Tuesday 13 September 2016

नारी की खोज – 12


अभी तक आपने पढ़ा नारी की खोज भाग –--1 से 11 तक में ...की मैंने बचपन से आज तक नारी के भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....



गतांक से आगे .......

अगर किसी इन्सान से पूछा   जाये की उसका दूसरों के प्रति आकर्षण का क्या आधार या पैमाना है तो ...यह नारी और पुरुष में अलग अलग मिलेगा .... समाज के सामने अपने को आदर्शवादी , महापुरुष या देवी सिद्ध करने के लिए, कहने को कोई कुछ भी कह ले , पर ध्यान से देखे और समझेंगे तो पाएंगें  ....की.....

इस दुनिया में नारी , पुरुष के पैसे और सामाजिक मान सम्मान को सबसे ज्यादा अहमियत देती है , उसकी नज़र  में पुरुष की सुन्दरता या स्मार्टनेस की कोई बहुत ज्यादा कीमत नहीं  होती है , नारी के लिए पुरुष की अहमियत सिर्फ समाज में उसके रुतबे और वह कितना पैसे वाला है , इन दोनों के गठजोड़ से ही होती है ...पुरुष देखने में साधारण है पर वह अमीर और रुतबे वाला हो, तब भी यह दोनों बातें  नारी के मन के अंदर उसके लिए प्रेम और सम्मान उत्पन्न करने के लिए काफी है ...कहने को कोई कह सकता है की लड़कियां फिल्म स्टार पर उनकी स्मार्टनेस और शारीरिक  सुन्दरता के वशीभूत होकर आकर्षित होती है .. पर हकीकत में यह सिर्फ ऊपरी दिखावा भर है ..अगर यही लोग बिना पैसे और आम इन्सान होते तो उनके पीछे शायद कोई इक्की या दुक्की युवती ही उनकी दीवानी होती ...देखने की बात है क्रिकेटर , फूटबालर, टेनिस प्लेयर , जो बड़े नाम वाले है देखने में एक  आम आदमी जैसे साधारण होते है ..पर लड़कियां और औरतें  उनकी ऐसी दीवानी होती है जैसे वह कामदेव के अवतार है ..

इसके विपरीत पुरुष के लिए नारी के प्रति आकर्षण का सिर्फ एक  ही पैमाना या आधार है वह है उसकी सुन्दरता , नारी कितनी भी समझदार , काबिल ,पैसे और रुतबे वाली क्यों ना हो ..अगर वह सुंदर या आकर्षित नहीं तो पुरुष के मन में उसके लिए कोई आकर्षण नहीं , हाँ कुछ देर के लिए कोई आदमी किसी अमीर औरत से प्रेम करने का स्वांग जरुर भर सकता है ...पर यह प्रेम बिना सुन्दरता के ऐसे ही जैसे बिना नींव  की ईमारत ....जो कब किस हवा के झोंके से गिर जाये , कौन जाने ?....

इसके विपरीत अगर नारी सुन्दर है तो वह , कितनी भी अनपढ़ , मुर्ख या गरीब या किसी  भी जाति हो  , पुरुष को उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता , उसके लिए उसका सुन्दर या आकर्षित होना ही काफी है ....ऐसी ही उम्र के अलग अलग पड़ावो में मेरे मन ने’ नारी की सुन्दरता को अलग अलग आयामों में देखा और भोगा ...बितते वक़्त के साथ उसे नापने के नए पैमाने बने और उनमे नए नए कारण जुड़ते गए ....

बीवी अपनी नौकरी के सिलसिले में कुछ महीनो के लिए लन्दन चली गई , कहने को मैं घर में अब अकेला तो नहीं था , घर में सब लोग थे , माँ बहन , बाप , भाई और लड़का , पर जवानी में वह ठंडी राते तो बिस्तर पर  मुझे अकेले ही गुजारनी थी ...खुदा भी मेरी जवानी का वक़्त वक़्त पर  गाहे बगाहे इम्तिहान ले रहा था ...कभी मेरी नौकरी के सिलसिले में तो कभी बीवी की नौकरी के सिलसिले में हम दोनों एक दूसरे  से दूर रहते आये थे , तब मुझे लगता ऐसा क्यों है , पर उस वक़्त मुझे क्या मालुम था की जो हो रहा है वह अच्छा ही था , वह भविष्य में हम दोनों को एक  दूसरे  से लड़ने -झगड़ने और उबने से बचाए हुए था .....

बीवी के ना होने से बच्चे की जिम्मेदारी मेरे ऊपर और घर वालों पर  आन पड़ी , जब मैं जॉब के लिए जाता तो दिन में किसी तरह से घर वाले उसे संभाल लेते , पर मेरे घर में घुसते ही , वह मेरी जिम्मेदारी हो जाता , मेरी माँ जैसे मेरे आने का ही इंतजार करती की मैं कब आऊं  और वह कब अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो , ना जाने क्यों उसके मन में अपने पोते के प्रति जायदा मोह न था , शायद उसका मोह अपने बच्चो से ज्यादा सिर्फ अपने पति यानी मेरे पिता तक ही सिमित था ...माँ बेटे का रिश्ता सिर्फ एक दूसरे  की ज़रूरत पर ही टिका था ..... घर का खर्चा मेरे बूते चलता था इसलिए सबको जैसे तैसे मुझे और मेरे बच्चे को झेलना पड़ता , यहां एक  कहावत पूरी तरह से सिद्ध होती थी ....की ...दूध देने वाली गाय की लात लोग चुपचाप खा लेते है ...आने वाले वक़्त में ,मैं नारी की खोज करते हुए ,माँ बेटी के रिश्ते की एक  नयी परिभाषा देखने और समझने वाला था .....

आदमी का बीवी के साथ सेक्स और घर की सादी दाल रोटी , एक दूसरे  के जैसे पूरक है ....घर का खाना आप कितना भी खा लें  आपका पेट तो भरेगा पर आपको वह जल्दी से बोर भी कर देगा....ऐसे ही आप बाहर  का चटपटा खा ले आपको एक  थ्रिल मिलेगा पर मन में तृप्ति का आभाव रहेगा और मन में  हमेशा ऐसा लगेगा की कहीं  ना कहीं  कुछ छूट  गया है , इसका अनुभव मुझे भी नारी के एक  अलग रूप में हुआ ...

