Thursday 10 December 2015

नारी की खोज---4


अभी तक आपने पढ़ा (नारी की खोज भाग –1 , 2 और 3 में ) ...की मैंने  बचपन से आज तक नारी के  भिन्न भिन्न रूपों को देखा .......





मेरे इस सफर की आगे की कहानी.....   गतांक से आगे .......

लड़कपन में भी  एक  अजीब सा नशा होता है जैसे शराब जितनी पुरानी  हो उतना ही नशा देती है ....वैसे ही जवानी ...जितनी ढलती जाती है आदमी की प्यास उतनी बढती जाती है ....ढलती उम्र के लोगो को कमसिन बदन की चाहत होती है ... ना जाने क्यों हर आदमी अपनी उम्र से हमेशा नाराज रहता है ....जब हम बच्चे होते है तो बड़ा बनना चाहते है और जब बूढ़े होने लगते है तो जवानी हिल्लोरे लेने लगती है ... ऐसा ही कुछ मेरे साथ था .....


बचपन से जवानी तक मुझे भरी पूरी औरतो में इक आकर्षण दिखता  जो अपनी हम उम्र लडकियों में कभी नहीं दिखा ....उस वक़्त जो औरतें  नयी नयी शादीशुदा  होती , उनका भरा हुआ जिस्म , भरे उभार और गदराता योवन , जिस्म में इक मीठी सी आह भर देता ...


किसी की नयी नवेली दुल्हन को देख , जिस्म में अचानक इक मीठी सी अंगड़ाई करवट लेने लगती और अरमान जैसे बेकाबू होकर मचलने लगते, पर यह समझ ना आता , यह क्यों हो रहा है ?.... इसके विपरीत अपने साथ पढने वाली मासूम , कमसिन , कच्ची कलियों में जैसे आकर्षण दिखता  ही नहीं था .... मैं सोचता , शायद मैंने  बचपन में औरतो के प्रति अलग नजरिया रखा था या मेरे अनुभव अलग थे ...इसलिए मेरे साथ ऐसा हो रहा है ...पर ऐसा ना था ..उस वक़्त मेरे दोस्तों और हम उम्र के लडको के ख्यालात एक  से थे ... सबको नई नई शादीशुदा आंटियों  में ही दिलचस्पी होती थी .... कुछ बड़े लड़कों  के तो हम दबे छिपे किस्से भी सुनते थे ...पर समझ कुछ नहीं आता था ...की वह  आकर्षण क्या है ? एक  लड़की और औरत में क्या फर्क है ?

आज उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर सोचता हूँ तो हंसी आती है .... की ... आम आदमी को अपने लड़कपन में अधिक उम्र की औरतो से और अधेड़ या बुढ़ापे में आदमी को कमसिन लड़की की चाहत क्यों होती है ? शायद जो जिसके पास होता है वह  उससे उबा हुआ होता है .....

बचपन में हमारे आसपास कमसिन और नादान लडकियो का झुण्ड होता है ....  तो हमें  उनमे कोई आकर्षण नजर नहीं आता...वहीँ  पक्की उम्र में पकी हुई थकी हुई , सेक्स से बेज़ार  औरत दिखतीं  है ...जिन्हें आदमी चाह कर भी नहीं देखना चाहता ... उस वक़्त उसे कमसिन , इठलाती हुई , मासूम लडकियों में अपने लडकपन की यादो का मंजर देख, एक  ऐसे जोश का संचार होता है ...जो उसकी ढलती जवानी और ढीले पड़ते बदन में नयी उर्जा का संचालन कर सके ...
 

उस ज़माने में मुझे उभरती और गदराती औरतों  को देख एक  अनजानी सी ख़ुशी मिलती , उनके भरे भरे उभार दिल को धड़का देते ... इसी रहस्य की खोज में मैं अपने घर और आसपास में युवा होते आदमियों को गौर से देखता , की वह  शादी के बाद क्यों और कैसे खिलखिला कर रहते है ... उनकी बीवियों ने उन्हें, ऐसा क्या दे दिया या उनमें  ऐसा क्या है ? जो कल तक एक  खडूस भाई साहब होते थे, वोह अचानक एक   स्वीट अंकल कैसे बन गए ?...

फिर उनकी बीबियों  यानी हमारी भाभीयों के लज्जाते चेहरे, शर्माती आखें और परफ्यूम  की खुशुब से महकता बदन , एक  अनोखा सा आकर्षण पैदा करता  ..... उनका मुस्कुराना , इठलाना और शर्माना , जिस्म में कहीं एक  मीठी सी कसक पैदा करता ... इन सबसे अलग अपनी हम उम्र की लडकियों में यह सब ना दिखता  ...वह  तो जुबान की तीखी  , हरकतों से लड़ाकू और बे सलीके से रहने वाली लगती  ....

