Tuesday 10 November 2015

अपना बोझ खुद ढो !!...




बाबा की जय हो .... बाबा बस अब आपका ही आसरा है किसी तरह मेरे परिवार को बचा लो ऐसा कह भक्त बाबा त्रिकालदर्शी के कदमो में गिर पड़ा .. ... बाबा ने भक्त को उठाया और बड़े प्यार से उसे अपने पास बैठाया ..

बाबा को किसी का इस तरह गिड़गिड़ाना और उसपे पैरो में लौट जाना कदापि पसंद ना था... होने को तो त्रिकालदर्शी  किसी ज़माने में इक आम इंसान हुआ करते थे ...पर वक़्त की जरूरत  , ज़माने की रुस्वाई और इक अनजाने रहस्य ने उन्हें आम इन्सान से बाबा त्रिकालदर्शी बना दिया था  …

जन्हा पुराने बाबा लोग भगवे रंग में रंग...गले में रुद्राक्ष की माला पहन, लम्बी दाढ़ी और घोसले जैसे बाल रखते ...वंहा बाबा त्रिकालदर्शी आधुनिक युग के बाबा थे ....जो क्लीन शेव रखते , कपड़ो में पर्फुम और  बगल में डिओडोरेंट लगाते ....जिनके हाथ में रुद्राक्ष की माला की जगह लेपटोप तो आसान की जगह इक टेबल कुर्सी होती। …..

यूँ तो बाबा को जींस ,शार्ट पैंट्स के साथ टी शर्ट पहनना अच्छा लगता। पर दिन भर आने वाली लोगो की भीड़ और गर्मी से बचने के लिए बाबा इक ढीला सा पजामा और कमीज डाल कर कुर्सी पे आसान लगाते। ...सामने मेज पर फलों की टोकरी की जगह कुछ फाइल्स और अगल बगल चमचो की जगह कुछ सेविकाएं लोगो की शिकायतों को सुन कर नोट बना कर कंप्यूटर में लोड कर रही होती....

ऐसे अजीबो गरीब आधुनिक इंसान आज बाबा के अवतार में थे। शायद समय की मज़बूरी या नए ज़माने की जरुरत ने ऐसे बाबा को पुराने बाबाओ से ज्यादा विश्वसनीय और उपयोगी बना दिया था। ...

नए ज़माने या उपभोक्ता संस्कृति का फंडा था की किसी भी प्रोडक्ट को लेने से पहले ग्राहक को उसका फ्री ट्रायलवारंटी  और ना पसंद आने पे फुल रिटर्न की गारंटी  होनी चाहिए। ...

 बाबा त्रिकालदर्शी इन तीनो में खरे उतरते थे। .... ना तो उनमे अभिमान था की कोई उनके पैरो में लोटे .... ना ही वह किसी से कोई दान दक्षिणा लेते की कोई उन्हें पैसो का लालची कहे और ना ही उन्हें फालतू के भविष्य बताने में मजा आता। ....की लोग उनकी फालतू में जय जयकार करे ....वह तो सिर्फ चैरिटी वर्क के लिए अपने ज्ञान का उपयोग लोगो की आम परेशानी का हल बताने में लगाते.....बाबा अपनी नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद सरकारी पेंसन , सेविंग्स और स्टॉक्स की आमदनी से मजे का जीवन जिते थे ..यह सब काम करना ...उनका जनता की सेवा करने का प्रयास भर था ....

उनका काम करने का तरीका आजकल के कुकुरमुत्ते की तरह फैलते NGO यानी नॉन प्रॉफिट आर्गेनाइजेशन की तरह था ...जिसमे सारा लाभ हानि उपभोक्ता की सेवा के हिसाब से तय होता .....मतलब बड़ा ग्राहक तो ज्यादा पैसा और गरीब या असहाय तो मुफ्त में सेवा ....पर इसमें उन लोगो की तरह कमाई के मामले में सरकार की आँखों में धुल झोकने का इरादा ना था ...बाबा त्रिकालदर्शी जो भी पाते उसे उसी शाम वंहा बैठे बुढो और बच्चो में बाँट देते ..

बाबा त्रिकालदर्शी अधिकतर मुफ्त में ही सलाह दिया करते थे  .वोह भी बड़ी आम सी परेशानियों की .. उन्हें किसी का भूत या भविष्य बताने की इच्छा ना होती ..

