Thursday 12 November 2015

पूरब और पश्चिम !



आज ऑफिस में इस महीने का तीसरा  फेरवेल  जोर्ज का था ....जो पिछले 35 साल से हमारे आईटी डिपार्टमेंट में काम कर रहा था ....वह  अपना सामान समेट कर इस जगह को हमेशा हमेशा के  लिए अलविदा बोल कर निकलने की तैयारी कर रहा था .....

मैंने  और जोर्ज ने पहले एक  प्रोजेक्ट पर  साथ साथ काम किया था तो उससे मेरी जान पहचान थी , दूसरे  उसके कुछ रिश्तेदार एशिया से थे...इस नाते हम लोग अक्सर भारत और इसकी संस्कृति के बारे में बातचीत करते रहते थे ...हमारी बोल चाल प्रोफेशनल ना होकर कुछ व्यक्तिगत लेवल पर  भी थी .....

जोर्ज एक  हट्टा कट्टा 60 साल के करीब का एक  खुशमिज़ाज़ वाला शख्श था ..जो जिन्दगी अपनी शर्तों पर  जीता था .....जहां सब लोग ऑफिस कार से आते ...इस उम्र में भी वह मोटरसाइकिल से ऑफिस आता , रोज दो घंटे जिम में पसीना बहाता  ...उसके डोले तो अच्छे अच्छे नौजवानों को शर्मिंदा कर देते ....

मैंने  जोर्जे से पूछा ....अरे यार तू तो अच्छा खासा हट्टा कट्टा है ...फिर रिटायरमेंट क्यों ले रहा है (अमेरिका  में रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती ....जब तक आपकी हड्डियां आपको ऑफिस ला सकती है आप काम कर सकते है )....

मैंने  हँसते हुए पुछा ....क्या बहुत पैसा इकट्ठा हो गया है ?

वह हंसा और बोला...पैसा तो इतना नहीं है ,पर मैं जिन्दगी के कुछ साल अपने लड़के के साथ गुजारना चाहता हूँ ...

असल में जोर्ज का सबसे छोटा लड़का जो करीब 24 साल का है दिमागी रूप से कमजोर है ....उसका दिमाग अपनी उम्र के हिसाब से विकसित नहीं हो पाया ..इसलिए उसे हमेशा किसी ना किसी की बड़े की जरुरत रहती है ..... जोर्ज बोला तुझे तो पता ही है ..ऐसे बच्चो की उम्र 25/30 से ज्यादा नहीं होती ..तो अब  शरीर कुछ ठीक है तो क्यों ना उसके साथ थोडा समय बिताया जाए .....

उसकी यह बात सुन मैं सोच में पड गया की ....कैसे एक  बाप अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए अपने करियर का बलिदान कर रहा है ....मैंने  बचपन में श्रवण कुमार की कहानी तो सुनी थी ...पर यह पश्चिम सभ्यता में नए तरह का पिता कभी नहीं सुना था ...

जोर्ज की बात से मुझे बरांडा की याद हो आई ..जिसका फेरवेल  अभी कुछ दिनों पहले हुआ था ..उसने भी अपना रिटायरमेंट उस वक़्त ले लिया था ....जब उसको प्रोमोट किया गया था और उसकी भी उम्र कोई 60 साल से ज्यादा ना थी  ...अपनी फेरवेल  पार्टी में उसने बड़े गर्व से कहा था ....की उसने रिटायरमेंट इसलिए जल्दी ले लिया ..ताकि वह  अपना बचा हुआ वक़्त अपनी अकेली बूढी माँ के साथ गुज़ार  सके ....उसका पति भी उसकी इस काम में मदद करने को राज़ी  था ......

मैं तो सोचता था ...पश्चिम  में लोग शायद सिर्फ अपने बारे में ही सोचते है .....भारत में तो पश्चिम की यही छवि दिखाई जाती है ...की वहां लोग सिर्फ मतलबी और अपने लिए जीने वाले होते है ....

मैं सोच विचार कर ही रहा था की ....जोर्ज  बोला ..तू अभी तक गया नहीं ...क्या तेरा लेट रुकने का इरादा है?....

मैं बोला नहीं बस निकलने वाला ही हूँ ....वह  हंसा और बोला ....हां भाई तू लेट जाए तो भी ..तेरी वाइफ तो तेरा डिनर बना के तैयार रखेगी...तुम लोग तो घर में किंग हो .....वैसे भी भारतीय नारी तो ....पति को परमेश्वर मानती है .... तुम लोग घर का काम तो करते नहीं ..तुम्हारी पत्नियाँ ..तुम लोगों को दोनों वक़्त का खाना और नाश्ता बना कर देती है ...

अब तुम लोग हम जैसे तो नहीं जहां  मियां –बीवी दोनों मिल कर खाना बनाये हम लोगों  को तो उनके साथ किचन में पूरी मदद करनी पड़ती है ...और ऐसा कह उसने अपना चिर परिचित  ठहाका लगा दिया ....पर उसके हंसने  ने मुझे अपनी स्थिति का जायज़ा लेने को मजबूर कर दिया और मैं सोचने लगा ...क्या ऐसा है ..जोर्ज जो कह रहा है ....

