Wednesday 29 June 2016

छोटी सी ख़ुशी ....



मेरी एक  छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ से थी जुडी ....
इस झूठ के सहारे , मैं जिन्दगी के कुछ पल हंस कर गुजार रहा था
कभी अपने दिल की कह लेता , तो कभी उसके दिल की सुन लेता
ना तो मैं उसे कभी कुछ दे पाया और ना ही उसके दिल का दर्द समझ पाया
फिर मैंने  उसके साथ हर लम्हा बड़ी शिद्दत से जिया
मैं चाहता रहा सिर्फ अपने अरमानो की ख़ुशी 
जो शायद उसके किसी दर्द से थी जुडी .....

बेरहम वक़्त को मेरा , यह मुस्कराना  भी पसंद ना आया
इसलिए तो इस नियति ने मुझे ,उससे हज़ारों  मील दूर मिलाया
मेरी चाहते थी बड़ी सीधी सादी, जिसे वह कभी कबूल ना फरमाती
मेरी वह मासूम छोटी सी ख़ुशी
जो उसे देती रही एक  हलकी सी कंपकंपी ....

मेरे बस में होता तो हर ख़ुशी का लम्हा उसपर  संजो देता
दुनिया की हर ख़ुशी देकर शायद मैं, अपने पर ही अहसान करता
काश उसके दिल में भी, मेरे इस अहसास का थोडा इल्म होता
मेरी तो ख़ुशी थी उसकी हर ख़ुशी में ,ना की अपना दिल बहलाने में  
तब शायद वह इतने जोर ना देती, मुझे अपने से दूर यूँ भगाने में 
मेरी वह खामोश सी ख़ुशी , जो उसे लगी बड़े से झूठ से जुडी ....

मेरा दिल मुझसे पूछता है हर बार 
क्यों झूठे से ही होता है हर किसी को ऐतबार
हम मोहब्बत करते है जिनसे , उन्ही से क्यों बेवफाई पाते है
जिनके कदमों  में रखते है दिल , वही हमारा दिल क्यों तोड़ जाते है
क्यों हम एक  छोटी सी ख़ुशी के लिए अक्सर बड़े झूठ बोल जाते है
मेरी वह मासूम सी ख़ुशी , जो उसके दिल में दर्द बनकर जा चुभी
मेरी वह एक छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ से यूँ अनजाने में जुडी ....

जिसके लिए मैं लड़ा इस दुनिया और समाज से
वही छोड़ गया मुझे अकेला मझधार में
मुझे परवाह नहीं थी के मेरे दिल  ने क्या पाया या खोया
फिर मेरा दिलबर क्यों इस हिसाब में पड़कर रोया
मेरी वह अनजान सी चाहत , मेरे अस्तित्व से थी जुड़ी 
उसके बिना कैसे जियूं , बड़ी मुश्किल थी मेरे लिए वह घड़ी 
इसलिए मैंने एक   मासूम सा झूठ उसे कह सुनाया
पर उस झूठ ने ही मुझे उसके सामने रुसवा कर दिया
वह करीब तो आई नहीं , पर  झूठ ने  हमेशा के लिए उससे दूर कर दिया
मेरी एक  छोटी सी ख़ुशी , जो बड़े से झूठ में  यूँ जुड़ गई  ....

By
Kapil Kumar

Monday 20 June 2016

गुलामी के धागे –2


गुलामी के धागे –1

कुछ दिन पहले मैंने एक  ब्लॉग लिखा था जिसमे मैंने  जिक्र किया की आखिर इन्सान गुलामी के धागों से क्यों बंधा रहता है ...आखिर वह क्या कारण है की गुलामी के धागे अत्यंत कमजोर होने के बाबजूद  मोहब्बत की मजबूत जंजीरों से ज्यादा असरदार और टिकाऊ  होते है ...इसी सोच को आगे बढाते हुए मैंने  मानव विकास में उसकी सोच को अपने अंदाज में देखा और परखा जिसका विश्लेषण में  यंहा पर कर रहा हूँ ... ....

जैसे के मैंने  पहले भाग में लिखा था ...की इन्सान की दो कमजोरियां  होती है जो उसे गुलामी की तरफ धकेलती है ...डर और लालच ...इसी कड़ी में मैंने  मानव स्वाभाव की कुछ और कमजोरियों  को भी जोड़ा है ...आखिर किसी कमजोरी का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है ....मूलभूत रूप से हर इन्सान अपने अंदर कुछ गुण तो कुछ अवगुण लेकर पैदा होता है ....

अगर मानव विकास को देखे तो , दुनिया में होने वाले अपराध , अत्याचार और दुसरे कामो के पीछे यह मुख्य कारक है ...

१.लालच

२.इर्ष्या

३.अभिमान

४.गिल्ट

इन्सान की यह मुख्य कमजोरियां है जो उसके व्यवहार  , चरित्र और गुण अवगुण को तय करती है .....लालच इन्सान को किसी चीज को बिना मेहनत किये पाने के लिए उकसाता है ..जिसमे ताकत होती है वह दुसरे से छीन लेता है , जो कमजोर होता है वह षड्यंत्र रचता है और फिर उसे पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है ....दुनिया में कोई भी ऐसा इन्सान नहीं ,जिसे किसी तरह का लालच ना हो , हम सब किसी ना किसी स्तर पर इससे घिरे रहते है ...यह अलग बात है की उस चीज को पाने की ललक हमें कितना उसका दीवाना बनाती है या हम उसके लिए कितने अधीर होकर , उसे पाने का प्रयास करते है ....जब हम उसे पा लेते है .....उसके बाद यही  लालच ..उसे बचा कर रखने के लिए हमारे मन में डर का बीज रोप   देता है .....