मुझे कभी कभी काम के सिलसिले में दिल्ली से मुरादाबाद तक जाना पड़ता था , उस रूट पर पर कंपनी की मोबाइल सर्विस का काम चला रहा था , तो मुझे साईट विजिट करने के लिए महीने में दो या तीन बार कंपनी के उस एरिया में लगने वाले मोबाइल टावर के काम को देखने जाना पड़ता , इस सिलसिले में एक  कंपनी की कार मिली हुई थी , उसका ड्राईवर मेरे साथ रहते हुए मुझसे कुछ ज्यादा ही घुल  मिल गया था ...हम दोनों कभी कभी कुछ फालतू की बात सफ़र  के दौरान कर लिया करते थे ...उन दिनों उसे पता था , कि मैं घर में अकेला हूँ ....

ऐसे ही बातों बातों में उसने जिक्र किया , सर आपने कभी किसी गाँव वाली के साथ कुछ किया है ...कुछ लोगो को उसकी यह बात आख़र सकती है ..पर जब आप किसी ड्राईवर के साथ काफी समय से घंटो सफर में अकेले रहे तो आपको , कुछ बातों  में समझौता करना पड़ता है , क्योकि लम्बे लम्बे ट्रिप में दोनों को वार्तालाप करने के लिए कुछ ना कुछ नज़दीकी रखनी पड़ती है .. यूँ तो मैं किसी और ड्राईवर के साथ ऐसी बात करने से परहेज करता , पर कई महीने से उसके साथ रहते हुए उसकी नियत  और गोपनीयता पर शक करने का कोई कारण नहीं था ....की वह हम दोनों के बीच होने वाली बात किसी और से कहेगा ...वैसे भी वह कंपनी का मुलाज़िम  नहीं था ...इसलिए उसके मुंह फाड़ने की स्थिति में उसे नौकरी से कभी भी बेदख़ल किया जा सकता था ....इसका अहसास उसे भी अच्छे से था ...

मैंने  भी झिझकते हुए कहा , क्या बात करता है ?  हम ठहरे शहर वाले , हमें कहाँ  कोई गाँव  वाली मिलेगी ? और वैसे भी मैं अपनी जिन्दगी में कभी किसी गॉव  में रहा नहीं , इसलिए ऐसा कुछ कभी हुआ नहीं , पर तूने ऐसा क्यों पूछा  , मैंने  उसकी तरह अचरज अचरज़  भरी नज़रों  से देखा और पुछा ? वह एक  कमीनी  सी मुस्कान बिखरते हुए बोला , बस साहब ऐसे ही पूछ लिया , आजकल आप अकेले हो , मेमसाहब हैं नहीं , तो आप कुछ मेजमोला कहीं  करते हो या नहीं और ऐसा कह वह अपने खींसे निपोरने लगा ....

उसकी बात सुन एक  बार को गुस्सा आया , फिर न जाने कैसे कहीं  अंदर से कई बरसों  से कॉलेज का सोया हुआ KK  बॉस जाग उठा , जिसमे सिर्फ मस्ती की बातें  होती , बिना यह समझे और जाने की सामने वाले की क्या हैसियत और औकात है ... मेरे मन के किसी कोने में नारी के शरीर की चाह गाहे बगाहे करवट ले रही थी , तो मैंने  भी उसका तीर उसकी तरफ मोड़ दिया और बोला , तेरा कोई जुगाड़ है तो बता और ऐसा कह  मैंने एक ग़हरी नज़र  उसकी तरह चुभो दी ...

उसने मेरे चेहरे की गंभीरता को पढ़ा और बोला , जब हम मुरादाबाद से लोटेंगे तो ऑफिस से पहले रास्ते में एक गाँव  है , वहां पर एक जुगाड़ है , मैं आपको दिखा दूंगा , ग़र आपको ठीक लगे तो बताना , उसकी यह बात सुन मेरी जिज्ञासा बढ़ने लगी की , उसे इस जुगाड़ के बारे में कैसे पता ... मैंने अधीर होते हुए अपने मन में उठने वाले सवालों की बौछार उसपर  कर दी ...उसने हँसते हुए कहा सर जी ,मैं तो यह सब शौक ज्यादा पालता नहीं , पर मेरा चाचा ज़रा ठरकी टाइप का है , उसका उस गाँव की किसी औरत से कुछ पुराना नाता है इसलिए मुझे यह पता है ...

ड्राईवर की बात सुन मुझे बड़ा गुस्सा आया और लगभग चीखते हुए बोला , अबे तेरा दिमाग ख़राब हुआ है , अब मुझे बुढिया ही मिलेगी और वह भी इस लेवल की ...उसने मेरी बात सुनी और झेंपते हुए बोला , अरे सर जी आप भी कैसी बात करते हो , भला आपके लिए कोई बुढिया क्यों सोचूंगा , उस बुढिया की एक  लड़की है , वह करीब 19/20 साल की है , मैं तो उसके बारे में कह रहा था ...

कुदरत का भी अज़ीब  नियम है आदमी की उम्र कितनी भी क्यों ना हो लड़की की उम्र उसे 18/22 के बीच ही चाहिए , लड़की की उम्र सुन मेरे मन में एक  चिंगारी सी जगी , मैं 30 बसंत देख चूका था , ऐसे में किसी मांसल और जवानी से लबलाबाते , हुस्न की कल्पना से शरीर में मस्ती की चींटियाँ रेंगने लगी ...मेरी आँखों में कामुकता की एक  चिंगारी सी निकली , जो चलती गाडी से बाहर  जाकर वीराने में छु मंतर हो गई ...क्योंकि मुझे पहले मुरादाबाद पहुंचकर ऑफिस का काम निबटाना था , ऐसे में उस ख्यालात को ज़ेहन में लाना निहायत ही बेबकूफ़ाना था ....मैंने  ड्राईवर से कहा , लौटते  हुए चल तेरे जुगाड़ को भी देख लेंगे ....

एक  दिन मुरादाबाद रुकने के बाद ऑफिस का काम जल्दी से निबटा कर हम दोनों दोपहर होने से पहले ही घर को लौट लिए ..गर्मी अभी शुरू नहीं हुए थी , मार्च का महिना था और मौसम अपनी हसीन जवानी को किसी तरह से गर्मी के चंगुल से बचाए हुए था , पर दोपहर दो बजे के बाद गर्मी का दानव बसंत ऋतु का चीर हरण करने में कामयाब हो ही जाता ....शाम के करीब 4 बजे , ड्राईवर ने गाडी किसी गाँव  के पास रोकी और बोला , सर जी यही वह गाँव है जिसका जिक्र मैंने  किया था ...यह गाँव  मेरे शहर से कोई 15/20 मील की दूरी पर  था ....ड्राईवर ने गाडी गाँव के बाहर  हाईवे पर एक  पेड़ के नीचे किनारे पर लगा दी ..क्योंकि गाँव का रास्ता वहां से एक  पगडंडी नुमा था जिसपर  गाड़ी का जाना असम्भव था , वहां  से हम दोनों पैदल गाँव  की तरफ चल दिए ....

