Sunday 15 November 2015

दिलजले की नज्म !!



बहुत आसान है, किसी से यूँ ही रूठ जाना... हंसी खेल है ,अपनी बातों से मुकर जाना ...


कभी गुजरोगे जब इन रास्तो पे , तब याद आएगा अपना फ़साना....


थक गया चल चल कर  उन रास्तो पर , जिन पे किसी मंजिल का आसरा नहीं होता ....


जहां  कभी जन्मी ही ना थी मोहब्बत , वहां  नफरत का भी निशां नहीं होता .....   दुनिया से छिप  छिप कर ढक रहा हूँ, अपने सड़ते रिसते जंख्मो को अभी भी  …


सींच रहा हूँ उन रिश्तो को भी ,जिनके ठीक होने की कोई आस नहीं भी .... यदि होती किश्ती कागज की भी , तेरे साथ यह जिंदगी का सागर तर लेता ....


यह तो सिर्फ दिल्ल्गी की बात है , की मेने रंजिश तुमसे की है ....


मेरी इबारतों पे जरा गौर  फरमाना , जिसमे सिर्फ तेरी ही इबादत की है ....   कैसे तोड़ेगा वह दिल किसी का , जो समेट रहा हो टुकड़े ही अपने दिल का....


फिर भी इल्जाम मुझपर  , की मैंने  ही बेवफाई की है ...


कसमें  वादे निभाने के लिए , सिर्फ एक शख्स  ही काफी नहीं होता ,
गर तूने भी की होती मुझसे मोहब्बत ,
फिर , तेरे मेरे बीच ,यह पत्थर का आइना नहीं होता .


By 
Kapil Kumar


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