Saturday 14 November 2015

उसकी थाली में घी ज्यादा क्यों है ??



आज दोपहर में, ऑफिस के बहार बगीचे में,हम कुछ लोग पेड़ के नीचे बिछी बेंच पे बैठे  लंच कर रहे थे ....पेड़ पे बैठी तरह तरह की चिड़ियाँ अपनी धून में कूक रही थी.. सब अपने में  मस्त थी और अपनी ख़ुशी और मस्ती का इजहार कभी कूक के तो कभी आपस में चोंच मिला कर का रही थी ....की ... उनके इस ख़ुशी के रंग में किसी ने अनजाने में वैमनस्यता(दुश्मनी) का बीज बो दिया....

किसी ने पेड़ पे बेठी चिडियों को फुसलाने के लिए कुछ मक्का के कुछ दाने पेड़ के निचे डाल दिए ...बस फिर क्या था जो चिड़ियाँ कुछ देर पहले अपनी ख़ुशी में सरोबर  इक दुसरे के साथ हंस खेल रही थी ...की मक्का के दानो पे इक साथ झपटी .....अब किसी की चोंच में कुछ दाने तो किसी के चोंच में इक या आधा दाना भर आया ...

पर कुछ बदनसीब चिड़ियाँ ऐसी भी थी ...की जब तक वोह निचे आती सारे दाने ख़त्म हो चुके थे ...अब जिन्हें दाने ना मिले ..वोह उन चिड़ियों के पीछे भागी जिनकी चोंच में बहुत सारे दाने थे ...कुछ उनसे छिनने में कामयाब भी हो गई की उन्हें भी इक या आधा दाना मिल गया ..कुछ सिर्फ निराशा में इक चिड़िया से दूसरी चिड़िया के पीछे भागती रही ..पर दाना उन्हें तब भी नसीब नहीं हुआ ...

अचानक किसी और ने कुछ और दाने पेड़ के निचे डाल दिए ...कुछ चिड़िया जो शांति से बैठी थी ..उन्हें आराम से दाने मिल गए और कुछ आलसी टाइप चिड़िया आराम से दाने को अभी तक निहार रही थी ..की ....अभी जल्दी क्या है आराम से खा लेंगे ...की ..इक बड़ा कबूतर आया उसने सब चिडियों को वंहा से भगा दिया और खुद आराम से दाना चुगने लगा ....

देखने में यह साधारण सी घटना मेरे जहन में इक सवाल छोड़ कर गई ...जो चिड़िया दाना गिरने से पहले खुश थी और आपस में कूक रही थी  ...अचानक कुछ मक्का के दानो ने उन्हें तितर बितर कर इक दुसरे से दूर कर दिया ....

जब से इस श्रष्टि में जीवन गतिमान हुआ है ...वो चाहे इन्सान हो या पशु सब के अंदर इस दुसरे से कुछ ज्यादा पाने के लिए हमेशा संघर्ष होता आया है .....कभी यह खाने के लिए ..तो कभी यह मादा के साथ सम्भोग के लिए ..तो कभी यह अपने ताकत दिखा कर राज करने की वजह बनता आया ....

पर मनुष्य के विकास ने इस संघर्ष को इक नया आयाम दिया ..उसकी आपसी लड़ाई सिर्फ ज्यादा खाने या मादा के साथ सम्भोग करने या अपनी सीमओं का निर्माण तक सिमित ना रही ..उसने अपनी विलासताओ को खुशियों या सुख को नाम देना शुरू कर दिया .....
बदलते परिवेश में सुख का नाम विलासता और दुःख का परियायवाची कष्ट हो गया ... आज कोई भी किसी ना किसी दुःख से पीड़ित है ... अगर इसे गौर से देखे तो वोह दुःख नहीं है .... मेरे अनुसार दुःख की परिभाषा यह है ...

दुःख वोह कष्ट है जिसे किसी भी मानवीय तरीके से कभी बदला ना जा सके ....

