Sunday 27 December 2015

एक रात के हमसफ़र



गाड़ी  के छुटने का समय होगया था और अभी तक मैं नयी दिल्ली  के उस प्लेटफ़ॉर्म को तलाश कर रहा था ..जहां से राजधानी एक्सप्रेस को छुटना था ...अधिकतर कलकत्ता (Kolkata) जाने वाली राजधानी प्लेटफ़ॉर्म नंबर 8 या 10 पर लगती थी ...पर आज अचानक आखिर समय पर  उसके बदले जाने से ...मुझे नए वाले प्लेटफ़ॉर्म को ढूंढने  में दिक्कत हो रही थी ....मैं भी  बिना प्लेटफ़ॉर्म देखे अपनी पुराने अनुभव के बल पर सीधा राजधानी के तय प्लेटफ़ॉर्म पर आ गया था ...अब वहां से जल्दी से कुली कर मैं भागा भागा ...नए प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचा ..कुली को सौ रुपया का नोट फैंक सीधा बोगी  में घुस गया ....

कुली पीछे से आवाज़  लगता रह गया ....अरे बाबूजी अपना छूटटा तो ले लो ....अब किसके इतना समय और धैर्य था की 10 /20  रूपये के चक्कर में और टेंशन लेता ....डब्बे में घुस अपने कुप्पे को तलाशता हुआ ...सीधा सीट पर जाकर पसर गया और एक  गहरी सांस ली ....

यूँ तो महीना दिसम्बर का था ...पर गाडी छूटने की टेंशन और प्लेटफ़ॉर्म ढूंढने  की हड़बड़ी में…. मेरा बदन पसीने से लथपथ सा हो गया था....जब मन और तन को थोडा सा सकूंन मिला तो ...मैंने अपनी नज़रें अगल बगल इनायत की ...

अरे सामने तो एक  खुबसूरत फूलों का गुलदस्ता मेरी आवभगत के लिए पहले से ही रखा था और मैं अनजान भंवरा बन यूँही इधर उधर मंडरा रहा था .....


वह एक 17 /18 साल की सांवली, छहररे बदन की, लम्बे कद की एक  खुबसूरत सी लड़की थी ...जो अपने  चेहरे को किसी पत्रिका के पन्नों में डुबो के बैठी थी..... शायद उसने मेरे आते वक़्त मेरी बदहवासी का जायजा ले लिया था और पहले ही अपनी गहरी और रहस्यमयी  आँखों से मेरे मन , तन और चरित्र का मुआयना वह अच्छे से ले चुकी थी ...पर इस वक़्त ऐसे अनजान बनके बैठी थी ..की जैसे उसे आभास ही नहीं की कौन उसके सामने आकर बैठा है?...


हसीनाओं  की यह अदा मैं आज तक नहीं समझ पाया... की...आदमी भले ही अपने अगल बगल की हसीना को ताड़ने से चूक जाए ...पर ये ज़ालिम हम लोगों का जायज़ा  बिना नजर उठाये कैसे ले लेती है ....यह भी खोज का एक  विषय है ?


उसने किसी बहाने अपने चेहरे को पत्रिका से बहार निकाला या यूँ कहे की यह देखने के लिए की मैं क्या कर रहा हूँ उसने अपनी नजरे मेरे पर  इनायत की ...मैं तो कबसे इसी  फ़िराक में बैठा था ..कि वह  कब अपने हसींन मुखड़े के दर्शन करा कर अपने यौवन  और जवानी के सरुर के लिए मुझसे पूरे  10 में से 10 अंक ले ले ....

जैसे ही उसकी मृगनयनी जैसी आँखे मेरे चेहरे पर टिकी.. तो...मेने हड़बड़ा कर नज़रें  नीची करनी चाही ...पर उसने तो मुझे घूरते हुए रंगे हाथ पकड लिया ...अब कोई चारा ना देख मैं भी बेशर्मो की तरह उसे देख मुस्करा  दिया ..उसने मुझे इक सरसरी निगाहों से देखा ....अपनी नाक और मुंह सुकोड़ा और  फिर से अपनी पत्रिका में डूब गई ....


