Sunday 15 November 2015

उसका कसूर क्या है?



"असफलता यह सिद्ध करती है , सफलता का प्रयत्न पूरी , इछाशक्ति , समर्पण , समय और योजना के साथ नहीं हुआ! "

कुछ महीने पहले .....
ऑफिस में आकर कंप्यूटर ओन ही किया था की.... कंप्यूटर की स्क्रीन पे इक मेसेज डिस्पले होने लगा ...अर्जेंट मीटिंग इन 10मिनट्स ...हमारे डायरेक्टर का इनविटेशन आया था.... सारे डिपार्टमेंट चीफ और प्रोजेक्ट मेनेजर कांफ्रेंस रूम में  डिस्कशन केलिए तुरंत आये...मैं कांफ्रेंस रूम जाते हुए यही सोच रहा था.... की ,यह कौन सो अर्जेंट मीटिंग का इनविटेशन आगया है ....जिसे सारी  मीटिंग के ऊपर हायर प्रायोरिटी में रखा गया है ....मीटिंग में डायरेक्टर बहुत परेशान  सा लग रहा था.....
                         डायरेक्टर ने हम सबसे कहा की......इक प्रोजेक्ट जिसके ऊपर ना जाने कितने मिलिउन डोलोर्स और तीन चार  साल बर्बाद हो चुके थे! उसकी डेड लाइन अपर मैनेजमेंट से आ गई है... अगर प्रोजेक्ट इस साल डिलीवर नहीं हुआ तो डिपार्टमेंट का नाम बहुत ख़राब होगा और आने वाले सालो में फंडिंग की भी कटुती हो जाएगी.... जिससे सब के इन्क्रीमेंट और प्रमोशन पर असर पड़ेगा....
                          पास्ट में उस प्रोजेक्ट से ,कई प्रोजेक्ट मेनेजर अपना पल्ला झाड़  चुके थे..... ऐसे में हायर मैनेजमेंट का प्रेशर था की.... इसे जल्दी से जलदो ख़त्म किया जाए ... पर कोई भी मेनेजर उस प्रोजेक्ट को छुने के लिए राजी ना था...ऐसे में डायरेक्टर बड़ी मज़बूरी में सबकी तरफ देख रहा था की....
किसे नया बलि का बकरा बना कर वोह अपनी कुर्सी बचाये .....

                               पर  वंहा तो इक से इक उस्ताद थे ...जो अपने कामो का पूरा पिटारा लेकर ऐसे आये थे की... डायरेक्टर की नजर पड़े और वोह अपना रोना रोदे की वोह कितने ज्यादा बीजी है की.... उनपे आने वाले 2/3 सालो तक दम मारने की फुर्सत भी नहीं है ...
                       ऐसे में सब की निगाह उधर घूम गयी जब इक आवाज आई......,
सर .....यह प्रोजेक्ट आपके दिए हुए समय में मैं पूरा कर सकता हूँ!... यह कौन नया बलि का बकरा खुद शहीद होने आ गया... ऐसा सोच मेरी और सब लोगो की नजर उधर की तरफ घुम गयी....... 
                   सबकी आँखे आश्चर्य से फट गयी, जब सबने देखा उस चुनोती को लेने वाला हमारे डिपार्टमेंट का इक मात्र नेत्रहीन प्रोजेक्ट मेनेजर मैक्स है...सबके मन में इक ही ख्याल आ रहा था .. ..
यह आँखों से तो अँधा है ही  पर अकल का भी अँधा लगता है.....
            जब कोई प्रोजेक्ट 3 साल में 20% ख़त्म नहीं हुआ तो ......1 साल में कैसे पूरा होगा? ... उसकी हाँ सुन डायरेक्टर इक पल के लिए खुश हुआ .....पर यह ख़ुशी,.....
             इक नेत्रहीन मेनेजर को देख काफूर हो गयी, उसे लगा बलि बकरा तो मिला गया, पर यह बकरा कल कटा भी तो उसका दामन भी लपेटे में आ जायेगा ...पर और कोई चारा ना देख डायरेक्टर ने भी आधे अधूरे मन से उस प्रोजेक्ट की कमांड मैक्स के हाथो में सोंप दी......