लालच –डर को जन्म देता है ..अगर लालच मन से निकाल दे या दुसरे शब्दों में किसी चीज को पाने की लालसा छोड़ दे या उसे खोने का गम ना करे तो ...आप अपने दिल और दिमाग से डर को उखाड़ फकेंगें  या वह आपके नजदीक फाटक भी नहीं पायेगा ...पर यह कैसे संभव हो ? यही हमारी यात्रा है ...शायद गीता का कहने का सार भी यही है कर्म करो फल की इच्छा ना करो , शायद कहने का सारांश यह था .....की फल के लिए लालच करते हुए कर्म मत करो ....कर्म को कर्तव्य समझकर करो .....ऐसा कर्म करने के बाद मिला फल आपके मन के अंदर किसी तरह का डर या भय पैदा नहीं करेगा .....क्योंकि आपपर  फल के खोने , छिनने या दूर चले जाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा .....ऐसी स्थिति  में आप  उस फल को पा सकते है ...पर इन्सान के गुलाम मन में लालच का यह धागा जाने अनजाने उसे डर से जोड़े रहता है ....कुछ खोने का डर अप्रत्यक्ष रूप में अनजाने लालच को जन्म दे देता है .... लालच ही गुलामी का वह पहला धागा है जो और धागों के लिए रास्ता खोलता है ....


ईर्ष्या --- अवसाद और क्रोध को जन्म देती है ...काफी दिनों से मैं यह जाने को उत्सुक था आखिर ..कोई इन्सान सब कुछ होने के बावजूद   भी असंतुष्ट है और कोई थोडा होने के बावजूद भी खुश है ...आखिर वह क्या कारण  है जो किसी इन्सान को संतुष्ट या असंतुष्ट करता है ?  .... ईर्ष्या एक  ऐसा अवगुण है , जो इन्सान में उसके जन्म के साथ ही आ जाता है ..हर इन्सान के अंदर इस अवगुण का निवास है ....यह किस स्तर पर है ..बस यही  तय करता है की वह इन्सान अपने जीवन में कितना संतुष्ट है .... ईर्ष्या यानी जलन , इन्सान के अंदर कई तरह के दूसरे  विकार पैदा करती है , जैसे दूसरे  का बुरा सोचना या करना , किसी को नीचा दिखाना , उसकी बुराई करना और जब जलन एक  हद से ज्यादा बढ़ जाए तो इन्सान हैवान का रूप लेकर किसी भी हद तक चला जाता है ....यह जलन ही है , जो इन्सान को ज्यादा पाने के लिए उकसाती , जबकि उसे शायद उतने ज्यादा की जरुरत भी नहीं ....कैसी  अजीब बात है ...यह  अवगुण सिर्फ मनुष्य जाति में ही पाया जाता है ...पशु और पक्षी इस अवगुण से कोसों  दूर है और यही  वजह है की मनुष्य इस जगत का सबसे विनाशकारी प्राणी है , जो अपनी ही प्रजाति का खात्मा बिना किसी संकोच के करता है ......जलन में अँधा इन्सान अपने पास की ख़ुशी को छोड़ दुसरे के दर्द में अपनी ख़ुशी ढूंढता  है ... यह एक  तरह का मनोविकार है , जिसका कोई इलाज नहीं , कोई किससे ईर्ष्या यानी जलन करता है यह भी पूरी तरह से कहा नहीं जा सकता , क्योकि कुछ लोग बाहर वालों से तो कुछ घर वालो से मन ही मन ऐसा भाव पाल लेते है , भाई -बहन , पति -पत्नी आपस में तो कई बार लोग रिश्तेदारों और दोस्तों को खुश या उनकी तरक्की देख मन में एक  तरह की जलन  पाल कर अन्दर ही अन्दर कुढ़ने  लगते है ... फिर एक  दिन यह ईर्ष्या उनके दिल और दिमाग के अंदर इस कदर जड़े जमा लेती है की वह इसकी गुलामी में बंधे जाने अनजाने दूसरे  का अहित करने लगते है और जब वह अपने षड्यंत्र में कामयाब नहीं हो पाते   की सामने वाले का कोई अहित कर सके तब उनके मन में एक  अवसाद या निराशा जन्म लेने लगती है , जो उन्हें जीवन की छोटी और आम खुशियों से भी महरूम कर देती है......


अभिमान--- विनाश को जन्म देता है ...इस प्राणी जगत में सिर्फ इन्सान ही ऐसा प्राणी  है जिसके अंदर अभिमान नाम का कीटाणु बहुतायत  पाया जाता है , यह एक  खोज का विषय है की अभिमान का जन्म इन्सान के जन्म के साथ हुआ या इन्सान की बनाई सामाजिक संरचना  ने इस अवगुण को उसके अंदर विकसित किया ...आखिर एक इन्सान दूसरे के सामने अपने को बड़ा , ऊँचा , काबिल , शक्तिशाली या गुणवान क्यों दिखाना चाहता है ? अभिमान यानी घमंड कैसे इन्सान के अंदर जन्म लेता है ? इसकी खोज की तो यह समझ आया , की जन्म से इन्सान के अंदर ऐसा कुछ नहीं होता , उसका माहौल  और परवरिश उसके अंदर इस तरह की चीज़ें इन्सान के दिमाग में धीरे धीरे डाल देती है , जैसे किसी घर में बच्चो को ज्यादा लाड प्यार , उनकी हर जिद्द पूरी करना या बच्चे को उसकी काबलियत से ज्यादा सर पर  चढ़ाना या फिर उसका फ़ालतू में गुण गान करना , धीरे धीरे उस बच्चे के दिमाग अपने अंदर अभिमान को जन्म देने लगता है ..कई बार यह क्रिया  विपरीत स्थिति से भी उतपन्न हो जाती है , जैसे किसी के अहम् को ठेस पहुचना या उसे नीचा  दिखाना आदि आदि ...इस अभिमान के चलते दुनिया में जाने कितने युद्ध और लड़ाइयाँ हुई , जिसमें एक इन्सान की झूठी शान या अभिमान ने कितने ही तख्तों ताज और देश के साथ लोगो को अपने अंदर लील लिया ....घमंड इन्सान के अंदर गुलामी का वह अद्रश्य धागा है , जो एक  बार उसके मन मस्तिष्क में उलझ गया , फिर यह सिर्फ तबाही ही लेकर आता है ...क्योकि अभिमान या मद में चूर इन्सान , कभी भी सामने वाले के दुःख दर्द को नहीं समझ पाता....अभिमान गुलामी का वह धागा है जिसमे बंधा इन्सान खुद भी दुसरे की गुलामी करता है और दूसरों  से भी ऐसा करने की अपेक्षा रखता है ....क्योकि ना तो उसके अन्दर किसी  के लिए दया , करुना और स्वाभिमान होता है और ना वह इसे समझ पाता है ....