किसी टेढ़े मेढ़े  रास्ते से होते हुए , हम दोनों एक  ऐसे मैदान के पास पहुंचे जहां कुछ झोपड़ियां  सी बनी हुई थी , एक  झोपडी नुमा घर के आगे आकर अभी हम रुके थे , की एक  बच्चा जो किसी हैंडपंप से पानी निकाल रहा था की जोर से चिल्लाया , अरी माँ देख भैया आये है ....उसकी आवाज सुन पास में से एक  औरत जो अपने बुढ़ापे के चंगुल में फंस चुकी थी अचानक से प्रगट हुई ,बुढिया जिसके मुंह  में पान ऐसे दबा था , जैसे वह उसके हर कतरे को आज जी भरकर चूसने वाली हो , उसने अपना गला खंगारा और मुंह  से पान थूकते हुए बोली , अरे भैया बड़े दिनों में आना हुआ और ऐसा कह वह  हम दोनों को झोपडी के अंदर ले गई .....

झोपडी अंदर से साफ़ सुथरी और काफी बड़ी थी , जिसके एक  कोने में एक  बड़ी सी चारपाई पड़ी थी और दूसरी तरह बैठने के लिए कुछ मोढ़े पड़े थे , हम तीनो एक एक मोढ़े  में धँस  से गए ...तभी ड्राईवर ने औरत को कोने में ले जाकर कुछ कानाफूसी की और मेरे पास आकर फुसफुसाया , आज तो कुछ काम बनेगा नहीं फिर कभी और दिन देखेंगे ...मैंने  भी मायूसी में गर्दन हिला दी , की तभी एक  19/20 साल की लड़की नुमा औरत ने झोपडी में प्रवेश किया ,जिसे लड़की कहीं से भी नहीं कहा जा सकता , वह देखने में पूरी तरह से खिली हुई युवती जैसी लगती थी ... वह एक  सस्ती सी साडी अपने बदन पर  लपेटे हुई  थी जिसका पल्लू बार बार उसके कंधे से सरक जाता और उसके भरे हुए उरोजों  की नुमाइश कर जाता था ... युवती लम्बे कद की और जिस्म से भरी पूरी मजबूत सी औरत मालूम पड़ती थी , उसने मेरी और ड्राईवर की तरफ मुस्करा  कर देखा और हम दोनों को भैया बोल कर नमस्ते कर दिया ...

युवती की आँखों में कुछ सवाल जैसे तैर रहे थे , उसे मेरे आने का मक़सद  कुछ समझ नहीं आया था , शायद मेरे जैसे लोग उस झोपडी में आते भी ना थे , उसकी नज़रों  को भांप , उसकी माँ ने कहा , अरे भैया आये है , इनके लिए कुछ चाय पानी तो करो , देखो भैया अपने साथ अपने साहब लाये है , यह हमारे राजू के लिए कुछ ना कुछ जरुर करेंगें  ....बुढिया की बात सुन मेरा सर चक्कर खाने लगा , यह क्या बोल रही है , तभी ड्राईवर ने अपनी जेब से 20 रूपए  निकला और लड़की को देकर बोला जा चाय ले आ , युवती ने झट नोट को उसके हाथ से झपटा और अपने ब्लाउज में खोंस लिया और एक  गहरी मुस्कान मेरी  तरफ उछाल दी और हँसते हुए चली गई ...

इस बार मैंने  उसे ग़ौर से देखा , तो लगा जैसे एक  पहाड़ी झरना , शहर की गलियों में घुसने  का असफल प्रयास कर रहा हो  , उसकी चाल में एक  बेपरवाह  मस्ती थी , चलते हुए उसके नितम्ब एक  सुर और ताल में झूमते से लगते थे , उसपर  उसके मुस्कराने का अंदाज एक  दम खिली हुई धुप की तरह गर्म जोशी से भरा लगता था , उसे यूँ जाता देख मेरा दिल सीने में उछलने और होंठों पर एक ख़ुशी सी  छाने लगी और मुझे अंदर ही अंदर कहीं से नारी के जिस्म की चाह होने लगी ...

युवती को यूँ टकटकी लगाये जाते देख , बुढिया समझ गई की , साहब अनाडी है और उसका पासा अपनी चाल चल चूका है .... बुढिया ने अपना गला खंकारा और ड्राईवर की तरफ इक कुटिल मुस्कुराहट उछाल दी , थोड़ी ही देर में एक 14/15  साल का लड़का उछलते हुए झोपडी में घुसा , उसे आया देख बुढिया ने उससे कहा अरे भैया आये है और देख दुसरे भैया तुझे शहर में अपनी कंपनी में नौकरी देंगे .....बुढिया की यह बात सुन मुझे कुछ समझ नहीं आया . मेने उसका दिल टटोलने के लिए पुछा , आजकल आप लोग क्या कम करते हो . मेरा यह कहना भर था , की बुढिया अपने दुखो और मुसीबतों का पिटारा खोल कर बैठ गई ...की उसका गुजरा मुश्किल से चलता है , आजकल उसे काम मिलना बंद हो गया है ..पहले वह कोई पत्थर घिसने या सिल बट्टे बनाने का काम करती थी , अब वह काम भी काफी दिनों से बंद हो गया है तो घर में रोजी रोटी चलाने के लिए लड़के को काम पे लगाना चाहती है ....मेने भी उसे दिलासा देने के लिए कह दिया , देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ ...

अभी मैं बुढिया की राम कहानी सुन ही रहा था , की युवती एक  चाय की केतली और कुछ प्यालों के साथ झोपडी में आ गई , इस बार मैंने उसे कुछ ग़ौर से देखा , वह एक  अच्छे नाक नक्श , गरुएं  रंग और खुश मिज़ाज़  युवती थी , उसके चेहरे पर एक अनजानी सी मुस्कराहट  थी ...जिसमे कुटिलता थी या मासूमियत यह तय करना बड़ा मुश्किल था ... मैंने जैसे तैसे उसके द्वारा लाइ हुई चाय पी ,कि पहला  घूंट मुंह  में डालते ही ऐसा लगा ,की जैसे वह चाय कम एक  चीनी का शरबत है ,जिसमे हलके गर्म पानी के साथ सस्ती चाय पत्ती को मिला कर गर्म भर कर दिया था ...

