Tuesday 10 November 2015

अहम् का टकराव !!






वक़्त किसी पे मेहरबान हो जाए तो गधा भी पहलवान हो जाता है और बिगड़ जाए तो इन्सान अर्श से फर्श पर आजाता है ..देखने की बात है ..जो नाव अक्सर पानी के अंदर होती है पर जब पानी नाव के अंदर होता है  ...तब क्या होता है ?....

ठाकुर रामशरण दुबे इक बड़ी कंपनी में इक अच्छे ओहदे पे मुलाजिम थे ...होने को तो रामशरण जात के पंडित थे...पर अपने नाम के आगे ठाकुर लगाना अपनी शान समझते थे ....जब भी अपना परिचय देते तो... ठाकुर के बिना जैसे उन्हें अपना नाम पुकारा जाना अधुरा सा लगता .... नाम में ठाकुर जन्म से पंडित और कर्म  से किसी कम्पनी में इक कर्मचारी ...यह तीनो चीजे जैसे उनके व्यक्तित्व से आधी अधूरी मेल खाती थी.... नौकरी में अपने मुलाजिमो पे झूठी ठाकुरी अकड़ और ज्ञान बाँटने में अपनी जातिय अभिमान दिखाना...पर अपने सुपीरियर के आगे दुम हिलाना जैसे  उनके स्वाभाव के अंग थे .....

ठाकुर रामशरण नौकरी में दिन भर अपने साहब लोगो की जी जान से जी हजुरी करते ....पर घर में अकड पूरी इस तरह रखते जैसे अभी भी कंही के जमींदार हो और घर के सब लोग उनके कारिंदे है .....पान , सिगरेट , गुटका और दारु ...जो भी ठाकुरों के शाही शौक होते ..उन्हें रामशरण पूरी शिद्दत से पूरा करते ....

शायद यह उनके राज्य की परम्परा थी ...की ...घर की जोरू को पैर की जूती ,लड़कीयों को बोझ और लड़के को घर का चिराग समझना जैसे सदियों पुराने फलसफे... उन जैसे लोगो द्वारा ना जाने कितने घरो में आज के ज़माने में भी बादस्तूर निभाए जा रहे है...

शायद यह उनके और पुरखो के कर्मो का अभिशाप था या रामशरण की बदनसीबी ...की .उनके घर पहला कदम लक्ष्मी ने रखा ....लड़की होने की खबर भर से ही उनकी आधी हेकड़ी ढीली हो गई ...

ठाकुर का चेहरा लड़की का बाप होने का दर्द खुद बे खुद बयां कर रहा था ...की लड़की होने की  चोट ने रामशरण को ठाकुर से ऐसा ग़मगीन पंडित बना दिया जिसेका दानवीर सेठ स्वर्गवासी हो गया हो .....

कालांतर में रामशरण की लड़की का नाम मीना रखा गया .. कहते है की खुदा के घर देर है अंधेर नहीं वाली कहावत चरितार्थ हुई और कुछ साल बाद रामशरण के यंहा इक लड़के ने जन्म लिया .....

लड़के के होने की खबर ने जैसे ठाकुर की मूंछो को इक नया उठान दे दिया....जो मूंछे कल तक लड़की का बाप होने के दर्द से झुकी थी ...अब लड़के का बाप होने के गर्व से फिर से ताव खाकर कडकने लगी ...अब पंडित रामशरण ..ठाकुर रामशरण वाली पदवी वापस पा चुके थे ...

पर रामशरण की किस्मत इतनी अच्छी ना थी ...जंहा लड़की इक तेज दिमाग और चंचल स्वाभाव की थी ..वन्ही लड़का ..... मंद्बुधि का ढीला ढाला सा इक कमजोर बच्चा था ....

देखते ही देखते मीना जवान होने लगी ...जैसे जैसे उसकी जवानी के पैर उम्र की सीढियों पे चढ़ते वैसे ही रामशरण की रातो की नींद और दिन का चैन उड़ने लगा ....

इक तरफ़ मीना दिमाग से तेज थी और स्वाभाव में भी आधुनिक नारी का तीखापन लिए थी ..जन्हा उसकी हम उम्र की लड़कियां हाई स्कूल में आर्ट साइड लेकर चौके चूल्हे को समझने में लगी थी ..वन्ही मीना ने विज्ञान को अपनाया और डॉक्टर बनने का सपना देखने लगी .... उसे जब भी मौका मिलता वोह कॉलोनी  के गंदे तालाब से मेंढक पकड  उन्हें काट पीट कर अपनी ज्ञान गंगा के पानी को चमकाने में लग जाती ...

