Monday 9 November 2015

जन्नत से दोजख तक !




कफील मियां बड़े ही रंगीन मिजाज के नौजवान थे ! जिन्दगी को पूरी शान से जीते थे....पंतगबाजी करना, कबूतर उड़ाना और इतवार के दिन मुर्गो की लड़ाई देखना उनका पसंदीदा शौक थे .....सर्दी हो या गर्मी या बरसात लोग अपने कपडे समय के हिसाब से बदल लेते है पर मजाल की कफील मियां अपने तहमद , कुरता और टोपी को बदल दे!! .....
                            किसी ज़माने में कफील मियां के दादा परदादा लखनऊ के नवाब खानदान में शुमार होते थे .....धीर धीर ऐयाशियो में.... घर बार , जमीन जायदाद सब कुछ बिक गया और उनके पास कुछ ना रहा....मियांजी के वालिद तो कसम खा कर पैदा हुए थे ,की भूखे मर जायंगे पर किसी की चाकरी ना करेंगे .....बाप दादाओं का छोड़ा हुआ थोडा बहुत मॉल(बर्तन भांडे ,काठ कबाड़ा ) उन्होंने अपनी जिन्दगी में बेच बेच कर निबटा दिया ...और खुदा का बुलावा आने पे, वोह कफील मियां के इक हाथ में कटोरा और दुसरा हाथ उनकी अम्मी जान के हाथ में पकड़ा कर, अल्लाह को प्यारे हो गए .....वक़्त आने पे, उनकी अम्मी जान ने भी यह हाथ छोड़ दिया और कफील का हाथ उसकी खाला के हाथ में पकड़ा अपने शोहर के साथ जन्नतनशी हो गयी ...
                                         इतनी सारी दुश्वारियो और किल्लतो के बावजूद भी कफील मियां ने, ना कभी रंजो गम मनाया और ना  ही कभी कोई अफ़सोस की शिकन उनके माथे पे उभरी ...बचपन में गिल्ली डंडा , कंचे और पतंग बाजी का उन्होंने भरपूर आनंद लिया ...और अगर कुछ ना मिलता तोपुरानी साइकिल के घिस्से हुए टायर को डंडा मारकर चलाते हुए अपने खेलने के शौक पुरे कर लेते और इस तरह वोह अपने बचपन को ,शाही अंदाज में पूरा करते हुए जवानी की दहलीज पे जा पहुंचे!!........
                            पढाई लिखाई के नाम पे कफील मियां कुछ “अलिफ़ , बे , ते “ और कुछ अल्फाज उर्दू के लिख पढ़  लेते थे .....यह सब भी उन्हें अपनी गली के मदरसे की बदोलत महुसर हुआ था ... मदरसे के मौलाना ,उनके वालिद के अच्छे वाफिककार थे!! ....इसलिए जब भी मौका मिलता, मौलाना ,कफील मियां को पकड़ घसीट के, कुछ अच्छी बाते सिखा देते और लगे हाथ थोडा बहुत पढाई लिखाई करा देते .....मौलाना ने, कफील मियां को इक सच्चे मुसलमान की जिम्मेदारियों और फर्ज का पाठ अच्छी तरह से सीखा दिया था ...इन सब का कफ़िल मियां पर यह असर हुआ की .... वोह जब जवान हुए तो इमान और धर्म के पक्के इन्सान थे ...कभी किसी के पैसे और औरत पे बुरी नजर ना डालते  और हर जुम्मे के जुम्मे अल्लाह को जरुर याद कर लेते .....
                                  कफील मियां के खालुजान जुम्मन मियां ने ,उन्हें गुजर बसर करने के लिए, अपनी तरह का इक ठेला दिला दिया ..जिसपे कफील गर्मियों में फल (सेब , केला, लीची ,आम  ) बेच लेते और सर्दी आने पे इसी ठेले पे वोह अंडे और ऑमलेट की महफ़िल रोशन कर लेते .....मेरठ के बेगम ब्रिज के पास, इक सराए के आहते के इक टूटे फूटे मकान में कफील की गुजर बसर किसी तरह हो रही थी......
