Thursday 12 November 2015

सीढ़ी ....दुसरो की सफलता के लिए बने या उन्हें बनाया ?



शायद ही कोई ऐसा शक्श हो जिसने बचपन में सांप और सीढ़ी वाला खेल ना खेला हो ...बड़ा मजा आता था जब खेल में हमारी गोट सीढ़ी वाले खाने में आजाती .....झटाक से सबको चकमा देते हुए आप सीधे ऊपर चढ़ जाते ...सबकी यही तमन्ना होती कांश हमें भी सबसे बड़ी वाली सीढ़ी मिले ...की हम भी बिना प्रयास किये सीधे ऊपर चढ़ते जाए ..

पर कभी कभी कम्बखत सांप सारे किये धराये पे पानी फेर देता और इक ही झटके में धडाम से जमीन पर लाकर पटक देता ....बचपन में यह खेल खेलते वक़्त कभी सोचा ना था की जीवन में यह खेल अपने और गैरो के साथ भी खेलना पड़ेगा ....की जिनके लिए हम सीढ़ी बनेगे ..उनमे से कुछ सांप बन कर ही हमें डसेंगे....

आज शाम को ऑफिस से आते वक़्त देखा ..की रास्ते में कुछ मजदूर... इक सीढ़ी लगा कर किसी दिवार पे चढ़ रहे थे ...जब सारे के सारे मजदूर ऊपर पहुँच गए तो निचे वाले मजदूर ने उस सीढ़ी को दिवार से हटाया और जमींन पर लिटा कर रख दिया ... देखने और सुनने में लगने वाली यह मामूली सी बात मुझे अन्दर से कंही कचोट रही थी ....क्योकि मैं भी आज इस बेजुबान सीढ़ी की तरह इस्तमाल होने के बाद जमींन पर लिटाया जा चूका था ...

सीढ़ी जिसका इस्तमाल इक इन्सान ऊपर पहुचने के लिए करता है और इक बार ऊपर पहुंचा की नहीं ...सीढ़ी उसके लिए बेकार हो जाती है ...जब तक वोह जमींन पर खड़ा था ..सामने वाली ईमारत उसकी पहुँच से बहुत दूर थी ..पर जैसे ही उसे सीढ़ी का सहारा मिला... झट उसके सहारे चढ़ वोह सीढ़ी से भी ऊपर निकल जाता है और बेचारी सीढ़ी रह जाती है ताकती हुई .... इंतजार करती हुई की .... वो कब अपनी ऊंचाई से ऊँची जायेगी ....

पर हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता .... उसे तो इस्तमाल करने के बाद बस जमींन पे लिटा कर भूला दिया जाता है ...

मुझे याद है बचपन मेंकैसे अभावों में पलते बढ़ते ..मेने जीवन में लड़ना सीखा ..अपनी नियति के दिए हुए मज़बूरी और लाचारी के अभिशाप को मेने इक चुनौती समझ कर लड़ा और उसे बदला भी ....जो सपने मेरे परिवार के लोग बंद आँखों से देखने की भी हिम्मत ना जुटा पाते ..उसे मेने खुली आँखों से देखने का दुस्सहास भी किया ...

इसका अंजाम यह हुआ .... मुझे हर पल , हर घडी हास्य का पात्र बना पड़ा ..पर मेने हार ना मानी और अपने सपनो को अंजाम भी दिया ....अगर मेने सिर्फ अपने बारे में सोचा होता तो शायद मुझे आज जीवन से कुछ शिकवे और शिकायत ना होती ...पर मुझे तो शौक था सीढ़ी बनने का ....

मेने अपने सपने सिर्फ अपने ही नहीं रखे ..अपितु मेने दुसस्हास किया की .... मेरे घर के और लोग भी वोह सपने देखे और इन सपनो को देखने के साथ साथ मेने उन्हें पूरा करने के लिए उनको पूरा करने की सीढ़ी बन गया ....इतना भी होता तो गनीमत थी ..मैं तो ठहरा महा जिद्दी ..जिसे सिर्फ ऊपर जाने की ललक ना थी बल्कि उसे तो जूनून था जिन्हें सपने तो क्या आंखे बंद करने भर से डर लगता था ..उन्हें मैं अपने कंधो पे चढ़ा कर सीढ़ी बन ऊपर उठाने के फितूर में लग गया ...