उसकी यह हिमाकत कॉलोनी  की लडकियों के साथ साथ लडको में भी इक डर और सिरहरन पैदा कर देती ...कोई भी मीना के सामने ऊँची आवाज में बात करने की हिमाकत ना कर पाता.. जन्हा कालोनी की बाकी लड़कियां लडको को देख नजरे झुका लेती ..वन्ही मीना को देख लड़के अपना रास्ता बदल देते ...

यूँ तो मीना के सब दोस्त थे चाहे वोह लड़का हो या लड़की ..उसे किसी बात का फर्क नहीं पड़ता ...की उसके साथ स्कूटर या मोटर बाइक पे लड़का बैठा या फिर लड़की ....उसे जब भी मौका मिलता रामशरण का स्कूटर ले कॉलोनी में घुमने निकल पड़ती ...उधर रामशरण उसकी इस हिमाकत पे आग्बगुला होते रहते पर सिवाय चीखने चिल्लाने और मीना को कोसने के कुछ ना कर पाते ......

उन्हें मीना की यह हिमाकत तो फिर भी हजम हो जाती ..पर जब किसी लड़के को मीना के साथ स्कूटर पे बैठा देख लेटे ... उनकी त्योरी जैसे टेढ़ी हो जाती ....पर मीना पर उनकी डाट डपट का कोई असर ना होता ...वोह इस कान सुनती उस कान निकाल देती ...अब रामशरण पे अपना गुस्सा मीना की माँ पे निकाल कर ही ठंडा होता ...

इक दिन रामशरण ने मीना को किसी लड़के के साथ स्कूटर पे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठे देख लिया ..बस फिर क्या था ..उन्होए घर को आसमान पे उठा लिया ..की मीना की शादी जल्दी से जल्दी कर दी जायेगी ...मीना खूब रोई , गाई कई तरह के ड्रामे किये ..पर रामशरण भी पुरे जिद्दी थे ...उन्होंने मीना की इक ना सुनी .. की उसकी पढाई बर्बाद हो जायेगी या वोह अभी सिर्फ १९ साल की है ..या कुछ और ...पर आनन फान में उसके लिए लड़का ढूंडा जाने लगा..

अंदर से गुस्से में उबल रहे रामशरण ने मीना को सबक सिखाने के लिए उसके लिए इक ऐसा वर चुना जो ...निहायत ही सीधा सादा किस्म का जीव हो ...उन्हें अंदर ही अंदर मीना के उद्दंड और निडर स्वभाव से इक इर्ष्या थी और साथ में इक अनजाना सा डर ..की अगर उस जैसी कुछ और लड़कियां समाज में हो गई तो ..इस समाज में मर्दों की हुकूमत का क्या होगा? इसलिए मीना जैसी उडती चिड़िया के पर कतरने जरुरी थे ...ताकि औरो को भी उससे सबक मिल सके ....की....

आज भी मर्द ही समाज का असली कर्ताधर्ता और नीति निर्माता है .....

मीना खूब रोई , गाई तरह तरह के आडम्बर रचे ..पर उसकी इक ना चली ..वैसे भी उसकी माँ रामशरण के आगे इक भीगी बिल्ली से ज्यादा औकात ना रखती थी ...ऐसे में वोह मीना की कुछ मदद कर पाती ..ऐसा सोचना भी उसके लिए ...किसी हिमाकत से कम ना था ....

शायद हमारे समाज की ..कुछ दबी कुचली औरते ..अपने घुघंट से निकल ..इस दुनिया की असली सच्चाई से रूबरू हो सकती ....की दुनिया में ..मर्द के बिना और भी जंहा है .....

पर भारतीय समाज में सबसे स्वार्थी कोई है ..तो वोह है औरत ...जो सिर्फ अपने बारे में सोचती है ..अगर उसका मर्द नहीं तो ..उसका क्या होगा ? उसका गुजर बसर कैसे चलेगा ? ...

बस इसी स्वार्थ के कारण ..वोह खुद का भी शोषण करवाती है और साथ साथ दुसरो का भी .....

मीना के सारे सपने उसकी शादी के हवन कुंड में स्वाहा हो गए ....की कैसे सपने संजोये थे ...की बड़े होकर यह बनुगी ..वोह करुँगी ..पर इक कमजोर माँ और घमंडी बाप ने ..उसे इक ऐसे अनजान सफर पे भेज दिया , जंहा से सिर्फ गुलामी की मंजिल ही पाई जा सकती थी .....

शादी क्या होती है ..पति किसे कहते है और अपना पराया क्या होता है ..जैसे संस्कार उसे ना तो पता थे ..ना कभी उसने उन्हें जाने और समझने की कभी कोशिस की थी ......

