Monday 29 February 2016

तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....


सजती हो संवरती हो , अपनी फिगर पर भी ग़ौर रखती हो
जब जब दिल मचलता है तुम्हारा
आईने के सामने किसी मॉडल की तरह अकड़ती हो
फिर भी अपने को जोगन बोलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

बातें हज़ार  करती हो
दिल के आर पार भी उतरती हो
पूछो जब तुमसे, क्या फोन नंबर है तुम्हारा
तब बाते जल्दी से बदलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

दुनिया जहां की बातें है तुमको पता
किसका घर कब टुटा या कौन हो गया लापता
किसके घर के आस पास किसका है क्या फ़लसफ़ा 
पूछो तुमसे क्या है तुम्हारे घर का पता
तो तुरंत बाते दूसरी और पलटती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

दिल के अरमान अभी तक है जगे
जवानी के अभी पड़ाव पुरे भी नहीं पड़े
चुपके से नए नए फैशन के अंदाज खूब बदलती हो
दुनिया के सामने अपना असली रूप बदलती हो
सबके सामने अपने को बुढ़िया बाख़ूब कहती हो
पर दिल से अभी भी एक  बच्ची हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

तन्हा रातों में अभी भी, बिन जल मछली तड़पती हो
भीगी शामों में किसी साथी के साथ को तरसती हो
कोई तो पकडे कस के हाथ मेरा
ऐसा ख़्यालात से भी उलझती हो
फिर अपने इरादों  से खुद ही लड़ती हो
यह जीवन गुजरेगा बिना किसी सहारे के
यह वादा फिर खुद से करती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

अपनी गोल मोल बातों से दूसरे के दिल को खूब टटोलती हो
कोई पूछे अगर तुम्हारा काम भी
उसपे खीसे निपोर लेती हो
क्या है तुम्हारे दिल में उन्हें सिर्फ राज रखती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

तुम करती हो मोहब्बत पर इक़रार  नहीं करती हो
कहती हो उससे तू तो बस यूँही हो
फिर काहे उसकी फ़िक्र में अपना दिमाग ख़राब करती हो
डरती हो इस समाज से पर बाहर  से अकड़ती हो
अपने दिल को रोज एक  नया बहाना पेश करती हो
दुसरो से नहीं तुम खुद से ही सबसे  ज्यादा झूठ बोलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

By
Kapil Kumar 

Friday 26 February 2016

तेरा चेहरा....


तेरा उजला उजला चेहरा  , तेरी यह तीख़ी सी मुस्कान
मुझसे पूछती हो जैसे , चलो बताओ मेरा नाम
जब मैं देखता हूँ तेरी , इन झील सी आँखों में
ढूंढ़ता हूँ खुद को , कैसे डूबा मैं इन में .....

तेरे उभरे उभरे से कपोल, कहते है यह तब मुझसे
अरे तुम कब तक डूबे रहोगे, इन नशीली आँखों में
आ जाओ मेरे ऊपर  , अपने लवों से मुझे जकड़ के
तेरे उठते हुए कपोलों  को मेरे लव
जैसे ही करना चाहते है अपने बस में
मैं खो जाता हूँ उसमे , कहाँ छुपी है तेरी मुस्कान इन में......

तेरे होठों का मयखाना , जैसे देता है मुझे झिड़काना
अरे ओ प्यासे मुसाफ़िर  , कहीं  जल्दी जल्दी में मुझे ना भूल जाना
जब मैं अपने प्यासे होठों को लेकर , इनसे जो गुज़रा 
यूँ लगा जैसे आज , मैं अमृत के सागर में उतरा
इनमें  डूब जाने का भी अपना मज़ा 
एक  तरफ अमृत से महकती जिंदगी
तो दूसरी तरफ सागर में डूबने की सज़ा .....

तेरे माथे का लश्कारा , उसने मुझे देखा और ललकारा
क्या सारी प्यास सिर्फ , आँखों और होठों से ही बुझाओगे
अरे इतनी हड़बड़ी मत करो , फिर मेरे पास कब आओगे
देख कर उसका नजारा , मेरे होठों  ने उसे भी तारा
उसे चूमते हुए बोले , अरे तुम्हे हम कहाँ थे भूले.....

तेरे उखड़े उखड़े हुए केश , जैसे छुपा रहे तेरा कोई भेष
बोलते है मुझसे , बताओ कब छुओगे मुझे भी छम से
उनसे खेलने लगी मेरी उँगलियाँ , बनके उनकी सहेलियां
तेरी लटा तब शरमाकर , छिप जाती कहीं  यूँ अंदर
खोल लेता मैं भी उसका भेद , वह  जैसे कहती आओ मेरे कामदेव .....

By
Kapil Kumar 

मोहब्बत के नाम .....


जब मुझसे मोहब्बत है ही नहीं
फिर किसके लिए यह आसूँ बहाती हो
जब इक़रार  करने की हिम्मत है ही नहीं
फिर रास्ते में आँखे किसके लिए बिछाती हो ....

मैं आऊँ भी तो कैसे
तुम भी आवाज देकर कहाँ  बुलाती हो
काश  कोई तो करता मोहब्बत तुमसे
आज जिनके लिए तुम मुझे ठुकराती हो
जब जब उठता है सीने में दर्द तुम्हारे
फिर क्यों नए नए बहाने बनाती हो .....

बिना चाहत ,बिना उम्मीद, बिना शर्त की
तुम मोहब्बत की नयी इबादत  बनाती हो
जिसमे अपने बनाये उसूल मुझपर  लगाती हो
क्यों एक  सीधे साधे आशिक को
अपनी इन उलझी बातों से उलझाती हो ....

कौन कैसे कर सकता है मोहब्बत
बिन देखे , बिन जाने अपने महबूब को
जब तू ही नहीं होगी मेरे सामने
तो कैसे हल्का करूँगा अपने दिल के सरुर को
मोहब्बत सिर्फ मोहब्बत होती है
कोई सच्ची या झूठी नहीं
क्यों इसे अपने अध्यात्म  के ग़रूर   में उलझाती हो ......

ख़ाक में मिल जाएगा एक  दिन यह जिस्म भी
नहीं रहेगा याद किसी को तुम्हारा नाम भी
तब याद आयेगा तुम्हे यह ज़माना फिर कभी
तब यही बोलोगी अपने दिल से
मैंने  भी उससे मोहब्बत क्यों नहीं की .....

By
Kapil Kumar 

Wednesday 17 February 2016

कलयुग में रामराज्य (हास्य व्यंग ) !!


राम नाम भी एक  निराला नाम है ...की इन्सान दुखी हो तो ....हे राम ! ...कोई दर्द हो तो .. हाय राम !.... और दुआ देनी हो तो राम तेरा भला करे !...और अगर कोई स्वर्ग  सिधारे तो ...राम नाम सत्य ! ...कहने का मतलब यह ..की गलती किसी की भी हो बेचारे राम जी बेकार में घसीट लिए जाते है ...

अब आज की जनता को ही देखो ..दिन दहाड़े कलयुग में अपने नेताओं से रामराज्य की कल्पना करती है ...की उन्हें आज के प्रजातंत्र में रामराज्य जैसी सुविधा मिले ...यह बात अलग है की उन्हें रामराज्य की जनता जैसा बर्ताव  भले ही ना आता हो ...इस देश की जनता के दुखों को देख ...उनकी करुण -गाथाओं को सुन सुनकर परेशान हो चुके बेचारे राम जी ने इस बार उनकी यह दुआ पूरी कर दी.....और देश में रामराज्य आ गया ...

स्टेज से पर्दा हटता है ...एक  सोसाइटी की बिल्डिंग में रहने वाले कुछ माध्यम परिवार के लोग सन्डे के दिन देश , समाज , सिस्टम और अपने नेताओं को कोस कोस कर ..गाली दे कर अपना टाइम पास कर रहे है ....