थोड़ी देर इधर उधर की बात होने के बाद ड्राईवर ने मुझे वहां  से चलने के लिए कहा , मैं मायूसी में उसके साथ झोपडी से बहार निकल आया , वह युवती भी हमारे साथ उछलती कूदती सी हमें छोड़ने चली आई और मेरी तरफ अपनी तीखी नज़रों को गडा कर बोली , भैया अगली बार फिर आना और ऐसा कहकर झोपडी के अंदर उछलती सी चली गई ..

वहां से लौटते  हुए मेरा मन मायूसी के सागर में डूबा जा रहा था , मैंने अपनी बैचेनी पर काबू पाते हुए अपनी नाराज़गी  ड्राईवर पर उड़ेल दी , की तू तो बड़ी बड़ी हांक रहा था ...की साहब आपको यह दिलवाऊंगा  पर वहां तो कुछ भी नहीं हुआ ?....ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला साहब बात ऐसी नहीं है , मैंने  उसे झिडकते हुए कहा फिर कैसी है ?अबे , वह मुझे और तुझे भैया बोल रही थी , उसकी मांग में हल्का सा सिन्दूर भी था और उसका भाई नौकरी मांग रहा था , यह सब क्या चक्कर है ? ....

ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला , ऐसा है बुढिया बहुत पहुंची हुई चीज़ है , इसने दुनिया के दिखावे के लिए अपनी लड़की की शादी पास के गाँव में कर दी है , पर यह उसे उसके पति के पास नहीं भेजती है , वह इससे कभी कबार  इधर उधर से पैसे कमवा लेती है , जिसमे से आधे बुढिया और आधे लड़की रख लेती है , अगर यह अपने पती के पास चली गई तो , बुढिया का गुज़ारा  कैसे चलेगा और लड़की के हाथ भी कुछ नहीं आएगा , अब दोनों खुश है , समाज में दिखावे के लिए शादी कर दी है की कल कोई ऊंच  नीच हो जाये तो उसे यह उसकी ससुराल भेज देगी ...बाकी बची नौकरी की बात तो , ऐसा तो दिखावे के लिए कहना पड़ता है , वर्ना गाँव में लोग उससे पूछते तेरे घर कौन आया था और फिर बुढिया को आप से मिलाने के लिए कुछ कहानी तो गढ़नी थी वर्ना  वह भी आसानी से आप पर विश्वास नहीं करती ?

ड्राईवर ने आगे कहा की , बुढिया की एक  बार कुछ इस सिलसिले में ऐसे कुछ बदनामी हो गई थी , इसलिए अब वह अपने घर में कुछ नहीं करती , बस अपनी लड़की को बाहर  भेज देती है ...बाकी अगर आप उसके लड़के की नौकरी लगवा देंगे तो , आपका आना जाना लगा रहेगा और कोई शक भी नहीं करेगा , ड्राईवर की बातों  में दम था , क्योंकि गाँव  में गिनती के घर थे और सब एक दूसरे  की खोज खबर रखते थे और मौका देख सब लोग एक दूसरे  के घर में तांक- झांक भी कर लेते थे , ऐसे में इस तरह का खेल बहुत ही होशियारी और राज़दारी  से ही खेला जा सकता था ....

उस दिन तो मैं उसके गाँव से खाली लौट  आया , पर उस लड़की की मासूम सी हंसी जैसे मेरे पीछे पड गई , मुझे उसके गदराये हुए जिस्म को दबोचने की चाहत होने लगी , मेरे अंदर का कामी भेड़िया जैसे उसके जिस्म के अंग अंग को नोचने के लिए अपनी लार टपकाते हुए बैचेन होने लगा .....

अगले दिन ऑफिस में मैंने  ड्राईवर से कहा उससे मिलने का कोई जुगाड़ बिठाये , ड्राईवर भी मेरी बैचेनी देख मंद मंद मुस्कुराया और बोला , उसकी माँ ने मुझसे कहा था की भैया को बोलना वह अपनी गाडी में लड़की को अपने साथ बैठा  कर कहैं घुमा फिरा लाये ...ड्राईवर की बात सुन मेरा भेजा घूम गया , किसी नारी के साथ किसी बिस्तर में मौज़  मस्ती करना तो अलग बात है , पर उसके साथ बाहर  यूँ खुले में घुमने फिरने के नाम पर मुझे कुछ अजीब सा लगा , क्योकि उस गंवार लड़की को मैं बहार अपने साथ लेकर कैसे और कहाँ  जाता ? .... हम दोनों के कपड़ो , देखने में और भाषा में जमीन आसमन का अंतर था ....मैंने ड्राईवर से कहा , देख भाई घर तो मैं उसे ला नहीं सकता और उसे होटल लेकर जाना भी कुछ अजीब सा लगेगा ,ऐसा कोई कमरा मेरे पास है नहीं जहां इसे मैं ले जायुं , तो क्या किया जाए ...अभी मुझे उसके बारे में कुछ ज्यादा भी नहीं पता , ड्राईवर बोला... ऐसा करते है , आप दोनों कोई मूवी साथ में देख लो , उससे आपको उसका अंदाजा भी हो जायेगा और कुछ जान पहचान भी , फिर आप अपने आप देख लेना की आगे कब और कैसे क्या करना है , मुझे ड्राईवर का यह आईडिया अच्छा लगा , इसमें मुझे इसके साथ खुले में घुमने फिरने और दुनिया के सामने वाले वाले रिस्क से आजादी मिल रही थी .....


एक  दिन तय हुआ और मैं ,ड्राईवर के साथ पिक्चर देखने सिनेमा घर पहुँच गया ...मेरा अनुमान था , की मैं और वह युवती साथ साथ सिनेमा देखेंगें  और इसी बहाने मेरे कुछ मज़े  भी हो जायेंगें  और साथ में इससे कहीं  मिलने का जुगाड़ भी बना लूँगा ...जब सिनेमा हाल पहुंचा तो मेरा जोश जैसे उबलते दूध पर ठंडा पानी गिरता है जैसा  फुस्स होकर बैठ गया ... हाल के बरामदे में बुढिया जमीन पर  किसी औरत के साथ बैठी थी , जिसने गज भर का पल्लू अपने सर पर रखा हुआ था , मुझे आया देख बुढिया की आँखों में एक गहरी चमक उभरी , उसने औरत से कहा देख भैया आ गये ...औरत ने अपना पल्लू सरकाया तो , अंदर से उस लड़की का चेहरा झांकता हुआ दिखलाइ दिया , उसने कोई सस्ता सा ढेर सारा पाउडर अपने चेहरे पर मला हुआ था और होठों पर एक सस्ती सी हलके पीले रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी , बची कूची कसर उसके माथे पर  सजी एक चवन्नी के साइज़ की लाल बिंदी उसकी बदसूरती में इजाफा ही कर रही थी ,उसपर  उसकी नाक में गोल सी लटकती हुई नथनी उसके गाँव के फैशन की कहानी अपने ही तरीके से आप कह रही थी और सबसे जायदा वाहियात उसके सर में पड़ा हुआ किलो भर का ऑरेंज रंग का सिन्दूर एक  लंबी सी सडक उसके सर के बीचों बीच बनाये हुए था , जो उसके गवाँरु पन की मुनियादी अपने ही तरीके से जोर शोर से कर रहा था .....