                                   कफील मियां का नाम, पुरे बेगुम ब्रिज के ठेले वालो में, “ठेले वाले शायर” के रूप में मशहूर था....उनके पक्के ग्राहक भी जानते थे... अगर बढ़िया फल चाहिए तो कफील मिया के ठेले पे जाओ... उनके इक दो शेर सुनो और बढ़िया सेब,केला,आम .... बिना छांटने की मेहनत के ले आओ ...यही सिलसिला सर्दियो में होता ,अगर लजीज ऑमलेट का शौक फरमना हो ....तो.... उनका इक तडकता फडकता शेर झेल लो और बदले में मस्त ऑमलेट और गर्म गर्म अन्डो का शाही स्वाद लो .....

                                कफ़िल मियां , यारो के यार थे ...दिन में कड़ी मेहनत करते .....पर रात को वक़्त निकाल  अपने मौहल्ले की चोपाल पे, अपने दोस्तों के साथ शेर और शायरी की महफ़िल भी रोशन करते .... उस वक़्त कफील अपने साथ कुछ ना बिकने वाले फल , अंडे ले आते थे और ....अपने यार दोस्तों को पेशे खिदमत कर देते ... कफ़िल मियां की, अपने दोस्तों को सख्त ताकीद थी... की धंधे के वक़्त यारी दोस्ती नहीं चलेगी ....हाँ धंधा बंद होने के बाद ....वोह शाम को महफ़िल में जरुर हाजिरी देते ......
                                  सब उनकी इस जरानावाजी की दिल खोल कर वाह वाही करते और उनके आधे अधूरे , घिसे पिटे शेरो और नज्मो पे ....इरशाद और वाह वाह की बरसात कर देते ......सब मस्त मौला ,वंहा पर अपनी जिन्दगी के गमों को अपने लड्खाडाते शेरो और टूटी फूटी नज्मों से ख़ुशी के नूर से सजा लेते ....इस बहाने यारो को , तुकबंदियो के साथ साथ कुछ खाने पिने को मिल जाता.... जिसकी जैसी हैसियत होती वोह अपने ठेले का बचा कूचा सामान इस महफ़िल में ले आता ....
अल्लाह के फजल से सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था .....ना जाने, किस शैतान की बुरी नज़र कफ़िल की हंसती खेलती जिन्दगी पे पड़ गयी ......
हलकी सी सर्दी का मौसम था और कफील मियां ने अपना ठेला अभी अभी बाजार में रोशन किया था .....की इक खनखनाती शहद जैसी मीठी आवाज उनके कानो में पड़ी .......
                                         क्या आप हमें, कुछ बना कर खिला सकते है .....हम थोडा जल्दी में है ...काफ़िल मियां ने सामने देखा तो इक मोहतरमा बुर्के में... उनके ठेले के पास खड़ी थी  ......कफील उनकी आवाज की मिठास के ऐसे दीवाने हुए .....की उनके हाथो ने इक जादूगर की तरह फटा फट....इक ऑमलेट तैयार कर, उस नाजनीन की खिदतमत में पेश कर दिया ......
                       वैसे तो कफील मियां इमान और धर्म के पक्के थे.... की किसी की बहु-बेटी पे  नजर तक ना डालते थे .....ना जाने उस आवाज के जादू से बंधे ...वोह उस नाजनीन की इक झलक पाने को बैचेन हो गए!!.....
                                                       उन मोहतरमा ने ऑमलेट खाने के लिए, जैसे ही अपना बुरका हटाया.... तो ...उनका चाँद सा चेहरा देख.. कफील मियां के होशो हावास गुम हो गए .....

                                 उनके मुंह से निकाल गया वालआहा .....माशा अल्लाह ...खुदा ने, क्या नफासत से इस हुश्न को तराशा है .....उस नाजनीन का हसींन मुखड़ा बुर्के से, ऐसे बाहर आया जैसे काली घटा से चाँद निकाल आया हो  .....उसकी काली कजरारी आँखों में सजा काजल , गुलाबी रंगत लिए भरे हुए गाल , मोती की तरह चकते उसके दांत और गोल गोल मुखड़ा देख.... ऐसा लग रहा था की.... कोई हूर खुदा की जन्नत से इस धरती पर  उतर आई थी ....जब वोह  हसीना,अपने नाजुक ,कोमल दहकते होटो से ऑमलेट के टुकड़े को कुतरने लगी  ,और .....मियां कफील , कबूतर की तरह टक टाकी लगाये ऑमलेट के टुकडो को उस हसीना के सुर्ख होटे से टकराते देखता तो उनका दिल जोर जोर से धडकने लगता और उनका मन होता की... कांश... अगर में भी ऑमलेट होता, तो ,इक टुकड़ा बन इस हुस्न की मल्लिका के होटो को कम से कम इक बार तो छु लेता!! ....