शायद ऊपर वाला इतना बेहराम ना था ...मीना की शादी जिस से हुई थी ..वोह नौकरी के सिलसले में अपने गावं से दूर इक अनजान शहर में चला आया ...बस उसका अपने घर से निकलना था ...की मीना को भी अपनी ससुराल से दूर निकलने का मौका मिल गया ....अब सिर्फ मीना और उसका पति ही उसका घर परिवार थे ..

कुछ दिनों में मीना ने अपने पति श्याम बाबु को अपनी मुठी में कर लिया ...मीना कहती दिन तो वोह दिन कहता ....दिमाग की तेज मीना ने जल्दी ही श्याम बाबू को व्यक्तित्व को अच्छी तरह समझ लिया ..श्याम ..निहायत ही नेक और आलसी किस्म का जीव था ..जिसका आज की तेज रफ़्तार वाली जिन्दगी में कोई सामंजस्य ना था .....

होने को तो श्याम बाबु अच्छे खासे पढ़े लिखे थे ..पर उनका हाथ किसी भी विषय पे पक्का ना था ..उन्हें अपने विषय की जानकारी आधी अधूरी सी रहती ..उसपे ..उनका लापरवाही वाला अंदाज उन्हें दुनिया की दौड़ में आगे ना बढ़ने देता ....

पर मीना की शागिर्दी में श्याम बाबू जल्दी ही दुनिया के रंग में ढल गए ..और देखते ही देखते कल के भोले श्याम बाबु S.K दुबे कहलाने लगे ....

मीना की मेहनत , कोशिश  और तेज दिमाग ने अपना रंग दिखाया और ...श्याम बाबु जो ..कल तक छोटी मोटी नौकरी के लिए दर दर भटकते थे ..अचानक इक विदेशी कंपनी के मुलाजिम हो गए .... मीना ने भी मौके  की नजाकत समझ अपनी छुटी पढाई को पूरा करने के लिए पार्ट टाइम कोर्स में एडमिशन ले लिया .....

इक तरफ मीना आदर्श पत्नी का कर्तव्य निभाती , दूसरी तरफ इक अच्छी माँ के दायित्व को भी पुरु शिद्दत से करती ...देखते ही देखते मीना दो बच्चो की माँ बन गई ...दो बच्चो हिने के वावजूद भी उसने अपनी शिक्षा और श्याम बाबू के भविष्य में कोई कोताही नहीं बरती ....

कुछ हालत की मार और कुछ वक़्त की जरूरत ऐसी हुई ..की श्याम बाबू की कम्पनी को ..कुछ लोगो को विदेश किसी प्रोजेक्ट पे भजना पड़ा ...उन लोगो में श्याम बाबु का नाम भी था ...अजब किस्मत का गजब खेल था ....जन्हा कुछ साल पहले श्याम बाबु इक अदनी सी नौकरी के लिए तरसते थे ...अब इक एक्सपर्ट की हैसियत से विदेश में प्रोजेक्ट करने जा रहे थे ....

असल में श्याम बाबू की सफलता में मीना के होसले , परिश्रम और हुनर का इक बड़ा बलिदान छिपा था ..जिसे दोनों पति पत्नी भली भांति जानते और समझते थे ...इसलिए श्याम बाबु अपनी मित्र मण्डली का दिया हुआ नए ज़माने के जोरू का गुलाम का तमगा बड़ी आन , बान और शान से पहन कर घूमते ...

श्याम बाबू इक बार इंडिया से बहार क्या निकले ..फिर हमेशा के लिए विदेशी हो कर रह गए ..धीरे धीरे मेहनत , लग्न और मीना के मार्गदर्शन में श्याम बाबू ..विदेशी नागरिकता पाकर वन्ही के रंग में रच बस गए .....अब यह बीते दिनों की बात थी ..की श्याम बाबू कभी भोले भंडारी हुआ करते थे ...

मीना ने भी विदेश में उपलब्ध शिक्षा के मौके का फायदा उठाया और अपनी पढाई को जारी रखा और देखते ही देखते उसने भी इक दो डिग्री हासिल कर ली ....फिर इक अच्छी सी नौकरी पा वोह भी श्याम बाबु के बराबर कंधे से कन्धा मिला कर घर ग्रस्थी की गाडी खींचने लगी .... श्याम और मीना की घर घरस्थी सरपट घोड़े की माफिक दौड़ रही थी .......