इसके विपरीत नयी नवेली दुल्हन , हमेशा सोलह श्रृंगार में होती .. जब पकवानों की थाली सामने हो तो ,कोई सादी रोटी और दाल कैसे पसंद करे  ? उसपर  मेरा जैसा भंवरा , जिसे बचपन में ही फूलो को सूंघने की आदत पड चुकी थी , उसमे इतना धैर्य कंहा था ...की वह किसी कली  के फूल बनने का इंतजार कर सके ?....
 

भाभियों के आकर्षण से बंधा , मैं भी उनकी झलक पाने किये गाहे बगाहे उनके घर के चक्कर मार लेता ....मेरा अपने अड़ोस पड़ोस  के कुछ घरो में बचपन से ही आना जाना था ...हमारा पूरा  परिवार एक  ही मोहल्ले में कई सालों से एक  साथ रह रहे थे और कुछ भाईसाहब और मैं तो आपस में एक  दुसरे को देखते हुए   ही बड़े हुए थे ...इसलिए किसी के घर, कोई भी , बेधडक होकर आता जाता रहता था ... इसलिए मैं भी उनके घर कभी कभार  झांक लेता ...की.. भाभी , चाची , बुआ कोई काम वाम हो तो बता देना , इसी बहाने हम जैसे प्यासे भंवरो को भाभियों की सुन्दरता को देखने का  नयन सुख मिल जाता ....
 

ऐसी ही एक  दिन , मैं अपने किसी पड़ोसी  के घर में किसी काम से गया ... उन्ही दिनों , उस घर में रहने वाले एक  भाईसाहब की नयी नयी शादी तय हुई थी   घर के लोगो को किसी काम से बाहर  जाना था , तो  वे  लोग मुझे , घर की देखभाल के लिए चाबी दे गए ... चहल कदमी करने के लिए  मैं  घर में इधर उधर घुमने लगा और यूँही घूमते हुए , एक  कमरे में देखा ....की ... वहां  कुछ किताबे पड़ी हैं  .....
 

मैंने  भी टाइम पास करने के लिए वे  किताबें  उठा ली ...उन किताबों  के कवर पेज को देख मेरी सांस तेज चलने लगी और जिस्म में एक  तीव्र लहर सी उठने लगी ...उन किताबो में स्त्री पुरुष , अजीब सी अवस्था में थे ...

जवानी ने देहलीज़  पर कदम भर रखा था , अब तक लडकियों को देखा था और औरतो के जिस्म में आकर्षण महसूस किया था ...पर यह क्यों और कैसे होता था , इसका पता शायद उस वक़्त नहीं था ..पर उन किताबो में जैसे मेरे सारे प्रश्नो के उत्तर और जिस्म से उठने वाली जिज्ञासाए के अर्थ  समाये हुए थे ...


उनमे इक किताब वात्स्यान का कामसूत्र ,दूसरी डॉक्टर कोठारी की  सेक्स और समस्याए और तीसरी कोई एडल्ट पत्रिका थी  जिसमे कुछ कहानियाँ  उत्तेजक फोटो के साथ थी ...

इन सब को देख , मुझे लगा जैसे इक जैकपॉट  मेरे हाथ लग गया ...कहाँ  तो मैं वहाँ  रुकने के नाम से ना नुकुर कर रहा था ...की वहाँ  क्या करूँगा ? उस ज़माने में टीवी तो हर किसी के घर होता नहीं था और रेडियो के गाने  भी  कुछ वक़्त ही सुनाता था ...इसलिए खाली घर में टाइम काटना भी अपने आप में एक  बड़ा काम था ...
 

मेरे पास वक़्त ही वक़्त था , उन लोगो को देर रात आना था और मुझे वहीं पर रूक कर सोना भी था , इसलिए मैंने  अपना बिस्तर लगाया और सारी किताबें  अपने पास रखी और लग गया अपने ज्ञान को बढाने में ...
 

जब आप किसी विषय को मज़बूरी या जरुरत के नाते पढ़ते है तो वह  आपको सर दर्द देता है ...इसके विपरीत आप उसे एक  जिज्ञासा की वजह से पढ़ते  हैं  तो वह  आपको ज्ञान के साथ  उत्तेजना , मनोरंजन और आनंद देता है ... अगर इतनी सारी मेरी  कोर्स की किताबें  होती तो शायद मैं उन्हें पुरे साल भर में भी नहीं ख़त्म  कर पाता ..जो उस दिन मेने 5 या 6 घंटो में पढ़ा ही नहीं बल्कि उसे अपने दिमाग और याददाश्त में हमेशा हमेशा के लिए बैठा  लिया ...