भय यानी डर ..... विकल्प की कमी.. यूँ तो मैंने  डर का एक  कारण लालच रखा , पर जब हमें कोई भी लालच नहीं है , फिर भी हम किसी अनजाने डर से पीड़ित है , तो इसकी वजह क्या है ? आखिर किसी इन्सान के मन मस्तिष्क में डर क्यों और कैसे पैदा होता है ? इसका मुझे एक  कारण और समझ आया की , लोगो के मन मस्तिष्क में डर का एक  कारण है , वह है विकल्प की कमी .....जब हमारे पास किसी चीज , रिश्ते या समस्या का विकल्प नहीं होता तो हमें उसके खोने या उसके द्वारा होने वाले नुकसान का अनजाना डर जकड़े रहता है ... जैसे किसी औरत को अपने पति के खोने का डर या उसके ना होने से होने वाली समस्या का डर (जैसे पैसे की तंगी , सामाजिक सुरक्षा आदि ) , किसी को जॉब छुटने का डर या दूसरी जॉब ना मिलने का अविश्वास , ऐसे ही किसी को पैसे या धन को खोने का डर या फिर उस धन को ना पा सकने का विश्वास ..अगर हम देखेंगें  तो पायेंगें  की अगर हमारे पास किसी चीज का विकल्प है तो उसके होने या ना होने या खोने या नष्ट होने का हमें डर नहीं लगेगा .....

अगर आपको यह पता हो की जिसने आपके ऊपर बन्दुक तनी है , उस बन्दुक में गोली नकली है या आप उस बन्दुक की गोली से मर नहीं सकते , तब आपको बन्दुक का डर नहीं लगेगा ...ऐसी ही किसी रिश्ते के टूटने का डर तभी तक है अगर ऐसा दूसरा रिश्ता जुड़ने का विकल्प आपके सामने नहीं है ...

डर ही इन्सान के मन मस्तिष्क का वह सबसे अहम धागा है जो आपको दूसरों  की तरफ खींचता है या उससे जोड़ कर रखता है .... आप कई बार अनचाहे सम्बन्ध या किसी से अपना रिश्ता , दोस्ती आदि इन्ही जाने अनजाने डर की वजह से बनाये रखते है की , कल बुरा समय आने पर यह रिश्ता आपके काम आएगा ...अगर आपके पास उस सम्बन्ध या रिश्ते के विकल्प हो तो रिश्तों  के होने या ना होने या टूटने का डर आपको नहीं होगा ....

गिल्ट यानि अपराधबोध ......जब किसी इन्सान ने किसी ऐसे इन्सान से गुलामी की अपेक्षा की होगी जो उसके मुकाबले हर तरह से काबिल , शक्तिशाली और गुणी था ..तब फिर कैसे एक  मजूबत इन्सान किसी कमजोर की गुलामी के चंगुल में फंस जाता है ..इसका एक  कारण है ...की सामने वाले के मन में एक  अनजाने अपराधबोध के बीज को रोप देना , ताकि उस गिल्ट से पनपे पौधे  को सींचते हुए इन्सान कभी सामने वाले के चंगुल से निकल ना पाए ....अगर हम जमींदारी वाली व्यवस्था  में जाएँ  तो समझेंगे की जमींदार पीढ़ी दर पीढ़ी कैसे कई कई परिवार को अपनी गुलामी में उलझाये रखते थे .....की उनके पूर्वजो का कर्ज उनकी आने वाली नस्लों को चुकाना है ...कभी किसी ने यह जाने की कोशिस नहीं की ..की वह कर्ज वास्तव में था भी की नहीं ..बस सब एक  झूठे डर और लोक परलोक के अभिमान में उलझे उनकी जीवन भर गुलामी करते रहे ...क्योकि उनक मन में गिल्ट इतना घर जमा चूका था ..उन्हें लगता था जैसे गुलामी करके वह कोई पुण्य का काम कर रहे है और इस बहाने वह अपने पूर्वजों  के कर्ज को चुकता कर रहे है ...अगर शांत दिमाग से सोचा जाए तो ..यह अपने आप में कितना हास्यपद है ...

गिल्ट पैदा करके शोषण करना अपने आप में एक  कला है जिसका उपयोग आये दिन घर परिवार में होता है ..माँ बाप  बच्चों का तो बच्चे माँ बाप का ऐसा शोषण करते है ....या फिर पति पत्नी एक दूसरे  का ..उनकी कमियों को गिनाकर खुद को उसका विक्टिम बता कर सामने वाले का शोषण करते रहते है और दूसरा अपराधबोध से दबा कभी समझ ही नहीं पाता , की वह उस अपराध की अनजानी सजा काट रहा है ..जो उसने कभी किया ही नहीं .....जैसे बच्चों  का माँ बाप को ताने देना की ...उन्हें अच्छा माहौल  या सुविधा नहीं मिली ...पति का पत्नी को ..कहना की उसके आने से उसका व्यापार  , कामकाज चौपट हो गया ..सास का बहु को कहना की वह उसके परिवार के लिए अशुभ  है या उसके परिवार वालो ने शादी में उनकी इज्जत नहीं रखी ...या फिर बॉस का अपने जूनियर का यह कहकर शोषण करना की वह ज्यादा काबिल नहीं और वह उसे किसी तरह से झेल रहा है या बहन का भाई से प्रेम के नाम पर आदि आदि ऐसे उदाहरण  है ..जिसमें दूसरे के मन में गिल्ट पैदा करके उसे गुलामी के धागों से बांध दिया जाता है ....