                           वोह नाजनीन भी शायद समझ गई थी... की उसके हुस्न का जादू इस मनचले पे पूरी तह चल चूका है ...इसलिए वोह भी ऑमलेट  खाते खाते ,इक हलकी मुस्कान होटो पे ले आती , तो कभी कभी तिरछी नजरो से कफील मियां की तरफ देख भी लेती ...उसकी तो यह शरारत  हो जाती ....पर  बेचारे कफील मियां अपने दिल की तेज धडकन से खुद ही डर जाते की, कंही .....आज उनका जनाजा ना निकाल जाये !!
                                जब तक वोह नाजनीन ठेले के पास रही......कफील ने उस जन्नत की हूर के रूप रंग और जवानी के नशे का नयन सुख भरपूर लिया ...थोड़ी देर बाद उस हसीना ने कफील मियां से पैसे पूछे तो ....मियां को पैसे बताने में पुरे तारे नजर आगये!! ..उसे देखने में ही ,उनका हलक तनाव और बदहवासी से सुख रहा था .....की उससे बात करने में, उनके पसीने छुटने लगे.....वोह कभी २० रुपया बोलते तो कभी २० आने बोलते ....उनकी इस हालत पे, वोह भी पूरा मजा ले रही थी ...जब कफील मियां ३/४ बार में भी उसे सही पैसे ना बता सके ..वोह उनके ठेले पे इक २० का नोट छोड़ ..अपनी शोख अदा में खुदा हाफिज  कह निकाल गयी ....
                           जैसे जैसे वोह जा रही थी .....उसकी नागिन जैसी चाल देख, कफील मियां का दिल उसके कदमो में लोटने को बेताब हो उठता ....जितना दूर वोह उनके ठेले से होती जा रही थी ....वैसी ही कफील की साँस ..उनके जिस्म से दूर होती जा रही थी ..आखिर थोड़ी देर बाद, वोह उनकी नजरो से ओझल हो गयी ...वोह जालिम तो चली गयी ..पर इक ऐसा मर्ज कफील को दे गयी जिसका इलाज तो हकिम लुकमान के पास भी ना था???....
जालिम इश्क का रोग ही कुछ ऐसा है की जिसे भी लगा.... वोह अच्छा भला आदमी बेकार हो गया !!!
आज पुरे दिन फिर कफील अपनी बैचेन नजरो से हर आने वाली औरत पे नजरे गडा गडा कर देखते .....की ....शायद उस बेरहम को... उनपे तरस आगया हो और वोह अपनी इक झलक दिखलाने वापस आजाये...
अगर हसीनाये इतनी जल्दी पसीजने लगे तो ..लोग उन्हें कातिल कैसे कहे?...       
                                  पर जनत की हूर तो रोज जमींन पे उतरा नहीं करती? ......रात हो गयी, सब ठेले वाले अपने अपने ठेले लेकर वापस जाने लगे .....की जुम्मन मियां ने देखा... की... कफील मियां इतनी देर तक क्या खाक उड़ा रहे है ...कफील मियां को होश ही कंहा था ...जुम्मन मियां, किसी तरह उन्हें झिंझोड़ कर , खिंच खांच के उनके मकान  की दहलीज तक छोड़ आये .....

                      आज की रात तो कफील मियां के लिए बड़ी भारी थी .....अगर सुबह क़यामत भी आती, तो शायद इतनी भारी ना होती ....जितनी ..इस मनहूस , नामुराद रात को काटना था ...सारी रात करवट बदल , खाट की ऐसी तैसी करते करते.... आखिर वोह जालिम घडी भी आगई... 