पर उसकी एक झलक ने मेरे कुवांरे,आवारा और आशिक लड़कपन  में एक हलचल सी मचा दी ...उसके मासूम चेहरे पर एक  अलग सी  कशिश और उसकी आँखे में एक  अज़ीब  सा सम्मोहन था... लगता था जैसे नशे का कोई जाम उसकी आँखों से लगातार छलक रहा हो ....उसके नाजुक पतले से होंठ  गुलाब की पंखुड़ी की भांति इक दुसरे को जोड़े पड़े थे... वह  कभी कभी अपने होंठों  के बीच से जीभ फेर कर उन्हें यौवन  के रस में डुबो कर उन्हें नया जीवन दे देती थी...उसकी साँसों के साथ उपर नीचे होता उसका वक्षस्थल...मेरे दिल पर हथौड़ा  बजा रहा था......

उसके चेहरे की आभा में....मैं  कुछ इस तरह से डूबा..की.....जब टिकट  कलेक्टर ने आकर हमसे टिकेट माँगा तब मुझे अहसास हुआ की....मैं ना जाने कब से मदहोश हुआ... उसके रूप और यौवन  के सागर में डूबा पड़ा था ...

उसने एक  हिकारत भरी निगाह मुझ पर  डाली ....शायद उसे... लोगो का... इस तरह उसे घूरना अच्छा ना लगता था ....


पर उसे क्या पता था ....की... उसके रूप और योवन में वह सम्मोहन था..... जिसमे बंध कर इन्सान... अपनी सुध बुध खुद बा  खुद भूल जाता था ....


गाड़ी  अपनी रफ़्तार से बढ़ रही थी....रास्ते में पड़ने वाले पेड़ो  और खेतो को अपने पीछे छोडती जा रही थी ...उसे एक  बार देख लेने से,मेरा मन जैसे प्यासा सा हो उठा था... लगता था उसे बस यूँही निहारता रहूँ  ..पर एक  अंजान लड़की को इस तरह से घूरते रहना भी मुझे अच्छा ना लग रहा था ....

उससे बात करने के लिए ...मैंने  उससे पुछा ..आप कहाँ तक जा रही है ..मैं तो कलकत्ता तक जाऊँगा ..उसने बिना नज़रें  उठाये कहा ...मैं “धनबाद” जा रही हूँ और ऐसा कह वह ... फिर से अपनी किताब  में खो गई ...लगता था उसे, मुझसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी .....


मैंने  भी अपने मन को समझा लिया ...की.. इन तिलों में तेल नहीं और अपने कुप्पे के आस पास के बासी गोभी के फूलो में.... उनके गुजरे ज़माने की कल्पना ढूंढ  ..उनसे अपना दिल बहलाने लगा .......


कब मेरी आँख लगी मुझे पता भी ना चला....अचानक एक  हिचकी की आवाज सुन मैं चौंक  उठा ..देखा सामने बैठी लड़की तेज तेज हिचकी ले रही थी और बार बार अपने मुंह पर  हाथ रख उसे बंद करने का असफल प्रयास कर रही थी ..उसकी यह हालत देख मुझे समझते देर ना लगी ...की ..इसे उलटी करने का मन हो रहा है... ...

शायद उसके शरीर में इतनी ताकत ना थी की वह  बाथरूम तक जा पाती...... मैंने  स्थिति को समझ फटाफट एक  बड़ी सी पॉलीथीन  अपने बैग से निकाल उसके हाथो में पकड़ा उसके मुंह से लगा दी ....मैंने जैसे ही उसका हाथ छोड़ा... की ..उसने जोर जोर से पॉलीथीन  में उलटी करनी शुरू कर दी ....


जो अभी कुछ देर पहले तक मेनका और उर्वशी की वाट लगाती लग रही थी अचानक विभीत्स ,बदबू और वितृष्णा  के ढेर में बदल गई .....