अगर कोई आपको आपकी कमियां दिन रात सिर्फ गिनवाए  पर उन्हें दूर करने में सहयोग ना करे या आपके द्वारा किये काम में सिर्फ कमियां ढूंढे या आपके ऊपर किसी भी तरह का अनजाना दोष रोपित करे तो समझ ले , की सामने वाला आपको गिल्ट के जाल में उलझा कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है ...अपने मन में विश्वास  जगाये की ..आपके बारे में कोई कैसी भी राय बनाये आपको उसका फर्क नहीं पड़ना चाहिए जब तक सामने वाला आपको उसे सही करने का विकल्प ना सुझा दे ....

मोहब्बत में इन्सान के मन के अंदर ना तो गिल्ट , ना ही डर , ना ली लालच और ना ही किसी तरह का अभिमान होता है , इसलिए मोहब्बत की जंजीरे कितनी भी मजबूत क्यों ना हो ..वह गुलामी के धागों के आगे कमजोर पड जाती है ....



अपने मन में में झांके और देखे की आपके अंदर कौन कौन से गुलामी के धागे जाने अनजाने उलझे है ......अगर हो सके तो उन्हें अपने मन मस्तिष्क से उखाड़ फैंके , तभी आप एक  सच्ची मोहब्बत की कद्र कर पायंगे या उसे अपने जीवन में आत्मसात कर पायंगे ....कभी भी अपने मन के अंदर डर और गिल्ट को पनपने ना दे , अगर आपको कभी ऐसा लगे की मेरी वजह से ऐसा हुआ तो , यह भो सोचना चाहिए की ...क्या आपके पास कुछ और करने का विकल्प था ..अगर नहीं तो फिर कैसा गिल्ट ? और इसी तरह अगर आपको किसी चीज या रिश्ते को खोने से होने वाले नुकसान का अंदाजा है और उसका विकल्प है तो फिर कैसा डर ???

By
Kapil Kumar 

Friday 17 June 2016

तू मेरा बलात्कार करेगा ??? (हास्य -व्यंग )



कुछ औरतें  अपने अपने ईष्ट देवी देवताओ से पूजा करते हुए प्रार्थना कर रही है....

हे ऊपर वाले ! हम अबला नारियों  की इज्जत अब तेरे ही हाथों में है , हमें इन दरिंदों , भूखे भेड़ियों से बचाओ , यह तो हमारे जिस्म की बोटी बोटी नोच डालेंगे , अब तो हम तुम्हारे ही सहारे है ...प्रभु हमें बचाओ ....

देश में आए दिन होते बलात्कार , छेड़छाड़ और मर्दों की हवस का शिकार होती लडकियों और औरतों  की हर वक़्त की पुकार भगवान के कानों में चुभती सी उतर रही है ...अब ऊपर वाला करे भी तो क्या .... उसने तो बस इन्सान बनाये थे , अब उसके बाद इन्सान ने अपने लिए क्या कायदे और कानून डाले , उसमे ऊपर वाला करे भी तो क्या करे? .... इक दिन ब्रह्माजी से रहा ना गया और वोह जमीन पर मंदिर में मूर्तियो के सामने दहाड़े मारती ,पुकारती , दुआ मांगती इक स्त्री के समक्ष प्रगट हो गए ...

यह औरत कोई आम औरत ना थी , यह दुर्गावाहिनी मोर्चे की कमांडर रागिनी थी , जो दहाड़े मार मार कर मंदिर का हाल बेहाल किये हुए थी  ...यह सब वह  आस पास खड़ी औरतो में अपना रॉब गाठने के लिए स्वांग भर कर रही थी ,जब की हकीकत में वह कहीं  से अबला ना थी ,उस पर कोई पुरुष निगाह डालने से पहले ही कई बार मन में सोचता , ना जाने कितने मर्दों की वह  बांह मरोड़ चुकी थी , झापड़ तो वह ऐसी मारती की जैसे वह प्यार से हाथ मिला रही हो  , शहर के अच्छे अच्छे हरामी उससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते .....

इतना सब होने के बावजूद ,औरतो पर  होने वाले सेक्सुअल हमलों और  बेवजह की छेड़छाड़ से वह भी बेज़ार  थी ...ख़ैर खेर ब्रह्माजी ने प्रगट होकर कहा .....

देवी क्या कष्ट है ? और बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ ?

ब्रह्माजी को अपने सामने यूँ खड़ा देख,एक  बार को रागिनी सकपका गई , फिर उसके तेज , चालाक और धूर्त दिमाग में एक  विचार कोंधा और मुस्कराते  हुए ब्रह्मा से बोली .....

महाराज आपने , हम औरतो के साथ न्याय नहीं किया , हमें पुरुषो के मुकाबले इतना कमजोर बना दिया की ,आए दिन हम उनकी कामुकता और हवस का शिकार हो जाती है , पुरुष नाम का जंगली भेड़िया हम जैसी मासूम औरतो को बलात्कार के खंजर से आए दिन लहूलुहान करता है और आप ऊपर बैठकर सिर्फ हमारी बर्बादी का तमाशा देखते रहते है ...आपने यह कैसी दुनिया बना दी ?आप कुछ करते क्यों नहीं ?

ब्रह्मा बोले.... देवी , मैं आप लोगो की पीड़ा समझता हूँ पर मैंने  तो इस दुनिया का निर्माण जैसे किया था , वैसी तो अब दुनिया रही ही नहीं , मैंने  तो मनुष्य और पशु को एक  जैसा सा बना कर जंगल में छोड़ा था , किन्तु आप मनुष्य लोगों  ने उसमे अपनी मर्जी से छेड़छाड़ करके अपने आप में एक  समाज बना लिया ...