कल्पतरु सोसाइटी की बिल्डिंग के सामने बने हरे हरे घास के लॉन में ...शर्माजी , निगम जी , गुप्ताजी और सिंह साहब बैठे गप्पे हांक रहे है ....शर्माजी एक  सरकारी विभाग में तो निगम जी बैंक में बाबू है ....गुप्ताजी सोसिएटी की बिल्डिंग के पास इक छोटी सी दुकान चलाते है और सिंह साहब कॉलेज में प्रोफेसर है .....

नौकरी वालो बाबुओं  को प्रमोशन ना मिलने का दुःख है उन्हें यह बात सालती है की उनको अभी तक ऊपरी  कमाई का मौका ना मिला ..इसलिए उन्हें भ्रष्टाचार करने वालो से सख्त चिढ़ है ....गुप्ता जी को बड़े बड़े माल के खुलने से होने वाले कम्पटीशन से तो ....सिंह साहब को सिस्टम से कोई ना कोई शिकायत है .....

यह सब लोग अपनी नाकामियों और समस्याओं का ठीकरा ..देश के नेताओं , अफसरों , सिस्टम और युवा पीढ़ी पर डाल उन्हें कोस रहे है ...की इस बार इलेक्शन में मौजूदा सरकार को हटा कर नयी सरकार लानी चाहिए ..ताकि देश में रामराज्य आए ....

इन सब की यह मनोकामना भी पूरी होती है ... की मौजूदा सरकार इलेक्शन में हार जाती है और नयी सरकार आने के बाद देश में रामराज्य आ जाता है ....सब खुश है ..की अब दिन फिर गए ....अब देश तरक्की करेगा ....हर वक़्त बिजली , पानी आने लगा  ...देखते ही देखते देश से भ्रष्टाचार ख़त्म होने लगा और सिस्टम अपना काम तेजी से करने लगा ....

एक  दिन ...सिंह साहब बड़े ख़ुशी में चहकते हुए घर आए  और अपनी बीवी से बोले ........  अजी सुनती हो मुझे डिपार्टमेंट हेड बना दिया गया है ...मेरी इतने दिनों की तरक्की रुकी थी आज मुझे मिल गई ...बस नयी सरकार आने से सारी चीजे ठीक होने लगी है ...मैं जरा शर्माजी और निगम जी को भी खुशखबरी सुना दूँ :....


उधर शर्माजी बहुत सालों से इस जुगत में थे की कैसे उन्हें भी मलाई वाली जगह मिले की उन्हें भी ऊपर की आमदनी का प्रसाद खाने को मिले ..सब बाबू ऊपर की कमाई खा खा कर मोटे हो गए थे और अपनी अपनी गाड़ी से ऑफिस आते थे ..बेचारे शर्माजी अभी तक बसों में धक्के खा रहे थे ....उधर गुप्ताजी भी खुश थे की अब कोई एक्साइज वाला या सेल टेक्स वाला उन्हें परेशान नहीं करेगा .....निगम जी भी प्रमोशन पाकर बड़े बाबू का दर्जा पा गए थे .....सब अपनी खुशी नीचे  वाले लॉन में मिलकर आपस में बाँट रहे थे और आने वाले दिनों में कोई मोटी कमाई खाने और तो कोई हरामखोरी करने के सपने बुन रहा था ...


शर्माजी (सरकारी बाबू) :... दोस्तों अब जाकर दिल को चैन मिला है ....अब मुझे भी अच्छी जगह मिली है जहां चार लोग मुझे पूछेंगें ..इज्जत करेंगे  ..अब तक तो ऑफिस में इज्जत ही नहीं थी ...जिसे देखो मेरी  टेबल पर फाइल ही ना लाता... दुसरे सारे बाबू फाइल दबा दबा कर इतने ऊपर  उठ गए ..अब मेरी बारी है ...

निगम (बैंक बाबू ) :.... हँसते हुए ....सही कहा शर्माजी ...अब बस दिन फिरने ही वाले है ..मुझे भी प्रमोशन मिल गया है और मेरे हाथ में लोन पास करने की पॉवर आ गई  है बहुत दिन सूखे सूखे गुजार लिए ....इन साले नेताओ ने देश को खोखला करके रख दिया ...हम जैसे गरीब आदमी को सिर्फ सुखी तनखा ....वह  भी इस महंगाई के ज़माने में .....बहुत मुश्किल से गुजरा चल रहा था ....

सिंह (प्रोफेसर ) : ...मुबारक हो जी ...बहुत बहुत मुबारक ...अब तो मैं भी डिपार्टमेंट हेड हो गया... कहाँ  पहले जल्दी जल्दी उठ के जाओ लेक्चर लो ..अब कुछ नहीं करना बस जब दिल आया जाऊँगा  और बाकी डिपार्टमेंट का बजट भी मेरे हाथ में है तो कुछ इधर उधर का भी मिलेगा ...अब दिन फिरे है जाकर ..वर्ना  तो इस सिस्टम से हमें तो कोई उम्मीद ना थी ...

गुप्ताजी (लाला ) :.... बिलकुल सही कहा आपने ...मेरा भी इन सेल टेक्स और एक्साइज वालो से सालों  का पीछा छूटा , जिसे देखो हर दुसरे तीसरे दिन मुँह  उठाये चला आता  और 1000/500  की पत्ती ठंडी कर जाता ...अब दुकान में सारा  चाइना का माल भरूँगा ....


अगले दिन रोज की भांति चारो अपने अपने काम धंधे पर  निकल गए ..रामराज्य आ चूका था तो कहीं  भी ना तो हल्ला गुल्ला था ... बस और ट्रेन सब टाइम पर  चल रही थी ..... पर अपनी आदत से मजबूर तीनों  कर्मचारी अपने अपने घरों  से  देर से निकले  .....शर्माजी को आदत थी की जो भी ट्रेन मिलती उसमे चढ़ जाते ..आज देर से आने की वजह से उनकी ट्रेन टाइम पर  चली गई ....उन्हें बहुत गुस्सा आया की अगली ट्रेन के लिए आधा घंटा इंतजार करना पड़ा ... रोते कल्पते ट्रेन वालो को गाली देते अगली ट्रेन पकड  शर्माजी ऑफिस पहुंचे  ....की ....

टेबल पर  बड़े बाबू का नोट  पाया ..की आते ही शीध्र मिले ..
शर्माजी हड़बड़ाते  हुए बड़े बाबू के कमरे में घुसे ....

शर्मा का बॉस  :........अरे शर्माजी !  ..यह क्या ..आप इतनी देर से आए ....आधे दिन की अपनी छुट्टी की अर्जी दे दे और आगे से ख्याल रहे ..की समय पर  ऑफिस आए ...आप के लिए कई लोग फाइल पास करवाने के लिए लाइन में खड़े है ..मुझे सारी फाइल की रिपोर्ट आज जाने से पहले दे ...की आपने आज कितने केस निपटाए ....अब आप जा सकते है ....

बड़े बाबू की बात सुन शर्माजी का दिमाग घूम गया .... कहाँ  रोज दिन भरे गप्पे मारना ..फाइल को बस घूरना  और पान बीडी में दिन गुजरता और आज यह बड़ा बाबू न जाने कौन सी उल्टी  भाषा बोल रहा था ..उन्होंने सोचा इसकी कौन परवाहा करे और निकल गए ..बाहर  अपना गुटका चबाने ....
..........

उधर सिंह साहब डिपार्टमेंट हेड बनने की ख़ुशी मना ही रहे थे ....की कॉलेज डीन का नोट ऑफिस में पहले दिन ही मिल गया की आकर मिले ....