जिसकी कीमत थी अपना सुख चैन सब दुसरो की भलाई के लिए कुर्बान करना ...कभी भी अपने बारे में सोचना की जैसे हिम्मत ही नहीं हुई ....अपने बारे में सोचने से पहले ही घर वालो के बेबस और मासूम चेहरे सामने आजाते ..जो जाने अनजाने यह सवाल कर बैठते ...की ....

क्या तू हमें मझधार में छोड़ जायेगा ?

मैं फिर से अपना सब कुछ दावं पे लगाकर ... इक नयी मंजिल की तलाश में निकल गया और मेने उसको ढूंडा भी .... जैसे ही मैं मंजिल के करीब पहुंचा ....घर परिवार के लोग सब मुझे सीढ़ी बना कर उस मंजिल पे चढ़ गए ...मैं उनकी सीढ़ी बना इन्तजार करता रह गया ..की कोई शायद हाथ बढ़ा कर मुझे भी ऊपर खिंच ले ...

वोह मुझे इस्तमाल करके ऊपर निकल जाते... तो भी मुझे अफ़सोस ना होता ..पर इस बेजुबान और लाचार सीढ़ी को लोग सीधा खड़ा भी तो नहीं रहने देते ..अपना मतलब निकल जाने के बाद उसे जमीन पर लिटा कर छोटा बना दिया जाता और उसपे यह उलाहना ....

तूने यह सब अपनी अहमियत दिखने के लिए किया ..अब सीढ़ी अपनी क्या अहमियत दिखा सकती है ..वोह तो सिर्फ इस्तमाल होने के लिए है ...की लोग आए और उसका इस्तमाल करे ...

पर इंसानी फितरत ही कुछ अजीब है की इक इन्सान सबसे पहले उसे ही धक्का देता है ..जो उसका हाथ पकड कर उसे चलना सिखाता है ....प्रक्रति का ही नियम है बच्चे सबसे ज्यादा माँ बाप को ही नोचते और खसोटते है और उसकी ऊँगली को बेदर्दी से काटते भी है .... जिसके सहारे वोह चलना सीखते है ..

मैं भी इक बेजान सीढ़ी की तरह देखता रहा ... उन सबको अपनी अपनी मंजिलो पे चढ़ते ..कूदते ..उछलते ...मै तो उन्हें खुश देख कर भी खुश हो जाता ....पर अफ़सोस तब होता जब यह अकर्मठ इन्सान उस सीढ़ी का मजाक भी उड़ाते ..जिसके सहारे चढ़ कर वोह यंहा तक पहुंचे थे ...

अपने परिवार वालो से छले जाने का मातम अभी ख़त्म भी ना हुआ था ...की जिसे घर में लाया था अपना हम सफ़र बनाने .... उसके लिए फिर से मुझे सीढ़ी बनना पड़ा ...उसके आसमानी सपने मेरे सामने इक चुनौती बनकर मंडराने लगे ...अब उसकी मंजिल फिर से मेरी मंजिल हो गई....

मैं लग गया फिर से इक नए आसमान की तलाश में और भटकते भटकते... मेने... फिर इक नए दुस्सहास को जन्म दिया ....

मेरे सामने जो कल तक अपने को बहुत छोटा समझती थी... अचानक मेरे सहारे खड़े होकर ..वोह भी आसमान को छूने लगी ..वोह खुश थी मैं भी खुश था ....पर मेरी खुशियों को जल्दी ही ग्रहण लग गया ..जब मुझे फिर से इस्तमाल करने के बाद जमीन पर लिटा देने की साजिश हुई ...

पिछली बार में अपने जोश में होश खो बैठा था ...अपने खून को इक ही रंग का समझ धोखे का शिकार हुआ था ..इस बार तो समझते बुझते ..मुझे यह विष पीना ही पड़ा ..क्यूंकि इसमें मैं अपना भी फायदा होने का झुटा सपना देख रहा था ...

पर सीढ़ी तो आखिर सीढ़ी होती है ..इस्तमाल होने के बाद फिर बेकार ...

कई कई  बार अलग अलग रिश्तो में चोट खाने के बाद इसे जैसे मेने अपनी किस्मत ही समझ लिया ....शायद यह मेरी फितरत थी या बेवकूफी या मै था ही ऐसा ...