युवती को इस रूप में देख मेरा सारा जोश काफूर हो गया ,जहां पहली बार उसे देख मेरे मन में उसे पाने की इच्छा जगी थी , आज उसके इस रूप को देख मन में ऐसा लगा की इसके साथ खड़े  होने या हाल में बैठने से अच्छा है की मैं वापस घर लौट जाऊं  , पर अब इन लोगो को वापस कैसे भेजूं  ,इसी उधेड़बुन  में फंसे मेने सोचा चलो मूवी ही देख ली जाए ....

मुझे उन लोगो के साथ खड़े होने और बात करने में शर्म महसूस हो रही थी ... अगर उस वक़्त कोई मुझे ऐसी गवाँरु औरत के साथ देख लेता तो यही समझता की मैं अपनी काम वाली बाई को फिल्म दिखाने लाया हूँ ....ड्राईवर ने मुझे देखा और कहा साहब आप पैसे दे दो मूवी के टिकेट ले आऊं ...मैंने  पर्स से निकाल कर कुछ रूपये उसके हाथ पर रख दिए , उसे देख वह चौंका और  बोला अरे साहब इतने में चार टिकेट थोड़ी ना आएंगें  ? ड्राईवर का इतना कहना था की मैं चौंका और दहाडा , अबे  तू और बुढिया भी हमारे साथ देखोगे क्या .... वह हंसा और बोला , बुढिया अपनी लड़की को अकेले ना जाने देगी , आज वह पहली बार आप के साथ अकेली आई है , अगली बार आप उसे अकेले ले जा सकते हो ....मैंने  बिना चूं चपड किये उसे और पैसे दे दिए ..वह टिकेट ले आया और हम चारों सिनेमा हाल के अंदर चले गए ...

मेरे साथ चलते हुए उन  तीनो नमूनों को देख टिकट- चेकर ने मुझे कुछ अजीब सी नज़रों  से घूर कर देखा , जिसे मैंने  हवा में उड़ा दिया और ऐसा दिखावा किया जैसे यह लोग मेरे साथ नहीं है ....पर वह भी जानता था , की उन लोगो की औक़ात  उस सिनेमा का टिकट खरीदने की कहीं  से भी ना थी ....क्योंकि यह सिनेमा हाल काफी हाई क्वालिटी का था उस थिएटर में अधिकतर अंग्रेजी की फिल्में ही लगती थी ......

हाल के अंदर घुसते हुए मेरा दिल निराशा में डूब रहा था , की क्या क्या सपने बुने और क्या हो रहा था , मैंने  ड्राईवर को कहा तू जाकर दूसरी ओर बैठ और साथ में बुढिया को भी ले जा ... बुढिया तो पुरानी घाघ थी , वह हम लोगो के साथ ही चिपकी रही , ड्राईवर हाल के किसी कोने में चला गया , मैं , बुढिया और लड़की हाल के एक  अंधेर कोने में जाकर अपनी अपनी कुर्सियों  में समां गए ..... ......

हाल में एक  कोने में लड़की मेरे और उसकी माँ के बीच बैठ गई, मुझे इन सबसे एक  अजीब सी बैचेनी होंने लगी , कि किसी ने अगर मुझे इनके साथ देख लिया तो क्या होगा , थोड़ी देर तक मैं चुपचाप बैठा रहा और ऐसा दिखावा करने लगा जैसे मुझे नहीं पता वह लोग कौन है ? हाल में अभी भी हल्की लाइट जल रही थी , आते जाते लोग मुझे और उन दोनों को एक  अजीब सी नज़रों  से देखते थे , की हम लोग गलती से तो कहीं उस सिनेमाघर  में तो नहीं चले आये , मैं दिखावा करने के लिए अपनी गर्दन इधर उधर घूमाने लगा , जैसे की मैं उन लोगो से अनजान हूँ ......

जैसे ही हाल में अँधेरा हुआ और परदे पर फिल्म शुरू हुई , युवती ने अपना घुंघट हटा लिया और अपने पल्लू को कंधे के पीछे कर लिया ... अब उसका चेहरा हल्के अँधेरे में भी मैं आसानी से देख सकता था ...जैसे ही फिल्म का पहला सीन शुरू हुआ , की वह मेरी सीट की तरह झुक गई , की उसके गाल पर  लगे पाउडर की महक मेरे नथुनों में घुसने लगी , मेरा सर उसकी मोजुदगी में जैसे अपना आपा खोने लगा ,कहाँ पहले मैं उसके किसी गवाँर की पत्नी वाले रूप को देख झल्ला रहा था , अँधेरे में अब वह सिर्फ एक  नारी थी और मैं एक  कामी दुराचारी पुरुष , जिसे कामवासना की आग ने अपने लपेटे में लेना शुरू  कर दिया था .... मैं भी अपनी ही कल्पना में खोया हुआ उत्तेजना से भरा था की मैंने  अपना कन्धा उसके कंधे से चिपका दिया और उससे सट गया .. अब उसका गाल मेरे गाल को छु रहा रहा था .....