जब वह  उलटी कर चुकी ....तब उसने पॉलीथीन  को बांध एक  तरफ रख दिया और अपना एक रुमाल निकाल कर मुंह साफ़ करने लगी ...मैंने  अपनी बिसलेरी की बोतल निकाल उसके हाथ में पकड़ा दी ..उसने एक  ही झटके में उसे आधा ख़त्म कर दिया और थैंक्स बोल ..जोर जोर से साँसे लेने लगी ...गीता कुछ झिझकते हुए बोली ...मुझे ट्रेन के सफर से हमेशा उलटी जैसा जी हो जाता है ...पर आज एग्जाम की टेंशन में मैंने कुछ खाया नहीं था.....शायद उससे एसिडिटी हो गई?...

थोड़ी देर बाद वोह उठी और अपने साथ उस पॉलीथीन  को ले कर बाथरूम की तरफ चली गई ....अब उसकी तरफ देखने भर से मन बैचेन होने लगा था ....


थोड़ी देर बाद जब वोह लौट के आई तो ....सारी फ़िजा बदल चुकी थी ...लगता था उसे भी उलटी करते वक़्त मेरे मनो भावो का पता चल गया था ...


उसने अपने बालो को अच्छे से कंघी कर अब खुला छोड़ दिया था ...चेहरे पर एक  हलके से पाउडर की परत के साथ गालो पर  हलके से रूज़  की चमक उन्हें एक  नयी छवि दे रही थी ...पतले सूखे होठों पर  गहरे लाल रंग की लिपस्टिक उन्हें दहकते अंगारों में तब्दील कर चमक रही थी ...आँखों पर सजे काजल की एक  हलकी सी लकीर ....पलकों पर  सजे मस्कारे  के साथ मिल उन्हें एक  झील की तरह खामोश गहराई दे रही थी...

उसे इस रूप में देख मेरे मन में थोड़ी देर पहले की भरी वितृष्णा ... हवा के झोके की तरह उड़ गई ....मेरे होठ  उसके इस ग्लैमरस रूप को देख अचानक एक  सीटी  बन कर बज उठे और मेरे मुंह से अनजाने में जोर से “WOW” निकल गया ....


इस बार उसने मुझे… नाक मुंह सुकोड़ने के बजाये.. एक  हलकी सी मुस्कराहट के साथ शरमाते हुए देखा ...उसके मुस्कुराने से उसके गालो में पड़ने वाले गड्ढे  जैसे मुझे अपनी और खींचने लगे थे ...अब मैं उसे जी भर कर खुल्म खुल्ला निहार रहा था और उसे उसपे कोई आपत्ति ना थी .....

अपनी सीट पर  बैठ .... .वोह बोली ..आप क्या कलकत्ता में रहते है या किसी काम से जा रहे है .....मैंने उसे बताया की मैं काम के सिलसिले में एक दिन के लिए कलकत्ता जा रहा हूँ और अगले दिन मुझे वापस धनबाद आना था ...धनबाद का नाम सुन वह चौंक  पड़ी ...बोली आपको वहां  क्या काम है .....मैंने  उसे बताया की धनबाद के पास सिंदरी में एक  फ़र्टिलाइज़र प्लांट है .. ..... वहां किसी तकनिकी खराबी को ठीक करने मुझे जाना था ..पर उस काम में ज्यादा वक़्त लगता इसलिए ..पहले कलकत्ता का काम निबटा कर फिर धनबाद आऊंगा ...


उसने अपना परिचय देते हुए कहा ..मेरा नाम “गीता” है ..मैं JNU में फिजिक्स ओनोर्स की फर्स्ट इयर स्टूडेंट हूँ और धनबाद अपनी ममेरी बहन की शादी में जा रही हूँ ...गीता का सारा परिवार शादी में पहले ही पहुँच चूका था पर उसे अपने एग्जाम ख़त्म होने तक दिल्ली  में रुकना पड़ा था ..आज आखिरी  एग्जाम देकर वह  भी शादी अटेंड करने जा रही थी .....


हम दोनों का बातो का सिलसिला फिर शुरू हुआ तो खत्म  ही नहीं हुआ ..कब रात हुई और कब दिन आया ..हमें पता भी ना चला ....ऐसे लगता था ..जैसे वक़्त अपने पंख लगा कर उड़ गया ....


