Wednesday 11 November 2015

दो आंसू गिरा देना !!




जब खबर आए मेरी मौत की ,
इतनी सी वफ़ा निभा देना
चुपके से मेरी याद में ,
अगर हो सके तो ,दो आंसू गिरा देना ...


यूँ तो तेरे ही इंतजार में, कटी थी यह जिन्दगी
इस उधार की जिन्दगी का, थोडा सा कर्ज चूका देना
अपनी तन्हाइयों में कभी , मेरी कोई नज्म गुनगुना लेना
अगर हो सके तो ,दो आंसू गिरा देना ...


अपनी मजबूरियों के सहारे, तू होगी खुश जरुर
बड़ी वफ़ा से निभा रही होगी, अपने रिश्ते माकूल
उन फर्मादानियों में से इक , थोड़ी देर भुला देना
मेरी नाकाम मोहब्बत का किसी से फ़ातिहा पढ़ा देना
अगर हो सके तो ,दो आंसू गिरा देना ...


मरते दम तक दिल सोचता रहा, हो  होकर मजबूर
तू इतने करीब होकर भी , क्यों रही मुझसे दूर
हो सके तो अपनी मजबूरियां  ही बता देना
नहीं तो ख़ुदा को मेरे गुनाह ही गिना देना
अगर हो सके तो ,दो आंसू गिरा देना ...


अब तो तेरी जिन्दगी से चला गया हूँ बहुत दूर
जंहा ना नफ़रत है , ना मोहब्बत है , ना ही कोई माफ़ी और ना ही कोई फितूर
जो बच गए थे ख़त मेरे , तुझसे यूँ ही अनजाने में
हो सके तो उन्हें भी जला देना
मुझे  हमेशा के लिए अपनी यादो से मिटा देना
उससे पहले बस इक बार
अगर हो सके तो ,दो आंसू गिरा देना ...




 By 
Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. Please do not copy any contents of the blog without author's permission. The Author will not be responsible for your deeds..



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