Sunday 15 November 2015

कहाँ गए वोह लोग?


ड्राईवर बड़ी मुस्तैदी से गाडी चला रहा था और मैं आँखे मूंदे मीठी मीठी झपकी  के मजे ले रहा था…..ड्राईवर बड़ी तल्लीनता से एयर कंडीशन गाड़ी के ड्राईवर होने का लुफ्त लेते हुए अपनी कोई रागनी धीमे धीमे गुन गुना रहा था मै कुछ  अलसाया सा गठरी बना गाड़ी की पीछे की सीट पे पड़ा  ऊँध  रहा था….

लोग गर्मी से बेहाल हो रहे थे....सुरज था की अपनी पूरी ताकत से बेदर्दी से धरती को जलाने में लगा हुआ था..…गाड़ी से बहार झांक कर देखा तो गर्मी से लोग बैचेन  और बदहवास से थे.... उनकी तड़प देख दिल को इक सकूँन मिला की मुझे कम से कम इन लोगो की तरह बहार गर्मी में सड़ना तो नहीं पड़ रहा… पर मुझे क्या पता था की मेरी ख़ुशी को थोड़ी ही देर में.... मेरा ही ग्रहण लगने वाला था....

मेने उंधे उंधे ड्राईवर से पुछा , हाँ तो भाई कितनी देर में डेल्ही पहुंचा दोगे?  ड्राईवर अपनी ही तान में बोला..... बस सर जी आध पौन घंटा और समझो.....
हम डेल्ही से कोई ३०/३५ किलोमीटर दूर है.... अभी अभी हमने दादरी क्रॉस किया है....गाजिअबाद  का बायपास लेनेगे…..फ़िर बस पहुंचे ही समझो....मेने इक हुंकार ली और फिर से उन्धने लगा ….

अचानक गाडी ने इक झटका लिया और गाड़ी के बोनट से धुवां निकलने लगा..... मेने हडबडाकर ड्राईवर से पुछा क्या हुआ? ड्राईवर बोल सर जी लगता है रेडियेटर में पानी ख़त्म  होगया है.....

ड्राईवर ने गाडी इक साइड में लगा दी और मैं गाड़ी से बहार निकल उसके गाडी ठीक करने का इंतजार करने लगा.....
ड्राईवर ने बोनट खोला की इक बड़े धुएं का गुब्बार तेजी से बहार निकला … मेने हडबडा ते हुए ड्राईवर से पुछा कितनी देर में गाडी ठीक हो जाएगी?.. .उसने बड़ी मायूसी से कहा सर जी पानी डालना पड़ेगा ...क्या आपके पास पानी है?...  मेरी बोतल तो खाली है ...मेने अपने बैग में देखा तो वंहा भी सिवाय खाली बोतलों के कुछ ना था ....मेने सारा पानी यह सोच के कुछ देर पहले निबटा दिया ..चलो बस देल्ही पहुचने वाले है ....अब किसे पता था यह मुसीबत गले पड़ जायेगी ?

मेने भी मायूसी में... अपने कंधे उचका दिए ...ड्राईवर बुझे से मन से बोला... सर जी, अब तो पानी लेंने जाना पड़ेगा.....यंहा  तो आस पास कोई गावं भी नहीं है.... कुछ  समय तो लग जाएगा.... मेने भी मरे दिल से कहा जा भाई, जो करना है जल्दी कर....

यह  गर्मी तो ...इस साल सड़ा देगी…उसने  अपना मुंह बिचकाया और इक पानी की खाली केनी ले पानी लेने निकल गया…

थोड़ी देर पहले तक मुझे ....बहार धुप में जलते लोगो से कोई हमदर्दी ना थी ...तब मैं अपने को, उनसे अलग और  ज्यादा काबिल समझ मंद मंद.. उनकी हालत पे मुस्कुरा रहा था ....पर झुलसती गर्मी ने शीध्र ही मेरे अन्दर विषाद और चिडचिडापन भरना शुरू कर दिया ....

