Sunday 27 December 2015

दहेज़ (दबाओ, हड्काओ , जिब्रह करो)



दहेज़  शब्द कितना कड़वा , घिनौना  ,विषाद से भरपूर और समाज में एक  कोढ़ जैसा प्रतीत होता है अधिकतर लोगो के अनुभव के अनुसार  इसका शिकार लड़कियों को होना पड़ता है! जब भी आपके सामने दहेज़  का जिक्र होता है तो तक़रीबन सबके सामने एक  तस्वीर कौंध जाती है ! एक  मंडप सजा है दूल्हा , दुल्हन , बाराती और  एक  बूढ़ा लाचार इन्सान जो  हाथ में पगड़ी लिए खड़ा है और उसके सामने मोटी मोटी मूंछो वाला एक  हट्टा कट्टा इन्सान जिसका सर कड़क और घमंड आसमान में  है ! बेचारी लाल कपड़ो में सजी संवरी “दुल्हन” कातर निगाहों  से अपने बाप की बेबसी का तमाशा खून के आसूं पी पी कर देख रही है! और एक  कोने में खड़ा सजीला नौजवान अपने बाप की परवरिश का सूद अदा कर रहा है ! बाराती लोग आने वाले सीन की कल्पना से रोमांचित हो टक टक्की लगाये, आगे होने वाले एक्शन का इंतजार कर रहे है|


पर हमारा अनुभव कुछ और ही है । हमारे अनुभव से लड़का वह  बकरी है जिसे इस उम्मीद से पाला जाता है एक  दिन इसे काट कर अपने आवश्यकता रूपी धर्म की और इज्जत रूपी भूख की पूर्ति होगी ? ना तो बकरी से कोई पूछता है की तुझे  क्या चाहिए और ना ही लड़के से! बकरी के दिल पर क्या गुज़रती  है जब लोग उस बकरी का सौदा करने आते है ! सोचो, अगर कटने से पहले बकरी बगावत कर दे और अपना खूंटा तोड़ कर भाग जाये ,तो बेचारा उसका क्या होता होगा जिसने इस बकरी को इतने जतन और मेहनत से पाला ! खूंटा तोड़ कर भागने के बाद अब बकरी के साथ क्या होता है वह  भी एक  कहानी है !

असल मेअसली जिन्दगी मे यह सीन यंहा तक पहुंचे उससे पहले दुल्हे और दुल्हन यानि लड़के और लड़की को एक  लम्बा सफ़र तय करना होता है ! आपने शायद लडकियों के सफ़र की कहानी तो बहुत सुनी होगी ? कैसे दहेज़ की वज़ह  से उनका रिश्ता टूट गया , लड़के वाले लालची निकले आदि आदि ! पर आज मैं  आपके सामने ,लड़के की कहानी रख रहा हूँ ! इस  कहानी को शरू  करू  उससे पहले आप सब इस बात से सहमत हैं की आज की तारीख में  एक   ईमानदार , नेक और शरीफ इन्सान दुर्लभ है ! अधिकतर इन्सान लालची , मतलबी और मौकापरस्त होते है ! चाहे वह लड़के के मां बाप हो या लड़की के मां बाप हो या खुद लड़का हो या लड़की या हमारे तुम्हारे रिश्तेदार , आखिर हैं तो सब इंसान ही?

हुआ यूँ की गलती से हम जवान हो गए और अपने ज़माने में दिखने में भी ठीक ठाक भी थे ! और गलती से अपने खानदान में पढ़े लिखे एक  अनमोल रत्न, जो गलती से इंजिनियर बन गया था ! यूँ तो हमारी बड़ी बहन डॉक्टर बन चुकी थी पर बेटी तो लड़की होती है | अब इसे विधि का विधान कहे या समय की विडंबना की हमारा अपने पिताजी के साथ 36 का आंकड़ा था  | हम उनके विपरीत 180 डिग्री  पर चलते , उन्होंने हमारे लिए कुछ और खवाब देखे थे और हम उनमे पतीला लगाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते ! असल में गलती किसी की  नहीं थी |हमने अपने खानदान , रिश्तेदारों की जो बहु बेटियां देखि थी वैसी हमारे मिजाज में फिट नहीं बैठती थी ! हम हमेशा बराबरी की बात मन में सोचते थे पर हमारा  स्वभाव देख अधिकतर लोग हमें dominating  नेचर का समझ लेते !हमारे घरवालो और रिश्तेदारों को लगता इसे घरेलु टाइप लड़की चाहिए और हमें लगता हमें जीवन संगनी चाहिए थी, न की हमारी पथ पालक !अब दूध देती गाय की तो लात सब खा लेते है तो वोह भी अपने गुस्से को वक़्त की नजाकत समझ हमसे बड़ी नरमी से पेश आते और इशारो इशारो में हमारी माताजी के हाथ पैगाम भिजवाते !