                  मुझे मैक्स पर दया आ रही थी और हैरानी भी हो रही थी की .....कैसे वोह इतना बड़ा चैलेंज पूरा करेगा ...अगर प्रोजेक्ट इस बार डिलीवर नहीं हुआ तो करियर पे उसका असर पड़ना तय था ..कांफ्रेंस रूम से बहार निकलते हुए मेने मैक्स को पकड लिया... 
         मेने और मैक्स ने पहले इक प्रोजेक्ट में साथ-साथ काम किया हुआ था! उसकी और मेरी थोड़ी सी जान पहचान थी ... मैं बोला यार तूने यह क्या कर दिया?.. उस प्रोजेक्ट का ना तो प्रोजेक्ट प्लान सही ढंग से बना है , ना ही उसमे पुरे रिसोर्सेज है और न ही उसका स्कोप क्लियर है ...उसमे लफड़े ही लफड़े है!!!
                     मैक्स हंसा और बोला ....यार वोह कोई ज्यादा मुश्किल प्रोजेक्ट नहीं है, बस इन लोगो ने उसका टेक्निकल आर्किटेक्चर ढंग से नहीं बनाया है ... इन लोगो की बाते मेने पहली भी सुनी थी और मुझे पता है उस प्रोजेक्ट का अगर सही आर्किटेक्चर हो तो प्लानिंग , स्कोप सिर्फ इक हफ्ते भर का काम है बाकि इतने रिसोर्सेज की जरुरत भी नहीं जितने पहले से मिले हुए है ...

             मुझे मैक्स की बात सुन बड़ी  हैरानी हुयी ... पर यह हैरानी जल्दी ही हकीकत में बदल गयी, जब इक हफ्ते बाद मैक्स ने उस प्रोजेक्ट का हाई लेवल व्यू का प्रेजेंटेशन देकर सबको कन्विंस और इम्प्रेस कर दिया की ,यह काम इतना कठिन नहीं था... जितना इसे बना दिया गया था ....मैं मैक्स से बहुत इम्प्रेस हुआ ..... 
मैं उसे उसकी सिट पे बधाई देने गया की उसने 2 साल का काम सिर्फ इक हफ्ते में कर दिखाया ... मैक्स बोल यार....

मुझे हैरानी इस बात की है इतने सारे लोग इतनी बेसिक मिस्टेक कैसे कर सकते है?

फिर वोह कहने लगा ....जिन्दगी में उसे बचपन से ही असम्भव को संभव करने की चुनोती मिलती रही है और उसे ऐसा करने में मजा भी आता है ...

जब कोई आँख वाला जिस काम को ना बोलता है तो उसे करके वोह अपने अन्दर इक नया जोश महसूस करता है की.....
वोह खुदा की दि हुयी उसकी चुनोती में उसे हरा सकता है ...

                        उसने बताया .. जब वोह पैदा हुआ था उसकी आँखे कुछ साल बाद हमेशा हमेशा के लिए ख़राब हो गयी ....घर वालो पे इतने पैसे ना थे की किसी की आँखे हॉस्पिटल में डोनेशन में लेलेते ..उसने बचपन में पढने के लिए बहुत मेहनत की .... उसका स्कूल जो सिर्फ नेत्रहीन बच्चो के  लिए था... उसके घर से 3मिल्स दूर था वोह 6 साल की उम्र से रोज खुद पैदल जाता था ....और रास्ता याद रखने के लिए रास्ते में पड़ने वाले हर पेड़ पौधे , दीवार और कंही कंही सडक को छुता हुआ उनपे अपना निशान बनाता जाता या उन्हें सूंघ कर पहचान बनता ..... 

                    स्कूल की किताबे भी अपनी मेहनत से पैसा कमाकर खरीदनी पड़ती थी ....बचपन में वोह लकड़ी के खिलोने बनाता या लोगो की कार साफ़ करता या फिर कोई भी ऐसा काम ले लेता... जिसमे उसे किसी की सहयता की जरुरत ना पड़ती.... जिन्दगी में स्कूल के अलावा और भी ना जाने कितनी सारी परेशानियाँ वोह झेलता है और उसने देखि थी.....जो आम इन्सान कभी समझ भी नहीं सकता की इक नेत्रहीन को अपना घर पहुचना , बाजार से कोई सामन खरीदना ....बस,ट्रेन पकड़ना  और उसमें चढ़ना और अपना रास्ता ढूँढना आदि कितने छोटे मोटे काम है जिसमे उन्हें हमेशा चौकस रहना पड़ता है ....की कंही आप गिर ना जाये या किसी गलत जगह ना पहुँच जाए ...पेसे के लेन देन में तो यह बहुत ही ज्यादा है की कंही कोई आपको ठग तो नी रहा है? .. इक आम आदमी भी किसी नेत्रहीन को अपना दोस्त नहीं बनाना चाहता...
              मैक्स बोला ......बचपन से लेकर कॉलेज जाने तक मुझे चीजे हमेशा बहुत ध्यान से देखने समझने और उनकी विवेचना  करने की आदत सी हो गयी है ...इस प्रोजेक्ट की कुछ मीटिंग मेने पहले अटेंड की थी और मेने पुराने प्रोजेक्ट मेनेजर और आर्किटेक्ट को सलाह भी दी थी.... पर किसी ने उसपे ध्यान नहीं दिया....
तब भी, मैं इस प्रोजेक्ट को बार बार अपने मन में देख और समझ रहा था.....
             मैक्स बोल .....जिन्दगी में स्कूल से लेकर कॉलेज तक बस यही सुनता आया हूँ!!! 
अरे यह तो अँधा है, यह भला क्या कर लेगा?.....इसे दिखाई तो देता नहीं फिर यह क्या प्लान बनाएगा और क्या किसी को समझाएगा ?....