गाडी से निकल मैं पास में किसी छावं की तलाश करने लगा......पर आस पास तो कमबख्त कोई पेड़ ना था.....नजर घुमाई तो इक टूटी फूटी ईमारत सी दिखाई दी... सोचा चलो उसी की शरण में जाकर इस झुलसती गर्मी से राहत ली जाए..... किसी तरह झुलसती गर्मी में गिरते पड़ते, उस टूटी हुई ईमारत के आंगन में जाकर शरण ली और इक टूटते छज्जे के निचे खड़ा होगया.....

आस पास नजर घुमा कर देखा तो इक गरीब बुजुर्ग आदमी वंहा जमींन पे ,गर्मी से बेखबर ड़ी तल्लीनता से लेटा हुआ मीठी नींद के सपने ले रहा था....

कंहा थोड़ी देर पहले मैं बहार लोगो को देख उनकी हालत पे तरस खा रहा था.....अब खुद अपनी हालत पे रोना आ रहा था.....मुझ जैसे लोगो को गरीबों की तरह खुले आसमान के नीचे गर्मी, सर्दी और बरसात झेलने की आदत तो थी नहीं.... हम जैसे लोग हमेशा एयर कंडीशन गाडी या बिल्डिंग में बंद रहते .....पर आज धरती पे इक आम आदमी की तरह उतरने में मुझे नानी याद आ गई! ….

खेर टाइम पास करने के इरादे से , मैं उससे गप्पे करने का बहाना खोजने लगा.. मेने अपने बैग से दो सेब निकाले और उसे आवाज देकर जगाते हुए बोला.....अरे बाबा कुछ खाने के लिए है, लोगे क्या ?  उसने बड़ी अलसाईं सी आँखों से मुझे घुरा  और बोला क़्या चाहिए बाबू ?

मैं बोल ...अरे बाबा...य़ह सेब खा लो ....उसने बड़े हैरानी वाले भाव से सेब लिया और उसे कुतरने लगा ..…
 फिर वोह मन ही मन बडबडाया....आजकल धर्म कर्म का ज़माना कंहा है?.....इक हमारा जमाना था.... ज़ब सेठ , जमींदार लोग सच्चे दिल से गरीब और जरूरतमंद की मदद किया करते थे...उसकी यह बात सुन मेरा चकराया यह क्या बोल रहा है ?

मेने पुछा... क्या कहा?... मुझे कुछ समझ नहीं आया ?... उसपे वोह बोला.... बाबूजी आजकल सब दिखावा है... कोई भी सच्चे जन कल्याण का काम ही नहीं होता ?

इसपे ...मैं बोला .... ऐसा तो नहीं है... लोग N G O  चलाते है  ..कितनी सारी समाजिक संस्था है ...जो दिन रात गरीबो , कमजोरो , पिछडो , बच्चो और औरतो के लिए दिन रात काम करती है ....

वोह हँसा .....उसने मेरी बात को अनसुना करते हुए कहा..... जन्हा आप खड़े है ...यंहा ...किसी ज़माने में लाला सुखी मल की  बहुत बड़ी धर्मशाला थी.... लोग बाग दूर दूर से आते और इक चवनी में रात भर टिक जाते .....लालाजी तो वो चवनी भी ना लेते थे ...पर उनके कारिंदे सफाई के नाम पे झटक लेते थे .....यंहा हमेशा आदमी और जिनावर को ठंडा पानी मुफ्त में पीने को मिलता....अब तो पानी का भी मोल लगे है ....

अब यह सब बाते तो.... बस यादे बनकर रह गई है....लालाजी के जमाने में तो गर्मियों में कभी कभी सत्तू भी मिल जाता था.... आजकल तो कोई किसी को मुफ्त में पानी भी ना पिलाये और ऐसा कह वोह सेब को कुतरने लगा , उसने जो बात यूँही कह दी थी ....वोह बात मुझे कंही अन्दर तक झिंझोर गई.....

मै देश की वर्तमान वयवस्था के बारे में  सोचने लगा..... जितना मैं सोचता..... मेरा सर उतना ज्यादा चकराने लगता.... और मुझे भी कुछ ऐसा याद आने लगा...... जो आजकल सपने जैसा ही है....