                        जब पड़ोसी के मुर्गे ने अपनी शहंशाही मौजूदगी दर्ज करानी शुरू कर दी ....फिर तो सब मुर्गे इस जोश में लग गए, की, कौन सबसे ऊँची बांग  दे कर... मोहल्ले की मुर्गियों पे अपना रुतबा कायम करेगा ....

                                       कंहा तो अपने खानदानी रस्मो रिवाज को निभाने वाले कफील मियां, देर दिन ढले तक पलंग तोड़ते थे ....पर आज तो पुरे सच्चे नमाजी की तरह ऐसे तैयार हो गए की.... अगर आज उन्होंने सुबह की अजान ना दी..तो...कंही सारा मोहल्ला सोता ना रह जाये?? .....
                                             कफील ,अपना ठेला तैयार कर पहुँच गए अपने ठिकाने ...पर वंहा तो अभी अभी जमादार ने झाड़ू भी ना दी थी ....उन्हें देख वोह बोला....मियां ....ऐसी भी क्या कयामत आगयी ....की आप सुबह सुबह अपनी तसरीफ ले आये ....अभी तो हमें, इस सडक पे झाड़ू भी देनी है....कफील मियां जमादार से बोले .....क्या करे गुंजन सेठ..... घर में हमारे दिल को चैन ना मिल रहा था ....सोचा जल्दी ही काम धंधे पे निकल ले, तो हवा पानी भी बदल जायेगा और  दो पैसे भी कम जायंगे  ....वैसे भी ...
ग्राहक और मौत का क्या पता कब, कंहा और किधर से आजाये ??
                      पूरा दिन बीत गया, पर जिसका इंतजार था ....उसकी ना तो, कोई खोज खबर और ना ही कोई पता ठीकाना था .....मायूसी के बादल कफील मियां के चेहरे पे मंडरा रहे थे ....की अचानक इक बिजली की चमक ने उनके चेहरे पे रोनक ला दी ....
                                वोह हसींन चाँद का टुकड़ा...अपनी मस्त चाल से चलता हुआ ...कफील मियां के ठेले की तरह आता दिखाई दिया ......वोह आ क्या रही थी .....की कफील की साँस... जो अभी तक अटकी अटकी चल रही थी ....अब घोड़े की माफिक तेज   रफ़्तार पकड़ने लगी .... आज वोह नाजनीन ....बुर्के में न होकर ...इक आसमानी  रंग की सलवार और नीले रेशमी कुर्ते में थी ..जिसपे ,उसने इक गहरे हरे रंग की चुनरी डाल रखी थी ....लगता था वोह हुस्न की मलिका.... आज दिन दहाड़े ..बेगम ब्रिज पे ...नौजवानों में दंगा कराने के लिए पूरी तरह से तैयार होकर आई थी .....
                                 इक तरफ तो आग बरसाता उसका हुस्न , फिर नागिन जैसी उसकी चाल ,उसपे उसके मटकते कजरारे नैन ....वोह जिधर भी अपनी गर्दन घुमा देती ....उधर शोहदों की ठंडी आहे निकल जाती .....सारे ठेले वाले .....उसे देख अपनी अपनी सब्जी , फलो....और चीजो के दाम घटा घटा कर..... उसे मोहतरमा को ,बानो जी,साहिबा जी ..आदि की आवाज दे देकर बुलाने लगे... ..कुछ तो दीवाने, उसे मुफ्त में ही सामन देने के लिए जोश में उसकी तरह चिल्लाने लगे ...पर उसे तो मालूम था.... की उसे किसके दरवाजे जाकर दस्तक देनी है ...वोह सीधा कफील के ठेले पे आई तो ......
                             कफील मियां का सीना ख़ुशी और शान की तरुन्नम में फूल कर कुप्पा हो गया ... वोह उसके पेरो में लगभग लोटते हुए बोले....आदाब ....यह गुलाम ....आपकी खिदमत में क्या पेश करे......बदले में... उस हसींन ने भी आदाब फ़रमाया ...और इक दिलकश मुस्कराहट के साथ अपने आँखों को मटकाते हुए बोली ....जो भी आप प्यार से खिलायंगे ....यह कनीज उसे कबूल वजहा फरमा लेगी..... कफील मियां तडपते से हुए बोले ....अरे आप क्या वजहा फरमाती है ...अल्लाह कसम, इस नाचीज के सामने , अपने को कनीज कहकर, आप अपनी तोहिंन ना करे ....वरना कयामत के दिन ,फ़रिश्ते भी हमें न बक्शंगे.....कफील की इस मासूमियत, पर वोह दिलकश हसीना जैसे फ़िदा हो गयी और जोरो से खिलखिलाकर  हंस दी!!.....
