Wednesday 11 November 2015

तांत्रिक प्रेम!--2


पहले भाग में पढ़ा कैसे मेने अपनी किक बॉक्सिंग वाली इंस्ट्रक्टर को उसके घर ड्राप किया और उसके अपार्टमेंट में काफी पिने के लिए रुक गया था वंहा उसने मुझे तांत्रिक प्रेम की दीक्षा के लिए रोक लिया…..
गतांक से आगे.......

उसके जाने के बाद मेने गाउन हाथ में ले बाथरूम का रुख किया.. मैं मन ही मन सोच रहा था उसके आनंद से भला मुझे आनंद क्यों नहीं आएगा.. यह कैसा बेतुका सवाल था उसका ..
और मन ही मन अपनी किस्मत पे रस्क खा रहा था..उस वक़्त मुझे क्या मालूम था की मैं ऐसी परीक्षा देने जा रहा हूँ जो मेरी आने वाली जिन्दगी की दिशा बदल देगी.. जिस आनंद की कल्पना करता हुआ मैं झटपट अपने कपडे उतार उस गाउन को पहन रहा था .. और जो टोर्चेर मेने उस आनंद की जगह अन्दर आकर झेला था.. वैसा टोर्चेर तो अच्छे अच्छे गुंडे मवाली भी सहन ना कर पाते!मैं तो फिर भी इक साधारण सा इंसान था ..
गाउन की डोरी की नोट को  हलके से बांधता हुआ मैं उसके बेडरूम में घुस गया ..
अन्दर का नजारा देख मुझपे मदहोशी सवार होने लगीबेडरूम में चारो और खुशबु वाली मोमबत्तियां जल रही थी ,जो कमरे में हल्की पीली पीली रौशनी बिखेर रही थी ..चारो और इत्र की खुशबु से माहोल मदहोश और रोमांटिक बना हुआ था ..बेडरूम के अन्दर इक पान नुमा आकर का इक बिस्तर पड़ा था जिसके उप्पर छत से लटका हुआ सफेद झीना सा गोल घुमाव दार जाली नुमा पर्दा पड़ा हुआ था जो बिस्तर को चारो और से घेरे था.....
बिस्तर गुलाबी रंग की चादर और गोल गोल तकियों से सजा था !जिसपे वोह अप्सरा लेटी हुयी थी, उसका पूरा शरीर इक हलके पीले रंग की रेशमी चादर में लिपटा सा था , चादर के बहार सिर्फ उसका चेहरा निकला हुआ था , उसके सुनहरे रेशमी बाल बिस्तर पर चारो और इक गोले का आकर लिए हुए बिखरे पड़े थे .. उसने अपनी आँखे मूंद रखी थी ,लगता था वोह मेरा ही इंतजार कर रही थी .. उसने आँखे मूंदे मूंदे कहा ..उस कोने वाली मेज पे इक अंडरवियर पड़ा है तुम उसे पहन लो .. मैं रोबोट की भांति चलता हुआ मेज की तरफ लपका , मैं अपना इक पल भी अब और बर्बाद नहीं करना चाहता था ......

मेज से जब मेने उस अंडरवियर को हाथ में उठाया तो मेरे होश उड़ गए ..वोह इक चमड़े का बहुत ही मजबूत कच्छा सा था जिसके साइड में इक छोटा सा ताला जैसा कुछ था .. मेरा दिल उसे देख कर बैठने लगा .. उसने लेटे लेटे कहा , जाओ बाथरूम में जाकर इसे पहन लो , हो सकता है तुम्हे इसे पहनने में थोडा वक़्त लगे ..तुम्हे पहले अपने को सामान्य स्थिति में लाना होगा तभी इसे पहन पाओगे ..मैं उस अंडरवियर को ले बाथरूम में घुस गया .. जब मेने उसे पहना तो मुझे वोह बहुत ही ज्यादा तकलीफ दे रहा था .. हमारे गुरुघंटाल उसमें फिट नहीं हो पा रहे थे .. काफी कोशिस के बाद जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे अपनी लडकपन की नादानी का इस्तमाल कर गुरुघंटाल को समझाना पड़ा ..