अचानक गीता ने अपने नज़र  घडी पर डाली और हडबडा कर बोली... अरे थोड़ी देर में धनबाद आने वाला है ...मुझे अपना सामन देख लेना चाहिए ..उसका स्टेशन नजदीक आ रहा था और मेरा दिल बैठा जा रहा था ....इतनी ढेर सारी बाते हुई ..पर उसने अभी तक ना अपने घर का अता पता दिया ..ना ही कुछ और ?

मैंने हिम्मत  करके उससे पूछ लिया ..अरे तुम रहती कहाँ  हो ?...और तुम्हारे पिताजी क्या करते है ?


मेरी बात सुन वह  मुस्करा कर बोली ...मेरे पिताजी की दिल्ली  में “करोल बाग” के मार्किट में “गीता ज्वेल्लेर्स” नाम की एक  बड़ी दुकान है ...धनबाद के पास किसी  गावं में मेरा ननिहाल है ...मैं इस वक़्त वहीँ जा रही हूँ ...


उसकी तरफ से और कोई रिस्पांस ना देख.... मैंने  उसे अपने ऑफिस का नंबर दे दिया और बोला ..जब तुम वापस दिल्ली आ जाओ तो मुझे कॉल करना ..उसने मेरा  नंबर बड़े जतन से ले अपनी डायरी में लिख लिया ...

जैसे ही गाडी प्लातेफ़ोर्म पर  रुकी ..मैं भी उसके साथ उतर गया ..उसकी आँखे जैसे कह  रही थी ....की काश  तुम भी मेरे साथ चलते..तुम यहीं  धनबाद में रुक क्यों नहीं जाते? ...


एक  बार को मुझे भी लगा की..क्यों ना मैं भी यहीं उतर जाऊं और पहले यहां  का काम निबटा दूँ ..फिर कलकत्ता देख लूँगा ...पर शायद हिम्मत ना जुटा पाया और बड़े बोझिल दिल से “गीता” को बाय बाय बोल उसे अपनी आँखों से दूर जाते देखता रहा ....

जैसे जैसे वह  दूर जा रही थी मेरा दिल बैठता जा रहा था ..उसने एक  बार पलट कर देखा ..फिर अचानक वह  मेरी आँखों से ओझल हो गई ..अपने मासूम दिल को संभाले मैं गुमसुम सा बैठा ..नींद के आगोश में खो गया ....


गाड़ी जब कलकत्ता पहुंची तो शाम हो चुकी थी ....जल्दी बाज़ी में चलते हुए मैंने  कलकत्ता का होटल बुक नहीं कराया था सोचा था ...एक  रात की बात है ..कुछ न कुछ इंतजाम हो जायेगा ...अपने अधिकतर सामान को स्टेशन के लगेज रूम में जमा करा दिया...सोचा डिनर  करने के बाद किसी होटल में रात गुज़ार  कर ..अगले दिन काम ख़त्म करके ..स्टेशन से ट्रेन पकड़ वापस धनबाद जाना ही तो है क्यों पुरे सामन के साथ इधर  उधर भटकता फिरूँ  ... ..ऐसा सोच ...अपने साथ एक  छोटे हैण्ड बैग को ले मैं कोलकत्ता  शहर की सैर पर  निकल पड़ा...एक  टैक्सी पकड़ कर मैंने  उसे पार्क स्ट्रीट चलने के लिए कहा ....मेरा अगले दिन यहीं पर ही किसी क्लाइंट से अपॉइंटमेंट था .....


उस वक़्त मुझे क्या मालूम  था की कोलकत्ता  शहर की वह  अंजान   रात मेरे लिए एक  ऐसे अनुभव का इन्तजार कर रही है ...जो मेरे आने वाले दिनों की एक  रहस्यमयी याद बनके रह जाएगा ......


एक  पंजाबी होटल में मैंने  अपना मनपसंद खाना खाया ...डिनर  करने के बाद भी घडी में सिर्फ रात के आठ बजे थे ...सोचा चलो किसी होटल में रात बिताने का जुगाड़ टटोला जाए ...हाय मेरी किस्मत जिस भी होटल में जाता ...”NO Vacancy” का बोर्ड लटका हुआ पाता ....भटकते भटकते रात के 12  बज गए ..पर सोने का कोई ठिकाना  अभी तक ना बना था .....