जैसे किसी के शरीर में विकलांगता है या किसी की आँखे नहीं है या जिसकी कोई संतान नहीं कुछ ऐसा विकार जिसका कोई उपाय नहीं ....या फिर ऐसा कष्ट जिसे किसी भी उपाय से कम ना किया जा सके ..जैसे किसी ने कोई अपना परिचित हमेशा के लिए खो दिया हो ..जिसे कभी वापस ना ला सके ....इन से उत्पन्न कष्टों को मैं दुःख समझता हूँ..पर ..जो कष्ट हमारे अधिकार में हैं ..जिनको ख़त्म किया जा सकता है वोह दुःख की श्रेणी में नहीं आते ..उन्हें मैं विलासता की अभिलाषा कहूँगा ...

जैसे किसी के पास गाडी नही वो बहुत परेशान है ....की वोह समय पे ऑफिस नहीं पहुंचेगा या उसे बस में सफर करना पड़ेगा .....पर देखने और सोचने की बात यह है ..उसके निचे ऐसे भी लोग है जो साइकिल ना होने से परेशान हो या कुछ ऐसे लोग जिनके पास बस में सफर करने के लिए बस का ही इंतजाम नही है  ..फिर किसका कष्ट दुःख की श्रेणी में आएगा ?

हम हर नयी विलासता को सुख के नजरिये से देखते है ....कुछ मानसिक विलासता है जैसे ...किसी स्त्री का पति उसे प्रेम नहीं करता यह उसका दुःख नहीं कष्ट है ..पर अगर उसका पति उसे मारे तो यह दुःख है .... ठीक इसी तरह किसी का पति उसके लिए कुछ  नहीं खरीदता पर और जगह पैसा खर्च कर देता है ...यह उसका कष्ट है ..पर पति उसे अपने पास ना रखे ..किसी और को घर में ले आए यह दुःख है ....मेरे अनुसार

सुख़ वोह आराम है ..जिसे विलासिता की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता या जिसे आप किसी भी मूल्य से नहीं खरीद सकते ....

जैसे आप को अच्छी औलाद , माँ बाप , रिश्तेदार और पत्नी का सुख है...आप का शरीर बिना किसी शारीरिक पीड़ा से गतिमान है ...आप जिन्दगी को सकरात्मक नजरिये से जीते है ..इन्हें सुख की परिभाषा में रखा जा सकता है ....
आज के युग में इक आम इन्सान जिन चीजो का उपयोग बहुत ही मामूली समझ कर करता  है ...अगर गौर से देखे तो उनमे से बहुत सारी चीजे हमसे पहले वाली पीढ़ी के लिए विलासता की श्रेणी में आती थी ...मुझे याद है हमारे मोहल्ले में कुछ ही घरो में टीवी था ... फ्रीज़ तो शायद किसी घर में था ही नहीं और कार तो शायद कुछ मोहल्लो को मिलकर भी इक या दो घर में होगी ..पर आज यह बाते करे तो लोग हँसेंगे  ....

क्योंकि ..कल जो विलासिता थी आज उसे जरूरत का नाम दे दिया गया है ..जब विलासिता जरूरत बन जाए तब उसका होने से कष्ट होने लगता है और देखते ही देखते इस कष्ट को हम दुःख का नाम दे देते है ..हकीकत में यह दुःख ना पहले था ना आज है ..बस ज़माने की रफ़्तार ने जिस चीज को इक आम इन्सान की पहुँच में ला दिया ..उसका ना होना दुःख का परियायवाची बनने लगा ....

अगर आप किसी बच्चे से पूछे ..भाई तुम्हे क्या दुःख है? ..तो उसके यही जवाब होंगे ..मुझे यह सेल फोन चाहिए या यह बाइक या यह इलेक्ट्रॉनिक गेजेट ...इनके ना होने से उस बेचारे को कष्ट हो रहा है ..जो धीरे धीरे उसके मन में दुःख का कारण बनता जा रहा है ...पर यही सब चीजे आज से २५ साल वाले बच्चे के लिए ना होने पे दुःख का कारण नहीं थी .... क्योकि वोह सब या तो थी ही नहीं या फिर कुछ ही लोगो की पहुँच में थी ..जिन्हें हम विलासिता की परिभाषा में रखते थे ...
कहने का तात्पर्य यह है ...की सुख और दुःख इन्सान या पशु ने खुद निर्धारित कर लिए ...की अगर कोई चीज इस दुनिया में है .. तो वोह उसके पास क्यों नहीं ..भले ही उसकी उसे जरुरत है या नहीं ? अब हर शेर अपने पैक का राजा हो या हर बायसन(जंगली भेंसा) अपने हर्ड का लीडर हो ..क्या यह जरुरी है ..पर इसके लिए इन जानवरों में आपस में जिन्दगी और मौत की जंग होती है ....