मेने जिस इंटर कॉलेज से पढाई की थी.....वोह भी किसी सेठ का बनवाया हुआ था......बल्कि सही मायने में तो मेरे शहर का हर इंटर कॉलेज किसी सेठ ,जमींदार या उसकी पत्नी या माता के नाम पर था......इन स्कूलो  में फीस नाममात्र की होती थी ...... शहर में, कुछ धनवानों के उनकी  माता या पत्नी के नाम से छोटे मोटे चिकित्सालय भी चलते थे... जन्हा शहर के बड़े बड़े डॉक्टर १/२ रूपये  की फीस में मरीजो का इलाज करते थे....

शहर के बड़े बाजार में हर मोड़ पर या किसी नुक्कड़ पे प्याऊ होती थी... जो लोगो को गर्मी में मुफ्त में पानी पिलाती थी..... शादी में लोग धर्मशाला में ठरते थे.... जो अधिकतर मुफ्त जैसी ही होती थी ...जिनमे लड़की के पिता से कोई भी पैसा नहीं लिया जाता था .....बस ...लड़के के पिता से थोडा बहुत पैसा लिया जाता था......

अब ऐसा क्यों नहीं दिखलाई पड़ता ? मेने जब अपने आसपास के माहौल पे नजर घुमानी शुरू की.....तो मुझे बड़ी हैरानी हुई की इतनी छोटी सी बात कितनी जल्दी हम भूल गए .....सच तो यह था की... जिन्दगी में भागते हुए हम कब इतने लालची और वय्वाहरिक हो गए की .....जन कल्याण शब्द का मतलब ही ख़त्म हो गया ?....

आज अगर ध्यान से सोचु तो कोई हॉस्पिटल या क्लिनिक नजर नहीं आता.... जंहा  किसी जरूरतमंद का इलाज मुफ्त या थोड़ी सी फीस  में होता हो...और तो और स्कूल और कॉलेज सिर्फ लुटने के लिए बने है .... अब तो लोग लूटने के लिए जैसे तैयार बैठे है .....

कोई प्याऊ जैसी चीज नजर नहीं आती.... जंहा कोई मुफ्त में पानी पिलाता हो और तो और धर्मशाल शब्द शायद किताबो और लतीफो में खो चूका है .... उनकी जगह बैंकुट हाल या मैरिज होम ने ले ली .....जो अपनी मुह मांगी रकम बटोरने के लिए कुख्यात है... यह बदलाव कब और कैसे हो गया? हमें शायद पता भी ना चला... हम दौड़ते रहे बिना जाने क्या क्या क्या पीछे छूट गया......

हमारे दादा परदादा कहते थे इस देश में दूध दही की नदिया बहती थी... वोह तो मुझे नहीं पता पर इतना जरुर कह सकता हूँ की मानवता , करुणा  और दया का भाव लोगो के दिल में था... लोग परोपकारी और कल्याणकारी थे... जो धनवान था वोह जन कल्याण भी करता था......

शायद यही वजह थी की इस देश में बहार से इतने आक्रमण हुए, लूट खसोट हुई…. उसके बाद भी इस देश में सम्पनता थी और आजकल सब कुछ होने के बाद भी विपनता है क्यों ?

क्योकि हम जन कल्याण भूलते चले गए.... मुझे एप्पल कंप्यूटर के फाउंडर स्टीव जॉब्स की वोह बात याद हो आई ....जो उसने स्तानफोर्ड यूनिवर्सिटी में २००५ की स्पीच में कही थी.. की .....कॉलेज के मुफलिसी के दोनों में .....उसे ,इक दिन हरे कृष्णा मंदिर से फ्री का खाना मिलता था.... जो उसका हफ्ते का सबसे अच्छा खाना होता था …सोचो मंदिर का.... वोह इक वक़्त का खाना, स्टीव जॉब्स इतना ऊपर उठने के बाद भी भूल नहीं पाया .....कम से कम वोह उस खाने की वजह से ....अपने जीवन के उन बदहाली वाले दिनों में..... इक सकूंन  की रात पेट भर के सो तो पाया ......और जीवन में  इतना नाम और दौलत होने के बाद... उसने उन बातो को याद रख मानवता के लिए कार्य किया......

