तरीके से ले रहा था , उस लड़की को मेरी इस अवस्था से कोई मतलब ना था , उसे तो बस जल्दी से जल्दी टॉयलेट का इस्तमाल करना था ...मैंने  भी उसी अवस्था में खड़े खड़े अपने शरीर को 180 डिग्री पर उस लड़की की तरफ मोड़ दिया , मेरे अचानक मुड़ने पर उस लड़की ने समझा की मैं नशे में हूँ और लडखडा रहा हूँ तो उसने मुझे अपनी दोनों बांहों में थाम लिया और मैंने  भी अपने आप को सँभालने के लिए उसके एक उरोज़ को पकड अपना सहारा बना लिया , उस लड़की को लगा , की मैं इतने नशे में हूँ की मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है की मैं क्या और क्यों कर रहा हूँ .....मेरे हाथ में उसके उरोज़ की जगह, उस पर चढ़ी हुई ब्रा के पैड के साथ उसके ऊपर पहने हुआ ब्लाउज़ हाथ में खींचता हुआ चला आया .... शायद लड़की ने अपने छोटे से उरोजों  को बड़ा और आकर्षक दिखाने के लिए आगे से नुकीली भारी पैड वाली ब्रा पहनी हुई थी , जो उसने डांस करने की मस्ती में , ब्लाउज के साथ मिस फिट होकर इधर उधर हो गई थी .....

मेरी ज़िप अभी खुली हुई थी और पेशाब की बुँदे अपने ही फ्लो में इधर उधर बिखर रही थी , की मेरी निगाह उस लड़की पर पड़ी तो मैं चोंक गया वह तो टुई की गर्लफ्रेंड एलेक्स  थी , जो हमारे साथ ही आई थी , न जाने कैसे उस वक़्त मुझे उसकी शाम वाली मेरी तरफ उठती बेरुख़ी  याद आ गई और मैंने भी किसी जोश में अपने बचे हुए पेशाब की एक  पिचकारी को कमोड में करने की बजाय अपना मर्द लहराते हुए उसकी तरफ मार दी ...

मेरे पेशाब की धार से उसने अपने को कितना बचाया यह तो मुझे याद नहीं , पर उसका ब्लाउज़  और ब्रा का पैड मेरी गिरफ़्त से निकलता हुआ एक  गुलेल की तरह जाकर उसे लगा , उसने अपने की संभाला और मुझे टॉयलेट के दरवाजे से बहार धकेल कर जल्दी से खुद टॉयलेट में घुस गई ...ना जाने क्यों ऐसा करके मेरे दिल को एक  अजीब सा  सकून  मिला , क्योंकि आते वक़्त उसने अपनी हिक़ारत  भरी नज़रों और कटाक्ष से मेरा अनजाने में जो मज़ाक  बनाया था ,उसकी चुभन मेरे दिल में खिन फांस बनकर अटकी हुई थी , जो उस पिस्स की धार के साथ बाहर  निकल गई , अब मैं बहुत हल्का सा महसूस कर रहा था ...

मैंने  अपने कपड़ो को सही किया और बाथरूम से बाहर  चला आया , मेरी दिलचस्पी इस बात में थी की , आखिर लड़कियां , मर्दों के टॉयलेट में क्यों आगई ? , जब मैं लेडिज टॉयलेट की तरफ गया तो वहां का नज़ारा देख सब कुछ समझ आ गया , लेडीज टॉयलेट के बाहर  बहुत ही लंबी लाइन लगी हुई थी , ऐसे में जिन लडकियों से अपने ऊपर कंट्रोल नहीं हुआ और उनके साथ कुछ अपनी सेक्स की अधूरी चाहत को पूरा करने के लिए , बिना कुछ सोचे समझे जेंट्स टॉयलेट में चली आई थी...मुझे इस घटना ने एक  नया ही अनुभव दिया , की….

जब इन्सान का शरीर अपनी कुदरती ज़रूरत  को बर्दाश्त नहीं कर पाता है , तब सारी शर्म , हया , लोक लाज , मान सम्मान , ग़रूर की कोई कीमत नहीं रहती ....