जो भाई साहब वे  किताबें  लाये थे , पता नहीं उन्होंने उसे कितनी  पढ़ी या समझी थी ....पर मैंने  तो उन्हें पूरी घोट लीं    पहले मैंने   एडल्ट पत्रिका की कहानियाँ  पढ़ी ...उसकी कुछ कहानियां पढने और चित्र देखने भर से ,मेरे जिस्म में एक  अजीब सी गर्मी भर गई , जो औरत कल तक  सिर्फ देखने भर का आकर्षण थी , उसकी अब मुझे जैसे तीव्र जरुरत महसूस होने लगी , उस वक़्त समझ आया ....की आदमी का औरत के प्रति आकर्षण का क्या राज   है ?

उस वक़्त मेरा जिस्म किसी भट्टी की तरह तप रहा था , समझ नहीं रहा था , इस जिस्म की आग को बुझाऊं  तो कैसे बुझाऊं  ? इसी सोच में पड़े पड़े .... ना जाने कैसे मेरा एक  हाथ , शरीर के उस भाग से खेलने लगा और कुछ ही देर में वह  हाथ अपनी मंजिल तक पहुंच गया ..इसके बाद मुझे एक  ऐसे आनंद की प्राप्ति हुई , जो उस वक़्त अकल्पनीय थी ...मैं  कुछ देर के लिए , जैसे इक मीठे सपने में खो गया ....मुझे लगा मैं कितना स्मार्ट हूँ , जिसने अपने आनंद का एक  नया और अनोखा तरीका खोज निकाला है ...पर उस वक्त मुझे क्या पता था ...की यह प्रकृति  है   जो हम सबको अपने अपने तरीकों  से आदम और ईव के सम्बन्ध समझा देती है ....
 

मुझे जाने अनजाने अपनी मंजिल तो मिल गई ... पर उसके बाद , कपड़ो पर हुए गीलेपन से एक  अनजाना सा डर सताने लगा ...अरे मैंने  यह क्या कर दियाकहीं मैंने  कुछ काट तो नहीं लिया , जिसकी वजह से खून की जगह सफेद मवाद निकला हो ?... पर दिमाग कहता ...अगर कुछ कटता तो दर्द होता , पर यह तो दर्द दे ही नहीं रहा ...फिर यह क्या है , हे भगवन !मैंने  यह क्या कर दिया ? इसी कशमकश में पडे ... मैंने  सोचा , जो हुआ सो हुआ , चलो दूसरी किताबें  पढ़ी जाए ....
 

शायद उस दिन, मेरा उस घर में रुक कर उन किताबो को पढना , मेरा पहला अनुभव करना और उसे समझने का कारण , आने वाले दिनों में , मुझे “ kk बॉसकी पदवी दिलाने के लिए काफी था ...
 

कहानियों  से निपटने के बाद मैंने कामसूत्र पर  हाथ साफ़ किया और फिर सेक्स और समस्याओं  को बड़ी गंभीरता से पढ़ा .. कामसूत्र से तो मुझे कुछ ज्यादा समझ नहीं आया ...पर सेक्स और समस्या वाली किताब ने , मेरे उन सारे सवालों के जवाब दे दिए ..जो  थोड़ी देर पहले मेरे मन में एक  डर और जिज्ञासा पैदा कर रहे थे .... की ..अरे ..मैंने  यह क्या किया था और वह  सफ़ेद सफ़ेद द्रव्य क्या था ?

शायद मेरी जिज्ञासा थी या उस वक़्त की घटना से मैं कुछ ज्यादा ही  आतंकित था की , मैंने सेक्स वाली किताब के हर पन्ने को जैसे याद सा कर लिया ...की ...

आदमी के अंदर, औरत को लेकर कैसी कैसी हीन भावना होती है और उसकी आम समस्याएँ  क्या क्या होती है और उनके क्या क्या उपाय होते है ?...

एक  बच्चा मर्द बनने के सफर में किन किन ग्रंथियों का शिकार होता है ?.... शादी से पहले औरत के मन में आदमी को लेकर क्या क्या शंकाए होती है ?..

औरत और आदमी के बीच सम्बन्ध कैसे स्थापित होता है और शुरुवात में उनको , किन किन समस्याओं से दो चार होना पड़ता है ?...
 