बाबा के अनुसार जो बीत गया उसे बदला नहीं जा सकता और जो आने वाला है उसे रोका नहीं जा सकता ..मनुष्य भूत से सीख लेकर वर्तमान में जी सकता है और वर्तमान में अच्छा कर भविष्य के उज्जवल होने की सिर्फ कामना भर कर सकता है ..हकीकत में भूत और भविष्य दोनों ही उसके लिए बेकार है .....इक का कोई अर्थ नहीं दुसरे का कोई हल नहीं ?

अब कोई भक्त बहुत ही अधिक परेशानी वाला या पीछे पड़ने वाला होता तो उसे फ्री सैंपल यानी थोड़ा बहुत बता कर उसकी इच्छापूर्ति कर देते ...इसके बाद भी वह अगर पीछे पड़ जाता तो उसे बाबा के साथ इक एग्रीमेंट साइन करना होता जिसमे उसे अपने ऊपर आने वाली किसी भी विपदा , खर्च और साइड इफेक्ट्स का जिम्मा लेने होता। तभी बाबा उसे आगे का मार्गदर्शन देते ....

बाबा के धंधे के लिए आधुनिक मार्किट का ही कांसेप्ट लागू होता था जिसमे कस्टमर को भगवान का दर्जा दिया जाता था..... यंहा भक्त को कोई गिरा पड़ा जजमान ना समझ बाबा उसपे अपने ज्ञान और झूठे अभिमान का रौब ना गांठते ..... बल्कि उसे सम्मान के साथ बाबा उसे अपने सामने वाली कुर्सी पे बिठाते थे   … ..

पर भक्तो को अभी भी पुराने ज़माने के बाबाओ की आदत थी तो वह आते ही बाबा त्रिकलदर्शी के पैरो में गिरकर कस्टमर और सेलर  रिलेशनशिप का मजाक बना देते। .....

बाबा ने जजमान को सामने बैठाया और पुछा की आप कॉन्ट्रैक्ट में है या वाक इन कस्टमर या जस्ट विजिटिंग है। … भक्त बोला बाबा कैसा मजाक करते होअरे आप तो त्रिकालदर्शी हो। मैं भला आपको क्या दूंगा?..... बस मुझे  इस मुसीबत से निकाल दो   और ऐसा कह फिर से बाबा के पैरो में गिर पड़ा। ....

अब बाबा का भी नियम था की ऐसे इमरजेंसी वाले केस को भी अपॉइंटमेंट वालो से पहले देख लेते  भले ही ऐसे लोगो से कुछ मिलता तो नहीं था। … पर धंधे में  गुड़वत्ता के साथ साथ १०० प्रतिशत कस्टमर सैटिस्फैक्शन का भी ध्यान रखना होता था...

भक्त बोला महाराज बड़े बुरे दिन चल रहे है घर में आपदा गई है लड़का परीक्षा में अच्छे अंक नहीं लाया। पिताजी बीमार है। .... मेरा प्रमोशन नहीं हुआ और बीवी की तबियत भी ठीक नहीं है... अब इतनी सारी विपदायें मुझे बदनसीब पे गिरी बताओ मै क्या करूँ ? मुझे तो कुछ समझ नहीं आता?

बाबा ने उसकी परेशानी सुनी तो मन ही मन अपना माथा पीट लिया। अब यह तो दैनिक जीवन की आम समस्य थी उसमे भला कोई क्या कर सकता है  इसे तो आप को खुद झेलनी होती है और ऐसा भी नहीं की यह समस्याएं अचानक से सर पे गिरी थी। … सब धीरे धीरे अपना रूप ले रही थी और भक्त काफी समय से उनसे मुह मोड बैठे था अब जब पानी सर के ऊपर गुजर गया तो हाय हाय करने लगा था....

 बाबा ने उसकी बाते ध्यान से सुनी और सोचा ऐसे लोगो को सबक सीखना जरुरी है... जो  जीवन की आम समस्या को सुलझाने के बजाय उसका शॉर्टकट ढूंढ़ना चाहते है। बाबा ने कहा कल अपने पुरे परिवार को साथ लाना तभी कोई उपाय बताया जा  सकता  है और ऐसा कह बाबा त्रिकालदर्शी दूसरे कस्टमर यानी भक्त की तरफ अपना चेहरा घुमा लिया
 ....

