Sunday 15 November 2015

अध्यात्मिकता या निक्कमापन !



कहने में अच्छा तो नहीं लगता पर ...क्या कहू जब “शाइनिंग इंडिया “ या“मेरा भारत महान “ के लोगो की महानता देख... सीने में इक खंजर सा चल जाता  और खून बिना किसी गर्मी/ताप के खुद बे खुद उबलने लगता .....

यू टूब पे ऐसे ही कुछ क्लिप्स देख रहा था ...की इक विडियो पे नजर पड़ी ..जिसमे बापू आसाराम के प्रवचन हो रहे थे ...यह शायद जुलाई 2013 में “द्वारका के सेक्टर ११ “ में गुरु पूर्णिमा के दिन रिकॉर्ड की गई थी ......

खेर विडियो देखने के बाद मुझे बहुत ही अफ़सोस और पीड़ा इस बात को देख कर हुई ...की हजारो लोग का हुजूम वंहा था ....सबसे बड़ा सवाल की आप क्या हासिल करने के लिए वंहा गए थे ?

आसाराम बापू के ये शब्द  हथोड़े बनके मेरे सर में बजने लगे .....

“मेरे पास तो राकेट है अध्यात्म का ...मेरे साधको को इतना परिश्रम नहीं करना पड़ेगा “

लोग वंहा क्या लेने गए थे ....असान जिन्दगी या मुफ्त का आशीर्वाद या इस दुनिया से मोक्ष ?

मुझे नहीं मालूम किसे क्या मिला ...बस इक सवाल दिमाग में कोंधा ..यह हजारो लाखो लोग ....
अगर मिल जुल कर किसी सफाई अभियान में “कार सेवा “ करते या...... 
अपने समय और श्रम का दान आपने अडूस पडूस में या अपनी सोसाइटी की सफाई में देते तो वोह जगह थोड़ी खुबसूरत लग सकती थी ...या ....
किसी पार्क में पेड़ लगाते या उन्हें पानी से सींचते तो शायद कुछ हरियाली में इजाफा होता या कुछ लोग गरीब बच्चे को पढ़ाते तो कुछ होनहारो को नयी दिशा मिलती या ....
कुछ डॉक्टर/नर्स मुफ्त में कुछ बीमारों का इलाज कर देते तो शायद कुछ जीवन दान होता .....
शायद इन लोगो के पास वंहा बैठने के लिए तो वक़्त था ..पर अपने घर में अपने लोगो की सेवा करने या उनके हाल चाल पूछने के लिए इनके पास वक़्त ना  होता..तब ये निहायत ही बीजी हो जाते  !

इतनी सारी औरते ....ना जाने कौन से दान पुन्य को कमा रही थी? ...पर घर में यही सास-बहु या माँ-बेटी ...इक दुसरे का छोटा सा काम करने पे बहुत ही बीजी हो जाती...और जरा से काम के लिए सास-बहु में जंग हो जाती ....

इतने सारे मर्द जो ...शायद अपने किसी बीमार रिश्तेदार को देखने के लिए या अपने किसी पुराने दोस्त का हालचाल पूछने के लिए अपने कैलेंडर में कोई फ्री टाइम ना निकाल पाते ....पर वंहा पर हो रही उस महान लीला को देखने और समझने के लिए पुरे इत्मीनान और शांति से बैठे थे .....

कहने का मतलब बस इतना है ...की हर इन्सान में कुछ ना कुछ देने की काबलियत है या थी ..पर बजाय अपने घर या समाज या देश को कुछ देने के ..उन्होंने क्या किया ?
सिर्फ आधी अधूरी लाफ्फेबाजी सुनी ....जो बचपन से आज तक ना जाने कितनी बार वोह सुन चुके है ...पर अमल में शायद ही कभी लाते हो ?

बापू जी के ऊपर वाले डायलॉग ने तो मेरी आँखे खोल दी ...सच बात है अब इन्हें बिना मेहनत के इतना नाम , पैसा और इज्जत मिल रही है ...फिर कौन गधा काहे दिन रात मेहनत करके अपने सर के बाल उडाये?