शायद वोह इक वक़्त का खाना उसके अंदर कंही जन कल्याण का बीज अंकुरित कर गया ....

पर हम कंहा थे और कंहा पहुँच गए ...आज हर जगह लूट खसोट है... कहने को कितनी सामजिक संस्थाए चलती है पर क्या उनका लाभ किसी जरूरतमंद को मिलता है...... मुझे तो नहीं पता ?....

जब अपने आसपास नजर उठा कर देखता हूँ तो सब कुछ धुंधला सा नजर आता है... ना तो अब मुझे किसी सेठ या जमींदार के नाम पे चलने वाले मुफ्त के  स्कूल नजर आते  है...ना ही मुझे किसी सेठ या डॉक्टर की माता या पत्नी के नाम पे चलने वाले सामाजिक क्लिनिक नजर आते... ना ही कंही कोई प्याऊ ?

आजकल  स्कूल , कॉलेज , चिकित्सालय और हॉस्पिटल नाम के लिए बनाये तो जाते है पर सिर्फ अपना प्रचार करने के लिए ना की जन कल्याण  के लिए ...बस किसी नेता या अमीर के नाम पे रख , सरकर से अनुदान ले ...लूट और  खासूट के अड्डे भर है ....

थोड़ी बहुत जन कल्याण भावना सिख धर्म वालो में तो दिखती है की गुरु पर्व वाले दिन वोह बड़े सेवा भाव से गर्मी में ठंडा पानी पिला देते है और आज भी गुरूद्वारे में बिना उंच नीच किये लंगर से लोग कुछ खा भी लेते है पर बाकी समाज का क्या? शायद यही वजह है ..की आपको कोई सरदार भीख मांगता बड़ी ही मुश्किल से नजर आये ?

पर और धर्मो ने क्या किया ....हिन्दू और मुसलमान ..देश आजाद होने के बाद जन कल्याण के बजाये धार्मिक स्थलों के लिए लड़ते रहे ...दोनों में होड़ सी लग गई ..कौन ज्यादा से ज्यादा अपनी इमारते बुलंद करेगा .....इमारते तो बहुत बन गई ..पर उन्होंने लोगो को जोड़ने के बजाये तोडना का काम किया.... कांश हमने धार्मिक स्थलों की जगह ...स्कूल , कॉलेज , चिकित्सालय खोले होते ...जो सब वर्गो के आपस में जोड़ते ......क्योकि जरूरतमंद या गरीब की कोई जात नहीं होती .....

आजकल लोग धार्मिक स्थलों के लिए तो बहुत दान कर देते है ....पर जन कल्याण के लिए दान लुप्त होता जा रहा है ....
  
इसे इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा ..जन्हा मुगलों ने ८०० साल राज किया ..उन्होंने सिवाय अपनी अययाशी में डूबे रहने के सिवाय कुछ ना किया ....

इस देश में कितने ही नवाब , शहंशाह हुए ...पर....उन्होंने इस देश को क्या दिया?.......सिवाय अपनी झूटी शान के लिए बड़े बड़े स्मारक बनवाए या  अय्याशियों के लिए कोठे ?उन्होंने आवाम के लिए ...ना तो स्कूल ...ना ही जनमासे ..ना ही सरायं और ना ही हकीम खाने खुलवाये...इक आध अपवाद को छोड़ दे.....
कांश अगर ऐसा होता ...तो... आज इक वर्ग सिक्षा और सोच में इतना ना पिछड़ा होता ?
  
आज सोचता हूँ ..तो स्थिति बहुत ही भयानक लगती है ....कंहा गयी वोह धर्मशाला ,अनाथआश्रम ,प्याऊ ,चिकित्सालय , कॉलेज ....आदि .... कंही न कंही हम लालच में इतने गिरते चले गए ..की ...छोटी मोटी जन कल्याण वाली सेवा भी हमने.... अपने अन्दर से ख़त्म कर दी.....