सिंह का बॉस(कॉलेज डीन )  :....आपकी इतने सालों  की सर्विस को ध्यान में रख हमने आपको डिपार्टमेंट हेड बनाया है ..आपसे उम्मीद है की ...आप अपने विभाग का सारा पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करें और देखे उसमे कहाँ कहाँ  सुधार की गुंजाईश है ...और अपने अधीनस्थ अध्यापकों  को भी मोटिवेट करें  की वह  अपनी नॉलेज को समय समय पर  अपग्रेड करे .....आप जल्दी ही सबसे मिलकर मुझे अपनी रिपोर्ट दे ...की ..हर साल कितने विधार्थी ....फ़ैल होते है और उनकी कमजोरी को आप कैसे दूर करेगे ..की हमारा रिजल्ट सत प्रतिशत आए .....अगर कोई विधार्थी इस कॉलेज में आगे किसी विषय में फ़ैल होगा ..इसे हम उस विभाग की कमजोरी और लापरवाही मानेगे ...अगर आप को विधार्थी के घर जाकर उसे पढाना पड़े ..तो भी आप और आपका स्टाफ यह करे..मुझे आपकी रिपोर्ट एक  हफ्ते में चाहिए और जो भी आपके विभाग का बजट है ..उसकी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं ..आज से सब चीजे ...वित्तीय  विभाग से सीधे आयेंगी.....

सिंह साहब जो कल तक प्रमोशन मिलने की वजह से शेर बने थे ..की डीन की बात सुन उनका भेजा घूम गया ...अपना मुंह  लटकाए  अभी वह  कुछ बोलने ही वाले थे ..की डीन ने उनकी क्लास का टाइम टेबल और पकड़ा दिया ..जिसमें  हर दिन कम से कम ३ रेगुलर और ३ इवनिंग क्लास लेना अनिवार्य था ..आज से पहले सिंह साहब हफ्ते में २ या ३ से ज्यादा लेक्चर ना लेते ,अब ६ लेक्चर और उसपे डिपार्टमेंट हेड का काम अलग ..बड़ा स्यापा था ...

ऐसी ही कुछ हालत निगम जी की थी ..काम तो दुगना और तनखा वही और ऊपरी  कमाई का नाम भर लेने से जेल जाने का डर..यह क्या विपदा आन पड़ी थी ..सब अपना अपना सर पकडे ऑफिस में गुमसुम बैठे थे ..की गुप्ताजी ने अपनी बड़े चहकते हुए दुकान खोली ....

फ़ूड इंस्पेक्टर  ..... लालाजी  से :....(बनावटी आवाज में ) अरे लालाजी  नमस्कार !  ..सुबह से आपका ही इंतजार कर रहा था ..कब से रामराज्य आ गया है ..आपको तो पता ही होगा  ....

लालाजी  :.... हँसते  हुए .. हाँ यह तो बहुत अच्छा हुआ ..वरना रोज कोई ना कोई सेल टैक्स या एक्साइज वाला दुकान पर परेशान करने चला आता था  ....आप कैसे आए ?

फ़ूड इंस्पेक्टर  :....हँसते हुए ..अजी वह  क्या है ..की आजकल हम सब दुकानों पर  जाकर हर प्रोडक्ट को चेक कर रहे है ...की वह  अच्छी क्वालिटी का हो ..एक्स्पिरेड ना हो ..हमने काफी सारी पुरानी  कम्पनी ब्लैक लिस्ट की है ..तो उनका सामान ...हमें तुरंत नष्ट करने का आदेश मिला है ..ऐसा न करने पर  ..जेल की सजा है ..इसलिए मैं आपकी दुकान पर  कल से इन्तजार कर रहा हूँ ..कल तो आप आए  नहीं ..पहले  दुकान की जांच होगी ....उसके बाद ही आप कोई सामान बेच पायंगे ...

उसकी बाते सुन लालाजी का दिमाग घूम गया ..उनकी दुकान में आधे से ज्यादा सामान पुराना और घटिया क्वालिटी का था ...अब बोले तो क्या बोले ....

लालाजी  :.... हँसते  हुए:... अरे मैं बोलू हूँ ....आप काहे इस चक्कर में पड़ते हो ? अब माल जैसा भी है उसे फैंक तो नहीं सकते ...आप अपना चाय नाश्ता ले लो और हमें काम करने दो ..

फ़ूड इंस्पेक्टर  :.... लालाजी  को घूरते हुए लालाजी..रिश्वत देने की .... सरकार कि तरफ से पहली गलती माफ़ है ..इसलिए आपको सिर्फ वार्निंग दे रहा हूँ ..की आगे से ऐसी बेहूदा बात ना करें  ..आपको पता है रामराज्य में रिश्वत लेना और देना दोनों ही घ्रणित कार्य है ..इसपर  आपको फांसी की सजा भी हो सकती है ...बस दूसरी बार ऐसा किसी से ना बोले ....मुझे अपना काम करने दे और ऐसा कह फ़ूड इंस्पेक्टर अपना काम करने लगा ...उसने अपने साथ लाये स्टाफ को कुछ निर्देश दिया
.....................
देखते ही देखते लालाजी की दुकान का आधे से ज्यादा सामान सडक पर  आ गया ...फ़ूड इंस्पेक्टर अपने कारिंदों को बोला ..की सारे सामान में आग लगा दे ....इसे देख लालाजी का मुंह कलेजे को आने लगा ....वह  बड़े कातर स्वर में फ़ूड इंस्पेक्टर के आगे गिड़गिड़ाने  लगे ...

लालाजी  :....:.. माई बाप ..रहम करो ..मैं तो बर्बाद हो जायूँगा ...अब मैंने  तो वही माल ख़रीदा जो मुझे बाजार में मिला ...इसमें मेरा क्या दोष ? मैं तो कहीं  का ना रहूँगा ....
फ़ूड इंस्पेक्टर  :....(गंभीर आवाज में ) लालाजी आपके थोड़े से घाटे के लिए हम हजारो लोगो की जान जोखिम में नहीं डाल सकते ...आपने जितने का माल ख़रीदा था ..उसके पेपर हमारे विभाग में ले आए और अपना पैसा हाथ की हाथ ले ले .....यह रामराज्य है ..इसमें किसी का कोई भी नुकसान नहीं होगा और ना ही कोई अपनी ताकत का नाजायज़  इस्तमाल करेगा ....आप जो भी सामान बेचे उसे सही माप तौल , क्वालिटी और ख़राब होने की तिथि जांचने के उपरांत ही बेचे ..अगर कोई शिकायत आई तो ..आपको जुर्माने के साथ जेल भी हो सकती है ...

अब लालाजी की हालत सांप छुछुंदर वाली ....आजतक लालाजी सब माल कच्ची रसीदों पर  खरीदते आए थे ...की जिसमे अपने हिसाब से हेर फेर करके एक्साइज और सेल टैक्स बचा सके ... उनके पास पक्की रसीद तो आधे माल की भी ना थी ....लालाजी मन ही मन उस दिन को कोसने लगे ..जिस दिन उन्होंने रामराज्य का सपना देखा था ...अब पक्की रसीद पर  माल खरीदना ...फिर क्वालिटी और सही माप तौल से बेचने में फायदा ही क्या रहेगा ?...इसमें तो दो वक़्त की रोटी ही बन पाएगी ..गाडी ,बंगला , जमीन जायदाद कैसे और कहाँ से बनेगा ??

उधर चारों पड़ोसी अपने ऑफिस , दुकान और काम पर  परेशान थे .... उधर उनकी बीवियां घर में शान से एयर कंडीशन की ठंडी हवा का आनंद ले रही  थी  ....अब ना तो बिजली जाने की चिंता थी ना ही पानी की ..सब २४ घंटे अपने समय पे आ रहा था  ...की सिंह साहब की बीवी (जो मास्टरनी के नाम से मशहूर थी )  दौड़ी दौड़ी अपनी पड़ोसन गुप्ताजी के घर पहुंची .....

