Saturday 14 November 2015

अपराध बोध यानी गिल्ट कांसस



अपराध बोध यानी गिल्ट कांसस ....इक ऐसा अस्त्र है जिसके आगे बड़े बड़े ब्रह्मास्त्र या प्रपेक्षात्र भी बोने साबित हो जाते है ....कितनी ही देशो में पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री देने यानी अपराधी  की पिटाई करने पर प्रतिबन्ध है ...फिर भी वंहा की पुलिस का मुलजिमो से सच उगलवाने का प्रतिशत उन देशो की पुलिस से ज्यादा है ..जंहा बात बात पे अपराधी को दिल खोलकर मारा पीटा जाता है या उसे अमानवीय यातनाये दी जाती है ....

आखिर ऐसा क्या कर दिया जाता है ..इक शातिर , धीट , मक्कार और उद्दंड अपराधी अपना मुह खोलने को मजबूर हो जाता है और बिना उसके शरीर पे इक खरोंच बनाये उससे उसका जुल्म कबुल करवा लिया जाता है ? यह इक ऐसा मनोवैज्ञानिक खेल है ..जिसमे जो जितना माहिर... वोह उतना ही बड़ा शातिर खिलाडी ..अब वोह अपराधी हो या कानून का पालक !

यंहा हमें अपराध बोध यानी गिल्ट कांसस के प्रयोग के दर्शन होते है ....यूँ तो यह अस्त्र हर घर परिवार , समाज , कार्यछेत्र में हर शक्श द्वारा उसपे या उसके द्वारा औरो पे इस्तमाल किया जाता है.... देखने और समझने की यह बात है ...इसमें सिर्फ बातो से ही सामने वाले का दिमाग इस तरह काबू में किया जाता है की ...वोह वही काम अपनी इच्छा से ख़ुशी ख़ुशी करता है ...जिसको करवाने के लिए आप मन ही मन इच्छुक होते है ....

अगर हम प्रयोग में देखे तो किसी इन्सान के दिमाग को आप दो तरह से भ्रमित कर सकते है ...  पहला तरीका यह है की ...सामने वाले को लालच दिखाए या आप उसे इतना उत्तेजित कर दे ...की वोह जोश में आए और ऐसा वैसा कुछ करे जिसमे आपका प्रयोजन या फायदा छिपा हो ...इस प्रकिया का फायदा आप ज्यादा समय के लिए नहीं उठा सकते ..क्योकि ..जोश जितनी तेजी से चढ़ता है ..उतनी तेजी से वापस उतर भी जाता है ..इसलिए इसका उपयोग कुछ पलो के लिए या उस छण के लिए ठीक है ... जब आपको सामने वाले से इक या दो बार काम निकलवाना हो ...
अब बात करते है दुसरे तरीके की ....यानी ...अपराध बोध की ....

क्या है अपराध बोध ?....

अपराध बोध यानी गिल्ट कांसस ..इक ऐसी जटिल प्रकिर्या है ..जिसमे सामने वाला जकड़ जाए तो ..वोह अपनी इच्छा से अपना बलिदान भी करने के लिए राजी हो जाता है ...इससे पीड़ित व्यक्ति अपने दिल और दिमाग पे इक बोझ महसूस करता है ...उसकी आत्मा उसे कचोटती है ..की उसका द्वारा किया गया कुछ कार्य ...कितना गलत था ...उसी गलती यानी अपराध का ध्यान यानी बोध उसे कुछ ऐसा करने को मजबूर करता है ..की जिससे वोह अपने अपराध की भरपाई कर सके ...
यंहा पर देखने और समझने की यह बात है ...उत्तेजित होने के विपरीत यह प्रकिर्या ..लम्बे समय तक मन मस्तिष्क पर असर करती है ..कभी कभी इसका असर इन्सान की सारी जिन्दगी भर रहता है .....

अपराध बोध कैसे काम करता है ?......

हर इन्सान अपने जीवन में कुछ ना कुछ गलत कार्य करता है ..अब उसे करने के बाद आप उसके बारे में कितना सोचते है यह आपके ऊपर निर्भर करता है ...नहीं तो कई बार उसका दोषारोपण आप पर इस तरह कर दिया जाता है ....की ...आप अपने खुद गुनहगार समझने लगते है .... बस यही सोच आपके अंदर अपराध बोध पैदा करने का काम करती है ....

अगर गौर से देखे तो अपराध बोध कराना इक मनोवैज्ञानिक प्रकिर्या है ..इसमें सामने वाले के सामने अपने आप या समाज को को दींन दुखी , निरह , पीड़ित या कमजोर दिखा सकते है ..या फिर सामने वाले के मन में यह अहसास करवाना की उसकी वजह से आप इस हालत में है या उसके दिमाग में यह बैठा देना ..की उसकी गलती की सजा कोई और भुगत रहा है ....