भक्त अभी तक कुछ समझ पाता की बाबा की सेविका ने उसे अगले दिन १० बजे का अपॉइंटमेंट दे दिया और साथ में इक निर्देश की बाबा समय के बड़े पाबंद है अगर जरा भी लेट हुए तो उसका अपोइंटमवंत कैंसिल हो जायेगा....

भक्त यानी टेम्पररी ग्राहक अपना सा मुह लेकर रह गया उसने सोचा था बाबा उसे कुछ जादूयी ताबीज या कुछ ऐसा उपाय बता देंगे की ... किसी देवी देवता को यह चढ़ा देना या किसी को यह खिला देना ..पर यंहा तो ऐसा कुछ ना हुआ ...भक्त अपना मन मसोस कर अगले दिन आने का वादा कर वंहा से विदा हुआ ....

अगले दिन भक्त दिए हुए समय पे बाबा त्रिकालदर्शी के आधुनिक आश्रम में दाखिल हुआ और अपनी गुलाम मानसिकता के अधीन फिर से बाबा के पैरो में लोट गया ...बाबा त्रिकालदर्शी को बहुत गुस्सा आया और बोले .....

अरे मुर्ख जब तू अपनी समस्या का हल बताने वाले से आँखे मिला कर बात नहीं कर सकता ..फिर तू कैसे अपनी समस्याओ से आँखे मिलाएगा ..जब तू हर बात पे अपने को कमजोर और दीन दुखी बता कर झुक जाता है फिर ..इस समाज में कैसे सर उठाकर चलेगा? ...

भक्त को आधुनिक बाबा की बाते समझ ना आई ...वोह बोला बाबा कल्याण ...

बाबा त्रिकालदर्शी..समझ गए यह पक्का धीट , आलसी , कमजोर और मतलबी किस्म का इन्सान है ..उनोहने पुछा ..बता तेरा परिवार कहाँ ?भक्त अपने साथ अपना बुढा बाप , मोटी बीवी और बिगड़ा हुआ लड़का लाया था ....

शायद तीनो ..उसकी हराम की कमाई खा खा कर अपनी तंदुरुस्ती, संस्कृति ,आत्मसम्मान  गवां चुके थे ...

बाबा ने तीनो को देखा और बोला अरे यह कैसे आए ? भक्त बोला बाबा यह मेरे साथ गाडी में बैठ कर आए है ....गाडी को पार्किंग लॉट में पार्क करने के बाद हम सब पैदल चलकर आपके आसन तक आए ....

देखो ना मेरे पिताजी कितनी मुश्किल से यंहा तक आए , मेरा लड़का तो आना ही नहीं चाहता था उसे पकड़ कर लाना पड़ा और बीवी तो बेचारी गर्मी में खड़ी भी नहीं हो पा रही है ..उसे तो बिना गाडी के इक कदम भी चलने की आदत ही नहीं .....और मेने आज बहुत दिनों बाद आप से खासतौर से मिलने के लिए ऑफिस से छुट्टी ली है .....

बाबा बोले बेटा ....भक्त तुम्हारी सारी परेशानी आज ही ख़त्म हो जाएँगी ..बस तुम्हे इक छोटा सा काम करना है ...ऐसा करो अपने लड़के को लेकर कार तक जाओ और उसे वंहा से गोद में उठकर लाओ ..भक्त अजीब सा मुह बनाये रोता कलपता गया ...उसे समझ ना आया की बाबा आखिर क्या चाहते है ? भक्त जब लौटा तो बुरी तरह हांफ रहा था ....आते ही बोला बाबा यह अब बच्चा थोड़ी है जो इसे गोद में उठा लाता ..यह तो बड़ा हो गया है इसे उठा कर यंहा लाते लाते ,मेरी जान निकल गई ...

बाबा बोले बच्चा अभी तो तुम्हार काम शुरू हुआ है और तुम हाफ़ने लगे ...अब ऐसा करो अपने पिताजी को पीठ में उठा कर ले जाओ और कार तक छोड़ आओ ..फिर तुमसे बात करते है ....

भक्त थकान के मारे पहले ही मरा जा रहा था ..उसपे बाबा का यह कहना की बूढ़े बाप को कार तक छोड़ कर आना तो बहुत ही बड़ा काम था ..खेर अच्छे भविष्य की लालसा में वोह यह कठिन काम करने को राजी हो गया ...