मास्टरनी (सिंह) :.....(गुप्ताजी की बीवी लालायन से  ) अरे बहनजी सुनती हो ..गजब हो गया ..आज अभी बिजली का बहुत बड़ा बिल आया है ..बिजली वाला कह रहा था ...की आपने मीटर में हेराफेरी कर रखी थी ...नया मीटर लगवाओ और पुराने दो महीने का पूरा बिल दो और जुर्माना  भी ...अब आप ही बताये कैसे करें  ..हमारे घर में तो दो एयर कंडीशन है ..अगर मीटर से बिल देने लगे तो इनकी सारी तनखा  इसमें ही चली जायेगी ..अब एक  प्रोफेसर को कितना मिलता है  और यह तो गर्मियों में घर में ही रहते है ..बिना ए  सी के सिंह साहब और मेरे बच्चे तो एक  पल भी ना रह पायेंगे ...हाय राम ....अब हमारा क्या होगा ?
लालायन  :.... (मन ही मन बोली अच्छा हुआ ..जब देखो मास्टरजी दिन भर घर में खाट तोड़ते थे ..अब समझ आएगा ..की मेहनत से पैसा कैसे कमाते है ?)... पर ऊपर से बोली हाँ जी बहन जी यह तो बहुत बुरा हुआ ...अब क्या करोगी ? ..आपने लाइन मैन से बात नहीं की ..जो हर महीने आपका मीटर उल्टा घुमा कर कम रीडिंग कर देता था .....


मास्टरनी (सिंह) :....(चिढ़ते हुए )..अजी की थी ..वोह मुआ भी अपना मुंह  बना गया और बोला रामराज्य है ..रिश्वत और गलत काम की बात भी अपराध है  .....अगली बार गलत रीडिंग पर महीने भर  के लिए बिजली काट दी जायेगी ..और तीसरी गलती पर  हमेशा हमेशा के लिए ...कर लो बात ..भलाई का जमना नहीं है ...उत्ते को बोली आधे पैसे तू रख ले ..पर मन ही नहीं पुरे दस हजार का बिल थमा गया ....हे राम ....

लालायन  :.... (मन ही मन बहुत खुश हुई...की  अच्छा हुआ वर्ना  इन लोगो की वजह से बिजली में कटौती   होती थी) ...... कटाक्ष करते हुए बोली ....बहनजी बस अब आप तो कम में गुजरा करने की आदत डाल लो ..एयर कंडीशन का बिल आप ना भर पाओगी .....

अभी दोनी बाते कर ही रही थी ...की लालायन  के घर की बेल बजी ...तो सामने बैंक बाबु निगम की बीवी खड़ी थी ..जिसे सब लोग सबसे समझदार और ईमानदार समझते थे और उसे बैंक वाली बोलते थे ....

बैंक वाली (निगम ) :.. अजी बहन जी गजब हो गया ....आज बहार कूड़ा फैकने गई तो मुझे ..सफाई वाले ने डांट दिया ...बोला आप लोग सफाई खुद नहीं रखते और बदनाम हमें करते है ..अब आप ही बताओ ..सब्जी के छिलके बाहर  न फैंके तो कहाँ  फैंके ? मुआ कह रहा था ..की जिस जिस घर के बाहर कूड़ा मिलेगा ..उसके घर सफाई का बिल ..जुर्माने के साथ भेज दिया जाएगा ...बताओ यह कौन सी नयी विपदा आन  पड़ी ..हाय राम ?.....

अब लालायंन और मास्टरनी की हालत भी ख़राब थी दोनों ने सुबह सुबह अपने घर का कूड़ा बहार बेधडक होकर फैंका था .....अभी तीनो इस विषय पर बात कर ही रही थी ...की ..सरकारी बाबू शर्माजी की बीवी शर्मानी का घर में प्रवेश हुआ .....

शर्मानी  :.....(उन तीनो  से ).. अरे आप लोग यंहा बैठी बैठी गप्पे हांक रही है और वंहा कामवालियो का पंजीकरण चल रहा है  ...की कौन कामवाली बाई किसके घर कितने समय काम करेगी और उसे मालिक कितने पैसे और क्या क्या सुविधाए देगा और सुना है पानी वाले सब घरो के मीटर और पाइप चेक कर रहे है ...जिस घर में भी मीटर नहीं है वहां मीटर लगेगा और जिसके घर से पानी का पाइप लीक करता हुआ मिलेगा उसपे जुर्माना  भी लगेगा और यही नहीं पानी की खपत पर भी ध्यान दिया जाएगा ताकि हर घर को बराबर का पानी मिल सके ..लालायन को देखकर बोली ...अरे बहनजी आपका घर तो नीचे है ..मुसीबत तो हम ऊपर वालो की है ..जिनके घर पानी चढ़ता ही नहीं ...

लालायन  :....(शर्मानी से नाराज होकर )....आप भी कैसी बात करती है ..अब आपका घर ऊपर है तो इसमें हमारा क्या दोष ?...अब मीटर से पानी तो भरना तो बड़ा भारी पड़ेगा ..हमारे घर में तो ३ कूलर चलते है .....और हमारे बच्चो को तो दिन में दो दो बार नहाने की आदत है ..... आप अपनी देखिये ..जो शर्माजी गाँव   से  नौकर लेकर आये है उसे कैसे रजिस्टर्ड करवायंगे ?..हमें सब मालुम है आप उसे क्या देते  है और कितना खिलाते है ?......

लालायन का इतना कहना था सब एक  दूसरे  की पोल खोलने पर  उतारू हो गई ...की कौन किस काम में कितनी चोरी करता है ....काफी देर लड़ झगड़ने के बाद सब आपने अपने घर चली गई ....

शाम को सबके मर्द घर आए और अपने अपने दुखड़े रोने लगे की ..रामराज्य की वजह से क्या क्या कष्ट आने लगे है .....

दो हफ्ते बाद ...चारो दोस्त फिर से मिले .......

सिंह (प्रोफेसर ) ::.....(आहें  भरते हुए)... ..दोस्तों पहले क्या दिन थे ...कॉलेज जाओ पढाओ या ना पढाओ ..बस मुफ्त की तनखा ले आओ कोई स्यापा ना था ...साला डिपार्टमेंट हेड बनके काम दस गुना हो गया ..तनखा थोड़ी सी बढ़ी ....और इस रामराज्य की वजह से हर स्टूडेंट पे पूरा पूरा ध्यान दो ..पहले हमने जैसे चाहे पढ़ा दिया किसी की समझ में आया तो ठीक ना आया तो भी ठीक था ...अब तो सालों  के साथ इतनी मगज मारी करनी पड़ती है ...की पूरा दिन कॉलेज में ही बीत जाता है ...हाय राम कैसा रामराज्य है ?

शर्माजी (सरकारी बाबू) :...:....ठंडी सांस लेते हुए ...अजी सिंह साहब आप तो फिर भी शाम को चैन से घर आ जाते है ...यहां  तो इतने साल रगड़ रगड़ कर अच्छी पोस्ट पाई ..सोचा था की ..कुछ  घर में चार पैसे आयेंगे और आई मुसीबत ..साला टाइम पर  दफ्तर पहुंचना ही सबसे बड़ा काम है ..पहले तो जब जागे तब सवेरा था ...अब तो पान , बीडी गुटका सब बंद ....ऑफिस टाइम में बस काम ...दिन में सिर्फ दो चाय ..अरे आदमी है ..की मशीन ..यह कैसा रामराज्य आया रे .....राम थोड़ी सी कृपा करें  ...हमें इस रामराज्य से बचाएं  ....

निगम (बैंक बाबू ) :....:....(रूवांसी आवाज में  )..अरे आप लोग काम की बात करते है ..यहां  तो लक्ष्मी रोज हाथ से फिसलती है .....बस दिन भर नोट गिन गिन लोगों  को दिए जाओ ..खुद महीने का इन्तजार करो ...इससे अच्छा तो पहले था ....२ बजे के बाद आराम ही आराम था ..अब दिन भर बस काम ही काम .....साली पीठ अभी से टेढ़ी होने लगी है .....राम भला करे ..