अब आपके समाज के जो भी नियम और कानून है , उसमे मेरा क्या दखल ? .....पशुओं  को देखो , उनमे कोई ना धर्म है , ना समाज , ना कायदा है ना कानून , फिर भी सब मज़े  में है , ना कोई पशु दूसरे पशु’ का बलत्कार करता है , ना कोई किसी के घर डकैती डालता  है ... एक मांसाहारी  जानवर भी सिर्फ भूख लगने पर शिकार करता है और मनुष्य तो ना जाने किस बात पर अपने ही लोगो का क़त्ल कर दे .... धर्म जाति, धन , अहंकार , लोभ , जमीन ..अनगिनत कारण है  । 

ब्रह्माजी की बात सुन रागिनी  निरुत्तर हो गई , उसके मुरझाते चेहरे को देख ब्रह्मा को उस पर   दया आ गई और ब्रह्मा ने फिर एक  गहरी सांस ली और बोले .....फिर भी मुझसे जो बन पड़ेगा , मैं आप लोगो की सहायता के लिए अवश्य करूँगा .... मैं भी आए दिन पृथ्वी लोक से आती औरतों  की चीख पुकारो से तंग आ चूका हूँ .... इस चक्कर में कई सालो से एक चैन की नींद भी नहीं सो पाया.... तुम्ही कुछ सुझाव दो की तुम्हारी समस्या का क्या हल है ?क्योंकि  आज के मनुष्य के समाज के कानून मेरी समझ से बाहर है ....क्योंकि पशुओं  में तो बलात्कार, छेड़छाड़ , विवाह और लिविंग आदि ऐसी समस्या नहीं है .....

रागिनी  ने एक  पल सोचा और फिर इधर उधर देखा , सारी औरते मंदिर में मूर्ति के आगे जोर जोर से आरती गाने में मग्न थी , लगता था ब्रह्मा सिर्फ उसे ही दिखाई दे रहे थे , उसके तेज दिमाग में तुरंत फुरंत में एक  अजीब सा ख्याल पैदा हुआ ...

रागिनी ने कहा महाराज .. हम औरतो की सबसे बड़ी समस्या गर्भवती होना या माँ बनना है ...बस हमें इस कर्तव्य से आजाद कर दो , आज के बाद कोई औरत माँ ना बने , बच्चा जो है वह पुरुष पैदा करे ....आप कुछ ऐसा कर दो की अब सिर्फ पुरुष ही गर्भवती हो ....देखना सारी समस्याएँ खत्म  हो जायेंगी ...

ब्रह्माजी ने जब रागिनी  की इच्छा सुनी तो उन्हें चक्कर आ गया ...बोले देवी !  यह कैसे सम्भव है ? इससे तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा ....रागिनी ने ब्रह्माजी की बात को काटते हुए कहा , महाराज इसमें कोई बड़ी बात नहीं , बस जिसे हम समाज में पुरुष यानी नर कहते है ...वह ही संतान पैदा करेगा , मनुष्य का विकास होने के लिए इन्सान तो फिर भी पैदा होगा ही , वैसे भी आपने कुछ जानवरों में नर को ही प्रजनन (माँ ) करने का  गुण दिया है , फिर परुषों में ऐसा होने से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा ?

ब्रह्मा बोले , देवी यह इतना आसन नहीं , पुरुष के शरीर में बच्चा बाहर  निकलने का मार्ग , गर्भाशय आदि है ही नहीं , फिर पुरुष सिर्फ वीर्य ही बहार निकालता है , पर गर्भ ग्रहण करने के लिए यह किर्या भी बदलनी पड़ेगी , पुरुष को वीर्य बाहर  निकालने की बजाय स्त्री योनी से , स्त्री के द्रव्य को सोख कर अपने अंदर लेना होगा ....मतलब , पहले गर्भाशय , फिर लिंग में बदलाव और बच्चे निकालने  का द्वार आदि आदि .....काफी ज्यादा बदलाव करने पड़ेंगे ....ब्रह्माजी अपना सर खुजाते हुए बोले ...

रागिनी झल्लाते हुए बोली , महाराज , अब इतनी बड़ी समस्या के निवारण के लिए छोटे मोटे मॉडिफिकेशन तो आपको करने पड़ेंगे ही ...बाकि बात बच्चे निकलने की तो पुरुषो के पास जो एक द्वार है उसे ही इस्तमाल में ले ले , हाँ सिर्फ इक गर्भाशय की समस्या है , तो परुषों  की एक  किडनी कम कर दे , वैसे भी इतने शक्तिशाली इन्सान को दो किडनी की क्या जरुरत ?

वह  तो हम जैसी कमजोर औरतो के लिए ही ठीक है ,की भाई, एक  ख़राब तो दूसरी से काम चला लो ....अब आपने परुषों को हम औरतो के मुकाबले इतनी ताकत दी है , कहीं कुछ तो कटौती  कर लो .....

रागिनी  की बात सुन ब्रह्माजी  का भेजा घूम गया , वे  बोले ..यह कैसे संभव ? इसपर  रागिनी झल्ला पड़ी और बोली ....अगर आप से इतना सा काम भी नहीं होता तो आप यह काम आप आउट सोर्स करके सन्यास ले ले .... आपको मैंने  सारे मॉडिफिकेशन समझा दिए और क्या चाहिए ?रागिनी के मुंह से आउट सोर्स की बात सुन ब्रह्माजी को अपनी नौकरी खतरे में दिखाई देने लगी , उन्होंने तुरंत फुरंत में रागिनी  की मांग मान कर  तथास्तु कह कर वहां  से खिसक लिए ....उन्हें मन ही मन अपनी नौकरी जाने का डर सताने लगा , ब्रह्माजी मन ही मन बुदबुदाये ....की यह सनकी औरत कहीं ऊपर के लेवल पर चली गई और आउटसौर्स का विकल्प हायर मैनेजमेंट को दे दिया ..तो इस उम्र में घर बैठना पड़ जायेगा ...