                                वोह तो हंस दी अपनी नादानी में ...पर कई शोहदे उसकी आवाज के तरुन्न्म में अपनी सुध बुध खो बैठे और अपना जिगर थाम के बैठ गए.... कंही उसके कजरारे नैन घुमे और उनका जिगर उसके नजरो के तीरों से छलनी न हो जाये....आज कफील मियां की इज्जत, पुरे बेगम ब्रिज पे इस तरह रोशन हो रही थी ...की....मुई इज्जत ना होकर घंटाघर पे लटकी कोई घडी हो ....जो सिर्फ उनके इशारो पे चल रही है और पूरा बेगम ब्रिज उस घडी से समय देखने के लिए मारा जा रहा हो .....
                              बस इक बार यह सिलसिला शुरू हुआ ...तो बस चलता ही गया ...बाकी ठेले वालो ने भी, दिल ही दिल में कबूल कर लिया… यह तो “लैला-मजनू “ की जोड़ी है.....इसे ज़माने की फ़िक्र कंहा ?.....कुछ शोहोदे ....अभी  भी नादानी में उसे आवाज लगा देते …..पर जब कफील मियां की कहर बरपाती नजर देखते तो वंहा से ....दुसरे गली के कुत्ते की तरह अपनी पुंछ निचे दबा कर भाग जाते .....

                                   दिल्लगी करते करते ...करीब दस दिन बीत गए ...अब कफील मियां को उससे बात करके भी चैन ना मिलता ..उनका दिल तो .....शहजादी के साथ  घुलने मिलने को करता ...दिल दिल में कफील अपने ख्वाबो के महल में... उसका शहजादा बन उसके साथ हसींन गुस्ताखियाँ कर लेते ... कभी कभी, उसके साथ खयालो ही खयालो में मौज मस्ती भी कर लेते.....
पर , यह कम्बखत ख़यालात और हकीकत का फर्क उनके सीने में मायूसी की चिलम फूंक देता.....
                       इक दिन जिगर कड़ा करके, कफील ने अपने दिल का दर्द ....उस “नाजनीन” को कह ही डाला ..कफील की बात सुन वोह थोडा संजीदा हो गयी ...और बोली की ....मुझे अपनी दुल्हन बनाने से पहले... तुम्हे मेरे अब्बा हुजुर से इजाजत लेनी होगी ...कफील मियां तो इसी ताक में थे ...झट बोल पड़े ...बताओ कब चलना है .....उसने थोडा सोचा और बोली ....तो आज शाम तुम मेरे साथ उनसे मिलने चलोगे ......मैं तुम्हे ठीक शाम को 8 बजे लेने आउंगी , तुम मुझे तैयार मिलना ....ऐसा कह उसने ,अपनी इक जालिम मुस्कुराहट से कफील का दिल बिंधा और वंहा से रुखसत हो गयी ......
                                 वोह जालिम तो चली गयी पर लगता था.. कफील का दिल और वक़्त के लम्हे  दोनों अपने साथ ले गयी ...अब कफील मियां का मन ना तो काम धंधे में लगे न ही किसी और में... कभी ठेले के आस पास घूमते तो कभी बैचेनी में ठेले के सामान के साथ इधर-उधर उठक पटक खेलते .....और बार बार वक़्त पूछ कर  पडुसी ठेले वालो का जीना और हराम कर दिया ...
                           खेर वोह क़यामत की घडी भी आगई ...जब वोह दिलकश हसीना दूर से आती दिखाई दी ....कफील मियां पुरे चौकस होकर ,सजे संवरे बैठे थे ,उन्होमे आज , नयी अचकन और सलवार के साथ ,तुर्की टोपी पहना रखी थी जिस्मे वोह, कंही के गुलफाम लग रहे थे ....उस नाजनीन को देख कफील ने पुरे अदब से सलाम पेश किया और अपने ठेले को अपने खालुजान के हवाले कर,उस नाजनीन के साथ रवाना हो लिए!! ....