अरे उसकी लड़की का रिश्ता आया है , इतने लगा देगा , लड़की भी  जात बिरादरी की है आदि आदि , हम उनके मंसूबो को जान, बागी नेताओ की तरह संसद का बहिस्कार विदेह्यक के पारित होने से पहले ही कर देते !न तो उन्होंने हम से सीधे पूछा और न ही हमने सीधे इंकार किया! हमारी इस कोल्ड वार की खबर हमारे रिश्तेदारों के साथ अड़ोसी पडोसी को भी लग गई, उन्होंने हमें एक  दुधारू गाय जिसका कोई मालिक नहीं, समझ अपना अपना खूंटा लगाना शुरू कर दिया !


एक  दिन हमारा छोटा भाई, अपने साथ अपने एक  मित्र का मित्र लेकर आया! उसने हमें कहा ,भैया इनकी बहन है जिसने एम . ए. किया है और उसके मित्र ने झट अपनी बहन का फोटो हमें पेशे नज़र कर दिया हमने भी फोटो पर ऐसे सरसरी नज़र घुमाई जैसे किसी प्रोडूसर के पास सिफारशी हीरोइन की तस्वीर पेश कर दी गई हो और उसने उसे न लेने का इरादा बिना देखे ही बना रखा हो ! अब प्रोडूसर के मन में किस तरह की हीरोइन की तस्वीर है यह तो वही जाने |
                                    कुछ दिन बाद हमारे भाई ने पूछा! हमारा उस लड़की के बारे में क्या इरादा है

 हमने कह दिया तुझे पता तो है कुछ भी कह दे! मेरे भाई की उस लड़की से थोड़ी बहुत बोल चाल थी , उसने आकर बताया की लड़की ने कहा है अपने भाई को बोल मैं अपने पिताजी से कहकर “पचास हजार” और शादी में लगवा दूंगी !जब हमने उसे भी न कर दिया तो उसने गुस्से में कहा तेरा भाई शादी के लिए क्या कोई “हेमा मालिनी” ढूंढ़ रहा है | “यह दहेज़ का नया अवतार था “ !

हमारे कुछ दूर के रिश्तेदार ,जिन्हें हमने अपनी जिन्दगी मे शायद एक  बार भी ढंग से नहीं देखा, वे  हर दुसरे दिन अपने साथ 2 /4  मुश्टण्डों की फौज ले कर हमारे ऑफिस में धमक आते और कहते,

"अरे तू उसका लौंडा है" न, यह हमारे दोस्त / रिश्तेदार / सम्बन्धी /जानने वाले है इनकी लड़की बहुत सुशील है और यह इतना और उतना लगा देंगे !

एक  दिन हमारे रिश्तेदार के बड़े भाई ने, जिन्हें हमने शायद कभी पहले ध्यान से देखा हो, ने हमें हमारे ऑफिस के ख़त्म होने से कुछ पहले ही, हमें ऑफिस के गेट पर धर दबोचा! अब भागने  का कोई जुगाड़ ना देख, हमें उनके साथ किडनैप जैसी स्थिति से होते हुए साथ में  जाना ही पड़ा , वे  हमें एक  हवेली नुमा बड़े से घर मे ले गए , जहां पर हमें एक  बहुत बड़े मूढ़े  नुमा कुर्सी पर  बैठा दिया गया और कुछ देर बाद कुछ लोग अपने हाथ मे एक एक  कुर्सी ले हमें घेर कर ऐसे बैठ गए जैसे कोई हिरन अपना झुण्ड छोड़ भूखे शेरों के सामने आ गया हो , वे  सब हमें टक टक्की लगाये घूर रहे थे| जैसे शेर यह तोल  रहे हो की इस हिरन मे कितना मांस  है और शेरनियां यानि वहां  पर बैठी औरते ऐसे देख रही थी ,की तैय कर रही हो ,इस हिरन पर पहला हमला कौन और कहाँ से करे? हमने मौके की नज़ाकत  समझ उनकी स्थिति का अवलोकन किया तो,उनसे बचने का उपाय तुरंत खोज निकला !

                   वोह लोग कुछ व्यापारी या जमींदारी टाइप थे| उनके सामने हमने अपनी काम चलाऊ अंग्रजी में  बोलना शुरू कर दिया, हमें बोलता देख, उनमे से किसी ने हमसे ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया और हमारे रिश्तेदार विजयी भव  वाले भाव लेकर ,हमें लेकर वहां  से ऐसे  निकले, जैसे मौहम्मद  गौरी ने पृथ्वीराज   पर विजर प्राप्त कर ली हो! रास्ते में, हमने बड़ी हिम्मत जुटा कर उनसे पुछा की?