कहते है ..की अपराध करने के बाद अपराधी अपने अपराध स्थल पे इक बार मुआयना करने जरुर जाती है ..वैसे ही इक दुबला कुचला इन्सान जीवन में कुछ बन जाने के बाद उन लोगो के सामने अपनी इज्जत की नुमाइश करने जरुर जाना चाहता है ..जिनके सामने उसने जिल्लत और शर्म उठाई होती है .....

वक़्त की गाडी अपनी पटरी पे दौड़ रही थी ... वैसे तो मीना दो तीन साल में इंडिया अपने मायके में हो आती थी ....पर बाप बेटी में बात चित ना के बराबर होती थी ....पर मीना के ठाट बाट और खर्च करने की हैसियत उसकी सफलता की कहानी खुद बयाँ कर देती थी ....अब रामशरण दुबे भी मान चुके थे की ..मीना बहुत ही समझदार और प्रतिभा वाली लड़की है ..पर उन्हें यह कदापि अंदाजा ना था ...की जिस मीना को उन्होंने ..यूँही ब्याह दिया था ..वोह विदेश में इक बहुत बड़ी अफसर भी है ..शायद ..मीना ने कभी कहा नहीं या रामशरण ने पुछा नहीं ....शायद बाप बेटी ..अभी भी कोल्ड वॉर में चल रहे थे ..जन्हा उनके बीच वार्तालाप का जरिया मीना की बेबस , कमजोर माँ थी ...जिसके लिए उसकी पति ही उसकी दुनिया था ...

मीना और श्याम ने विदेश में इक बहुत बड़ा घर ख़रीदा ....उसके लिए उन्होंने विदेश में उनके आसपास रहने वाले अपने सब दोस्तों सगे संबंधी और रिश्तेदारों को निमन्त्रण भेजा ... मीना ने इसे इक अच्छा अवसर समझ अपनी माँ और रामशरण दुबे को भी विदेश आने का न्योता भेजा ..ताकि इसी बहाने वोह उन्हें विदेश यात्रा के साथ अपने ठाट बात भी दिखा सके ....मीना की माँ ने खर्चे से बचने के लिए हजार बहाने बनाये ....की वोह बेटी के घर का कैसे खा पी सकती है ? ..आज भी वोह लोग बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते आदि आदि ...पर मीना भी अपनी जिद्द पे अड़ी रही और उसने बहुत जोर देकर उन्हें आने के लिए कहा ....की ..वोह उनका टिकेट बनवा कर भेज रही है ....अब ..

मुफ्त की विदेश यात्रा के रंगीन सपनो में मीना के परिवार के भारतीय संस्कृति और सभ्यता के आदर्श अचानक गिरगिट की तरह रंग बदल कर कंही धूमिल हो गये ....

पहले तो ठाकुर रामशरण दुबे के अहम को चोट लगी ...की बाप होकर बेटी के घर कैसे जाए और रहे ...फिर आने जाने का किराया देखा तो बची कुची हेकड़ी ....झूटे अभिमान में बदल गई ..की वोह बहुत बीजी है ..उनपे ...विदेश जाने के लिए समय ही नहीं है ....

पर जब मीना की माँ ने बताया की मीना ने दो टिकेट भिजवा दिए है ..तो विदेश घुमने का लालच उनके अभिमान पे हावी हो गया और ठाकुर रामशरण दुबे ...पंडित दुबे बन जजमान के चढ़ावे का आनन्द लेते हुए हवाई यात्रा से मीना के देश पहुँच गए ...

यूँ तो रामशरण पहले भी विदेश यात्रा अपनी कंपनी के खर्चे पे कर चुके थे ...पर उसमे उन्हें वोह आजादी ना मिली थी ...कंपनी ने बहुत ही कम पैसे दिए थे ..अब उसमे इक आम मध्यम वर्गीय आदमी क्या तो घूम ले और क्या उसमे बचा ले .....अब रामशरण अपनी पुरानी हसरत को मिटाना चाहते थे ..पर मीना को यह जतलना भी चाहते थे ...की उन्हें विदेश घुमने का कोई ज्यादा शौक नहीं है ...

एअरपोर्ट पे अपनी झूठी अकड और शान बघारते हुए रामशरण मीना और श्याम से मिले ...की उन्हें तो हिंदुस्तान में बहुत काम थे ..वोह तो बस बच्चो का दिल रखने ..उनके कहने से यंहा आए है ...पर अंदर ही अंदर उनका दिल बल्छियाँ मार रहा था ..की इस बार जी भरकर गोरी चमड़ी को ताकेंगे और विदेश की स्वच्छ और ताज़ी हवा का आनंद लेंगे ...