 क्या समाज कल्याण ....आज कल सिर्फ टैक्स बचाने और दिखावे के लिए रह  गया है .....या ..फिर मंदिर –मस्जिद का निर्माण ही समाज कल्याण है ?

शायद यही वजह है की भारत में लोग अमीर तो होते गए....पर चरित्र और आदर्शो में बेहद गरीब हो गए ....
 पश्चिम सभ्यता की बुराइ करने वाले और अपना भारत महान करने वाले बताये.... की.... भारत के कितने दानवीर संसार की दानकर्ता सूचि में अपना नाम रखते है?...

आज भी इक आम आदमी टाटा, बिरला और मोदी का नाम याद रखता है ...क्यों ..इसलिए नहीं की ....वोह धनवान थे ..अपितु इसलिए ..की इनके पुर्वजो ने अपने ज़माने में जन कल्याण की बहुत सी योजना काफी समय तक चलाई थी ....

 पर आज के नए धन कुबेर अपने आलिशान महलो , महंगी गाडियों और हेलिपैड के लिए तो करोडो रूपये पानी की तरह फूंक देते है... पर जनता के लिए कुछ बेसिक सुविधा पे इक धेला भी खर्च नहीं करते ,समाज सेवा करना  और उसके लिए  दान देना तो बहुत दूर की बात है.....

शायद हमारे धन कुबेर...... बिल गेट्स , वारेन बुफेत से कुछ सीख पाते कैसे इन लोगो ने अपने जीवन भर की पूँजी मानव विकास , जन कल्याण और गरीबो के लिए दान कर दी .....शायद इनका देश अमीर  भी इसलिए है.... क्योकि वंहा पे ऐसे दानवीर है और शायद भूतकाल में "भारत " भी इक धनवान देश था ..क्योकि लोग दानवीर थे ....पर अब .....?

मैं इनको ही क्यों दोष दू , हम जैसे लोग भी कंहा सच में दान पुन्य करते है , सिर्फ धार्मिक स्थलों को चढ़ावा देना या किसी बाबा या फ़क़ीर को भगवान बनाने के नाम पे उसे करोर पति बना कर... उसके पावं में गिर जाते है.....पर ऐसा कुछ नहीं करते जो आम आदमी के जीवन में इक पल के लिए मुस्कान ले आये....हम लोग... अपना कितना समय या पैसा?... समाज कल्याण के लिए खर्च करते है? ....

पश्चिम में स्कूल में बच्चो को अपनी इच्छा से अपना कुछ समय का दान ...जन कल्याण या समाज के लिए करना होता है ..वंहा पर इस तरह का काम करने वाले बच्चो को कॉलेज एडमिशन में भी प्राथमिकता दी जाती है ...लोग अपने पुराने कपडे , फर्नीचर , कार आदि सामान का दान के साथ साथ काफी पैसा रेड क्रॉस जैसी संस्था को हर महीने देते है ....
लोग और बच्चे वीक एंड पे... कार धों कर या कुछ कुकिस या कुछ बेच कर  .... उसका पैसा इकठा कर.... गरीबो या बेघर लोगो को खाना और कपडे खुद अपने हाथो से देकर आते है ....पर हमारे यहाँ ऐसा करना आजकल बेवकूफी और समय की बर्बादी समझ जाता है ...जब माँ बाप ही खुद कुछ नहीं करते ..तब भला बच्चो से क्या उम्मीद करे? ....

मेरा गला पानी के लिए सुख रहा था और प्यास में तडपते मेरे हॉट मन ही मन सोच रहे थे की... कांश... आज लाला सुखीमल जैसे जन कल्याण सेवी होते? तो शायद मुझे यूँ गर्मी में ...इक बूंद पानी के लिए यूँ तरसना ना पड़ता?.....कंहा चले गए ऐसे लोग ?

गलती कंही न कंही हम सबकी है..जो हमने अपना नाता मानवता से कब और कैसे छोड़ दिया ? शायद हमें पता भी ना चला ...लौटते वक़्त ..मेने फैसला लिया ..आज से मैं अपना कुछ वक़्त और पैसा जन सेवा के लिए जरुर दूंगा ....

By
Kapil kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

No comments:

Post a Comment