लालाजी  :....:..अरे आप लोग तो नौकरी पेशा हो ..मुफ्त की तनखा ले आते हो ..आजकल तो धंधा करना ही गुनाह है ....थोड़ी हेरा फेरी हुई नहीं ..बस जेल में डाल देते है ...पहले तो सारे काम ले दे कर हो जाते थे ...अब तो बस बोलने पे भी सजा है ...ईमानदारी से तो रोटी भी मुश्किल मिलेगी ....हाय राम हमें तो इस रामराज्य ने बर्बाद कर डाला .....

चारों  ने जोर की हुंकार भरी ...अगली सरकर कोई भी आए ...पर रामराज्य कभी ना आए .....

By
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental. Do not use any content of this blog without author permission”

Tuesday 16 February 2016

इंसानी फ़ितरत !! ....


इन्सान यानी मनुष्य भी एक  अजीब किस्म का जानवर है ... जो कहने को अपने आप को प्राणी जगत में सबसे श्रेष्ठ समझता है ... पर हकीक़त  में उसकी सोच और हरकतें एक  मामूली जानवर से भी बदतर होती है ....क्योंकि कहीं ना कहीं हर इन्सान में एक  जानवर भी छिपा होता है ..... जो वक़्त आने पर  अपना असर दिखाता है ....

अधिकतर जानवर अपने क्रिया कलापों को लेकर बेफिक्र रहते है ... पर इन्सान जो भी करता है उसके परिणाम को लेकर हमेशा संशय में डूबा रहता है ...देखने की बात यह है ....मनुष्य कोई भी फैसला लेने के लिए या तो “दिल “ या फिर “दिमाग” का इस्तमाल करता है ...अमूमन ....

“आम इन्सान अपने रिश्ते दिल से और अपना रोजमर्रा का कार्य दिमाग से करता है “ ......

देखने में यह सब बहुत वाजिब है पर हकीकत इसके विपरीत ...इसे ही समझने के लिए हम बाबा त्रिकालदर्शी के आश्रम पहुंचे .... जहां दीन - दुनिया के दुखी , सताए हुए नर और नारी दोनों ही मौजूद थे ...

बाबा के सामने एक  औरत परेशान और दुखी सी आई और बोली ... बाबा ..मेरा पति बहुत ही नीरस किस्म का इन्सान है ...ना कभी कोई रोमांस , ना हास -परिहास ....उसे मेरी खुशियों की कोई परवाह ही नहीं ..बस जो बोलो उतना ही काम करता है ...कभी भी मेरी खुशियों का ख्याल नहीं रखता ..की मैं मर रही हूँ या जी रही ..उसे कोई मतलब नहीं ऐसे इन्सान के साथ मैं कैसे रहूँ  ?

बाबा ने उसकी कहानी सुनी और पुछा ...क्या यह पहले भी ऐसा था या शादी के बाद बदल गया और तुमने इससे क्या सोचकर शादी की थी ? ....

औरत ने अपने पर  काबू पाया और बोली ..महाराज ..यह तो शुरू से ही ऐसा है ..पहले मुझे यह अच्छा लगता था ...की जो बोलो ..सब में हाँ कर देता था ..कभी बहस ही नहीं करता था ...पर घर गृहस्थी के लिए एक  समझदार इन्सान की जरुरत होती है ..वह  तो इसमें लगता है .... है ही नहीं....मैंने  कितनी कोशिस   की , समझाया , बुझाया ..पर ...यह तो पूरा गधा का गधा है...

बाबा ने अपने एक  सेवक को इशारा किया ..वह  थोड़ी देर बाद अपने साथ एक  गधा ले आया ...बाबा ने एक  साबुन की टिकिया , ब्रश और पानी देकर औरत से कहा ..चलो इस गधे को नहालो और देखो की यह घोडा बनता है की नहीं ?

बाबा की बात सुन औरत अचरज से बोली ..महाराज भला नहलाने से कभी कोई गधा , घोडा बनता है ..आप  मुझसे ऐसा मजाक क्यों करते है ?

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक  हुंकार भरी ..जब तुम इतना समझती हो ..की एक  गधा कभी घोडा नहीं बन सकता ...फिर तुम्हारे दुखी और परेशान  होने की वज़ह फिज़ूल  है ...तुमने गधे से शादी की है तो उसे गधा समझकर ही निभाओ ..उसे घोड़ा बनाने की कोशिस फिज़ूल  है ....

उस औरत से निपटने के बाद ..बाबा के सामने एक  आदमी रोता हुआ आया ..बाबा ..मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया ... मेने जिस भाई को बचपन से पढाया लिखाया और कारोबार करवाया ..उसने ही मुझे आज मेरे कारोबार से बेदखल कर, उसपर  कब्ज़ा कर लिया ..मैं क्या करू ? ..

बाबा ने उसकी राम कहानी सुनी और पुछा ...क्या यह उसने पहली बार किया ? ..क्या आज से पहले उसने तुझसे झूठ बोला और तुझे धोखा नहीं दिया ?...

बाबा की बात सुन आदमी अपना सर खुजाने लगा और बोला ....

महाराज ...पहले पहले उसने छोटी मोटी हेराफेरी की ..मेने उसे नजरंदाज कर दिया ..सोचा छोटा है बड़ा होने पर  समझ जाएगा ...पर इस बार तो उसने सारी हदें  ही पार कर दी ....मैं तो बर्बाद हो गया ....

बाबा ने एक  सेवक को इशारा किया ..तो थोड़ी देर में एक  सपेरा बाबा के सामने हाजिर हुआ ...बाबा ने सपेरे से पुछा ...क्या तुम्हारे पास कोई पालतू सांप है ?

सपेरा बड़े जोश में एक  सांप दिखाते हुए बोला ..हाँ महारज है .... यह मेरा पूरा पालतू बनाया  हुआ है ...बाबा .... क्या यह सांप .... तुम्हे कभी डसता नहीं ? 

सपेरा बड़ी अकड से बोला ...अरे नहीं वह  तो मेरे इशारों  का गुलाम है ..उसकी मजाल ..वह  मुझे काट ले ..मैंने  तो उसे बचपन से पाला है और ऐसा कह सपेरे ने बड़ी अकड से सांप को टोकरी में से निकाल कर अपने गले में लटका लिया ....

बाबा ने उसकी तरफ देखा ..फिर आदमी की तरफ देखा और अचानक .... एक  पिन  सांप को छुवा दी ....अचानक हुए हमले से सांप बिलख गया और उसने एक फुंफकार  ली और सपेरे को काट लिया ....

सपेरा दर्द से बिलख पड़ा और बाबा से नाराज होता हुआ बोला ...अरे यह आपने क्या किया ... इसने तो मुझे डस लिया ..वह  तो अच्छा था ..मैंने  इसके ज़हर  के दांत निकाल लिए थे ..वरना तो आज ..मैं परलोक सिधार जाता ...

बाबा ने सपेरे को विदा किया और उस आदमी की तरफ मुखातिब हुए और बोले ....

तूने बचपन से ही सांप पाला ....फिर उसके काटने पर क्यों रोता है ?  यह तुझे भी पता था ..की तेरा भाई कितना निकम्मा है ..पर तूने सांप की तरह उसके ज़हर  को ना तो पहचाना और ना ही उसे वक़्त रहते निकाला ....जब वक़्त आने पर  उसने तुझे काटा तो तू सहन ना कर सका ....तू अपनी गलती और लापरवाही को सांप के गले मढ रहा है .....

अगर तूने अपने भाई को बचपन से ही अपने कारोबार , घर और पैसे से दूर रखा होता तो .... आज उसके धोखा देने पर  तुझे इतना नुकसान ना उठाना पड़ता  ...पर तब तो तू उसे अपने गले में उठाये , इस सपेरे की भांति घूम रहा था ...