इस काम में सबसे ज्यादा माहिर औरते होती है ..... उलाहने और ताने देना ..ही अपराध बोध को शुरू करने की पहली प्रकिर्या समझे ..यूँ तो पुरुष भी इसका उपयोग औरतो को बहलाने , फुसलाने के साथ उनका शोषण करने में खूब प्रयोग करते है ....

पहले सामने वाले की आप कमजोरी को पहचाने ..फिर उस कमजोरी को ध्यान में रखते हुए ..उसके लिए कुछ सपने बुने ...फिर उन सपनो को उसके दिमाग में अच्छी तरह से बिठा दे ...बस आपका काम ख़त्म ...अब आपको सिर्फ इतना भर करना है ..की जब भी वोह शक्श आपकी बात ना माने या बगावत करे ...आप उसे उसके सपनो के मायाजाल में उलझा दे ...की अगर वोह ऐसा नहीं करेगा तो कैसे ...आगे कुछ कर पायेगा या उसकी वजह से औरो को कितना दुःख पहुंचेगा आदि आदि ??

यंहा यह बात समझने की है ...की इसके विपरीत लालच और उत्तेजना अपना असर थोड़े समय ही दिखा पाती है ....जैसे आपने किसी को लालच देकर या उत्तेजित करके अपना उल्लू सीधा किया ..पर इसमें सामने वाले के दिमाग के बदलते ही उसका लालच का भूत गायब हो जाता है या उत्तेजना उतरते ही ... वोह इन्सान अपने को पीड़ित बता कर हाय तौबा करने लगता है ....

जैसे कुछ लड़कियां या औरते ऑफिस में तरक्की या किसी बड़े ब्रेक के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती है ..या कोई व्यक्ति कुछ पाने के कोई गलत तरीका अपनाता है ...पर यह क़ुरबानी स्थाई नहीं रहती जैसे ही उन्हें लगता है उनका शोषण हुआ या उनका इस्तमाल हुआ ..वोह बगावत कर बैठता है .....

पर इसके विपरीत अपराध बोध में बगावत या सोचने समझने की प्रकिर्या लगभग ना के बराबर है ....इसमें सिर्फ क़ुरबानी है ..वोह भी हँसते हँसते ...

जैसा की मेने पहले कहा ...अधिकतर औरते इसमें ज्यादा माहिर होती है ....वोह बचपन से बच्चे के दिमाग में कुछ बाते इस तरह से बिठा देती है ..जब जब बच्चा उनका कहना नहीं मानता या अपनी मनमानी करना चाहता है ..वोह उसे अपराध बोध यानी गिल्ट कांशस के फंदे में फंसा कर काबू में कर लेती है ...जैसे ...कुछ ...

माँ बाप बचपन से बच्चे के दिमाग में इक सपना बुन देते है ..की हमारा बच्चा बड़ा होकर यह बनेगा ..वोह बनेगा ...देखने और सोचने की यह बात है ..यह सपना सिर्फ माँ बाप का होता है ..पर बच्चे के दिमाग में इस तरह से ठूस दिया जाता है ..की उसे वोह इसे अपना समझ जीने लगता है ..अब जैसे ही बच्चा कभी ..आलस करता या कुछ अपने मन की करता ..माँ बाप ..फटाक से उसपे तानो की बोछार कर देते है ...
अरे तू ऐसा करेगा तो कैसे आगे तरक्की करेगा या कुछ बनेगा ?

बस उनका यह तीर बच्चे के अंदर इक अपराध बोध पैदा कर देता और वोह अपने दिल की और दिमाग की ना सुन ..उनके इशारो की कठपुतली बनके रह जाता ...ऐसे ही कुछ माँ बाप अपनी लडकियों के अन्दर बचपन से इसका बीज रोप देते ....

हाय हमारे लड़का होता ..तो आज यह होता ..वोह होता ..बस बेचारी लड़की अपराध बोध से दबी सारी जिन्दगी अपने माँ बाप के चंगुल में फंस के रह जाती ....

कुछ ऐसा ही प्रयोग सास अपनी बहु पे या पिता अपनी बेटी पर भी करता ..की बस तुम्हारे हाथ में ही घर की इज्जत है .... भले ही अपना लड़का कितना भी एबी शराबी क्यों हो ....घर की इज्जत का ठेका सिर्फ बहु के पास है ...बस तू उसकी धर्म पत्नी बनके समाज में इज्जत का टोकरा उठाये रखना ...या बाप कुछ ना करे ..बस बेटी ससुराल में उफ्फ ना करे ..ताकि उसकी दो कौड़ी की इज्जत समाज में सलामत रहे ...