                                    लड़की देखने मे कैसी है? और कितनी पढ़ी लिखी है?

                                जैसे किसी सोये हुए कुत्ते की पूँछ पर गलती से पैर पड़ जाये और वह जोर से गुर्राने  वाले लहजे मे उन्होंने हमें जवाब दिया |


अपनी बहु बेटी जैसी है, और पढ़ी लिखा क्या मतलब! प्राइवेट से B.A. कर रही है, तुझे कौन से उससे नौकरी करवानी  है?

हम कुछ आगे बोले! इससे पहले ही उन्होंने हमें चुप करा दिया, बोले ,

                                                                                      अपने बाप को बोलियों,जीजाजी से फ़ोन पे बात कर ले?

अब हमारी हालत उस चूहे की जिसके सामने यह बिल्ली रूपी अन्जान रिश्तेदार हमें चट करने को और कुत्ते रूपी हमारे साथी और बॉस हमारी गतिविधियों को भाँपने  के लिए तैयार बैठ जाते ! हम भी पुराने घाघ थे भला ऐसे ही हमने इतनी लडकियों को टोपी पहनाई थी जो इनके झांसो में आ जाते, हम बड़ी मासूमियत से इन बिल्लियों का रुख अपने पिताजी की दिशा में कर देते ! पर इन ऑफिस वालों  का क्या ? उन्हें कैसे समझाते ? इसी चक्कर में नौकरी से दबी छुपी वार्निंग भी मिल जाती ! की घर के लोग ऑफिस में नहीं आने चाहिए?

रविवार का दिन था अपनी मस्त जवानी के नशे में चूर सुबह के 10 बजे तक बिस्तर की ऐसी तैसी कर रहे थे, की फरमान आया !

                                                अरे उठ जा कोई तुझ से मिलने आया है!

बड़े अनमने मन से,बिना आँख, मुंह धोये और कुल्ला किये जब ड्राइंग रूम में पहुंचे ,तो एक  सज्जन हमारे भाई के मित्र के  साथ आये थे , उन्हें देखते ही हम समझ गए, यह कौन है ? बिना भूमिका बनाये हमारे भाई का मित्र बोला |

भैया, यह हमारे फूफा जी हैं और यह अपनी लड़की के बारे में आपसे बात करना चाहते है! अब हमने तो अपना बचपन मे, उनके घर के सामने से, ना जाने कितनी बार गुजरे थे और हम उस लड़की को अच्छी भली तरह जानते और पहचानते थे !

पर हमारा आश्चर्य इस बात का था की वह  हमारे घर क्या करने आ गये ! क्योंकि  हमने सुना था की बचपन में हमारे पिताजी से उनका कुछ पंगा हो गया था !
उन्होंने हमारा इंटरव्यू ऐसे लिया, जैसे कोई बॉस कैंडिडेट को देखते ही रिजेक्ट करने का मन बना ले! पर खानापूर्ति के लिए अपने कागज पूरे कर रहा हो  !

   कहाँ  काम करते हो ?        जी यंहा .....
    कितना कमाते हो?          जी इतना उतना ....
      तो प्राइवेट नौकरी है  , ......  जी हाँ   , ......  हूँ .....  ठीक है ! 

थोड़ी देर बाद बिना और कुछ पूछे वे  चले गए! जब आपका इंटरव्यू बहुत छोटा हो तो इस के सिर्फ दो मायने होते हैं की आप pre selected या pre rejected कैंडिडेट हो ।हमें पूरी उम्मीद थी वोह सिर्फ दिखावा करने वाए थे पर क्यों आये थे यह राज आज तक नहीं पता ? हमने अपनी उम्मीद का “दिया” कुछ दिन यह सोच के जला के रखा, शायद वे  हमें अपने लायक समझे ।  ख़ैर  कुछ दिनों बाद जब हमने इस बार में पूछ ताछ की तो, हमें अपना रिजेक्शन लैटर इस मैसेज़  के साथ मिला की हम नौकरी लोकल नहीं करते।बड़ा ही घिसा पिटा जवाब ,जैसे कोई कहे, ooh! हमें better कैंडिडेट मिल गया| जबकि सिलेक्टेड वाला ना तो क्वालिफाइड हो और ना ही experienced हो ? कुछ समय बाद जब उस लड़की की शादी हमारे पड़ोस  मे बड़ी धूम धाम से और हमसे दूर नौकरी करने वाले और हमसे कम वेतन पाने वाले के साथ हुई , तो हमने अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए जानना चाहा  , की हम इंटरव्यू मे कैसे फ़ैल हुए, तो जवाब मिला , लड़का उन्नीस है तो क्या पर उसके घर मे माल ज्यादा है और अपने बाप का अकेला वारिस  भी!  अब हमारे जैसा शरीफ आदमी, जो बिना दहेज़ के तैयार था इसलिए मात खा गया, क्योंकि  "बाप" का माल हमारे पास कम था ? यह दहेज़ का नया रूप था !