एक  निहायत ही गंदे से होटल से भी ना का जवाब सुन अभी निकला ही था ....की पीछे से एक  जनानी आवाज सुन चौंक  पड़ा .....

किसी मीठी सी आवाज ने कहा ...Excuse me ! उस आवाज के आकर्षण से बंधे मेरे पाँव जैसे अपनी जगह ठिठक गए ....मैंने  गर्दन घुमा कर देखा तो चौंक  पड़ा.... लगता था पूर्णमासी का चाँद आसमान से उतर धरती पर  आ गया था ...

एक  एंग्लो इंडियन सी लगने वाली लड़की... एक  काली स्कर्ट और सफ़ेद ब्लाउज पहने ..अप्सरा बनी मेरे सामने खड़ी थी ..उसकी उंगलियों में एक  लम्बी सी सिगरेट (शायद मोर ब्रांड की ) थी ..जिसके धुंए के छल्ले बना कर वह  हवा में उडा रही थी ...

उसके जवानी के ज्वार में बहता हुआ ....मैं उसके पास खिंचा चला आया ...उसने मुझे ऊपर से नीचे  देखा और बोली ...क्या आज रात के लिए तुम्हे मेरी सर्विस चाहिए?


ना जाने बिना सोचे समझे मेरे मुंह से निकल गया ...कितना लेती हो ?

वह  मुस्कराई  और बोली ...यह डिपेंड करता है ....की तुम्हे क्या चाहिए ?

मैंने  अपने को चालाक दिखाते हुए कहा ..क्या मतलब ..तुम्हारे रेट क्या औरों  से कुछ अलग है?     वह  बोली ....

अगर सिर्फ हैण्ड जॉब तो उसके पांच सौ रुपया ....अगर पूरी सर्विस तो उसका दो हजार और पूरी रात का पांच हजार लगेगा ...होटल का दो हजार अलग ...

मैंने  अपने नीली पिक्चर के अनुभव को झाड़ते हुए कहा ..और “ब्लो जॉब “ का कितना लोगी? ...

मेरी बात सुन वोह हंसी और बोली लगता है नए हो ...यह काम कोई भी नहीं करेगी समझे ...और ऐसा कह... मुझे अपनी कातिल निगाहो से घूरते हुए कुछ धुएं के छल्ले मेरे तरफ उडा दिए ....


मेरे पास बोलने के लिए कुछ ना था ....ना जाने उसके सम्मोहन में पड ...मैं बोला ...तुम्हारा रेट कुछ ज्यादा है ....असल में मेरे पास ना तो इतनी हिम्मत थी की मैं किसी हूकर के साथ अनजान शहर में जाऊं और ना ही मेरे पास इतने पैसे थे की ...उसकी किसी सर्विस पर इतने पैसे बरबाद कर सकूँ ...पर दोनों ही बाते उसके सामने कबूलना मुझे मंजूर ना था ....शायद  उसके हुस्न की तपिश में जाने अनजाने जलने को मैं बेक़रार था ...


मैंने  उसे टरकाते हुए  कहा ..चलो तुम किसी और को देख लो ...ना जाने उसे मुझमें  क्या दिलचस्पी लगी ...वह  बोली ... शायद तुम्हें .. ..मुझसे ज्यादा किसी होटल की तलाश है ...चलो मेरे साथ ...तुम्हारे दोनों काम हो जायेगे !....

उसकी बात सुन मैंने  कुछ ना कहा और अपने कदम आगे की तरफ बढ़ा दिए...की अचानक ..उसने पीछे से आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और एक  हलकी सी चुम्बन मेरे गाल पर रख दी और बोली चलो  तुम्हारे सोने का इंतजाम करवा देते है ...


मैंने  अब उसे सब कुछ सही सही बताने का निश्चय कर लिया ....मैं बोला....सच बात यह है ....की मैं आज तक किसी बाजारू औरत के साथ नहीं सोया और दुसरे मेरे पास तुम्हे देने के लिए इतने पैसे भी नहीं और तुम्हारे साथ सोने पर  ना जाने कौन सी बीमारी लग जाए ?

