Thursday 12 November 2015

गुलाम मानसिकता ....???



क्या भारत में सिर्फ नेता ही भ्रस्टाचार के दोषी है ? क्या यंहा की जनता पानी , दारू , चावल और लैपटॉप के लालच में खुद को नहीं बेच देती ?
जब जनता को अपना खिलौना मिला ..फिर अफसरशाही और राजनीती भी तो अपना खिलौना यानी हिस्सा मांगेगी ....
जब भी कभी राजनीती के ऊपर ब्लॉग पढता हूँ तो इक बात समझ नहीं आती ....की ....

क्या भारत वास्तव में आजाद हो गया है ?

क्या यंहा की जनता में कोई समझदारी या जागरूकता आई है ?

क्या उन्होंने अपने इतिहास से कुछ सीखा भी है  या नहीं ?
देखने में यह प्रशन बड़े सीधे है... पर जब इनका उत्तर देखता हूँ तो सिर्फ निराशा दिखाई देती है ...जिस देश ने अंग्रेजो की २०० साल की गुलामी के बाद आजादी पाई और अपने को इक देश कहलाने का सोभाग्य पाया ...क्या उन्होंने उसकी कद्र की ??...
कम से कम आज के भारत के वोटर की मानसिकता देख कर तो नहीं लगता नहीं ...की उसमे कोई बदलाव आया है .....

उत्तर प्रदेश में ...कभी तो समाजवादी ..कभी बहुजन पार्टी ...बंगाल में कभी कम्युनिस्ट तो कभी ततृणमूल ....हरियाणा , बिहार , महाराष्ट में कोई और पार्टी ...पंजाब में अकाली तो कभी कोई और ....कहने का मतलब भारत के राज्यों में राष्टीय पार्टी का कद कितना है ...क्या यह १८ वी शताब्दी के भारत का रूप नहीं जंहा हर गली कुच्चे में राजेमहाराजे  , नवाब होते थे ...देश कहाँ था ... यंहा तो सिर्फ रियासते थी ?? .....

सबकी अपनी ढपली अपने राग थे और आज भी वैसे ही है ...अफ़सोस तब होता है जब किसी अनपढ़ की बात छोडिये ..हमारे बुद्धिजीवी होने का दंभ भरने वाले भी उसी मानसिकता के शिकार लगते है ...

जब देश आजाद हुआ तो कांग्रेस इक पार्टी थी ..धीरे धीरे नेहरु की लालसा ने कांग्रेस को पार्टी की जगह अपनी रियासत या जागीर बना डाला ...जिसमे सिर्फ इक क़ानून था ...की मेरे बाद मेरे परिवार का सदस्य ही इस जागीर का मालिक होगा ...अब यह परम्परा बादस्तूर चली रही है ...नेहरु के बाद ...इंदिरा ...राजीव ...आदि आदि ..हाँ बीच बीच में जब सिंहासन पर बैठने के लिए कोई उतराधिकारी नहीं मिला तो अपने ...वफादार कारिंदों को उनपे नवाजा गया .....क्या भारत की जनता ने इसका विरोध किया ....की हम सिर्फ पार्टी को जानते है व्यक्ति को नहीं ?

खेर कांग्रेस ने जो किया वो उन्होंने कबूल भी किया ...पर बाकी राजनितिक पार्टियों ने भी उनका अँधा अनुसरण किया और कर रहे है ....

B.J.P...कहने को राष्टीय स्तर की पार्टी है ....उसमे उनके देश भर में फैले कार्यकर्त्ता है ..इक संगठन है ..पर वास्तव में क्या ऐसा है ?
गौर से देखे तो उनमे भी कांग्रेस वाले व्यक्तिवाद के वायरस अच्छी तरह मौजूद है ...अगर आज अटल बिहारी के संतान होती तो इसका जवाब खुद बे खुद मिल जाता ......”मोदीमोदी “ ...क्या यह शर्मनाक नहीं इक राष्टीय स्तर की पार्टी ..जिसमे इक संगठन है ..हजारो कार्यकर्त्ता है ...अपनी दिशा,निति और सिधान्तो की बाते ना कर .. सिर्फ व्यक्तिवाद के सहारे चुनाव लड़ रही है ....क्या यह मानसिक दिवालियापन नहीं ?

अगर कल मोदी नहीं तो क्या B.J.P ख़त्म हो जाएगी?? ..अगर जवाब ना है ...फिर मोदी मोदी की जगह B.J.P... B.J.P...का गुंजन क्यों नहीं ?

क्या यह अच्छा ना होता ... B.J.P...अपनी नीतियों , घोषनाओ और सिधान्तो को देश की जनता के सामने रखती और फिर चुनाव लडती ....ना की कांग्रेसी वाली निति का पालन कर ..इक व्यक्ति को महानायक बना ..उसकी अंधभक्ति के सहारे चुनाव लड़े?.....
जब कोई व्यक्ति किसी पार्टी से बड़ा होने लगता है तब उस पार्टी की कमजोरी और मानसिकता साफ़ साफ़ दिखाई देती है ....

यही कमियां ..समाजवादी ..बहुजन समाजवादी ...शिव सेना ..आदि सभी पार्टियों में है .....सब सिर्फ इक व्यक्ति या परिवार के इर्द गिर्द घुमती है...

अगर गौर से देखे तो ...क्या फर्क है आज में और कल के भारत में जब यंहा हजारो राजा , नवाब और रजवाड़े होते थे ....तब भी सत्ता ....उस राज्य में इक व्यक्ति या परिवार के इर्द गिर्द तक ही सिमित थी ...