                    रास्ते में चलते चलते कफील ने हिम्मत करके ,उस नाजनीन से पुछा ...गुस्ताखी माफ़ हो ....आपने, आज तक अपना नाम नहीं बताया ? कफील की बात सुन ..वोह जोर से खिलखिलाकर हंसी और बोली ...आपने पुछा ही नहीं ? और आप तो बेगम ब्रिज पे इतने मशहूर हैं की आपके बारे में हमें सब कुछ मालुम है ...हमारा नाम “नर्गिस “ है ....और हम अपने अब्बा हुजुर के साथ यंही पास में रहते है ....
                           दोनों गली कुचो से गुजरते हुए इक दबड़े नुमा मकान के आगे जाकर रुके ...”नर्गिस “ थोडा झिझकी , फिर हिम्मत करके कफील को अपने साथ मकान में ले गयी ...अन्दर जाकर उसने आवाज लगायी ..अब्बा हुजुर ..देखिये कौन आये है ?...पर अन्दर से कोई जवाब ना आया ...उसने कफील को मकान की बैठक में बिठा दिया और बोली ...लगता है अब्बा कंही बहार चले गए है ..तब तक मैं आपके लिए शरबत लेकर आती हूँ ...और ऐसा कह,वोह हैरान , परेशांन और घबराये कफील को वंहा अकेला छोड़ अन्दर चली आई .....
                            कफील मियां के लिए इक इक पल, साल जैसा बीत रहा था ..उस शोख हसीना नर्गिस को गए भी ....काफी अरसा हो चूका था ....पर उसका तो कोई पता ठिकाना ही ना था ....ना जाने कंहा जाकर गायब हो गयी थी ...कफील ने सोचा ..चलो अन्दर चलकर देखते है की माजरा क्या है ...और ऐसा ख्याल दिल में ला, वोह मकान के अन्दर चले गए ...मकान क्या था कोई भूल भुलैया थी ..जो बहार से देखने में छोटा सा मकान पर अन्दर उसमे अल्लहा जाने कितने निगोड़े कमरे थे ...की इक में घुसे की दूसरा कमरा सामने आजाता ....कफील मियां एक एक कमरे के बहार “नर्गिस बानो “ की आवाज देते और फिर अन्दर झांक लेते की कोई है या  नहीं?......खुदा जाने क्या हुआ था... उसे जमींन खा गयी थी या आसमान निगल गया था ... ढूंडते ढूंडते कफील इक कमरे के अन्दर गए तो देखा ....की हलकी सी रौशनी में कोई पलंग पे लेटा हुआ है ......
                           कफील मियां ने कहा.....गुस्ताखी माफ़ हो ....हम “नर्गिस बानो” को खोज रहे थे ...की पलंग से इक जानना आवाज आई ...आप इधर तशरीफ़ ले आये ...आवाज की कशिस से बंधे कफील पलंग के पास पहुँचे , तो देखा ....:नर्गिस बानो “पलंग पे चादर डालके लेटी हुई थी ....कफील मियां का जिगर सीने से बहार निकल मुंह  में आगया ...वोह बोले गुस्ताखी माफ़ ....हमें अंदाजा ना था ....की यह इक जानना कमरा है ....अल्लाह कसम ऐसी गुस्ताखी ना करते .....हम बहार बैठक में आपका इंतजार करते है ....आप काफी देर से नहीं आई ..इसलिए हम अन्दर देखने चले आये की ..सब कुछ खैरियत से तो है और ऐसा कह कफील कमरे से बहार जाने के लिए मुड़े ही थे की ...नर्गिस ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोली ...आप से कोई गुस्ताखी नहीं हुई ....हमारी तबियत थोडा ख़राब हो गई थी ...जरा आप थोडा सा हमारा सर दबा दे ..बड़ा दर्द हो रहा है ..और थोडा सा बाम भी हमारे माथे पे लगा दे ...आप हमारे बिस्तर के सिराहने बैठ जाये ..तक्लुफ़ की कोई बात नहीं है

                         कफील का कलेजा मुंह को आने लगा ...जिस की ,इक झलक के लिए लोग पूरा दिन इंतजार करते थे ...जिसके लिए पूरा दिन कफील इक दीवाने की भांति दिन रात .....ख्वाब देखते थे ..आज वोह ही जन्नत की हूर सामने लेटी, खुद उन्हें अपने पास बुला रही थी..... उसे छुने के अहसास भर से ही उनका दिल और जोर से धडकने लगा .....