जिस तरह सांप अपने काटने की फितरत नहीं छोड़ सकता और अपने ऊपर मुसीबत आने पर वह यह नहीं देखता की उसके सामने कौन है ..ऐसे ही घटिया इन्सान , मौका आने पर धोखा देने की आदत नहीं छोड़ सकता ...भले ही उसके सामने उसका कितना भी प्रिय क्यों ना हो ....

आदमी रुवांसा होकर बोला ....पर अब मैं क्या करू ? मेरा तो सब कुछ चला गया ...
बाबा  ने कहा ...जो सांप डस गया उसके पीछे भागने से कोई लाभ नहीं .... पहले सांप के काटे का इलाज करवा .... यानी अपने आपको दिल और दिमाग से मजबूत बना ....ताकि उसके ज़हर  यानी धोखे से जो दर्द तुझे हुआ है वह  दूर हो सके ... बस आगे ऐसे सांप को पालने से पहले , तुझे यह याद रखना होगा ...की सांप कभी भी डस सकता है ....यह उसकी फ़ितरत  है .....इसमें अपने आपको कोसने या रोने की जरुरत नहीं .....

उस आदमी के जाते ही एक  बुजुर्ग दम्पति ..बाबा के सामने रोने गाने लगे ..महारज ..हम तो कहीं के ना रहे ...जिस लाल को हमने खून पसीने की कमाई से पाला पोसा , वही आज हमें घर से बेघर करने पर तुला है ..हमें क्या करे और कहाँ जाए ?

बाबा ने उनकी राम कहानी सुनी और एक  सेवक को इशारा किया ...थोड़ी देर में वह एक  कुत्ते का पिल्ला ले आया ...बाबा ने   कुत्ते के पिल्लै ...को दम्पति के आगे रख दिया और बोले ...यह एक  भेडिये का बच्चा है ...जो देखने में बिलकुल कुत्ते के पिल्लै जैसा लगता है ....इसे ले जाओ और अपने यहां पालतू बना कर रख लो ...

बाबा की बात सुन बुजुर्ग दंपत्ति ..चौंक  पड़े और अचरज से बोले ....

महाराज क्यों मजाक करते हो .... भला भेडिये के बच्चे को भी कोई पालता है ? यह तो बड़ा होने पर हमें  ही  खा जाएगा ....

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक  रहस्यमयी मुस्कान ली और बोले ....तुम्हे कैसे पता यह बड़ा होने पर तुम्हे काटेगा ही ?.... इसपर  दोनों मियां बीवी एक  साथ बोले ....

यह तो भेडिये की फ़ितरत  है ..इसे कितना भी अच्छे से पालो ..एक  दिन यह तुम्हे काटेगा ही ...

बाबा बोले ..बस समझ लो तुमने वफादार कुत्ता नहीं एक  भेड़िया पाला था .... जिसने वक़्त आने पर तुम्हे काट लिया ...अब यह तुम्हारी नासमझी है या बेवकूफी की तुम इतने सालो में भी उसके रंग ढंग यानी उसकी नस्ल और व्यवहार  को समझ ना पाए ...बस आगे से उस भेडिये से सावधान रहना .....की ..वह  तुम्हारा कितना भी पालतू क्यों ना हो ..भूख लगने पर वह  काटेगा ही ..चाहे सामने  उसके पालने वाला क्यों ना हो ...

अभी बुजुर्ग दम्पति बाबा के सामने से गए थे ...की एक  खुबसूरत युवती रोती बिलखती बाबा के सामने आकर खडी हो गई और बोली ..महाराज ....मेरे ऊपर तो बड़ी विपदा आन पड़ी है .....

बाबा त्रिकालदर्शी ने उस स्त्री को देखा ...जो देखने में निहायत ही सुंदर और अमीर लगती थी ... उसपर  उसकी नफ़ासत  और नज़ाकत उसकी सुन्दरता में चार चाँद जोड़ रही थी ..... भला ऐसी अप्सरा को भी कोई पीड़ा हो सकती है ? ऐसा बाबा मन ही मन सोच रहे थे ....की युवती का करुण स्वर बाबा के कानों में पड़ा .....

बाबा .... मेरा पति मुझे धोखा देता है ..आये दिन दूसरी औरतो के पीछे पागल बना घूमता है ....क्या मैं सुन्दर नहीं हूँ ...उसे कैसे रास्ते पर लाऊँ  ......मैं क्या करूँ  ?

बाबा ने एक सेवक के कान में कुछ कहा और थोड़ी देर बाद सेवक एक  कुत्ते के साथ हाजिर हुआ ....बाबा ने एक  प्लेट में गोश्त और दूसरी में कुछ गंद रखवा दिया और कुत्ते को उनके पास लाने के लिए कहा .....कुत्ता दोनों प्लेटों  के नजदीक आया और पहले उसने गोश्त की पलेट को सुंघा और उसमे से गोश्त खा लिया ...फिर गंद की पलेट को सुंघा और उसे चाट कर छोड़ दिया .....

कुत्ते की यह हरकत देख बाबा जोर जोर से हंसने लगे ..फिर उन्होंने कुत्ते को वहां से ले जाने का इशारा कर दिया .....

युवती अचरज भरी नज़रों  से बाबा को देख रही थी ...उसके कुछ समझ ना आया ..की बाबा उसे क्या बतलाना और समझना चाहते है ...उसने बाबा त्रिकालदर्शी की तरफ प्रश्न  वाचक निगाहों से देखा ?

बाबा ने मुस्कराते  हुए कहा ..पगली इसमें ..न समझ में आने वाली क्या बात है ...तूने कुत्ते की फ़ितरत देखी  ..उसने पहले गोश्त देखा ..जो उसने खा लिया ..फिर उसने गंध देखा उसे सुंघा और चाट भी लिया ..जबकि कुत्ते का पेट भरा हुआ था ...यह उसकी फ़ितरत  ..की वह गोश्त और गंद को जानते हुए भी सूंघने और चाटने से नहीं रोक सकता ....

तूने एक  ऐसे आदमी के साथ घर बसाया है ..जिसकी फ़ितरत  कुत्ते की है ..उसके लिए गोश्त और गंध इक है ...वोह उन्हें सूंघेगा भी और चाटेगा भी ... तू क्या तेरी जगह दुनिया की कोई भी अप्सरा होती तेरा पति यही हरकत उसके साथ भी करता ....अब यह तुझपे है ..की तू ऐसे कुत्ते को पालना या उसके साथ रहना चाहे या ना .... पर इसमें तेरा कोई दोष नहीं ...

युवती सिसकती हुई वंहा से चली गई ..एक  आदमी बड़ी देर से यह नज़ारा देख रहा था ....उसने हिम्मत करके ..बाबा से कहा ..बाबा मुझे आपका ज्ञान समझ नहीं आया ...आपने किसी की कोई मदद नहीं की ..ना ही उन्हें कोई सलाह दी ....फिर यह सब समझने का क्या अर्थ ?

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक हुंकार भरी और बोले ..प्रश्न  तो तुम्हारा अच्छा है ....पर एक बात बताओ ..तुम अपने छोटे बच्चे को पैरों पर चलना सिखाओगे या उसे जिन्दगी भर अपने ऊँगली पकड कर चलवाओगे?

आदमी बोला ...उसे पैरों पर चलना सिखायुंगा.. ताकि वह  बड़ा होने पर  , मेरे बिना भी खुद चल सके ....

बाबा ने कहा ..बस यही समझ लो मैंने  इन लोगो को इनके पैरो पर चलना सिखा दिया है .... किसी इन्सान की पहचान करके उसके साथ व्यवहार करने को ही मेरी इनके लिए मदद और सलाह समझो  ..

असल में हर इन्सान के अंदर एक  जानवर है ...बस हम उसे जानते बूझते हुए भी नजर अंदाज करते है और जब यही जानवर बाहर निकल आता  है ..तब हम हाय तौबा मचाते है ...