                  इसकी मुझे भी आदत सी हो गयी है और मुझे भी हमेशा चुनौती वाले काम करने में मजा आता है जिसमे इक सामान्य आदमी अपनी हार मान लेता है ...
उसकी बाते सुन मुझे लगा...

जीवन में शायद हम अपने प्रयास में कमी धुंडने के बजाय किस्मत और भगवान / खुदा के ऊपर दोष मढ़ देते है...

उसकी बातो ने मुझे इक नयी उर्जा दी और मुझे लगा....
जब इक नेत्रहीन इन्सान जीवन में इतनी कठनाई होने के बावजूद अपनी जिन्दगी के प्रति इतना आशावादी है तो क्या कारण है हमारे निराश होने का ?

                इस घटना के बाद, मेरी और मैक्स की बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी , मैं जिन्दगी को उसके नजरिये से देखता तो चीजे बहुत आसन लगती और कोई भी समस्या ऐसी ना लगती जिसका हल ना खोज जा सके......उसके लड़ने की इच्छा शक्ति ने इक नया जोश और जूनून मेरे अन्दर में भर दिया......देखते देखते कई दिन यूँही बीत गए .... 

                बहुत दिन से देख रहा था की मैक्स ऑफिस नहीं आ रहा ...मुझे लगा शायद वोह छुट्टी पे गया हो....पर आज ऑफिस में उसके बॉस को देखा तो रहा नहीं गया और उससे पूछ बैठा की, क्या मैक्स छुट्टी पर है ? .....
        उसने मुझे अजीब सी नजर से देखा और बोला.....शायद तुम्हे पता नहीं है? मैक्स हॉस्पिटल में है..उसको हाई माइग्रेन की प्रॉब्लम हो गयी है ...मुझे यह खबर सुन झटका सा लगा .....

की उस गरीब की जिन्दगी में पहले ही गम क्या कम थे जो यह बीमारी भी ऊपर वाले ने उसे देदी ...

भगवान भी बड़ा बेरहम है दुनिया में रोज हजारो मरते है जीते है, पर किसी को बार बार मारना और फिर जिन्दा करने की सजा, मेरी समझ से परे है ?
                   पुरे दिन काम में मन ना लगा ..जैसे ही शाम हई ऑफिस से सीधा हॉस्पिटल मैक्स को देखने चला गया ....हॉस्पिटल के काउंटर पे उसका रूम पुछा और उधर की तरफ चल दिया ...अभी उसके रूम के पास पहुंचा ही था की उसके रूम के बहार कुछ डॉक्टर और नर्स खड़े आपस में  बात करते दिखाई दिए .....मुझे वंहा आता देख ....उन्होंने पुछा ... क्या तुम इसके रिश्तेदार या दोस्त हो?..मेने पुछा क्या बात है?
            मैं और मैक्स इक ही ऑफिस में काम करते है और वह मेरा दोस्त है ...इक डॉक्टर बहुत ही सीरियस आवाज में बोला ...कृपया करके आप हमारे साथ ऑफिस में चले वन्ही बात करेंगे ..उसकी बाते सुन मेरा दिल डर के मारे बैठ सा गया ...
ऑफिस के अन्दर पहुच उस डॉक्टर की टीम ने मुझे घेर लिया और बोले ....