मेरी बात सुन वह  थोड़ी गंभीर हो गई ...वह  बोली ठीक है तुम मेरे साथ मत सोना ..चलो मैं तुम्हे अपने घर लेकर जाती हूँ तुम वहां  सो जाना और जो तुम्हे ठीक लगे वह  मुझे दे देना ...


उसकी बात सुन मेरा मन सोचने लगा ..की जाऊं के ना जाऊं ….मुझे कश्मकश  में पड़ा देख ….वह  भी समझ गई ….बोली चलो टैक्सी में चलते है और तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है ..अगर समझ में आये तो ठहरना वरना वापस लौट जाना ....

टैक्सी से करीब पांच मिनट में हम उसके घर के पास पहुँच गए ..यह कोई एक  माध्यम वर्ग परिवार का पुराने से मौहल्ले में एक  बहुत ही पुराना सा घर था... मुझे अपने साथ ले वह  घर के दरवाजे पर  पहुंची तो बोली ...मेरे घर में... मेरे   काम के बारे में कोई नहीं जानता ..इसलिए ऐसी कोई बेहूदा हरकत ना करना ..की मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़े ...


तुम्हे एक  शरीफ और जरूरतमंद आदमी समझ मैं अपने घर ले आई हूँ ...मुझे उम्मीद है तुम ऐसा कुछ ना कहोगे और करोगे... जिसमे मेरी जरा भी बदनामी हो ....

रात आधी के करीब बीत चुकी थी ...पुरे मोहल्ले में सन्नाटा सा छाया हुआ था ..कभी कभी कंही गली के कोने से कुत्तो के भूँकने  की आवाज सुनाई देती थी ....


जब हम उसके घर में घुसे तो... कहीं  से किसी कमरे से... किसी औरत की आवाज आई ..उसने बंगाली में शायद पुछा था ..की वह  आ गई है क्या? ...अगर उसे भूख हो तो वो किचन से खाना लेकर खा ले ....उसने बंगाली में कुछ कहा जो मुझे समझ ना आया ...

वह  मुझे अपने साथ ले ....एक  साफ़ सुथरे से कमरे में ले गई और बोली...अब  तुम आराम करो और सुबह हम मिलेंगे ...जैसे ही वह  जाने के लिए मुड़ी की मेरा दिल बैठने लगा ...


शायद इन्सान की फितरत है पहले वह  रोटी को देखता है ..फिर ठंडा पानी चाहता है ...जब पेट भर जाता है तब ...आरामदायक बिस्तर ..अगर यह सब हो जाए तो उसे दूसरे  शौक याद आने लगते है ....


अब जब सोने का जुगाड़ फिक्स हो गया और सब कुछ ठीक ठाक लगने लगा तो मुझे मेरी मर्दानगी सताने लगी ...मैंने  उसका हाथ पकड अपनी तरफ खिंच लिया और बोला ...तुम इतनी खुबसूरत हो ..जी करता है ..की तुम्हारे साथ एक  सुहागरात मैं भी बना लूँ...

.

वह  मुस्कराई  और मुझे धक्का देती हुई बोली ...मैंने  तुम्हे जब ऑफर किया तब तुम महात्मा बन रहे थे ..तो ..फिर अब क्यों शैतान बनना चाहते हो ..मैं पहले ही कह चुकी हूँ की घर में यह सब कुछ नहीं करना ....नहीं तो तुम्हे अभी घर से बाहर जाना होगा ....

उसकी बाते अपनी जगह सही थी ...पर मेरा बावरा मन... अब, जब ,सब कुछ देख निश्चिन्त हो चूका था ...उसे देख बार बार मचलने लगा ....मेरी बैचेनी उसे समझ में आ रही थी ...पर उसकी भी अपने समाज और परिवार में इज्जत थी ...वह  क्यों भला ....मुझ जैसे अजनबी पे यूँही ख़राब कर देती?...


