Wednesday 11 November 2015

नारी की खोज ?--- 1



सुनने में यह बड़ा विचित्र लगता है "नारी की खोज" , अरे नारी तो हर जगह है फिर खोज किसकी ?

सच यह है , हम जिसे अपने इर्द गिर्द देखते है वोह मां , बहन , दादी , पत्नी या कुछ और है पर नारी नहीं ,
क्या इनको आपने बिना रिश्ते के देखा है | सब की सब इक नकाब ओढ़े !
जब से होश संभाला है। अपने आस पास की चीजो को , माहौल  को और लोगो को देखा तो इक सत्य हमेशा मुझे काचुटता रहा

की जन्म देने वाली माता से प्रेम करने वाली प्रेमिका या पत्नी तक ,सबने पुरुष की परिभाषा बहुत सिमित और संकुचित परिभाषित की

शायद उसमे सबसे बड़ा यौगदान भी खुद पुरुषो या "नर" का भी रहा ।अपने मूल सवभाव को समझ पुरुष ने अपने सवभाव को सामजिक ढांचे के इर्द गिर्द इतना जकड़ लिया की आज का पुरुष सिर्फ नाम का पुरुष रह गया है

वोह भाई , पिता , प्रेमी , पति , बॉस ,मातहत, दोस्त और साथी तो है पर उसमे पुरुस्ता नहीं है वोह रिश्ते निभाता है पर प्रक्रति ने जो मूल स्वाभाव उसे दिया उसको उसने इन सामाजिक बन्धनों में बांध कंही दफना दिया इसलिए आज का पुरुष "कामी ","लोभी","बल्त्कारी" ,"कायर","दुराचारी" और "अत्याचारी" है पर पुरुष नहीं  ?

जिस नारी के उदर(पेट) से उसका जन्म होता है , जिस बंधन से बांध वोह, अपने जीवन की पहली सांस लेता है , जिस "स्थानसे वोह इस जग का पहला अनुभव करता है और जिस "जगह" से वोह अपनी पहली भूख मिटाता है , ता जिन्दगी इन्ही चीजो की मृगतृष्णा में बंध  सारी  जिन्दगी गवां बैठता है ।उसकी यही मृगतृष्णा कब उसकी हवस  में परिवर्तित हो जाती है वोह जान भी नहीं पाता ।और जब वोह जनता है तब तक समाज में वोह किसी जुर्म से कलंकित हो बाकी जिन्दगी अपने प्राश्चित में गुजार देता है |

पुरुष जिस माता के वात्सल्य से अपने जीवन का पहला प्रेम का अध्याय शुरू करता है ता उम्र वोह उस वात्सल्य/स्नेह  की तलाश में नारी दर नारी, आशिक बन हर नारी के पीछे भागता है की कंही उसे वोह गोद मिलेगी जिसमे उसके बचपन की यादे उसके अचेतन मन में छिपी हैं , इस खोज में भटक वोह "आवारा" या "औरतखोर" बन  बैठता है

जिस शारीर में उसके अस्तित्व का निर्माण होता है , जन्हा उसका जिव अपना रूप धारण करता है वही शारीर उसके लिए सारी उम्र इक पहेली बन कर  रह जाता  है

शायद यह कुदरत का क्रुरु मजाक ही है जो पुरुष नारी के शारीर में पले जिसे नारी के  मन और तन का अनुभव खुद नारी से ज्यादा हो,पर यह  पुरुष, सारी जिन्दगी इस पहले अनुभव का इस्तमाल अपनी जिन्दगी में नहीं कर पता , जो खुद उसके वजूद में है या जिससे खुद उसका वजूद है वो  वही सब बहार, किसी नारी में ढूंडता है  

कितने ही "ऋषि -मुनि " , "प्रचारक" , "गुरु" , "धर्म योगी " , "दार्शनिकइस खोज में लगे रहे और अपने अपने अनुभव से इस दुनिया को अलग अलग सन्देश देते रहे
किसी ने औरत / नारी / मादा के सिर्फ शारीर को अपना आदर्श मान , पुरुष की समाधी उसके सन्दर्भ तक ही  सिमित कर दी
किसी ने नारी को समझने वाली पहेली घोषित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली
किसी ने नारी को "नरक का द्वार का अपने नाकाम और अधर्मी होने का पुख्ता साबुत दे दिया
किसी ने नारी को किसी दुसरे गृह का प्राणी घोषित कर उसे समझे लायक घोषित कर दिया पर सबसे बड़ा सच यह है की किसी ने नारी को खोजा ही नहीं , सबने अपने अन्दर के पुरुष को खोज नारी की व्याख्या कर दी

कितनी विचित्र बात है , कोई शाकाहरी खाना खाने वाला , मांसहारी खाने के बारे लिखे की उसका स्वाद क्या है ?
आखिर इक मर्द/ पुरुष नारी में क्या खोजता है

सच तो यह नारी ,कभी पुरुष की खोज नहीं करती! सिर्फ पुरुष ही अपने मूल सवभाव के कारण  वैसी नारी की खोज में रहता है जिससे उसका अस्तित्व पूरा हो सके |जाने अनजाने हर पुरुष (नर) अपने अन्दर छुपी नारी (मादा )की तलाश में रहता है वोह उस नारी को ढूंडना  चाहता है जिससे उसे अपने जन्म के समय पे बिछुड़ना पड़ा था !
 नारी तो गंगा है और पुरुष इक प्यासा पथिक !
कभी आपने सुना है "गंगा " पथिक को खोजे ? सच तो यह है पथिक को ही गंगा को खोजना पड़ता है अपनी अतृप्त प्यास बुझाने के लिए |

इस खोज की शुरुवात मेने अपने होश सँभालते ही शुरू कर दी ।सबसे पहले मेने अपने घर की नारियो  को देखा , जाने क्यूँ यह इक पहेली ही रही की , नारी का स्वाभाव हमेशा बनावटी क्यूँ है , उन्हें पीड़ा होती पर लोक लाज के डर से वोह उसका इजहार करती उनकी खुशियाँ जैसी कभी थी ही नहीं , घर के पुरुष जिसमे अपनी पसंद पसंद जाहिर कर देते वोह उनकी पसंद पसंद हो जाती।

मैं कोतुहल्पुर्वक यह समझने की कोशिस करता , अभी थोड़ी देर पहले यह कुछ और कह रही थी अब कुछ और आखिर कौन सा रूप सत्य है
इनके आंशु किस बात पे जाते इसका  पता तो शायद भगवन को भी हो पाता
कितने बड़े बड़े सदमे सहने वाली हमारी दादी - मां , बुवा , चाची , किस दिन कोप भवन में जा बैठती यह अजुब पहेली ही रहती
मेरा बावरा मन, बचपन से इस पहेली को जितना सुलझाने का प्रयास करता उतना ही उसमे उलझता जाता ! और इस  खोजी वयवहार के कारन  मुझे मेरा घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया , मेरे वयवहार से तंग आकर मेरे माता पिता और चाचा -चाची ने मुझे जन्म के छठे वर्ष में हॉस्टल भेज दिया
हॉस्टल में मेने अपनी यह खोज अपनी पहली हॉस्टल वार्डन Ms मीना को समझने से शुरू  की !..



Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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