                 Mr. कुमार मामला बहुत गंभीर है.....मैक्स का माइग्रेन इतना बढ़ चूका है की हमें उसके ब्रेन की सर्जेरी करनी पड़ेगी.....हमें उसके सर को बिच से काट उसमे कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस फिट करने होंगे ...6/8 महीने तक वोह अपने दिमाग का इस्तमाल भी अच्छे से नहीं कर पायेगा....उसके लिए इक नर्स या केयर टेकर का 24/7 उसके साथ रहना जरुरी है......
            हमने उसके घर वालो को इन्फॉर्म कर दिया था पर वंहा कोई जवाब नहीं मिला ..मैक्स ने अपने घर वालो की लिस्ट में सिर्फ अपने भाई का नाम और पता लिखा है.... पर उसके भाई ने साफ़ साफ़ कह दिया उसका उससे कोई सम्बन्ध नहीं ..ऐसे में उसके ऑपरेशन के लिए कौन अप्रूवल देगा?..हमें मैक्स का अप्रूवल तो है पर इक विटनेस और चाहिए....मेने पुछा इस ऑपरेशन की सफलता का % क्या है? डॉक्टर बोला मैं आपसे झूट नहीं बोलूँगा 50-50 चांसेस है ..उसके बाद यह अपने दिमाग को पूरा इस्तमाल कर पायंगे या नहीं इसकी भी कोई गारंटी नहीं है....  मेने बड़े बुझे मन से फॉर्म पे साइन कर दिया और थके कदमो से मैक्स के रूम में आ गया ...

मेरी आहट सुन उसने मुझे पहचान लिया और वोह ख़ुशी से झूम सा उठा... ..
ऐसा लगता था जैसे वोह सिर्फ मेरे आने का ही इन्तजार कर रहा था .....
          मैं उसके बेड के पास पड़ी इक कुर्सी खिंच बैठ गया ...उसने मेरा हाथ अपने  हाथ में लेकर कहा ..क्या बात है आज तू कुछ बोल नहीं रहा ? मेने बड़े रुंधे से गल्ले में कहा क्या बोलू ..तुझे पता है की तेरा ऑपरेशन होना है ..बोला यार ऑपरेशन की चिंता से ज्यादा तो मुझे अपने विटनेस की चिंता थी... अब तू आ गया है तो तूने उसपे साइन तो कर दिया होगा....मैं बोला हाँ मेने कर दिया है..पर तेरी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी की... इतनी परेशानी उठाने के बाद भी तू बिलकुल परेशान नहीं है.....

         वोह हंसा और बोला ...बचपन से सिर्फ इक चीज सीखी है ..की हर कदम पे जियो ..कब अगला कदम गलत पड़े और तुम गिर जाओ और हमें तो ठोकर खाने की ,गिरने की और लोगो की झूटी /सच्ची सहानभूति की इतनी आदत हो गयी है की..ऐसा लगता है ,जितने भी पल हम जी लिए... वोह सब भगवान के गिफ्ट्स थे ..कभी अच्छे गिफ्ट्स मिले कभी जिनकी जरुरत नहीं थी वोह..... मेने अपनी जिन्दगी हमेशा इक ग्लैडिएटर की तरह से जी है...
इक ग्लैडिएटर जो सिर्फ लड़ने के लिए पैदा होता है वोह क्यों डरेगा की अगली लड़ाई में उसकी मौत होगी या जिन्दगी नसीब होगी........
हर दिन इक नयी जंग ..जीत गए तो अगला दिन ख़ुशी का, अगर हार गए तो अगली जिन्दगी मिलने की ख़ुशी......
              और इस बार तो दोनों के चांस 50-50 हैं तो गम किस बात का ..आयेंगे फिर से द्वारा कोई ऐसा प्रोजेक्ट करने जो कोई छूना भी ना चाहता हो ....
                 उसकी यह बाते सुन मुझसे अपने ऊपर कण्ट्रोल ना हो सका और उसके सामने अपने आँशु पोछने  लगा..... मेरे आंशु जो मेरी जिन्दगी की असफलताओ में दब से गए थे जैसे इस पल के इंतजार में थे कब वोह बहार आकर मेरे होसले को बढ़ा सके ....मेने अपने ऊपर नियंत्रण किया और थके हुए कदमो से इक लाचार इंसान उस कमरे से उसे सिर्फ आल दा  बेस्ट कह के बहार निकल आया ...
मेरे दिमाग में सिर्फ इक सवाल बार बार गूंज रहा था ……
शायद पत्थर के भगवान से सिर्फ पत्थर दिल की ही उम्मीद की जा सकती है .....
की अगर खुदा कंही है तो, मैं उससे पूछता की उसका कसूर क्या है ?

By
Kapil Kuamr 

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