वाहन से निबटने के बाद , मैं डांस फ्लोर पर वापस आ गया और डांस के बहाने थोड़ी देर कुछ अनजान जिस्मों के साथ लिपटा और नाचा ...रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी , ना मैंने  घड़ी देखि ना ही मुझे उसकी ज़रूरत ही  लगी ,की अचानक कहीं से श्रीधर प्रगट हुआ और बोला , भाई अब तो इन्हें छोड़ दे , चल चलने का वक़्त हो गया और ऐसा कह वह मुझे अपने साथ खींच कर हाल से बाहर  की तरफ ले आया ...

रात के 2:30 बज चुके थे ,थोड़ी देर में सब लोग आ गये तो हम गाडी में बैठकर घर की तरफ चल दिए , सारे रास्ते सबके बीच मैं ही चर्चा का विषय था , कि  मैं कब और किसके साथ डांस में चिपका हुआ था , उन्हें हैरानी इस बात की थी की मैं इतना बिंदास कैसे हुआ ...क्योंकि वैन में आते हुए , मैं बामुश्किल ही  कुछ शब्द ही बोला था , दूसरे  मैं उन लोगो से उम्र में कुछ बड़ा था  और उनके हिसाब से कपड़े  भी साधारण से पहना था ,मैंने  श्रीधर की तरफ नज़र  उठा कर देखा और एक  मुस्की मार दी ....उस वक़्त श्रीधर की आँखों में इर्ष्या के हल्के से भाव तैर रहे थे ...

रास्ते में टुई ने मुझसे पुछा , क्या मैं डिस्को पहले भी काफी आया हूँ ? मैं बोला , यह तो मेरा पहला अनुभव था , उसे मेरी बात का विश्वास नहीं हुआ , की... कैसे कोई पहली बार में इतने आत्मविश्वास के साथ दूसरे  अनजान लोगो के साथ नाच सकता है , उसने जोश में मुझसे पुछा , हाँ तो बॉस अगली बार डिस्को कब आओगे ...मैंने  अपनी गर्दन घुमाई और एलेक्स  की तरफ देखा , जिसने मेरी कातिल निग़ाहों से बचने के लिए अपनी नज़रें झुका कर दूसरी तरफ घुमा ली थी  ...

अपार्टमेंट आकर मैंने  श्रीधर से पुछा तूने कितनों  के साथ डांस किया ..तो उसने बड़ी लाचारी से गर्दन ना में हिला दी...की वह तो सिर्फ अकेला ही नाचता रहा , उसकी हिम्मत ही नहीं हुई की किसी लड़की के करीब चला जाये ,उस दिन के बाद श्रीधर कितनी बार डिस्को गया , यह तो मुझे पता नहीं , पर फिर कभी मुझे अपने साथ लेकर डिस्को नहीं गया और ना ही मैंने  उससे एलेक्स के साथ हुई घटना का कभी जिक्र किया ....

ना जाने क्यों उस रात के बाद मेरी डिस्को जाने की इच्छा ही नहीं हुई , क्योंकि मुझे समझ नहीं आया की , किसी लड़की/औरत के जिस्म से ,सिर्फ हल्के  से लिपटने भर के लिए मैं अपनी सारी रात किस लिए काली करूँ , वैसे भी मुझे इस तरह के फ़्लर्ट में कोई खास रोमांच नैक्सर  नहीं आया ....

उस घटना के बाद टुई जब भी कभी हमारे अपार्टमेंट आता , उसके बात करने का तरीका मेरे साथ बड़े अदब और तहज़ीब वाला होता , वह हर बार कहता , हेल्लो बॉस , उसकी यह बात सुन मैं मन ही मन बस मुस्करा देता और मन में सोचता ...कि

शेर हमेशा शेर होता है चाहे वह बुड्डा या बीमार ही क्यों ना हो , पर शिकार करना थोड़े ही भूलता है ....


क्रमश : ............

By 
Kapil Kumar