ना जाने उसकी इस बेरुखी से.... मुझे क्या सूझा  ..मैं लगभग गिडगिडाते हुए बोला ...ठीक है तुम मेरे साथ कुछ मत करो ....क्या हम दोनों कुछ देर बात कर सकते है ? मैं सोच रहा था ...इस बहाने उस जी भर के देखना तो नसीब हो जायेगा... उसने घडी देखी और झिड़क कर बोली रात के 12  बजने वाले है और तुम्हे इस वक़्त गप्पें सूझ रही है ..जाओ चुप चाप सो जाओ .....

मेरा दिल मायूसी में बैठ गया और बुझे मन से उसे गुड नाईट बोल मैं बिस्तर में घुस गया .....


दिन भर का थका मांदा और पिछली रात का जगा होने के बावजूद नींद थी की आती ना थी ..बार बार उसकी मोहनी सूरत मेरा मजाक उड़ाती ...समझ नहीं आता था ....की इतनी खुबसूरत और सीरत वाली लड़की क्यों  इस धंधे में पड़ी है? ....चारपाई पे करवट बदल बदल के ....करीब इक घंटा नींद को बुलाने में लगा दिया ..पर उसे ना आना था ..ना वो आई ...

अचानक एक  खुशबु का झोंका मेरे नथुनों में टकराया ...फिर मुझे लगा जैसे कोई मेरे बिस्तर में घुसने की कोशिस कर रहा है ....मैं कुछ बोलता ..इससे पहले उसने मेरे होठों पर अपने होंठों को रख मुझे चुप करा दिया ...

ऐसा लगता रहा था की दुनिया में उससे मीठा और मोहक जाम मेने आज से पहले कभी पीया नहीं था...उसने फुसफुसाते हुए कहा ..मुझे तो देर से सोने की आदत है ..पर तुम क्यों इतनी देर से करवटे बदल रहे हो ?

मैं बोला ...तुम्हे याद करके मुझे नींद नहीं आ रही थी ..ऐसा लगता था जैसे तुम्हे बांहों में भर कर सो जाऊं ....उसने एक  हलकी सी हंसी के साथ मेरे शरीर में एक  हलकी सी गुदगुदी की और  बोली...ठीक है .... तुम मेरे शरीर से ऊपर ऊपर जो चाहे कर लो ....बस मेरे कपडे नहीं हटाना ....


मैं नहीं चाहती ....मेरे अन्दर की गंदगी तुम्हे छू  भी जाए .....मैं उसे चूमते  हुए बोला ..इसका कितना लोगी ...वह  हलकी सी हंसी के साथ बोली... यह मेरी तरफ से मुफ्त सेवा समझ कर मजा लो ...

उसकी बात समझ... मैं एक भूखे  प्यासे कुत्ते की तरह ...जिसे कोई हड्डी बहुत दिनों बाद नसीब हो की भांति उसके शरीर को इधर उधर चाटने , काटने और झिंझोड़ने लगा...वह  मन ही मन मुस्कराती  हुई ....मेरी ज़लील  और नापाक हरकतों को सह रही थी ....


शायद यह उसका रोज का काम था जिसे वह  मज़बूरी में करती थी ....पर आज उसी कार्य सेवा का दान वह एक  महादानी की भांति करके अपनी रूह में एक सकूँन महसूस कर रही थी .....

उसके शरीर से लिपटे, कसते और चुमते चुमते कब मुझे अपने तनाव से छुटकारा मिल गया मुझे पता भी ना चला ..अचानक कुछ गीला गीला सा महसूस कर उसने मुझे अपने से अलग किया और ..गुड नाईट बोलकर चली गई .....

आज से पहले जीवन में ...मैंने  तरह तरह के दान सुने थे ..बहुत तरह की समाज सेवा सुनी थी ...पर किसी की इस तरह की मुफ्त सेवा ...किसी के लिए यह एक  नए तरह का दान था ...जिसका मैं शायद पहला भिखारी  था ....