भक्त किसी तरह गिरता पड़ता अपने पिता को पीठ पे लाद कार की तरफ रवाना हो गया ...उसके जाने के बाद बाबा त्रिकालदर्शी दुसरे लोगो की समस्या सुनने में जुट गए ...काफी समय बीत जाने के बाद ..वोह भक्त गिरता पड़ता बाबा के पास आया और बोला बाबा मैं थक कर चूर हो चूका हूँ अब मुझसे खड़ा भी हुआ नहीं जाता ...अब तो मेरी समस्या का हल बता दो ...

बाबा बोले अरे मुर्ख तू अपने पिता को कार में अकेला छोड़ आया और यंहा तू अपनी बीवी और बच्चे को भी अकेला छोड़ कर चला गया था ..अरे तू कितना निक्कमा है ..जा अपनी बीवी और बच्चे को भी उठा कर वापस कार तक छोड़ ताकि तेरे पिता अकेले ना रहे ...

बाबा त्रिकालदर्शी की बात सून भक्त के पैरो तले जमींन खिसका गई ....भक्त बोला बाबा मुझसे खुद का बोझा ढ़ोना अब मुश्किल है .. मुझे नहीं मालूम मैं गाडी तक कैसे जायूँगा ? ....फिर इन सबको उठा कर मैं कैसे ले जा सकता हूँ ?यह मुझसे ना हो सकेगा ..इन लोगो का बोझ ..अब मैं नहीं उठा सकता ..इन्हें खुद अपने पैरो पर चलकर ही कार तक जाना होगा ...

भक्त की बात सुन बाबाओ जोर से हँसे और बोले ...अरे मुर्ख यही तो तेरी समस्या का हल है ..तू दुसरे का बोझा अपने कंधे पे लादे लादे चल रहा है ..जब की तू खुद अपना बोझा ठीक से उठा नहीं पा रहा ...इसीलिए तू परेशान और उदास है ...

तुझे अपनी जरूरत और ख़ुशी से ज्यादा दुसरो की जरूरत पूरी करने का भूत चढ़ा है ..जबकी तू जानता है ..की तू इस संसार में हमेशा हमेशा के लिए नहीं है ..फिर भी सबका बोझा अपने कंधे पे लादे लादे फिर रहा है ..बस यह बोझ तू उतार दे ..सिर्फ अपने बोझ के बारे में सोच और दुसरो को उनका बोझ खुद ढ़ोने दे ...

तेरा लड़का अगर नहीं पढता तो उसकी सजा वोह खुद भुक्तेगा ...तेरे चिंता करने से वोह पढने तो नहीं लगेगा ....तेरी बीवी जब कोई कामकाज ही नहीं करती उसका आलस उसे बीमार रखेगा ....ऐसे में तेरे भाग दौड़ करने से वोह ठीक तो नहीं हो सकती ...  तेरे पिताजी अब बूढ़े हो गए है तो इक दिन उन्हें यह संसार छोडना ही है ....वोह हमेशा तेरे साथ नहीं रह सकते ?......  फिर उनके लिए तू क्यों परेशान घूम रहा है ?...तू उन्हें इक बार ज्यादा से ज्यादा दो बार ढो लेगा ..पर सारी उम्र का बोझ तू किसी का नहीं उठा सकता ....

तेरी परेशानी यह है ..की तुझसे अपना बोझा ठीक से संभलता नहीं और तू दुसरे का बोझ उठाने चल पड़ा ..यही तेरी समस्या का हल है ..जो अपनी नहीं दुसरो के लिए परेशान घूम रहा है ....उन्हें उनका बोझा खुद ढ़ोने दे ..अब वोह बच्चे नहीं है ..जिन्हें तू गोद में उठाकर घुमा सके .....

अधिकतर लोगो की यही समस्या है ..वोह अपने आपको खुश रखने के बजाय दुनिया को खुश रखना चाहते है ..जिसमे वोह खुद भी और दुसरो को भी दुखी करते जाते है ....ना तो वोह खुश रहते है ना ही दुसरे ....

ऐसा कह बाबा त्रिकालदर्शी ने अपना आसन छोड़ कर घर की तरफ चल दिए ....

भक्त कुछ असमंज में पड़ा बाबा त्रिकालदर्शी के पदों से उडती धुल को देखता रहा ...

By 

Kapil Kumar 



Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.

No comments:

Post a Comment