Saturday 14 November 2015

तेरे लिए तड़पता हूँ !!



तेरी वोह अनकही , अनसुनी बात के लिए तड़पता हूँ
मचल आये थे जज्बात उनके अहसास से तड़पता हूँ
वह तेरा बात पे रूठ जाना और फिर से वापस चहक जाना
ऐसी तेरी अदा के लिए तरसता हूँ
मैं हर लम्हा, सिर्फ तेरी याद में तड़पता हूँ


तेरे बदन के रूमानी ख्यालात के लिए तड़पता हूँ
तेरी साँसों की खुसबू के अहसास के लिए तड़पता हूँ
कैसे चूमता था तुझे इस बात के लिए तड़पता हूँ
तू होकर भी क्यों  नहीं , खुदा के इस जुल्म के लिए  तड़पता हूँ 
मैं हर लम्हा, सिर्फ तेरी याद में तड़पता हूँ


सर्दियों की ठंडी रातो की कसमसाहट के लिए तड़पता हूँ
सावन में भीगे बदन की आग के लिए तड़पता हूँ
गर्मी में झुलसते बदन पे तेरे आँचल की छाँव के लिए तड़पता हूँ
गिरते पत्तो में तेरे साथ के लिए तड़पता हूँ 
मैं हर रात सिर्फ तेरे साथ के लिए तड़पता हूँ


तेरी उन मीठी मीठी बातो के लिए तड़पता हूँ
तेरे छेड़ने और चिढ़ाने के अंदाज को मचलता हूँ
सिरहाने बैठे मेरे बाल को सहलाये ऐसे हालत को तरसता हूँ
तू आएगी कब इस इंतजार में तड़पता हूँ 


तेरे छूने के अहसास को तड़पता हूँ
बागो में टहलते हुए खाली  हाथ को देख तड़पता हूँ
भूख में बनाये तेरे पकवान के लिए तड़पता हूँ
होठो पे आये प्यास तो तेरे जाम को तड़पता हूँ
मैं हर पल तेरी याद में तड़पता हूँ 


देखता हूँ जब  तस्वीर किसी की ,उसमे तेरी छवि को ढूंढ़ता हूँ
जाये कोई ईमेल तो ,तेरे जवाब को तरसता हूँ
तू होकर भी मेरी क्यों नहीं ,इस हालत पे तड़पता हूँ
मेरी सुबह शाम बस तेरी याद में तड़पता हूँ 


तेरी खनकती हंसी  की आवाज के लिए  तड़पता हूँ
बाँहो में भरकर चूमू तुझे इस अहसास के लिए तरसता हूँ
तू सुनाएगी फिर वही कोई पुराना नगमा
उस  झगड़ने के अंदाज  को तड़पता हूँ
आँखे तकती हूँ तुझे , तेरी याद में तड़पता हूँ ......


By
kapil Kumar 



No comments:

Post a Comment