ऐसे ही कुछ घरो में लड़के या लडकियों को अपराध  बोध से बचपन में ग्रस्त कर दिया जाता है ..की हम बहुत ही गरीब है ..किस्मत ने साथ ना दिया वरना हम भी यह कर लेते या वोह कर देते ..बस अब तुम लोगो से ही कुछ उम्मीद है आदि आदि ....

असल में देखा जाए तो यह इक तरह का षड्यंत्र है ..जिसमे सामने वाला आपको मनोवाज्ञानिक तरीके से अपने जाल में उलझा रहा है ..वोह अपने सपने ..आपके अंदर बसा कर आपको उन्हें पूरा करने के लिए उकसा रहा है ..की आप अपना फर्ज समझते हुए उन्हें पूरा करने के लिए तत्पर हो जाए ....

अपराध बोध सफल क्यों होता है ?......

जैसा की मेने पहले लिखा था ..की बड़े से बड़ा अपराधी इस तरीके से अपना जुल्म कबूल कर लेता है ..इसमें कुछ मनोचिकित्सक अपराधी की प्रष्ठभूमि को टटोलते है ..फिर उसके सामने इक ऐसी मायाव्यी दुनिया की रचना की जाती है ..जिसमे उसे इक विशेष किस्म का  इन्सान दिखाया जाता है ..फिर धीरे से उसके सामने यह दिखाया जाता है .... की उसकी वजह से उसके साथ के लोगो को कितना कष्ट उठाना पड़ेगा ...अगर वोह कुछ त्याग कर देगा तो उसका त्याग समाज में क्रांति ला देगा या उसे अहसास करवाना की उसकी भी इस समाज या देश के प्रति कोई जवाबदेही है ..आदि आदि ...बस इन्सान भावनाओ के भंवर में उलझ ..अपने ऊपर कफन का सेहरा बांध ..कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है ....

समाज में बढती आतंक्वादियी की फ़ौज या संख्या ..इस अपराधबोध का इक उज्जवल उदाहरन है ..की कैसे मासूम बच्चो के दिमाग में किसी खास धर्म , जाती , रंग या देश  के प्रति इक ऐसा दर रोप दिया जाता है ..की उनका बलिदान ही इस अत्याचार का सामना कर सकता है...

किसी से उम्र भर गुलामी करवाना भी अपराध बोध का इक अच्छा उदाहरन है ...जैसे की आम घरो में कुछ औरते सिर्फ इक गुलाम बनके रह जाती है ..और हँसते हँसते अपना जीवन उसमे बीता भी देती है ...
  
अपराध बोध यानी गिल्ट कांसस को कैसे समझे ?......

आप या मैं कोई भी इसमें आसानी से फंस सकता है या फंसा हुआ है ...

जैसे भारत के आम घरो में कितनी ही औरते ..मर्दों के जुल्मो सितम और योंन अपराधो का शिकार होती है ..पर कितनी है ...जो उनके खिलाफ आवाज उठा पाती है ...आखिर क्यों ..वोह अपना मुह सील कर बैठ जाती है और सारी उम्र  किसी वहसी दरिन्दे के अत्याचार , प्रताड़ना को बिना उफ्फ किये झेलती या सहती रहती है ?....

अगर आप इस मनोविज्ञान को समझे तो ..उनके बचपन से यह बात दिमाग में बिठा दी जाती है ..की औरत की इज्जत ही उसका सबसे कीमती गहना होती है ...बस इसके बाद ..अब कौन औरत यह कहेगी की उसका गहना किसी ने उससे छीन लिया उया उसके पास अब वोह नहीं है ..जिसकी सबसे ज्यादा बोली इस समाज ने लगा रखी है ?....

या फिर माँ बाप अपनी दुश्वारियो , समाज के बन्धनों का रोना इतना ज्यादा कर देते है ..की.. अगर गलती से किसी औरत का ..पति जालिम भी हुआ ..तो उसे इसका अपराध बोध करा दिया जाता है ...की ...

तुझमे ही कुछ कमी है ..जो तेरा पति काबू में नहीं ..या तेरी किस्मत ही ख़राब या तूने पिछले जन्म में कुछ अच्छे काम नहीं किये होंगे जिसका फल तुझे अब भुगतना पड़ रहा है .....