अजीब बात यह है ..की जानवर के साथ हम किसी तरह की हाय तौबा नहीं मचाते ..क्योकि उसके व्यवहार  को हम ,उसकी फ़ितरत  समझकर लेते है ...पर इन्सान के मामले में हम यह समझ लेते है की ..वह अपनी फ़ितरत  बदल लेगा ..अब क्या कभी सांप काटना या कुत्ता गंध सूंघना छोड़ सकता है ..नहीं ..हम इसे मान कर चलते है ...वह ऐसा ही करेगा ....

पर इन्सान की बारी आते ही हम अपना दिमाग बंद करके ..दिल के हाथो मजबूर होकर व्यवहार  करते है ...हम उसके अंदर बसे जानवर के अनुसार उससे व्यवहार  की अपेक्षा नहीं रखते ..अपितु उसके अंदर बसे जानवर को इन्सान समझ कर इन्सान जैसा व्यवहार करते  है यही हमारे दुखों और धोखों का  कारण है ...

सच तो यह है ...की....

“इंसानी रिश्ते दिल से नहीं दिमाग से निभाए जाते”  .....जैसे हम जानवरों के साथ करते है ...

पर हम यह सब कुछ समझते बुझते हुए भी वही गलती बार बार करते है जीवन भर इसी कशमकश में रहते है ..की ...

मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  उसने ऐसा क्यों किया ..... जबकि इसमें दोष सामने वाला का है ही नहीं .... गलती हमारी है ..की हमने उस जानवर के व्यवहार  को सही परखा या समझा नहीं या फिर उसे बदलने की बेवकूफी की ....उसने तो वही किया ..जो उसके अंदर के जानवर की फितरत है .....

ऐसा कह बाबा त्रिकालदर्शी अपने आसन से उठ कर चले गए ....

By
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. Please do not copy any contents of the blog without author's permission. The Author will not be responsible for your deeds..

अगर मैं होता ...?



मेरा तेरा क्या रिश्ता , इसलिए तूने तोला मुझे समझ के एक  फरिश्ता

शायद मैं अंजाना  था , इसलिए तेरे पास मेरे लिए अलग ही पैमाना था ....

बस एक  बार मुझे भी तोल लेती इन रिश्तो के पैमाने में

तो शायद होती हमारी मोहब्बत भी किसी मयखाने  में....



अगर मै तेरा पिता होता ...?

तो क्या तेरे मासूम बचपन को यूँ जाया किया होता

वक़्त से पहले तेरे फैले पंखो को ना नोचा होता

तेरी ऊँची होती उड़ान को गलत दिशा देकर यूँ ना रोका  होता

देता तुझे होंसला  जीवन में कुछ कर गुजरने का

तुझे बहला फुसला के यूँ ना गड्ढे  में धकेला होता.....



होता अगर मैं तेरा भाई...?

क्या होने देता अब तक तेरी जग हंसाई

तेरे बहते हर आंसू का कुछ तो मुझपर  कर्ज चढ़ा होता

अगर ना ला सकता एक  था राजकुमार तुझे ब्याहने  के लिए

कम से कम ना देता यह कड़वा घूंट  कभी तुझे पीने  के लिए

अपनी हीन भावना को तेरा घूँघट ना बनने देता ,

तेरी खूबियों से भी मैंने  कुछ जीवन मे सीखा होता.....



अगर मैं होता तेरी माता..?

क्या चुप रहता देख तुझे कोई रुलाता

चाहे जग हँसता या समाज कुछ कहता , मेरा मन बस तेरी ही बात कहता

तेरे दिल का मैं हाल समझता ,की तेरा दिल है किसमे रमता

तुझे नहीं थी चाहत इस दुनिया के दिखावे की

एक  छोटी सी हसरत थी बस प्रेम के धागे की ....



अगर मैं होता तेरी बहना..?

क्या होनी देती इतना घिनौना

नोच लेती वह सारे रिश्ते, जो भी तेरे मन को हैं हरते

जल जाती खुद ज्वाला  बन कर , पर तुझे देती कल का उजाला बनकर...



अगर मैं होता तेरा पति..?

क्या तुझको होती जरुरत इस भक्ति की

रखता तुझे पलकों पर  बिठाकर , संवारता तेरे सपनो को एक  साथी बनकर

क्या तेरे कभी यूँ आंसू  बहते , जो मुझसे कुछ भी ना कहते...



फिर भी इन रिश्तो में तुझे है असली प्रेम नजर आता

मेरे प्रेम की तूने रखी इन सबसे अलग एक  परिभाषा

इन सब रिश्तों को तूने बड़ी सहजता से निभाया

ना कभी किया शिकवा , ना कभी इनके सामने खुद को रुलाया

बस एक  बार मुझे भी इन रिश्तों  के तराजू में तोल ले

देख परख फिर चाहे तो रख या मुझे कड़वे बोल बोल ले ....



हर बार यही एक  आवाज आएगी ,

तूने समाज के बनाये रिश्तो के लिए अलग

मेरे लिए अलग दुनिया क्यों बनाई थी.....

काश  तूने मुझे भी एक  आम इंसान समझा होता

जिसके दिल में जलता प्रेम का दीया  देखा होता

शायद इस गुजरते पल को मैंने  भी तेरे साथ जिया होता....


 By
Kapil Kumar 

Thursday 11 February 2016

मेरे जीने की वजह.....


जब तक यह साँस है मुझे तेरी प्यास है  

तुझे  मुझसे भले ना हो मोहब्बत 

 मेरी नज़रों  में तू तो हमेशा ख़ास है 

करूंगा इंतजार तेरा आने के हर पल

जब तक इस जिस्म में सांस है ....


मेरी लगन को तू  कुछ भी नाम दे दे 

इसे आसक्ति या मोह का जाम कह ले 

मुझे नहीं फर्क पड़ता  की तेरी सोच क्या है 

मेरे लिए तू तो बस मेरे जीने की वजह है ....

By
Kapil Kumar

Tuesday 2 February 2016

सबसे सुन्दर !



Is beauty in the eye of the beholder? 

एक   बार की बात है , महाराजा बौधिसत्व  और मंत्री कपिल , एक   सुन्दर उपवन में टहल रहे थे । वहाँ  पर तरह तरह के सुन्दर फूल , पेड़ , पौधे थे ।

उनपर तरह तरह की सुन्दर तितलियां और पंछी  बैठे थे , बड़ा ही सुन्दर दृश्य  था ।

कपिल बोला ,राजन कितना मनमोहक दृश्य है , क्या इससे भी सुन्दर कुछ हो सकता है ?

महाराज ने मंत्री कपिल से पुछा,  क्या पांच महीने बाद शरद ऋतू (ठंड ) में यही दृश्य  मनोरम होगा ?

मंत्री कपिल ने कहा,  महाराज यह तो बड़ा जटिल प्रशन है ।

राजन ,सुन्दरता देखने वालो की आँख में है न की किसी वस्तु , प्राणी या इन्सान में ।     मंत्री कपिल ने कहा  ! 

बौधिसत्व मन मन मुस्कराए - और बोले ,    मंत्रीवर सुन्दरता देखने वालो के  मन  में है न की देखने वालों की आँखों  में |

 हमें सच्ची  सुन्दरता की खोज करनी ही पड़ेगी  !

 मंत्री कपिल बोला ,महाराज सुन्दरता तो सुन्दरता है उसमे कैसे विरोध !

राजन बौधिसत्व मुस्कराए - और  बोले , आज शाम को आप वेश बदल कर हमारे साथ राज्य के दौरे पर चलेंगे और वहीँ  इस का फैसला होगा की सुन्दरता क्या है ?   जो आज्ञा कह, मंत्री ने महाराज से विदा ली ।

और शाम को सही वक़्त मंत्री कपिल अपना वेश बदल महाराज की सेवा में उपस्थित हो गया ।महाराज बौधिसत्व और मंत्री कपिल वेश बदल राज्य के दौरे पर निकल पड़े ।

रास्ते मे- उन्होंने देखा एक  सुन्दर युवक और रूपवती युवती किसी सुन्दर फूलो की वाटिका में प्रेम मग्न बैठे है !