तभी मैंने  आवेश में आकर अपना गाल उसके गाल से रगडा ..की उसने अपने आँचल  को नीचे अपनी गोद में गिरा लिया , अँधेरे में भी सामने चलती फिल्म की हल्की  सी रौशनी में ब्लाउज में से झांकते हुए उसके उरोज़  जैसे मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे ... .मैंने अपनी नज़रें उसके बगल में बैठी उसकी माँ की तरफ घुमाई तो देखा , बुढिया का ध्यान सामने परदे पर लगा हुआ था , मैंने नज़रें  अपने आस पास दौड़ाई  तो पाया , सब लोग फिल्म में ऐसे खोये हुए थे की किसी को किसी की तरफ देखने की फुर्सत नहीं थी ...मैंने  हिम्मत करके अपना हाथ युवती की गोद में रख दिया , उसने भी अपना हाथ बढाकर मेरे हाथ को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया ...अब वह मेरे और करीब आ गई ...मैंने  उसकी तरफ नज़र  उठा कर देखा तो ऐसा लगा जैसे उसका ध्यान सिर्फ सामने परदे पर है , मैंने आव देखा ना ताव , अपने होंठ खोले और उसके गाल को अपने होठों में भर लिया , युवती ने मेरी इस हरकत पर  कोई आपत्ति नहीं की , अपितु आगे झुक कर अपने गाल को मेरे मुंह  के और नज़दीक  ले आई , जिससे मैं उसके गाल को आसनी से चूम और चूस सकूँ ...

मेरे मुंह के अंदर उसके चेहरे का पाउडर जैसे घुल सा गया , मुझे मुंह  में कुछ अजीब सा लगा , पर उस वक़्त जोश के आगे होश नदारद हो चूका था और उस वक़्त इस हरकत का भी अपना एक अलग  मजा और उत्तेजना थी ...मैंने  घबराकर इधर उधर देखा की कोई हमें घूर  तो नहीं रहा , पर यह सिनेमा हाल काफी हाई क्वालिटी का था , जिसमे ऐसे लोग आते थे , जिन्हें सिर्फ अपने भर से मतलब होता था ...वैसे  भी वहां हिंदी फिल्म कभी कभी ही लगती थी ...अगर मैं इन माँ बेटी के साथ ना आता तो , शायद कोई इन्हें टिकट  भी नहीं देता ....फिर भी अगली सीट पर उसकी माँ बैठी थी और मैं उसके सामने ही उसकी बेटी से अपनी आधी अधूरी , कच्ची पक्की हवस पूरी कर रहा था ...मुझे अंदर से एक  ग्लानि  और अजीब से तनाव ने घेर रखा था ...

उस वक़्त मेरी हालत ऐसी थी , जैसे कोई आइसक्रीम के ऊपर गर्म गर्म चॉकलेट  का सिरप डाल दे ... अब आप सिरप की गर्म चुस्की से जीभ जलाते है या ठंडी ठंडी आइसक्रीम से अपने दांत को कडकडवाते है ....... यह फैसला आपके विवेक और शरीर को करना था ....की आप ज़मीर  की सुने या शरीर की ...

उसके गाल को चूमने के बाद मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी , परदे पर क्या हो रहा था , इसकी मुझे तनिक भी खबर ना थी , मैं गरदन घुमाकर कभी उसे तो कभी उसकी माँ को तो कभी अपने अडोस पड़ोस  में देख लेता ...की कोई हमें घूर तो नहीं रहा ... की अचानक मैंने  उसके दांये उरोज़  को अपने हाथों की कैंची बनाते हुए बांये हाथ को दांयी बगल से निकालते हुए थाम लिया , ताकि सामने से देखने में ऐसा लगे जैसे मैं अपने हाथो को बाँध कर बैठा हूँ उसके उरोज़  को मैंने कस कर पकड लिया और ज़ोर से उसे दबाने लगा ...अभी मैंने उसे दबाया ही था की उसके मुंह से एक  सिसकी निकली , और उसकी माँ की आँखे जैसे अँधेरे में हम दोनों पर आकर टिकी और फिर परदे में विलीन हो गई ...उसे भी पता था , वहां क्या हो रहा है या उसे पता था फिल्म में क्या होगा , फिर भी यह सब मेरे लिए एक  अजीब सा अनुभव था ....किसी की बेटी के साथ रासलीला वह भी उसकी माँ के सामने एक अजीब सा लगने वाला और उत्तेजना से भरपूर अनुभव था .....

कुछ लोग भारतीय समाज में इस पर कोई मोरल सन्देश दे सकते है , पर विदेश में रहने वाला शायद इसे इतनी बड़ी बात ना समझे , क्योकि विदेश में रहने वाला तो अपनी बीवी की डिलीवरी  उसकी माँ के सामने करवा देता है ....फिर थोड़ी बहुत ऐसे चुम्मा चाटी और  चिपटा गिरी और खींचतान तो बहुत ही मामूली बात है ...पर उस वक़्त विदेश में क्या होता है , इसका गुमान मुझे कदापि ना था ,मैं शायद उस वक़्त, जाने अनजाने देश में रहते हुए ,पहले से ही विदेशी होने का अभ्यास कर रहा था .....

मैंने  जोश में उसके उरोज़  को एक  गेंद की तरह से अपनी पकड़  में लेना चाहा , पर यह क्या वह तो ऐसे अकड़े हुए थे , जैसे कोई पत्थर की गेंद हो .. मैंने अपनी तरह  से भरसक कोशिस की ,की उन्हें दबाऊं और थोडा सा गुदगुदा लूँ ..पर वह तो इतने सख्त थे , की मेरी लाख कोशिस के बाद भी मैं उन्हें टस से मस ना कर सका .... मेरी यह कोशिस देख युवती पर भी कुछ कुछ असर होने लगा , उसने अपना हाथ मेरे उस हाथ के ऊपर रख दिया , जिससे मैंने  उसके एक उरोज़ को दबोचा हुआ था मुझे ऐसा लगा जैसे किसी लोहे के शिकंजे ने मेरा हाथ आकर जकड़ लिया हो ... अब मेरे हाथ के नीचे  पत्थर की गेंद और ऊपर लोहे का शिकंजा कसा हुआ था ...मैंने  अपने हाथ को वहां से हटाने की भरसक कोशिस की , पर मेरी हल्की फुल्की ताकत से मैं अपना हाथ हिला भी ना पाया , वह युवती इतनी सख्त और ताकतवर होगी ऐसी  मैंने कभी कल्पना भी ना की थी ....दुसरे मेरा हाथ उल्टा था , जिससे मेरी पकड उतनी मजबूत नहीं बन पाई थी ...

उसके उरोजों  में जो सख्ती और नुकीलापन था , ऐसे मैंने  उस दिन से पहले कभी और उसके बाद आजतक किसी औरत में महसूस नहीं किया था ....उस वक़्त मुझे ऐसा महसूस हो रहा था ,जैसे कोई हल्का नुकीला सा पत्थर जैसे मेरे हाथ में जकड़ गया हो .......