शायद हम लोग किसी महात्मा या साधू या अध्यात्म के पीछे इसलिए भागते है की हमें मेहनत ना करनी पड़े और सब कुछ बिना किसी परिश्रम के घर बैठे बिठाये मिल जाए ....
फिर क्यों कलपते और रोते है की हिंदुस्तान में कुछ नहीं होता ?

जब आप लोग कुछ करना ही नहीं चाहते तो कुछ कैसे होगा? ...इतनी सारी औरतो का हुजूम ...जो घर में अपने पति , बच्चो , सास ससुर को भूखा प्यासा छोड़ ...दौड़ कर इस तरह के सत्संग में चली जाती है ..की ...वंहा लाफ्फेबजी सुन अपना मोक्ष कर ले ....क्या उन्होंने कभी सोचा है ...की उनके इस पलायन से घर के लोगो को कितनी तकलीफ उठानी पड़ सकती है ?

इक दिन काम वाली बाई नहीं आये और इन्हें थोडा सा काम करना पड़ जाए तो इन गृहणियो की जिन्दगी में भूचाल आ जाता है और इनका पूरा टाइम टेबल गड़बड़ा जाता है ...पर इस तरह के सत्संग में दिन भर बैठ कर समय बर्बाद करने के लिए इनपे वक़्त कान्हा से आ जाता है ?

ऐसा ही नजारा देखने को जब मिलता  जब ...राजनीती के नाम पे ...कभी गरीबी हटाओ रैली , कभी इसे प्रधानमंत्री बनाओ रैली ,कभी भ्रस्ताचार मिटाओ धरने के ना पे हजारो-लाखो लोग सिर्फ अपने अमूल्य समय को बर्बाद करके चले आते ....

आदमी जो ...हमेशा राजनितिक या नेताओ को रोते है ...की इस देश में कुछ नहीं होता ...क्या यह अच्छा ना होता ..की ..ये लोग मिल जुलकर इतने समय को इन सत्संग और राजनितिक रैलियों यूँ बर्बाद ना करके ...अपने घर में अपनी बीवी-बच्चे या माँ बाप की सेवा ही करते तो कुछ पुण्य जरुर मिलता ..अगर उसके बाद भी समय बचता तो कुछ अपने समाज के लिए अपना श्रम दान कर देते ...जैसे सोसाइटी की बुलिडिंग की सफाई या सडक की सफाई आदि आदि ....तो शायद इस सामाज को कुछ दे पाते .....

राजनितिक रैलियों और सत्संग में उमड़ती भीड़ देख बार बार यह बावरा मन सोचता है ..शायद इस भीड़ को कभी कोई सच्ची दिशा देने वाला मिले ....

आज के परिवेश में हमें राजा राम मोहन राय, विवेकानंद जैसे गुरुओ और नेतृत्व की जरुरत है ...जो इस बढती आबादी के हुजूम को इक ऐसी दिशा में लगाये जो  इस देश की उन्नति में सहायक हो...

हमें नहीं चाहिए इन अध्यात्मिक गुरुओ की आत्मा – परमात्मा की लाफ्फेबाजी ,
हमें नहीं चाहिए इक नेताओ के झूटे वादे जिसमे सिर्फ बाते है ...

हमें चाहिए वोह नेतृत्व जो आगे बढ़ कर ..इन उन्मादी भीड़ को दिखा सके...की .. कैसे परिश्रम से सपने पुरे किये जाते है...

लाफ्फेबजी की नींद भर लेने से सिर्फ सपने देखे जा सकते है..उन्हें पूरा करने के लिए सिर्फ कठोर परिश्रम की आवशयकता होती है !

अंग्रेजी में इक कहावत है ...की...हर किसी को अपनी गंदगी(फूफू) खुद धोनी पड़ती है ..वैसे ही अपने घर/मोहल्ला /समाज/देश ..हमें खुद ही साफ़ सुथरा बनाना पड़ेगा…इसे कोई बहार वाला आकर साफ़ नहीं करेगा .....

By
Kapil Kumar 

     

Note: - “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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