सुबह करीब आठ बजे उसने मुझे आकर उठाया ..उस वक़्त वह एक  अलग रूप रंग में लग रही थी ...रात  को जो बाजारुपन उसके सौंदर्य  और कपड़ों  में था ..उसका अब नामो निशान तक ना था ...अब उसने एक  बंगाली साडी अपने शरीर पर लपेट रखी थी ....उसके लम्बे खुले बाल लहरा रहे थे और चेहरे पर  मेकअप के नाम पर सिर्फ एक  बड़ी सी लाल बिंदी उसके ललाट की शोभा बनी हुई थी ...इस वक़्त वह साक्षात  किसी देवी का अवतार लग रही थी ....


मैं जल्दी से नहा  धो कर तैयार हो गया  ..उसने मुझे नाश्ता करने का आग्रह किया ..जिसे मैंने  नम्रता से ठुकरा दिया ...की ...मुझे अपने क्लाइंट के पास 9 बजे पहुचना था और मेरे पास ज्यादा समय ना था ..घर से निकलते वक़्त मैंने एक  हजार रुपया उसके हाथ पर रख दिया ..उसने मेरी तरफ एक नज़र  घुमाई और मेरे पैसे वापस मेरी जेब में रख कर बोली ...इसकी जरुरत नहीं ....

मैंने तुम्हें एक  जरुरमंद समझ अपने घर ठहराया  था ....मुझे तुमसे पैसे नहीं लेने थे ...वह  तो मैं  तुम्हारी नियत देखने के लिए मांग लिए थे ...पर तुम्हारे रात के प्यार में एक  ऐसी आग थी ..जिसमे वासना होते हुए भी एक  अपनापन था ..उसे पाकर मेरे मन और तन को एक  अजीब सा सकूंन मिला है ...यही मेरी और तुम्हारी आपसी ख़ुशी की एक  रात की सौगात समझ लो ...


मेने उसे पैसे देने की बहुत कोशिस की ..पर वह  ना मानी ...शायद उसने मुझे अपनी एक  रात दान में दे दी थी ...

अपना धनबाद का काम निबटा कर मैं वापस दिल्ली  आ गया और इन सब बातों को काम की उलझन  में उलझ कर भूल गया ....की एक  दिन यूँही मुझे याद आया ...की ट्रेन वाली गीता की खोज खबर ली जाए ..उसने चलते चलते मुझसे कहा था ..वह दिल्ली पहुँच कर फोन करेगी ....


मैंने  अपनी रेसप्स्निस्ट से पुछा की... क्या कभी किसी लड़की का मेरे लिए कोई फोन आया था ?

उसने याद करते हुए कहा ....हाँ किसी लड़की ने किया तो था ....पर आप तब टूर पर गए हुए थे ...उसने कोई अपना नंबर छोड़ा था ...वह  मैं रख कर भूल गई ...उसकी यह बात सुन बड़ा गुस्सा आया ..पर उसने झट सॉरी बोल अपना पल्ला झाड लिया...अब गीता को कहाँ ढूँढूँ  ?  ..इसी उधेड़बुन  में लगा था ....की मुझे याद आया .....

उसने कहा था वोह JNU में BSc फर्स्ट इयर में पढ़ती है....अब इतने बड़े JNU में कहाँ उसे ढूंढने  जाऊंगा... उससे अच्छा है की उसके पिताजी की ज्वेलरी की दुकान से उसकी खोज खबर ले लूँ .....ऐसा सोच करोल बाग उसके पिता की दुकान ढूंढने  निकल पड़ा ....

पर उस नाम की वहां कोई दुकान ना मिली....इतनी भाग दौड़ की ..वह  सब बेकार गई ...दिल अलग उदास हो गया .... शायद उसने कुछ और कहा था या मैंने  कुछ और सुना था ...अब जब दुकान ही नहीं मिली तो JNU में भी पढ़ती होगी ..उसका भी क्या पता ठिकाना ?

गीता को याद करते करते वह  एंग्लो इंडियन भी याद हो आई ...जिसके साथ मैं कोलकत्ता में बिस्तर पे सोया था ...पर हड़बड़ी में ...उसका मैंने  नाम तक ना पुछा था .... उसे याद करता भी तो किस नाम से ?

मेरी यादों  के कब्रिस्तान में दोनों एक  रात के हमसफ़र के नाम पर हमेशा हमेशा के लिए दफन हो गयी ....

By
Kapil Kumar 



Note: - “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
  

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