अब इतने सालों  से आराम की सरकारी नौकरी नौकरी करने वाले को इस उम्र में दूसरी जॉब मिलती भी तो कहाँ ? वैसे भी ब्रह्माजी के स्किल आउट ऑफ़ डेटेड हो चुके थे , जिनकी इस टेस्ट ट्यूब बेबी के ज़माने में कोई कद्र नहीं थी ?....

ब्रहामजी के जाते ही मंदिर में चलती आरती ख़त्म हो गई , रागिनी को ऐसा लगा जैसे उसने सपना देखा हो , थोड़ी देर पहले वह अपने मासिक धर्म की वजह से थोडा असहज महसूस कर रही थी ,अब उसे ना कोई थकावट और ना ही कमर में दर्द जैसा लग रहा था , उसे अब अचानक से अपना शरीर एकदम  से हल्का फुल्का सा लग रहा था ....उसने मन में सोचा क्या उसकी ब्रह्माजी से ऐसी कोई बात हुई या वह उसका सिर्फ वहम  था .....उसका हाथ अचानक से पेट के पास साडी के ऊपर घुमा तो , उसका मुंह  खुला का खुला रह गया , सुबह उसने पीरियड के लिए जो पैड लगाया था वह वहां  पर नहीं था ....

वह घबराहट में दौड़ी दौड़ी बाथरूम पहुंची ....वहां उसने  देखा की कई औरते बदहवाशी में इधर उधर टहल रही थी ...सबके चेहरे पर हवाइयां उडी हुई थी , उन्हें समझ ना आ रहा था , की पीरियड के लिए उन लोगो ने जो पैड सुबह बांधे थे , वे कहाँ  गिर गए और उनकी योनी से किसी भी तरह का रिसाव क्यों नहीं हो रहा और ना ही उन के कपड़ो पर खून के किसी धब्बे का कोई निशान क्यों नहीं है ?

उन औरतो की बाते सुन, रागिनी के चेहरे पर एक  कुटिल मुस्कान आ गई , उसे समझ आ गया , उसे ब्रह्माजी ने असल में ही दर्शन दिए थे और उसने, उनसे जो वरदान माँगा था , वह उन्होंने पूरा कर दिया था .....

मीका और टीका , उस इलाके के नामी बदमाश थे , ना जाने कितने बलात्कार  , छीना झपटी , छेड़छाड़ और चोरी के केस उनके नाम दर्ज़  थे ....आए दिन औरतों के  गले की चैन उडाना , उन्हें चुटकी काटना और मौका लगने पर उन्हें दबोचना उनका रोज़ाना का पेशा था ..... ना तो पुलिस और ना ही कानून उनका कुछ बिगाड़ सकता था .... क्योंकि औरतें और लड़कियां अपनी सामाजिक इज्जत की खातिर उनके जुल्म चुपचाप सहन कर लेती और जिन्होंने पुलिस स्टेशन जाने की हिम्मत दिखाई , उन्हें मुंह की खानी पड़ी , क्योकि पुलिस स्टेशन में भी भूखे भेडिये उन्हें नोचने और खसोटने के लिए तैयार थे...

वहां का थानेदार ही खुद रंगीन मिजाज का आदमी था । जो भी औरत  जुर्म की वजह से थाने  में आती वे  उसकी हवस की भेट चढ़ जाती ....ऐसे में शरीफ और घरेलू औरतें पुलिस स्टेशन का रूख़  ना करने में ही अपनी भलाई समझती और कामकाजी महिलाओं के पास  इतना वक़्त ही कहाँ होता  की पुलिस और वकीलों के फ़ालतू के लफड़े में पड अपना टाइम खोटा करती .......

अचानक मीका और टीका के पेट में दर्द उठने लगा , ऐसे लगा जैसे किसी ने पेट में जोर से लात मारी , जी भारी सा होने लगा और दोनों हांफते हुए सडक पर  खड़े होकर उबकाई करने लगे ..... अभी वे अपनी हालत से उबरे ही थे ...की सामने से रागिनी  आती दिखाई दी ..अपनी आदत से मजबूर दोनों ने उससे छेड़छाड़ शुरू कर दी , दोनों इस बात से अनजान थे की कुदरत ने उनके अंदर एक  अनोखा बदलाव कर दिया है .....जैसे ही रागिनी उनके पास आई , उन्होंने उसे चुटकी काट ली और उसकी तरफ देख कर ही ही करके हंसने  लगे ....
कोई और वक़्त होता तो रागिनी  उन्हें दो चार सुना देती ...पर आज तो उसे भी मस्ती चढ़ी थी ...उसने कहा बेटा सिर्फ चुटकी से काम ना चलेगा ..जरा किसी आरामदायक बिस्तर का इंतजाम कर , फिर मज़े लेते  है जवानी के । रागिनी  की यह बात सुन दोनों भौंचक्के   रह गए , उन्हें अपने कानों पर  विश्वास ना हुआ , की जो उन्होंने  सुना है वह सत्य है ...उनका मुंह खुला का खुला रह गया ,अभी वे  इस सदमे से बाहर  निकलते की रागिनी  बोली ..बेटा जाकर बाथरूम में अपने पीरियड का इंतजाम भी कर लेना और ऐसा कह वह वहां  से निकल गई ...

रागिनी  की बात सुन दोनों भौंचक्के  रह गए , की यह क्या बला बोल कर गई है ...पर अपने पीछे होती खुजली और अजीब से दर्द ने उन्हें बाथरूम में जाने को मजबूर कर दिया , जैसे ही दोनों ने बाथरूम जाकर अपना पेंट हटाया तो , उनके तोते उड़ गए ...दोनों के मुंह  से एक  साथ निकला , हे भगवान !  तूने यह क्या कर दिया ?

शायद आज उनका बुरा दिन ही था ...की दोनों का पेट अचानक से फूलने लगा और देखते ही देखते उसके अंदर 6 महीने के शिशु ने अपने कबड्डी खेलनी शुरू कर दी ....क्योंकि  जेल से 6 महीने पहले छुटने के बाद दोनों ने किसी देर रात काम से लौटती युवती पर अपनी मर्दानगी दिखाई थी ...जो उनके पेट में अब हिल्लोरे लेने लगी .....