उस ज़माने में , यूँ तो मेरे घर में महिलाओ की घरेलू पत्रिका गृहशोभा , सरिता जैसी पत्रिका आती थी   जिन्हें मैंने उस दिन से पहले कभी देखा भी ना था  ... इसके बाद तो मैं , कोई भी पत्रिका पढता तो , उसमे ऐसे सेक्शन की तलाश में रहता , जिसमे सेक्स से सम्बंधित लेख या प्रश्न  हो और उन्हें  मैं हर पत्रिका में जरुर खोजता ... कभी कभी ढूंढने  से उनमें  भी , लोगों की सेक्स से सम्बंधित समस्याओं के बारे में कोई ना कोई आर्टिकल मिल ही जाता , नहीं तो कोई प्रश्न  मंच, जिनमें  ऐसी किसी ना किसी ऐसी बात का जिक्र होता , उस वक़्त , वे  लेख और स्तम्भ मेरी पहली पसंद होते , जिन्हें मैं बड़े ही  चाव से पढता ...
 

गुजरते वक़्त के साथ मैं बच्चो की पत्रिकाओ और कॉमिक्स से कोसो दूर होता गया और सिर्फ इस तरह के साहित्य में रूचि लेने लगा ... कहाँ  मेरी उम्र के बच्चे ,लडकियों के साथ खेलते , कूदते .. पर मेरी नज़रें  तो उनके शरीर में कुछ टटोलती , जिन्हें जवान होती लडकियों की नजर तुरंत फुरंत पहचान लेती और फिर मुझे उनके साथ खेलना नसीब ना होता ...

उन बातों  को समझने और पढने की मेरी भूख बढती ही जा रही थी   अब समस्या यह थी की पढने के लिए मेरे पास  ऐसी किताबे और पत्रिकाएं  उपलब्ध नहीं  थी , महिलाओं  की घरेलू पत्रिकाओ में  पढने लायक ज्यादा कुछ ना होता .... मेरा चंचल मन उन चीजो को बार बार पढना और समझना चाहता ....
 

आने वाले दिनों में उस समस्या का भी समाधान हो गया   उन दिनों बाजार में किराये पर  पत्रिका और नॉवेल देने का चलन था ... मैं भी बच्चो के पढने वाली बाल पॉकेट बुक्स या कुछ पत्रिकाए किराये पे लाता था ...ऐसे ही एक  दिन बाजार  जाते हुए मैं एक  दुकान से  , किराये की  पत्रिका लेने के लिए रूक गया .. वहां नजर घुमाई तो देखा दुकान में तो मेरी पसंद का साहित्य भरा पड़ा था .. जाने क्यों आज से पहले मेने इन्हें वहां कभी देखा नहीं था या मैंने  गौर ही नहीं किया था ....
 

उस किराये की दुकान को चलाने वाले का लड़का मेरा दोस्त था   उस लड़के का बाप अधिकतर शाम को , दुकान उसके हवाले करके घर चला जाता था , बस उस दिन से मैंने  भी अपना खाली वक़्त उस दुकान में बिताना शुरू कर दिया   मेरे वंहा बैठने और रुकने से उस लड़के को भी ऐतराज ना था , उसे मेरा साथ मिल जाता तो उसका भी टाइम कट जाता और देखते ही देखते वहां पर  जितनी भी ऐसी पत्रिकाएं  या किताबें  थी मैंने वे  सब कुछ ही दिनों में पढ़ डाली .....

जिस ज्ञान को आदमी या औरत उस ज़माने में अपने अनुभव से हासिल करते थे , मैंने बिना अनुभव लिए उन्हें अपने दिमाग में जैसे जीवन भर के लिए बैठा  लिया ....

उस वक़्त मुझे क्या पता था ..की .. एक  दिन मेरा यह अनुभव ही मेरी बदनसीबी का कारण बनेगा ... जिसे घर में प्रैक्टिकल  की लैब होने के बाद भी सिर्फ थ्योरी से काम चलाना पड़ेगा ...  कुदरत मेरे साथ एक  ऐसा खेल खेल रही है , की आने वाले दिनों में मुझे फिर से , सिर्फ किताबी अनुभव से काम चलाना पड़ेगा , शायद कुदरत ने मेरे खाते में प्रैक्टिकल  की जगह थ्योरी ज्यादा लिख दी थी .... या जाने अंजाने मैंने उस थ्योरी की ज्यादा मांग की थी  .....


क्रमश : …….

By
Kapil Kumar


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

No comments:

Post a Comment