और युवक, युवती की सुन्दरता में गीत गा रहा है , मंत्री बोला,

 महाराज  कितना सुन्दर दृश्य है , लगता है जैसे स्वर्गलोक में कामदेव और अप्सरा विहार कर रहे है !

बौधिसत्व मंद मुस्कराए - और बोले क्या या घटना तुम 10 साल बाद ऐसे ही देख सकते हो ।

इस पर मंत्री कपिल चुप हो गया और कुछ न बोला ।                         

 थोड़ी दूर आगे जाने पर उन्हें एक   आदमी दिखाई दिया , जो अपने हाथो से शिल्प कला का बेजोड़  नमूना बना रहा था । वह  बार बार उसे छूता  और फिर कुछ मन में गुनगुनाता और फिर वापस अपनी हथौड़ी  लेकर मूर्ति को नया आकार देने  में जुट जाता । ।उसकी बनायीं  हुई मूर्तियाँ ऐसे प्रतीत होती थी जैसे बोल पड़ेंगी । 

    मंत्री बोला! महारज कितना सुन्दर दृश्य  है , कितनी सजीव मूर्तियाँ है इतना मोहक दृश्य मैंने  आज तक नहीं देखा ! राजन बौधिसत्व मंद मुस्कराए - और बोले मंत्रीवर, क्या यह मुर्तिया 50 साल बाद भी ऐसी ही सुन्दर रहेंगी ? और ऐसा कह उन्होंने एक  गहरी मुस्कान से मंत्री की और देखा , मंत्री कपिल ने थोड़ी देर सोचा और फिर महारज की तरफ अर्थ भरी नजर देख चुप हो गया । 

 मंत्री कपिल और महाराजा ने अनेक सुन्दर उपवन , सुन्दर नर नारी , सुन्दर घर और अनके सुन्दर पंछी देखे ! पर उनके मन को चैन न मिले , न जाने दोनों क्या देख रहे थे या ढूंड रहे थे । 

की अचानक एक  बहुत ही सुन्दर युवती  चिल्लाती हुई दिखलाई पड़ी ,

 हे मेरे सुन्दर राजकुमार, तुम   कहाँ   हो ?

 हे मेरे चाँद , तुम  कहाँ   हो ?

हे मेरे दिल के शाहजादे , तुम-   कहाँ हो- ? 

राजन और मंत्री ने यह सुना तो उन्हें लगा ,

इतनी रूपवती युवती जिसे बुला रही है और जिसका इतना गुणगान कर रही वह  वाकई में सबसे सुन्दर् है !

दोनों उस युवती  के नजदीक गए और बोले,    देवी ,

तुम किसे बुला रही हो , क्या तुम्हारा प्रेमी है या पति है, जिसकी सुन्दरता का तुम इतना गुण गान कर रही हो । 

 उस युवती ने मंत्री और राजन की तरफ हिकारत भरी नजर से देखा और बोली !तुम उसकी सुन्दरता के बारे में क्या जानो , वह  तो मेरी जान से भी ज्यादा कीमती और दुनिया में सबसे सुन्दर है । 

तभी दोनों ने देखा एक  गन्दा सा, मैले कुचैले  कपड़ो में लिपटा एक  बहुत ही घिनौना और कुरूप बच्चा वहाँ  आया ।

जिसे देख दोनों एक  पल के लिए सतब्ध रह  गए ।

 रूपवती दौड़ के आई और उस बच्चे को गले लगा कर उसे प्यार जताने लगी , जिस बच्चे को देख दोनों का मन विताष्णा से भर गया था ।उस बच्चे को वह  औरत बिना अपने शारीर और कपड़ो का ख्याल किये लिपट लिपट उसे प्यार और दुलार कर रही थी । 

राजन बौधिसत्व और मंत्री कपिल ने  एक  दुसरे को प्रश्नवाचक  - निगाहों से देखा ?

मंत्री कपिल ने उस औरत से पूछा ,हे देवी यह कौन है ?  

जिससे  तुम इतना प्यार और दुलार कर रही हो ।

उस युवती ने राजन और मंत्री की तरफ घृणा से देखते हुए कहा !

 यह तो मेरी जिन्दगी है , यही मेरा सब कुछ है , इसके लिए तो मेने कामदेव जैसे अपने पति को भी ठुकरा दिया ,   यह है तो सब कुछ,     नहीं तो कुछ भी नहीं । 

उस औरत की बात सुन बोधिसत्व ,मंत्री कपिल को देख मुस्कुराये- और बोले.........

मन्त्रिवर  क्या आप सुन्दरता का अर्थ  समझ गए ?

महल लोटते वक़्त राजन ने मंत्री कपिल से पुछा , मन्त्रिवर,   क्या सुन्दरता का अर्थ आपके समझ आया ?

और इनमे कौन सबसे सुन्दर था ? 

मंत्री कपिल बोला आज सही अर्थो में  में मुझे सच्ची सुन्दरता का अर्थ समझ आया ।

जो उपवन/बाग - बगीचा आज सुन्दर है वह  सिर्फ कुछ वक़्त के लिए है !

वह  आज सुन्दर हैं तो हमें उन्हें चाहते है , पर कल पतझड़ आएगा तो यह सुन्दरता भी चली जाएगी ।

युवक युवती की प्रसंशा में गीत तब तक गा रहा है जब तक उस युवती का यौवन  है !

जब उसकी सुन्दरता , बुढ़ापे की कुरूपता में  ढक जायेगी!

 तो यह युवक सुन्दरता के गीत गाना बंद कर देगा ।

यह दोनो  सुंदरता  सिर्फ आँखों से दिखती है जो की सिर्फ एक  मायाजाल और भ्रम है |

और शिल्पी के बारे में आपका क्या ख्याल है मन्त्रिवर ,राजा बौधिसत्व ने पुछा !                                      

राजन शिल्पी की सुन्दरता उसकी शिल्प कला में है , वह जिस मूर्ति को बनता है तब तक उसे जी जान से चाहता है पर मूर्ति बन जाने के बाद शिल्पी को उस मूर्ति में कोई सुन्दरता नजर नहीं आती ! शिल्पी मन से सुन्दरता अनुभव करता है पर वो स्थिर नहीं है ! और वह  अपनी सुन्दरता का अर्थ बदल दूसरी मूर्ति बनाने में जुट जाता है और यह सोच के दूसरी मूर्ति बनाता है! अगली मूर्ति,  पहले वाली से श्रेष्ठ और सुन्दर होगी ।

  असली सुन्दरता का अर्थ सिर्फ वह  औरत जानती है , जिसके लिए उसका बच्चा  हर हालत में सबसे सुन्दर है , चाहे वह  गन्दा है या साफ़ सुथरा , पर मां की निगाहों  में उसकी सुन्दरता हमेशा एक  सी रहेगी। कल को यह बच्चा बड़ा- होकर नवयुवक बनेगा , फिर अधेड़ और फिर बुड्ढा होगा  , पर मां की आँखों में उसकी सुन्दरता जैसी आज है वैसी ही रहेगी !यह सुन्दरता स्थिर है और मन से है ! 

    मंत्री कपिल की बात सुन राजा बौधिसत्व प्रसन्न  हुए और बोले मन्त्रिवर , आपने सही कहा !हम इस जग में सुन्दरता को उसके रूप से देखते है , जबकि सुन्दरता देखने वाले के मन में होती है । बाह्य सुन्दरता वक़्त के साथ ख़त्म हो जाती है पर मन की सुन्दरता हमेशा जीवित रहती है !


Beauty is in the heart of the beholder. (H.G.Wells )

By
Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”