बस  इतना सा जहर किसी के दिमाग में भर देने से वोह इन्सान कभी अपने दिमाग का उपयोग कर ही नहीं सकता ..वोह जब जब अपने दिल की सुनेगा या अपने दिमाग से सोचेगा ..तो उसका अपराध बोध उसे ऐसा करने से रोकेगा ..की उसे आवाज उठाने या उफ्फ करने का हक़ ही नहीं है और ऐसा इन्सान दुसरे के चंगुल में फंसा जीवन भर उसकी प्रताड़ना और अत्याचार बिना आवाज उठाये सहता रहेगा ....

सबसे पहले आपको यंहा यह समझने की यह बात है ..की ...इस धरती पे रिश्ते... इंसानों ने ही बनाये है ..इसलिए कोई भी रिश्ता चाहे वोह माँ बाप , भाई बहन , पति पत्नी या दोस्त ...अपने आपसे बढ़कर नहीं होता ..... सब रिश्तो में किसी ना किसी का कुछ ना कुछ स्वार्थ छिपा होता है ... आप उन पर आँख मूंद कर विश्वास नहीं कर सकते ...चाहे वोह कोई भी हो ...

अगर आप इसे मानने के लिए तैयार है ..तभी आप अपराध बोध से बच सकते है ..वरना रिश्तो की आड़ में आप अपना शोषण अपनी मर्जी से ख़ुशी ख़ुशी करवायंगे और उफ्फ भी नहीं करंगे ...

बच्चो का माँ बाप को उलाहना देना की उन्हें गरीब माँ बाप मिले या माँ बाप का बच्चो को कोसना की ऊन्हे नालायक औलाद मिली या पति का पत्नी का कम सुन्दर और शुशील होना या पत्नी का पति का कम अमीर होना आदि ऐसे उलाहने और ताने है ...जो आए दिन किसी ना किसी घर में चलते है ...फिर उन तानो की बोछारो से कोई बिरला ही बागी बनता है अधिकतर लोग इन तानो और उल्लाह्नो से अपराध बोध के भंवर में फंस जाते है ...

इसलिए कोई भी आपका कितना भी प्रिय हो ..अगर आपको किसी ऐसे उल्लाहानो या तानो में उलझाये तो ...आकर उसकी बातो को एकांत में सोचे , विचारे और समझे ...की उसका ऐसा कहने का क्या अभिप्राय है ?

क्या सारी जिम्मेदारी आपकी है ..क्या उसका कोई कर्तव्य नहीं ? ..अगर आप अपने कार्य या कर्तव्य से संतुष्ट हों तभी उसकी बातो पे ध्यान दे ..वरना उसे अगली बार तीखे शब्दों में समझा दे ..की आप उसकी बाते सुनना नहीं चाहते ....

अगर वोह आपका सच्चा हितेषी होगा तो ..फिर कभी आपको तानेउलाहने नहीं देगा ..अपितु आपके साथ कंधे से कन्धा मिलकर आपके होसले को बढ़ाएगा ....

और अंत में .....

वैसे तो इस विषय पे पूरी किताब ही लिखी जा सकती है ...पर मैं बस इतना कहना चाहूँगा ...की आपके इर्द गिर्द लोग ही सबसे ज्यादा आपका शोषण करते है और आपको पता भी नहीं चलता ..इसलिए कभी अपने आपको कोसने या गाली देने के बजाय ..आप यह सोचे की ..आप उस कार्य को और कैसे बेहतर कर सकते है या थे और आप उसके लिए कितने जिम्मेदार है ?

सबसे पहले आप उन लोगो को से दुरी बनाये जो आपको उलाहने या ताने देते हो .....चाहे वोह कितने भी आपके अजीज हो ..अगर आप उन्हें किसी वजह से छोड़ नहीं सकते ..तो कम से कम उनकी बाते ना सुने ..स्प्रष्ट शब्दों में बता दे ...की आप उनकी सलाह में रूचि नहीं रखते ....

यह इतना कठिन नहीं है ..जितना की पढने , सोचने या करने में लगता है .. आपका थोडा सा   होसला और दृढ निश्चय आपको ऐसा करने की हिम्मत देगा ..सिर्फ आपको अपने ऊपर विश्वास रखना है ..की आपकी दुनिया ..उनके बिना भी चल सकती है ....

आपकी किसी भी गलती या गुनाह की सजा ...कम से कम आपका कोई शुभ चिंतक आपको ताने मारकर नहीं देगा ...अगर कोई आपको ताने मारे या उलाहने दे ..समय समय पे ...तो समझ जाए ..की वोह आपको अपराध बोध के बोझ से लड़ना चाहता है ..... अब इससे कैसे बचे ..यह आपके हाथ में है ....इसमें किस्मत और ग्रह से ज्यादा आपकी सोच कसूरवार है ....



By 
Kapil Kumar



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