सामान गाडी में चढ़ा और रामशरण दुबे मस्त हाथी की माफिक लपक आगे की सीट पे विराजमान होगये ...विदेश की गर्मी में भी अलग ठंडक थी ..चोडी चोडी सडको पे तेज रफ़्तार से दौड़ती गाडी इक अलग ही सकूं देती थी ..कंहा अपने देश में गियर गियर बदल बदल कर आदमी past होजाता और यंहा ..खुली सडको पे गाडी हवा के माफिक दौड़ रही थी ....
की रामशरण ने जोश में अपनी जेब से इक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली और इक धुएं का गोला कार में उड़ा दिया ...

एयर कंडीशन कार में अचानक आए धुएं से मीना हडबडा गई ..यंहा तो कोई सिगरेट पीता नहीं था और जिसे पीनी होती वोह बहार किसी कोने में पीता ...उसने आव देखा ना ताव ...अपने अंदाज में बोल पड़ी ...अरे पापा यह सिगरेट बंद करो ....

मीना के शब्द रामशरण के कानो में हथोड़े की तरह बजे ...जो लड़की कल तक नजरे उठा कर बात करने में संकोच करती थी ...आज वोह उन्हें आदेश दे रही थी ...रामशरण ने मीना की बात पे तवज्जो ना दी और बोले अरे मैं वंहा भी ऐसे ही पीता था .... इसपे मीना ने उन्हें समझा दिया की यह इंडिया नहीं है और सही गलत का इक लम्बा सा भाषण दे दिया ....

शायद यह मीना के मन में वर्षो से दबी चिंगारी थी ...जो किसी हवा के झोके का इन्तजार कर रही थी ..की कब उसे हवा मिले और कब शोला भड़के ...

बस इक बार यह सिलसिला शुरू हुआ की ..बाप बेटी में तकरार बढती ही गई ...रामशरण भी अपने प्रदेश की आदत से मजबूर थे ..जन्हा देखते मसाला थूक देते और जन्हा बैठते वन्ही बीडी या सिगरेट सुलगा लेते..अब यह उनकी आदत थी या वोह मीना को जलाने के लिए ऐसा करते ..इसका जवाब तो खुदा ही दे सकता था ....

रामशरण का विदेश घुमने का सपना अब दुस्वप्न में बदल चूका था ...ना तो घर में सिगरेट पी पाते और ना ही सडक पे थूक पाते ...उन्हें आदत थी की सुबह सुबह टॉयलेट में जब तक इक दो बीडी ना फूंक लेते उनका पेट हल्का ना होता ..यंहा पे पहले दिन ही मीना ने पाबन्दी लगा दी ..की घर में किसी भी तरह का धुआ नहीं होगा ..वरना पुरे घर में धुएं की बदबू बैठ जायेगी घर अभी अभी ख़रीदा है ..उसकी पार्टी में कई लोग आयंगे तो ..वोह क्या कहेंगे आदि आदि .......
अब यह मीना की हठ थी की वोह रामशरण पे अपने घर के कायदे कानून उसी तरह लागू कर रही थी ..जिस तरह बचपन में रामशरण उसपे लिया करते थे ..या रामशरण की हठ ..की वोह समझना ही नहीं चाहते थे ..की हर देश और जगह में कुछ नियम , कायदे और कानून भी होते है या वोह मीना को अभी तक कल की नादान छोकरी समझ रहे थे ..जिसे उन्होंने जानबूझ कर इक लल्लू के पल्ले बांधा था ...

मीना थी की वोह अपने  बचपन के कायदे कानून का पूरा बदला रामशरण से लेना चाहती थी और रामशरण थे ..की वोह हमेशा यह जतलाते की ..वोह उसके बाप है ..उन्हें कुछ भी और कंही भी करने की आजादी है ...दोनों की जंग में मीना का माँ और पति फंस गए ...की किसका साथ दे और किसका ना दे ...

जब बाप बेटी आपस में किसी समझोते पे ना पहुंचे तो ..मीना की माँ ने अपने दामाद श्याम बाबू से मिल गुपचुप अपना वापसी का टिकेट कटा लिया ...मीना को पता चला तो उसने उन्हें वापस जाने से नहीं रोका ..उसका अपना हठ पूरा हो चूका था ..की श्याम बाबू को यह जतलाना की उसने भी अपनी को हैसियत बना ली है ....अब वोह मीना नहीं रही ..जिसे रामशरण ने इक अबला समझ अपने घर से धकेल दिया था ....

रामशरण भी शायद अंदर ही अंदर अपनी हार कबूल कर चुके थे ..इसलिए बिना कोई हिल हुजत किये वोह वापस जाने के लिए अगले दिन एअरपोर्ट चल दिए  ...





By 

Kapil Kumar 



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