मैं भी पुराना घाघ था ....उसकी ताकत को मैं यूँही अपने ऊपर चलने ना देता ....अपने हाथ को उसकी पकड से छुड़ाने के लिए मैं अपने मुंह को उसके चेहरे के करीब ले गया और उसके गाल को अपने दांत से काटते हुए उन्हें अपने होठों में भर लिया ओर उनपर  जीभ फिराने लगा , अचानक ऐसा होने से उसका ध्यान भटका और उसकी पकड थोड़ी सी ढीली पड़ी की मैंने अपना हाथ वहां से छुड़ा लिया... फिल्म में क्या हो रहा था , परदे पर क्या चल रहा था , इसका मुझे कोई गुमान ना था ...मैं तो उसके जिस्म का अपने तरीके से जी भरकर आनंद उस माहौल  में जितना ज्यादा हो सकता था लेना चाहता था ...

उसके गालों के पाउडर को जी भर कर मुंह में भरने और उसके उरोजों  की सख्ती को नापने के बाद अब मेरे अंदर उसके जिस्म को अंदर से टटोलने की इच्छा होने लगी ..... कहने को उसका ध्यान परदे पर था पर जैसे उसे मेरी हरकत का पहले से ही इल्म था .... मैंने अपना हाथ धीरे से उसकी गोद पर रखा जिसपर उसने कोई प्रतिक्रिया  नहीं दी .. ..फिर मैंने  झटके से उस हाथ को उसके पेट के ऊपर से फेरते हुए उसके पेटीकोट के अंदर डाल दिया ....मैंने  यह हिमाकत कर तो दी , पर सिनेमा हाल में ऐसी हरकत करना निहायत  ही बेवकूफी का काम था , अगर कोई देख लेता तो शर्तिया मुझे अपनी इज्जत का जलूस  निकलवा कर हाल से बाहर  जाना पड़ता ....पर वहां शायद , ऐसी हरकत करने वाले विरले ही आते होंगे ....उसने मेरी इस हरकत का मुझे मुंहतोड़  जवाब दिया और अपने हाथ से मेरा हाथ एक  ही झटके में तिनके की तरह से हटा दिया ....

मैंने भी हालत की नज़ाकत  को समझते हुए परिस्थिति से समझौता करना उचित समझा और अपना हाथ वहां से हटा कर उसके उरोजों पर फेरने लगा ..ऐसा महसूस होता था जैसे एक  कसी हुई गेंद को , मैं अपने हाथो से दबा कर उसकी मजबूती नापना चाहता हूँ ,मेरी भरसक कोशिस के बाद भी , मैं उसके उरोज़  को हल्का सा भी उसकी जगह से दबा ना सका ....

उस वक़्त मुझे क्या पता था की यह मेरी जिन्दगी का ऐसा पहला और शायद आखरी अनुभव होने जा रहा था ...जिसकी कल्पना सिर्फ वही कर सकता है , जिसने उसे भोगा हो ...

न जाने कितनी देर तक मैं उसके उरोजों  पर अपना हाथ फेरता रहा की शायद एक  बार उन्हें हल्का सा दबा लूँ ,पर ना उन्हें दबना था ना वो मुझसे उस दिन दबे ...मैं सोच रहा था ,अगर यह मुझे बिस्तर पर मिलती तो मेरा क्या हश्र होता , क्या मैं उसके उरोजों को ज्यादा अच्छी तरह से हैंडल कर पता या उसके साथ नर और नारी का सम्बन्ध किस हद तक जाता ....

बीच बीच में , मैं कभी उसकी नाभि के ऊपर हाथ फेरता और बदले में कभी कभी वह अपने गालों से मेरे गाल रगडती ,इसी आपाधापी में कब आधी फिल्म  ख़त्म हो गई मुझे पता भी ना चला और जब इंटरवल  हो गया और हाल की लाइट जली तब मुझे होश आया कि मैं कहाँ हूँ ... हाल की लाइट जैसे ही जली मैं अपनी सीट से उठा और बाथरूम चला गया , मैं नहीं चाहता था की कोई मुझे रौशनी में उसके पास बैठा देखे ... वैसे भी इतनी देर उसके साथ नूरा -कुश्ती करने के चक्कर में , मैंने अपने पेशाब को बहुत देर से रोके रखा था , अब मुझे उससे भी हल्का करना था ....

इंटरवल ख़त्म होने के बाद जैसे ही अँधेरा हुआ , मैं अंदर हाल में आकर अपनी सीट पर बैठ गया , मेरा यूँ जाना शायद उसे अखर गया था , जैसे ही मैं सीट पर आकर बैठा , वह मुझसे सट कर बैठ गई और अपने गाल को मेरे होठों से रगड़ने लगी ...अब वह भी अपनी तरफ से पूरा सहयोग देने को तैयार जान पड़ती थी .... मेरी मुसीबत अब कई सारी हो गई , एक  तो मेरे अंदर का मर्द मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा था और बार बार मुझे ललकार रहा था, दुसरे उसकी माँ की यदा कदा घुमती आँखे जैसे मुझे चिढ़ा सी जाती थी और तीसरा आस पड़ोस  के लोगो का अनजाना सा भय , कि कहीं  कोई देख ना ले और कुछ कह ना दे , अरे आप लोग सिनेमा हाल में क्या करते हो ?..

वह युवती मेरे और नजदीक चली आई की अब वह मेरी सीट की तरह इतना ज्यादा झुक गई की वह लगभग मेरी आधी सीट पर चढ़ सी आई , उसने अपनी बायीं टांग उठाई और उसकी कैंची बनाते हुए मेरी दायीं टांग को उसमे फंसा लिया ....अब मेरी हालती ऐसी थी ...की मैं चाहकर भी अपनी जगह से हिल नहीं सकता था ...उसका बांया गाल मेरे मुह के आगे था और उसकी कमर मेरी छाती को अपने पीछे ऐसे धकेले हुए थी , जैसे कोई आपकी गोद में आकर आधा सा ऐसे बैठ जाए और आप अपनी जगह से हिल ना सके ...जैसे वह अंदर ही अंदर चाहती थी की मैं उसके गालो को जी भरकर चुमू , चुसू और काट भी लूँ तो वह उफ्फ तक नहीं करेगी .....