अफ़सोस की ....आम भारतीय चाहे गावं , शहर या क़स्बा कंही का हो ... इन सब से बुरी तरह पीड़ित है ...सपा ..खेलती है मुस्लिम कार्ड ...बहुजन खेलती है दलित कार्ड .... B.J.P खेलती है हिन्दू कार्ड ..शिव सेना मराठी और कांग्रेस का वही पुराना घिसा पिटा...सेक्युलर कार्ड ......

मैं यह मान लेता हूँ की अधिकतर वोटर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते है .. ..गावं देहात से होते है जिन्हें बरगला लिया जाता है ..कभी जात से ...तो कभी किसी और लालच से ......
पर सबसे बड़ा अफ़सोस तो मुझे इस नयी क्रन्तिकारी पार्टी को देख होता है ..जिसेआपके नाम से जाना जाता है ...जिसका वोटर आज का बुद्धिजीवी वर्ग है ...जो दंभ भरता है ..की वोह देश दुनिया की खबर रखता है ...जिसमे सही गलत का आंकलन करने की शक्ति है ....पर वास्तव में क्या ऐसा है ?

क्याआपकिसी व्यक्ति विशेष और संसथान की महुताज नहीं ?

कांश कोई तो पार्टी ऐसी होती जिसमे व्यक्तिवाद ना होकर सिधांत , निति और नियम होते ..जो किसी व्यक्ति विशेष के इर्द गिर्द ना होकर ...इक संगठन के रूप में होती ...
अभी कुछ दिन पहले ..मुझे यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ ...की आज भी आम भारतीय की मानसिकता ...कितनी एकाकी है ....

कुछ दिन पहले ....जब मेने अपने इक दोस्त से  “आपके बारे में बात की तो मुझे उसकी परम्परागत सोच देख बहुत हैरानी हुई ....वोह बोला मैंआपसे  इसलिए जुड़ा .... क्योकि ....उसका मुखिया इक IIT और आईएस वाला है और मै भी इक IIT वाला और इतना ही नहीं अधिकतर आईएस और IIT वाले सिर्फ इस पार्टी से इसलिए जुड़ रहे है ...क्योंकी वोह इसमें अपनी जड़े ढूंड सके ...

मेरा उससे सिर्फ इक प्रशन था ..फिर ..किसी मुस्लिम या हिन्दू का मुस्लिम/हिन्दू  नेता को वोट देना ....दलित का दलित को वोट देना ...या किसी भी उम्मीदवार को उसकी जात के हिसाब से वोट देने या समर्थन देने में क्या फर्क है ?

कोई व्यक्ति ..इसलिए तो योग्य नहीं हो जाता की ...की वोह किसी विशेष संसथान , परिवार या धर्म से सम्बंधित है ??

कांश आम आदमी की पार्टी इस व्यक्तिवाद से ऊपर उठ इक नयी मिसाल पैदा करती जंहा व्यक्ति विशेस की पूजा ना होती ?
कांश हमारे बुद्धिजीवी सिर्फआपको अँधा समर्थन इसलिए ना करते क्योकि उसका संचालक किसी विशेष संसथान और संस्था का सदस्य रह चूका है ..जिसके सदस्य वोह है या थे ...

फिर जातिवाद और परिवारवाद को कोसने वाले बताये ...क्या उनकी मानसकिता भी उसी तरह की गुलाम नहीं है?? ...जिसमे हम किसी पार्टी को सिर्फ इसलिए अपना कहते है ...जिसमे हमें अपने अस्तित्व का झुटा गुमान होता है ..चाहे वोह धर्म , जाती या राज्य के नाम पे हो ..फिर क्या फर्क है ..इक आम इन्सान और बुद्धिजीवी में ?
या क्या फर्क है आज के भारत या गुलामी से पहले वाले छिन्न भिन्न भारत में ??

क्या पार्टी ऐसी नहीं हो सकती ..जो व्यक्ति विशेष से बड़ी हो और सिर्फ अपने घोसनापत्र या नीतियों और काम का प्रदर्शन करे ?

क्या भारतीय वोटर...अपने राज्य/जाती /संसथान  के दायरे से बहार निकल देश की आवश्यकता के अनुसार राष्टीय पार्टी को अपना समर्थन नहीं दे सकता ?

क्या भारतीय वोटर...अपने जात या संस्था से जुड़े होने के झूटे अहसास से हट कर ...योग्य उम्मीदवार को समर्थन नहीं दे सकता ???....

पर यह सब बाते भारतीय वोटर से कहना , सुनना या उम्मीद करना बेमानी है ...जहाँ ...लोग इक लैपटॉप के लिए ..कभी रुपया किलो चावल के लिए ...तो कभी मंदिर के नाम पे बिक जाए ..उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है .....और तो और अपने को बुद्धिजीवी कहने वाला वोटर सिर्फ कुछ लीटर पानी पे बिक जाए ..उस देश का क्या कहना ....
इक राष्टीय पार्टी घोटाले करती है ...दूसरी घोटालेबाजो को हाथ जोड़ कर गले लगाती है ..और राज्य स्तर की पार्टियाँ ....वोटर को खुले आम ...सस्ते खाने और पानी की रिश्वत देती है ...वंहा पर देश की बात कौन करेगा ????


By 

Kapil  Kumar

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. The Author will not be responsible for your deeds.


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