दोनों अफरातफरी में भगते हुए डॉक्टर के पास पहुंचे ...जहां डॉक्टर खुद अपना ९ महीने का पेट संभाले , प्रसव पीड़ा से पीड़ित था ...मीका और टीका ने डॉक्टर को देखा और बोले ... .अरे डॉक्टर साहब आप भी ..क्या हम जैसा गलत काम करते थे , की आप को भी यह दंड मिला ?

डॉक्टर खीज़  में चिल्लाया ..अबे गधों  ...मैंने  तो आज सुबह अपनी बीवी को पहली डिलीवरी के लिए यहाँ  एडमिट करवाया था ....ना जाने क्या हुआ ..की वह तो मजे से बिस्तर पर उछल कूद कर रही है और यह स्यापा मेरे गले पड गया , पता नहीं ऊपर वाला कैसे कैसे खेल खेल रहा है ...जानना वार्ड दोपहर से मर्दाने वार्ड में बदल गया है .कई आदमी तो डिलीवरी के नाम से ही बेहोश हो गए ...जिनके पेट में लड़की थी ...अब उनका एबॉर्शन होगा तो उसमे उनके रोने धोने अलग मचे है ...सारे मर्द जाती पर  जैसे एक  अभिशाप लग गया है ...

पूरे हॉस्पिटल  में हाहाकार मचा था ...बड़े बड़े सुरमा अपना पहले से फुले हुए मोटे पेट में गुब्बारे फुलाए इधर उधर हांफ रहे थे और बार बार अपनी बीवियों से अपने किये हुए जुल्मो के लिए माफ़ी मांग रहे थे और उनके आगे गिड़गिड़ा  रहे थे ....की वह लोग भगवान से जाकर वापस अपना माँ बनने का हक़ ले ले ...

हर जगह टी वी चैनल पर  आदमी अपना चेहरा छुपाये बैठे थे और उनके साथ की महिला एंकर जोश और ख़ुशी में कुदरत के इस बदलाव की समीक्षा बड़े जोर शोर से कर रही थी ...पूरी दुनिया में जैसे हलचल सी मची हुई थीं .....

कुछ टीवी की महिला एंकर खाड़ी के शेखों  के हरम का जायज़ा  ले रही थी ....की एक  आदमी के कई औरते से सम्बन्ध होने की स्थिति में उसे एक  बार में कितने बच्चे पैदा होने के चांस है .... कुछ ख़ास कोम के लोगो में जैसे मातम मच गया था .... लगता था ऊपर वाले ने आज हूरो का पिटारा खुला छोड़ दिया था ...सब पर्दानशी आज खुले आम घूम रही थी और अपने खाविन्दों की हालत पर हंस रही थी ....

सबसे ज्यादा हालत ख़राब उन नौजवान लोगो की थी , जिन्होंने अपनी मस्ती में स्लीप एंड फॉरगेट वाला फार्मूला अपनाया था .....अब उनकी माचो जैसी बॉडी पर  सिक्स पैक की जगह सिक्स मंथ  की गर्भावस्था का बोर्ड टंगा था ....माचो मैन अब पैक से नहीं महीनों  से पहचाने जा रहे थे , वन मंथ मतलब वन पैक , आठवां महीना  मतलब आठ पैक .....

कहाँ  घर की सास बहु को  उलाहने देती की तू बेटा पैदा नहीं करती , अब बहु सास से पूछ रही थी , की घर में खुशियाँ कब आएँगी ?.....आतंकवादी जिन्होंने औरतों  को अपनी हवस के लिए कैद किया था , आज बन्दुक की जगह अपना पेट उठाये घूम रहे थे और हर घडी उस वक़्त को कोस रहे थे , जब उन्होंने ऐसा दुराचार करने का सोचा था ..अब किसी के हाथ में बन्दुक ना थी , सब अपने पेट को पकडे जमीन पर फड़फड़ा  रहे थे ....उन्हें देख औरतें  उन पर तंज कस रही थी ...आ मेरा बलत्कार कर..

उधर थाने  और जेल में महिला कैदी जैसे ख़ुशी के नगमे गा रही थी ...थानेदार , हवलदार और जेलर , अपनी मोटी तोंद में १० पौंड  का बच्चा लिए अपने कर्मों  को कोस रहे थे ...महिला कैदी अपने पहरेदारों  को लताड़ रही थी और उकसा रही थी ...आ पांडू तू मेरा बलात्कार  करेगा ...हा हा ?


द्वारा 
कपिल कुमार 


नोट:-- यह लेखक के अपने विचार है, जो सिर्फ मनोरंजन के लिए व्यक्त  किये गए है...इसमें किसी व्यक्ति या समुदाय की भावना को ठेस पहुंचने का इरादा नहीं है ...किसी जीवित या मृत से मिलती जुलती घटना के लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है ...यह सिर्फ एक  हास्य व्यंग  है ...

ख़ामोशी की दिवार........


मुझे अपने से दूर भगाना तो तेरा अधिकार है 
पर मैं तुझसे दूर चला जायूं तो यह मुझपे धिक्कार है ....

तू मुझसे रूठ जाए तो यह तेरी अदा है  
मैं तुझे फिर ना मनाऊँ  यह मेरी खता है .....

तू उड़ाले हँसी मेरी , यह तेरा अल्लहड़पन  है  
मैं बुरा मान जाऊँ  तो यह मेरा बचपना है ......

तू नज़रें  झुका कर भी यही कहेगी की तू मुझसे ख़फ़ा  है   
तुझे नाराज समझकर ना चुम्मू तो यह मेरी खुद की सज़ा  है .......

तू दे उलहाने मुझे हज़ार  तो यह तेरी शोखी है  
उनमे मैं उलझ कर मैं रह जाऊं  तो यह मेरी मदहोशी है .....