क्या आज की भारतीय नारी ऐसी है ?

उसकी बात को सुन मेरा ध्यान घर की तरफ मुड़ गया की घर जाऊँगा तो क्या होगा? .....

घर पहुंचा तो ...बीवी तैयार बैठी थी ....मेरे घर में घुसते ही चिल्लाने लगी ...कम से कम आज के दिन तो समय पर  आजाते ..पता है ....आज करवा चौथ  है .और मुझे कितने काम है ..चलो बस अब कपड़े  बदलने का वक़्त नहीं है ....हम सब लोग संगीता के घर जा रहे है ...

सोचा था घर जाकर चाय पीकर खाना खाता अब यह कौन सा नया फ़साद  ....की करवा चौथ  भी दूसरे  के घर बने...पहले तो मुझे इन ढकोसलो से सख्त चिढ ..उसपे इन औरतों  के नए नवेले नखरे ....

ख़ैर  रोते कल्पते संगीता के घर पहुंचे ...सोचा ....वहां  कुछ खा पी लिया जाए .... उन लोगो ने कुछ और लोगो को भी घर पर बुलाया था ......

डाइनिंग टेबल पर बाजार से मंगाया हुआ खाना सजा था ....पर मज़ाल किसी की कोई उसे छू भी ले ...बच्चे खाने के लिए अलग मचल  रहे थे ....पूछना पर  पता चला जब तक औरतें  व्रत नहीं खालेंगी ...मर्दों को भी खाना नहीं मिलेगा ....यह कौन सा नियम था ....

मैंने  संगीता से पूछा ..अरे भाई हम लोगो को कहे भूखा मारती हो ...तुम लोगों  को जब खाना हो तब खा लेना ..मेरा इतना कहना था ...की सारी औरतें  मुझ पर टूट पड़ी और बोली ...

इन मर्दों की लम्बी उम्र के लिए हम व्रत रखें  और इनसे थोड़ी देर भूखा भी नहीं रहा जाता ?

अरे हमने तो नहीं कहा की तुम व्रत करो ..अरे तुम खुद भी खाओ और हमें भी खिलाओ ...पर मेरे अकेली की आवाज ..बाकी के  जोरुओ के गुलाम की आवाज में दब गई ....

एक  बोला  कपिल ....एक  दिन में क्या फ़र्क  पड़ेगा ...दूसरा बोला अरे मैंने भी व्रत  रखा है ...तीसरा बोला ..मैं तो बाहर  से खा चूका हूँ ...बीवी को पता ही नहीं ...चौथा  बोला ...अरे यह तो बीवी का प्यार है ..जितने मुंह उतनी बातें ...

मुझे समझ ना आया ..जब खाना बाहर  से कैटरिंग करवाया तो ...इन औरतो ने दिन भर क्या किया ?

अभी इसी बात को सोच रहा था ..की ...सारी औरतें आकर वहां  खड़ी हो गई और बोली ...हम लोगो को मंदिर लेकर जाओ ..हमें वहां  पूजा करनी है ....अब ऑफिस से थके मांदे आदमी को चाय पानी का ठिकाना नहीं ..यह नया फ़रमान  ...जारी हो गया

ख़ैर कारों  का काफिला औरतों  का फ़रमान पूरा करने के लिए मंदिर की तरफ निकल पड़ा ...मेरी कार में भी कुछ औरतें  बैठ गई ...रास्ते में उन औरतो की बातें  सुन मेरा भेजा चकरा गया ...

एक  बोली ....मैंने  तो रवि को पहले ही बोल दिया ....आज मेरी छुट्टी है इसलिए सुबह मैं देर  से उठूंगी ..बच्चो को खुद तैयार करे ....दूसरी बोली अरे मैंने  तो सुबह पहले अच्छे से खा पी लिया ..वरना पूरे  दिन कौन भूखा रहता ..अब जब खाना कैटरिंग होना ही ..तो काहे मेहनत करे ....वैसे भी हम लोग तो बाहर  की बनी रोटी और सब्जी ले आते है ..मुझसे यह खाना वाना नहीं बनता ...

फिर एक  बोली अरे ...तुम लगो ने आज क्या ख़रीदा? ...बस उसका यह बोलना था ...सब जैसे चिल्लाने लगी ..अरे मैंने  तो नया सेट लिया ..दूसरी बोली ..मैं तो हर साल नयी ड्रेस लेती हूँ ...एक  बोली अरे ...मेरा तो पूरा दिन आज मेकअप में ही लग गया ...