   अपने पिताजी से चली इस बेमतलब की कोल्ड वार में, हमने अपनी न लौट के आने वाली जवानी के 2  साल गवां दिए !


 ख़ैर  इन सबका हमने एक  तोड़ निकला और अपनी शादी का विज्ञापन इस हौंसले  और इरादों के साथ दिया की ,लोग तो लव मैरिज कर लेते है क्या हम अपनी पसंद की लड़की के साथ शादी को अरेंज्ड मैरिज से नहीं कर सकते ? जवानी के खून ने या बेवकूफी में हमने कलयुग में संत बनने  का गलत निर्णय ले लिया और अपनी शादी के इश्तिहार में,

 "नो कास्ट, नो डोवेरी " जैसे भारी भरकम शब्दों को बिना जाने जोड़ दिया !

जब यह बिना टाइम का बम हम ने घर में फोड़ा! तो, हमारे पिताजी का गुस्सा इतना था ,की हमारे शहर के मेन बाजार में ,सड़कों  के बीचों बीच  अपनी दादागिरी से चलने वाला "सांड" भी उस दिन, उन्हें देख किसी दुकान के पीछे छुप जाता ! हम भी थे उस घर के चश्मों - चिराग ! हम भला ऐसे कैसे डर जाते अगर वे  खूंखार सांड के रूप में तो, हम घाघ टाइगर रूप में थे, जो वक़्त की नजाकत समझ शिकार के थकने का इंतजार कर रहा था |

और हमारी माताजी जो अधिकतर "निरूपमा राय " या "दुर्गा खोट्टे" का रोल निभाती थी, वह भी आज  "ललिता पवार" के रोल में तैयार थी! अगर हम इंसानी मनो भाव को पढ़े और अपने को अपने माता पिता की जगह रख के देखे तो उनकी भी कोई गलती ना थी! असल मे बड़ी बेटी को डॉक्टर बनाते वक़्त उन्हें यह गुमान ना था की लड़की डॉक्टर, इंजिनियर , प्रोफेसर .. से पहले एक  लड़की होती है ! शादी के वक़्त लड़के वालो ने उन्हें जो तारे दिखाए थे उसकी कसर वह  हमारे द्वारा पूरी करना चाहते थे और हमारी माताजी जिन्हें हमारे, मामा मामी , बुआ फूफा  , चाचा चाची , मौसा मौसी के साथ साथ अड़ोसी -पडोसी  का भी हिसाब चुकता करना था !जो हमारी बहन की शादी की वजह से अधुरा पड़ा था ! जब इतना बड़ा स्टेक्स दावं पर हो तो, खेलने वाले की उम्मीदें  भी ज्यादा होती है, और जिस गाय को 25  साल से खिला पिला कर बड़ा कर रहे हो और दूध देने के वक़्त, गाय का ही ठिकाना ना हो तो उम्मीदों का समुन्दर गुस्से की ‘सुनामी’ मे बदलना वाज़िब  ही है । कहते हैं की घर का भेदी लंका ढाये , इस इश्तिहार की खबर जब चाचा , मामा ,मौसा को लगी तो, आ गये सब चढ़ी कढाई में अपनी अपनी पुरियां तलने , उपर से कहते अरे जीजाजी आपने लोंडे को कुछ ज्यादा ही ढीला छोड़ दिया है |हमारे लोंडे की इतनी हिम्मत होती तो टांग तोड़ देते !  अरी बीबी तुझे इतनी बार अपने साढू की लड़की का रिश्ता लाया, तुम्हारे तो दिमाग में समझ नहीं आया |अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा कहो तो कल लड़की देखने का प्रोग्राम फिक्स्ड कर दू ! अब इतने सारे बैंड बजाने वाले हो तो ,कोई ना कोई धुन तो निकल आती है| हम वंहा से ऐसे रफ्फू  चक्कर हुए ,की सात मुल्को की पुलिस "डॉन" को भले ही ढूंढ़ लेती पर हमें न ढूंढ़ पाती !

            जब हम लौट के आये और हमारे इश्तिहार ने जो गुल खिलाये उसका अनुभव तो Mr. योगी से कई गुना रोमांचिक था !  Mr. योगी तो 12  कन्या देख आराम से 11  को रिजेक्ट कर दिए और एक  से शादी कर लिए, पर हमें तो 12 कन्याओं में से 12  से रिजेक्ट होना पड़ा, उसकी कहानी किसी और ब्लॉग मे ..........

By

Kapil Kumar 

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