तेरा रूठना ही मुझसे तेरी मोहब्बत की पहचान है  
फिर भी तेरे इक़रार  करने की ज़िद  करना 
 मेरी नासमझी की पहचान है .....

आ इन गिले शिकवे के किस्से को  छोड़ दें  
नयी बहार  पर इस  ख़ामोशी की दिवार को तोड़ दें  .....

By
Kapil Kumar

मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे ....


मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे 
यह सांस बस अटकी हुई
इस साँस को ही तोड़ दे......
मेरे दिल के जख्म है कुछ अध् पके 
इन जख्मों पर  भी तू नींबू निचोड़ ले .......

यह आइना पहले से चटका हुआ 
 आज इस आईने को भी तू तोड़ दे.....
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......


मेरे ख़्वाब  है कुछ आधे अधूरे से 
इन ख्वाबो में भी तू दहशत घोल दे.....
मेरी डगर पहले से ही थी कुछ कठिन 
उसमे भी तू कुछ अंधेर मोड़ जोड़ दे ...

मैं मुसाफिर हूँ एक  भटका हुआ 
मेरे पावों में कुछ और कांटे चुभो दे
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......

मेरे हमदर्द थे पहले ही कम 
अब कुछ और दुश्मन इनमे जोड़ दे...
जो मिले थे मुझे प्यार के दो पल 
उनमे थोड़ी सी नफरत घोल दे ....

गर मुस्कराने  मैं लगूं  तो 
गम को भी उसमे डुबो दे ...
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......


कोई हाथ पकडे अगर मेरा 
उस हाथ को भी तू तोड़ दे.....
मैं लड़खड़ा जाऊं संभलने के लिए 
तो एक  झटका तू भी उसमे ठोक दे .....

साँस मेरी उखड़ने लगी है 
अब इस सांस को ही रोक ले
मेरी जिन्दगी मुझे अब छोड़ दे.......

By
Kapil Kumar 

Wednesday 1 June 2016

चलो लड़की पटाये.....


चलो लड़की पटाये.....
खाली बैठे बैठे क्यों टाइम गलाए
बेकार में क्यों अपनी जवानी जलाये
कहीं  किसी माल के कोने में सिग्रेट के धुएं उडाये
नए नए फैशन के लडकियों को करतब दिखाए
कैसे रहते है टीप टॉप यह सबको बताये
विह्स्की ना मिले तो तो बीयर  से ही काम चलाये
चलो लड़की पटाये ....

माल में खाली इधर उधर फिरते जाए
कोई क्यूटी दिखे तो धीरे से सीटी  बजाये
जींस को अपनी थोड़ी और नीचे  गिराए
ब्रांडेड कपड़ो और जूतों को ज़रा  जोर से चमकाए
टोटा लड़की ना मिले तो आंटी से काम चलाये
चलो लड़की पटाये ...

(पीछे बैकग्राउंड में ....माँ मेरी बोलती , गुस्से को यूँ तोलती , देख बेटा यूँ ना समय गवाओ , पढ़ लिख लो , अरे कुछ तो बन जाओ , मै उसको  बोलता , अरे माँ मेरा बाप है दौलत तोलता , चले उसे उडाये , कुछ मजे तुझे  भी कराये .... ).......

कॉलेज में रोज नए नए धमाल मचाये
कभी इसको हंसाये तो कभी उसको रुलाये
किताबों  के चक्कर में पड़कर क्यों चश्मा चढ़वाएं
साइंस, मैथ के चक्कर में क्यों भेजा खपाएं
कैंटीन में बैठकर कुछ गप्पे लड़ाएं
अरे कॉफ़ी ना मिले तो चाय से ही काम चलाये
चलो लड़की पटाये ....

(पीछे बैकग्राउंड में ....मास्टर मुझे  टोकता , क्लास में आने से रोकता , तू है लड़का सबसे अजीब , जिसने कभी नहीं सीखी तमीज , तू कॉलेज में आकर सबका टाइम क्यों खोटा करता , तेरे बाप तो मोटा माल है जोड़ता , तेर हाथ मैं जोडू , तू छोड़ दे कॉलेज , बाहर  जाकर आवारागर्दी करले , कुछ ना मिले तो  किसी से आशिकी ही कर ले ... ...).....

यार दोस्तों के साथ सिनेमा जाएं
मस्त लडकियों के पास सीट का जुगाड़ भिडाएं
कभी पॉपकॉर्न तो कभी कोल्ड ड्रिंक लाये
बीच मूवी के आते जाते उनसे टकराएं
मूवी में जोर जोर से  सिटी बजाये
फिर भी लड़की ना पटे तो उन्हें देख कर ही  मुस्कराएं मुस्कुराये
मूवी  के बाद फिर से नया जुगाड़ भिडाये
चलो लड़की पटाये ....

(पीछे बैकग्राउंड में ....बाप मेरा टोकता , अरे नालायक तू कब है किताब खोलता , जरा अपने नंबर तो बता , कब गया था क्लास जरा मुझे भी बता , तेरा मास्टर मिला , उसका दिल था जला , मुझसे यूँ बोला , क्या कभी इसके कान तो पकड़ो , हो सकते तो कुछ पढने लिखने को बोलो बोलो ... ) .....

बाइक से रोज किसी माल की गली के चक्कर लगाये
कभी सलमान तो कभी आमिर बन जाएं
उसकी गली में हल्ला गुल्ला मचाये
शक्ल अच्छी ना हो तो क्या फिर भी पूरा ऐटिटूड दिखाएं
चलो लड़की पटाये ....

रोज डिस्को में नाचे और गाये
कभी इसको तो कभी उसको नचाये
रोज नयी चिकनी चमेली से आँखे लड़ाएं
खाने में हम तो पिज़्ज़ा या बर्गर ही खाएं
साथ में इक दारु का शॉट भी लगाये
पहली फुर्सत में हम तो
चलो लड़की पटाये ....
चलो लड़की पटाये ....

By
Kapil Kumar