यूँ तो मैं एक  अच्छा खासा ताकतवर आदमी था , पर उसकी ताकत के आगे , मेरी ताकत जबाब देने लगी , अब सिवाय उसके गालों को चूसने के मेरे पास कोई और विकल्प ना था , उसके होठों को चूमने की ना मैंने कोशिस की ना ही उसने ऐसा कुछ करने का प्रयास किया , शायद यह सब उसकी सेक्स की किताब में नहीं था , उसका बांया कन्धा मेरे दांये कंधे को दबाये हुए था , ऐसे में मेरा दांया हाथ भी उसकी पीठ के दबाब में आकर बेकार ही चूका था , मैं चाहकर भी अपने दांये हाथ को हिला नहीं सकता था ...मैंने अपनी टांग को उसकी टांग की गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिस की पर वह तो उसे ऐसे जकड़े बैठी थी ,जैसे किसी अज़गर ने अपने कब्जे में किसी शेर को जकड़ लिया हो , जब मैं अपने को उसकी पकड से आजद ना कर सका , तो मैंने  उसके साथ कुछ बातें  करने का मन बना लिया और बेकार की बातों को धीमी आवाज में उससे खुस फुसर करने लगा ......की वह मेरे साथ कहीं अकेले घुमने चलेगी की नहीं , उसकी पसंद , ना पंसद आदि आदि ....

उस दिन मुझे अहसास हुआ , की देहाती औरत और शहर की औरत में क्या अंतर होता है ?.. उसका जिस्म मेहनत मजदूरी करते हुए ऐसा कस और तन गया था , की उसे भोगने के लिए उसके जैसा ही मजबूत और हिंसक आदमी बनना जरुरी था ...यूँ तो मैं अपने साथ के लड़कों  के मुकाबले अच्छा खासा तंदरुस्त और ताकतवर था , पर उसकी ताकत के आगे , मैं भी पसीना पसीना हो चूका था....सोचता हूँ काश आज ऐसा कुछ फिर से हो जाये तो मैं क्या अलग करूँगा ....

मुझे काफी देर जकड़ने के बाद उसने अपनी पकड ढीली कर दी और मैंने  मौका देखा अपना हाथ उसकी नाभि के पास ले जाकर उसके अंदर डाल दिया ... सीट पर बैठे होने कि  वज़ह से मेरा हाथ बहुत अंदर तक ना जा सका , सिर्फ उंगलिया कभी साडी के जोड़ पर  जाकर फंस सी गई ....इस वक़्त मेरे अंदर का मर्द जैसे उससे बदला लेने पर उतारू था , मैंने भी उसकी सीट पर झुकते हुए , अपना दांया पैर उसके बांये पैर के ऊपर चढ़ा कर वैसे ही कैंची डाल दी , जो उसने थोड़ी देर पहले मुझपर  डाली थी , मुझे लगा वह मेरे दबाब से हिल नहीं पाएगी , पर उसने तो एक  ही झटके में मुझसे अपने से यूँ आजाद करा लिया जैसे कोई बड़ी मछली आदमी के हाथ की गिरफ्त से फिसल कर निकल जाए ...हमारी यही छीना झपटी थोड़ी देर तक चलती रही , कुछ वक़्त बाद मैं भी इस अजीब से सेक्स से बोर हो गया , मेरे मुंह  में उसका पाउडर का कैसेला सा स्वाद और नथुनों में उसकी सांसो की महक और गर्मी जैसे पूरी तरह से घुल चूकी थी .... अब मुझे उसे पूरी तरह से हासिल करने की इच्छा होने लगी , पर सिनेमाहाल में यह सब मुमकिन ना था ....

अब मैंने  अपना थोडा सा ध्यान परदे पर  चलती हुई फिल्म पर  लगाया , तो ऐसा लगा की फिल्म जल्दी ही ख़त्म होने वाली है . मैंने  भी भागते भूत की लंगोटी समझ उसके गालों से अपने गालों को रगड़ा और उसके ऊपर  पूरी तरह से झुकते हुए उसके एक उरोज़ को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया , मुझे जैसे अब किसी से कोई परवाह ना थी , क्योंकि जो होना था वह होने जा रहा था ...की .. अचानक से मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मुझे अपनी पेंट में कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ ...

जैसे ही मुझे इसका अहसास हुआ , मेरा दिल ,दिमाग और शरीर एक  अज़ीब से सकून  का अनुभव करने लगा ...तभी मैं अपनी सीट से उठा और उन तीनो को हाल में छोड़ सिनेमा हाल से बाहर  निकल गया ...उस वक़्त मेरा दिमाग सांय सांय की आवाज कर रहा था , सिनेमा हाल के अँधेरे से निकल कर जब मैं बाहर  के उजाले में आया तो , ऐसा आगा जैसे मेरा जिस्म एकदम  हल्का हो कर हवा में उड़ रहा है .... मेरी सांस तेज तेज चल रही थी और दिल के धडकने की आवाज दूर से ही सुनी जा सकती थी ...

यह अपने आप में एक विचित्र और उत्तेजना से भरपूर अनुभव था ...अगले दिन ड्राईवर ने मुझे प्रशन चिन्ह वाली नज़रों  से धूरा और पुछा , सर आप हम सब को छोड़ कर अकेला क्यों चले आये ....मुझे माँ बेटी को ऑटो में बिठकर भेजना पड़ा और कुछ खिलाना भी पड़ा ..मैंने बिना कुछ कहे कुछ पैसे उसके हाथ पर  रख दिए और बोला , इससे मिलाने  का जुगाड़ कैसे बनेगा ...ड्राईवर ने एक  गहरी साँस ली और बोला , की उसकी माँ ने कहा है , की भैया को बोलना , पहले कुछ रुपया मेरी नज़र करें और फिर मेरी लड़की को अपने साथ घुमाए फिराए , कुछ शोपिंग आदि करवाये  , तभी वह उसके साथ किसी कमरे या घर पर  जाएगी .... मैंने एक गहरी साँस ली , की इसे तो किसी होटल में ले जाया भी नहीं जा सकता , क्योकि उसकी चाल ढाल और कपडे देख कोई अँधा भी समझ जाएगा की हम क्या करने आये है ...

मैंने उस वक़्त ड्राईवर से कुछ ना कहा और इस जुगाड़ में लग गया की किसी तरह किसी अकेले कमरे या घर का बंदोबस्त हो जाए , इसी खोजबीन में लगे कुछ महीने बीत गए की , अचानक मैं अपनी नौकरी और घर बार सब कुछ छोड़ छाड़ कर , हमेशा हमेशा के लिए विदेश चला आया और जीवन भर उसके उरोजों  की कसावट को अपने ज़ेहन  में समटे हुए , फिर से किसी ऐसी नारी की खोज निकल पड़ा  ....

...क्रमश :

By
Kapil Kumar 

No comments:

Post a Comment