                             कफील ने बड़ी मासूमियत से अपना हाथ उसके चाँद से मुखड़े पे रखा और कांपते हाथो से उसका सर दबा ना शुरू किया ही था ....की नर्गिस ने उनका हाथ अपने हाथ में ले अपने होटो से चूम लिया ...उसकी इस कातिल हरकत ने, कफील के लहू में इक गर्मजोशी और रवानगी की लहर उठा दी ...उनका शरीर तनाव और उत्तेजना में कड़ा होगया....नर्गिस ने अपनी कजरारी आँखों से कफील को घूरा और इतराते हुए  बोली ....मियां हाथ से ही झटका खा बैठे ....अभी तो बहुत लम्बा सफ़र तैय करना है ....और ऐसा कह,
                          नर्गिस ने कफील को अपनी तरफ खींच लिया ,फिर अपने होटो को ,कफील के होटो से जोड़ ...उनके होटो से अपने होटो के रस की खरीद फरोत करने लगी ...जब दोनों के दुसरे के होटो के रस से अच्छी तरह वाफिक हो गए ...तब ...नर्गिस ने ,कफील को अपने ऊपर समेट लिया और उसके साथ जन्नत का सफ़र शुरू कर दिया ......जन्नत  की सैर करने के बाद,जब कफील को ,इस दुनिया में होश आया तो....
कफील मियां को समझ आ चूका था की... क्यों दुनिया में.... सारे फसादो  की जड़ इक औरत को ही समझा जाता है?? ......
                         आज का तजुर्बा ,कफील का किसी औरत के साथ पहला तजुर्बा था .....पर ,उसने खवाबो में भी ख्याल ना किया था... की,असल में औरत का साथ, ही जन्नत का दूसरा नाम है ...कफील के पुरे बदन में इक ..नया जोश ,ताकत और रवानगी की लहर समा चुकी थी .....
                      नर्गिस से लिपटे लिपटे कफील ने पुछा ..तुम्हारे अब्बा अभी तक नहीं आये ..अगर उन्होंने देख लिया तो ....गजब हो जायेगा ....नर्गिस थोडा सा मुस्कुराई और ...कफील को चुटकी काटते हुए बोली ...आप ना नादान ही नहीं ....कम अकल भी हैं ...अरे, अब्बा तो आज बहार गए हैं…इसलिए मेने, हुजुर को घर बुलाया की, उन्हें जन्नत की सैर करा दूं ....और ऐसा कह नर्गिस ने खुद को और कफील को फिर से चादर के अन्दर घुसा लिया ......
जन्नत की सैर करने के बाद कफील का दिमाग खवाबो में और जिस्म हवा में तैर रहा था ….उसे लग रहा था की वोह दुनिया का सबसे खुशनसीब इन्सान है ......
शायद उस वक़्त... कोई कफील को बता देता ,की जन्नत का इक दरवाजा जहन्नुम में भी खुलता है!!!
                             उस दिन के बाद, कुछ दिन तक नर्गिस, कफील को फिर नजर नहीं आई ...उसके इंतजार में कफील के दिन और रात हराम हुए जा रहे थे ....पर उस जालिम का कंही अत पता ना था ...कफील ने मन में सोचा... आज शाम जाकर उस मकान में देखेगा की ,नर्गिस की तबियत तो ठीक है या नहीं ..ऐसा ख्याल दिल में ला ...उसने शाम को वंहा जाने का मन बना लिया ......की अचानक कफील को,दूर से  नर्गिस आती दिखाई दी ...