ऐसे ही आजकल की गृहणियो की जिन्दगी पहले से कितनी आरामदायक हो गई ..अब उन्हें तो कुए से पानी लाना पड़ता है ....ना ही धुएं वाले चूल्हे में फूंक मारनी और ही सडती गर्मी में ..पसीनो से तरबतर होकर घर के काम करने ...पर उनके घर में इक दिन काम वाली बाई नहीं आए या पानी ना आए ...तो ..उनपे दुखो यानी कष्टों का पहाड़ टूट पड़ेगा .....

ऐसे ही आम इन्सान अच्छे बड़े ठंडे ऑफिस में आरामदायक कुर्सी पे बैठता है ..या ..इक मजदूर कमरतोड़ मेहनत के बाद भी आजकल ठंडा पी सकने की हैसियत रखता है या कोई और कामगार भर पेट मनपसंद खा सकता है ....सबकी जिन्दगी में वक़्त के साथ साथ कुछ परेशानियाँ पहले से कम हो गई ..पर वोह इन्हें ना देख कर उन परेशानियों को देखता है ..जो उसे अभी भी है ..बस उन्ही परेशानियों यानी कष्टों को वोह अपने दुःख बोलेगा ...हकीकत में वोह दुःख ना होकर उसके कार्य का हिस्सा भर है ...
पर क्योकि अब विलासिता ने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए नए यंत्रो और तंत्रों का विकास कर दिया है तो ..उनकी कमी ही आम इन्सान के दुखो का कारण है सुख और दुःख जीवन में वक़्त के साथ बदल जाते है... इन्सान धीरे धीरे दुःख को भूल जाता है या उनके साथ या बिना जीना सिख लेता है और सुखो पर वोह अपना हमेशा के लिए अधिकार समझता है ...पर कष्ट और विलासिता यह इक मानसिक स्थिति है ..जिसका कोई प्रारम्भ या अंत नहीं है ...जितना भी मिलता जाए वोह कम है .....

सुख कभी ख़रीदे नहीं जा सकते और दुःख किसी को बेचे नहीं जा सकते क्योकि यह ऐसी स्थिति है ..जिसे सिर्फ आप ही महसूस कर सकते हैं ...

पर विलासिता और कष्ट इक मानसिक स्थिति है ...आप कम में भी खुश हो सकते और बहुत ज्यादा में भी दुखी रह सकते है ..क्योकि यह इक तुलना है ..की कंही उसकी थाली में मेरे से ज्यादा घी तो नहीं ?....

आप का मन प्रसन नहीं ..कितने भी टीवी , मूवी या मनोरंजन के साधन सब बेकार...आप की गाडी बढ़िया चलती है ..पर आप दुखी है की दोस्त पे आपसे महंगी कार है .....बच्चा आपका पढने में ठीक थक है ..पर पडुसी का बच्चा टॉप करता है ..अब ऐसे दुखो का ना तो कोई आदि है ना कोई अंत ?

आप महंगा आरामदायक बिस्तर खरीद सकते है ..एयर कंडीशन भी लगा सकते है ..कमरा साउंड प्रूफ भी बनवा सकते है ...पर नींद आए ऐसा चैन कहाँ से लायेंगे ?

अंत में  अपने दुखो और जरूरत को विलासिता  के तराजू में तोले ..फिर देखे क्या इनका बिना जीना मुश्किल है या असंभव ?
क्या आपके कष्ट आप की मानसिक स्थिति का दर्पण तो नहीं ? क्योकि प्रक्रति के हर जीव के मन में दुसरे से ज्यादा और अच्छा पाने की इच्छा का बीज कंही कंही दबा जो है ...

By 
Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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