फिर एक  बोली ..इन साले आदमियों के लिए हम कितना मरते है और यही लोग ..हमारी कद्र नहीं करते ....और फिर दो चार गाली देती हुई बोली “ मेल चौविनिस्ट पिग “ ...साले मर्द औरतों  को अपनी गुलाम समझते है ....इसलिए मैंने  तो रमेश को बोल दिया ...की तेरा भी आज मेरे साथ फ़ास्ट रहेगा और तू ऑफिस भी जायेगा ....एक  बोली मैंने  तो कुछ बनाया ही नहीं ..तो कोई खाता कहाँ  से ....आज सुबह से ही किचन बंद है ....बस बच्चो को दूध और ब्रेड दे दिया .....

उनकी बाते सुन मुझे समझ ना रहा था  ...की उन्हें किसने कहा था की तुम व्रत  रखो ....जब  तुम्हारे मन में कोई इज्जत और प्रेम नहीं ..फिर यह ढकोसला करने की क्या जरुरत है ..मैं अभी ऐसा सोच ही रहा था की ..मुझे उसका भी जवाब जल्दी से मिल गया ....

एक  बोली यार ..यह फेस्टिवल बढ़िया है ..इस बहाने हम लोगो का मिलना जुलना हो जाता है..इसी बहाने फुल मेकअप और शौपिंग भी हो जाती है ...मैंने  तो आज पूरा मैनीक्योर , पेडीक्योर ..सब करवाया ....वरना कहीं  जाओ तो बहाने बनाने पड़ते ..अब यह लोग हमसे डर के रहेंगे की हम उन लोगो और उनके बच्चों के  लिए कितना बड़ा काम कर रही है ...विदेश में रहकर भी देश की सभ्यता और संस्कृति को संभाले है .....

उन औरतों  के साथ अपनी बीवी की दबी जुबान में बातें  सुन मेरे सर चकरा रहा था ...की यह है आज की भारतीय नारी ...पर मुझे क्या पता था ..अभी असली भारतीय नारी का रूप तो देखना बाकी था ...

सारी औरतें  अपनी नयी नयी साड़ियो के पल्लू संभाले मंदिर में चली गई ..और हम कुछ लोग बाहर  रह गए उनके ड्राईवर की तरह  ...अभी कार में बैठ ही था की ...एक  औरत जो नयी नवेली दुलहन थी ..उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी ....

वह फोन पर अपने नए नए शौहर  को हड़का रही थी ...की तुमसे जब मैंने  बोला दिया था सीधे मंदिर ६ बजे पहुँच जाना तो ..तुम्हारी लेट आने की हिम्मत कैसे हुई ....आज घर चलकर देखना ...बेचारा लड़का सर झुकाए ...उसे मनाने में लगा था और वह  चंडी बनी उसका वध करने में तुली हुई थी...

ख़ैर  इन सब भातीय सभ्यता की  कर्णधारनियो को मैं वापस घर ले आया ...सब मर्द भूख प्यास से बेहाल थे ..पर मजाल की कोई कुछ बोल दे ...मर्द तो किसी तरह अपनी भूख दबाये बैठे थे ....पर बेचारे बच्चे ..उन्हें देख तरस आ रहा था ...

पर इन शेरनियो के मुंह से निवाला कौन छीन का लाये ...यह तो चूहे का बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा दुःसाहस था ...

इंतजार करते करते ...वह  वक़्त भी आगे ..जब चाँद निकल आया ....सबने अपनी नयी नयी साडी में अलग अलग अंदाज में खड़े हो कर मॉडल की भांति अपने अपने पतियों से फोटोग्राफी करवाई ...बेचारे सब इस उलझन में लगे रहे ...चलो घर के अन्दर चलकर खाना तो मिले ....

औरतों  ने सबसे पहले खाना अपनी अपनी थालियों में लगाया और बोली पहले हम खा ले ..हम लोग सुबह से भूखे है ....फिर अपने अपने पतियों से बोली ...पहले बच्चो को खिला दो ...फिर तुम लोग खाना ...

उनकी इन हरकतों पर मेरा गुस्सा उबाल खा रहा था ...पर लगता था ..किसी और को कोई फर्क ही नहीं पड रहा था ...वह  सब तो लगता था जैसे मानकर बैठ गए थे ...की उनका अस्तित्व जैसे है ही नहीं .....मेरी भूख तो जैसे मर चुकी थी और बार बार यही सोच रहा था ....क्या आज की भारतीय नारी के लिए तीज़ -त्यौहार  का मतलब अपनी शौपिंग , मेकअप और फन बनकर रह गया है...

आज इन भारतीय सभ्यता की देवियों के घर चूल्हा ना जला था (वैसे भी यह लोग किचन भूले भटके से ही जाती थी ) ....बच्चो ने जंक फ़ूड तो कुछ के पतियों ने बाहर  के खाने से काम चलाया था .....जिनके घर कोई बुजुर्ग था ....वह भी इनके साथ व्रत रखने को मजबूर था ....

यह कैसा व्रत था ....जिसमें  सबको भूखा रहना था ?.....

क्या आज के आधुनिक भारतीय समाज में सभ्यता का मूल्यांकन बदल चूका है ....क्या पूरब की आधुनिक सभ्यता और संस्कृति पश्चिम से बेहतर है ?

By 

Kapil Kumar 


Note:- “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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