                           नर्गिस थोड़ी सी बदहवास थी ..उसके हाथ में इक बड़ा सा बैग था....उसने बैग कफील को दिया और बोली .....हमें जरुरी काम के सिलसिले में शहर से बहार जाना है ...कोई आदमी आएगा और वोह यह बैग मांगेगा उसे आप देदे....कफील के समझ ना आया की माजरा क्या है ...उसने आगे कुछ पूछना चाहा ..की नर्गिस उसके दिल के हालात का जायेजा ले ...आगे बोली ..अरे यह बैग हमारे दूर के भाई जन का है ...उनकी यंही पास में ही इक दुकान है ...उसका कुछ सामान हमारे मकान में पड़ा था ...तो हमारे पास वक़्त नहीं है इसलिए आपके पास छोड के जा रहे है ...जो आदमी आएगा ....
                           वोह आपसे पूछेगा की ....अंडे कच्चे हैं या पक्के ..और आप कहंगे ना कच्चे ना पक्के ....वोह तैयार है ...उसके बाद वोह इस बैग को ले जायेगा ..अगर वोह आपको कुछ दे ....उसे आप हमारे मकान में दे आयेंगे ....आप , हमारा इतना सा काम तो जरुर कर देंगे ...ऐसी तो उम्मीद हम आप से कर ही सकते है और ऐसा कह उसने अपनी इक जालिम , कातिल मुस्कराहट का तीर कफील के सीने में दाग दिया ...
                                                   कफील मियां जवानी के नशे में चूर और उसकी मोहब्बत में गिरफतार थे ..उन्होंने इक गुलाम की तरहा अपना सर हाँ में हिला दिया ...नर्गिस ने उसका शुक्रिया अदा किया और वंहा से रुखसत हो गयी ....इक बार यह बैग देने और लेने का सिलसिला शुरू हुआ, तो बढ़ता ही गया ...कभी नर्गिस खुद आकर बैग दे जाती या कभी किसी के हाथ या कभी …..कोई ख़त भेज देती …..कफील मियां इश्क में गिरफ्तार बन्दर की तरह... उसके इशारो पे गुलाटी पे गुलाटी मारे जा रहे थे ....
                    वोह हर बार उनके ठेले पे कुछ मिनट से ज्यादा ना ठरती....बस अपना काम करके निकल जाती ..... कफील इस इंतजार में की, कभी तो वोह उसपे रहम खाएगी और फिर से जन्नत की सैर कराएगी .....
                    इक दिन नर्गिस सुबह ही सुबह इक बड़ा सा बैग दे कर बोली, इसे आप अपने पास बड़ी हिफाजत से रख ले …..हम कुछ दिनों के लिए शहर से बहार जा है ....वापसी पे ले जायंगे ...ऐसा कह वोह बैग वंही छोड़ चली गयी .......
                       सुबह सुबह मकान के आस पास शोर सुनकर कफील मियां की आँख खुल गई तो देखा ...पूरा मकान पुलिस वालो ने घेर रखा था ..और वोह मकान की तलाशी ले रहे है ......की इक हवालदार आया और नर्गिस वाले बैग को दिखा कर बोला ....
क्या यह तेरा बैग है .....कफील बोला हाँ ..बस उसके हाँ बोलते ही ...उसने और साथ आये इंस्पेक्टर ने उसे पकड़ लिया ....बोले तुझे पता है ..इसमें क्या है ...कफील बोला ....नहीं यह बैग मेरी किसी पहचान वाली का है .....
पुलिस ने उसके बाद न कुछ पुछा और ना कुछ कहा और कफील को पकड़ कर ले गयी ....
                          अगले दिन सारे अखबारों और न्यूज़ चैनल पे कफील की तस्वीर दिखा कर ....बताया जा रहा था .....की पुलिस ने कोई बहुत बड़ा मुजरिम गिरफ्तार कर किया है ...जिसका तालुकात मुल्क में पहले हुई, कई बहुत बड़ी बड़ी वारदातो से रहा है .....जिसे कई सालो की कैद की सजा मुकरर हुई है ......
इक रात की जन्नत की सैर ने... कफील को सारी जिन्दगी का जहन्नुम तोहफे में दे दिया था!!!!

By
Kapil Kumar


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

No comments:

Post a Comment