यही गलती इक बार नहीं ना जाने कितनी बार दोस्तों के साथ भी दोहराई ....जबरदस्ती पकड पकड कर उनको नए नए आयाम दिखाए ...इस लालच में शायद कोई इस सीढ़ी का कद्रदान हो ....जो अपने घर परिवार से ना मिला शायद वोह बहार मिल जाये ....

लोग आते रहे जाते रहे ..अपना मतलब निकल जाने के बाद किसी ने कभी पलट कर कर भी ना देखा ....सबके लिए ऊपर चढ़ जानेके बाद सीढ़ी अचानक बहुत छोटी और तुच्छ हो जाती ...

आज मैं फिर से इकबार आने वाली पीढ़ी को सीढ़ी बनकर इक इक पाए चढ़ा करके चढ़ना सीखा रहा हूँ ....पर अंदर से कंही इक डर भी है ....क्या यह भी औरो की तरह ऊपर पहुँचने के बाद मुझे भूल जायंगे और हिकारत की नजर से देखंगे ??

शायद यही तो हकीकत है बेबस और लाचार सीढ़ी की ....जो ऊँची तो है ..पर लोग उसपे चढ़ने के बाद उसे ही छोटा बना देते है ....

ऐसा नहीं की यह सिर्फ मेरे साथ हुआ या हो रहा है ... दुनिया में हजारो उधारण मिल जायंगे ....जिसमे बनाने वाले को ही लोग... सबसे पहले दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फैंकते है ...राजनीती , खेल , नौकरी और वयवसाय .....कंही भी देख ले ...जो कल तक कुछ ना थे वोह आज आपका ही सहारा ले आपको रोंदते हुए आगे निकल गए ....

आप लोगो के साथ भी ऐसा कंही कंही अवश्य हुआ होगा ..जन्हा आपको इस्तमाल करने के बाद फैंक दिया गया ....तब आप अपने को बदकिस्मत कहते है ..पर इसे क्या कहे ..जब आप खुद ...लोगो को अपना इस्तमाल इक बार नहीं अपितु बार बार करने देते है ..बल्कि आप उन्हें इसकी बाकायदा ट्रेनिंग भी देते है ....

ऑफिस में या दैनिक जीवन में यह बड़ा आम है ....की बड़ी मेहनत से कोई कार्य किसी ने किया ..तो दुसरे ने उसका श्रेय ले लिए ...या किसी दुसरे की मेहनत को अपने नाम से दुनिया में पब्लिश कर लिया ....

कितने ही फिल्मो में लिखे जाने वाले गीतों के असली गीतकार गुमनामी के अंधेरो में खोये रहे और किसी और के नाम का डंका बजता रहा ...कितने ही वैज्ञानिक अपनी की हुई खोज के लिए सिर्फ इक नाम भर पाने को तरसते रहे और उनकी जगह ....कोई दूसरा सारा श्रेय , शोहरत लेकर बैठ गया ...

ऐसे आस्तीन के सांप आपको ऐसा डसते है की आप बचपन में खेले गए सांप और सीढ़ी वाले खेल की तरह ऊपर से सीधा निचे तब गिरते है जब आप मंजिल के अति करीब होते है  .... वोह आपको ही नहीं गिराते बल्कि आपके विश्वास को भी हमेशा हमेशा के लिए सीधा ऊपर से निचे गहरी खाई में धकेल देते है ...

और दुसरे वोह लोग जिन्हें आप अपना समझ और जिन्हें आप खुद सीढ़ी बनकर ऊपर चढाते है .... वोह लोग आप से ही सीख कर और आपका भरपूर इस्तमाल कर... आपको कूड़े में फैक हमेशा हमेशा के लिए भूल जाते है .....


इस दुनिया में ...शायद कुछ लोग सिर्फ सीढ़ी की तरह इस्तमाल होने भर के लिए ही पैदा होते है ...

शायद आप में से कुछ लोगो ने कभी  दुसरो के लिए सीढ़ी बने हो या कुछ ने अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए कभी दुसरो को सीढ़ी बनाया हो ?

पर कम से कम जीवन में इक बार उस सीढ़ी को उसका श्रेय अवश्य दे ...और जो आज यह गलती कर रहे है ..उनसे सिर्फ इतना आग्रह है ...की किसी को अपने ऊपर इतना ना चढ़ने दे ...की कल आप उसके सामने छोटे लगने लगे ...चाहे वोह शक्श कोई भी हो .....

By

Kapil Kumar 




Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental. Do not copy any content without author permission”


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