किसी तरह उसे पहन कर मैं बेडरूम के अन्दर आगया .. अन्दर आने पे उसने मुझे अपने करीब बुलाया और उस अंडरवियर के ऑटो लॉक को बंद कर दिया .. वोह बोली अब तुम चाह कर भी बहक नहीं सकते . अंडरवियर मेरे शरीर पे इक पिंजरे की भांति चिपक गया जिसे मैं तो ढीला कर सकता था अब इसे उतार सकता था ... कमरे की मदहोशी मुझे फिर से आनंददित करने लगी और हमारे विश्वामित्र जी फिर से अपनी तपस्या भंग करने पे उतारू हो गए .. पर अब सब इतना आसन  ना था , थोड़े से तनाव ने मुझे तकलीफ देनी शुरू करदी ..मेरी हालत उस भूखे की थी जिसे खाना खाने से पेट दर्द होने लगता हो ..

उसने लेटे लेटे मुझ से पूछा ,क्या तुमने कोई कंप्यूटर का गेम पूरा खेल है ? मेने बिना सोचे समझे कह दिया हाँ मेने
"प्रिंसेस ऑफ़ पर्सिया " के सारे लेवल पार किये है .. वोह बोली पहले अपने दोनों हाथ जोड़ कर खड़े हो जाओ , ऐसा लगे जैसे तुम किसी को नमस्कार कर रहे हो। मेने झट उसकी आज्ञा का पालन किया औअर अपने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया ..

वोह बोली अपने जुड़े हुए हाथो को अपने सामने लाकर देखो ..तुम्हे कुछ दिखाई दिया ..मेने दोनो  जुड़े हाथो को सामने करके देखा तो मुझे कुछ समझ ना आया .. उसने अपनी नीली नीली  नशीली आँखे खोली ..जिनमे मदहोशी और शरारत छलक रही थी उनकी मदहोशी माहोल को और रंगीन बनाने लगी, अब मेरा अंडरवियर मुझे फिर से सताने लगा ..
वोह बोली ,गौर से देखो तो तुम्हे अपने जुड़े हाथ स्त्री के किसी विशेष अंग की याद दिलाते है या नहीं .. उसकी बात का मतलब समझ मेने ध्यान से देखा तो लगा कुछ कुछ मिलता जुलता सा तो है पर कुछ क्लियर सा नहीं लगा ..उसने मेरी मंशा समझ अपनी चादर को इक झटके से अपने शरीर से हटा दिया और बोली मेरे पेरो के पास खड़े होकर अब दोनों की तुलना करो ..

यह जालिम कातिल अप्सरा कैसा अजीब इम्तिहान ले रही थी की मुझसे  हँसते बनता था रोते ..मेने आज से पहले ना जाने कितनी बार नमस्कार किया था पर इस तरह का द्रश्य भी सोचा जा सकता है ..मेरे जैसे खिलाडी ने भी उसकी कल्पना आज से पहले तक की थी ...
मेने उसकी उस निर्दोष सुन्दरता का जी भर कर द्रश्य पान किया! अपने नयनो की जन्म जन्मान्तर की प्यास बुझायी  और अपने खोलते लावे को और जलने दिया ..वोह बोली स्त्री का शरीर इसी तरह से दो भागो के जुड़ने से बना है ..जिस तरह दो हाथ जुड़ते है और इक आकार बनता है वैसे ही स्त्री दोनों भागो के मिलने से अपने विशेष आकर (योनि )को प्राप्त करती है ..स्त्री के यह दो भाग उसके शारीर के दो हिस्से है जिनमे उप्पर का इक हिस्सा सर से शुरू होकर योनि पर ख़त्म होता है और दूसरा हिस्सा योनि से शुरू होकर पैर तक जाता है ...
मेरा शरीर कंप्यूटर गेम की तरहा कई लेवल में बंटा हैकंप्यूटर गेम की तरहा से पहले तुम्हे पहला लेवल(बाधा ) पार करना होगा तभी तुम दुसरे लेवल पर जा पाओगे ..

वोह बोली जेसे उस कंप्यूटर गेम में राजकुमार को राजकुमारी सबसे आखरी बाधा पार करने पे मिलती है वैसे ही तुम्हे मुझे पाने के लिए सारी  बाधाये पार करनी होंगी तभी तुम मुझे हासिल कर पाओगे .. हर इक बाधा पार करने पे, मैं तुम्हे इनाम में इक चुम्बन दूंगी, जैसे जैसे तुम आगे बढ़ते जाओगे वैसे वैसे चुम्बन की अवधि और गहराई बढती जायेगी ..मेरा दिल उसकी बाते सुनके बैठने लगा..जो चीज मुझे इतनी आसन लग रही थी उसके लिए पूरा इम्तिहान देना मेरे जैसे गरीब का मजाक उड़ना था

फिर भी सौदा घाटे का नहीं था.. उस वक्त अगर वोह मुझे अपनी गुलामी भी करने को कहती तो भी मैं खुशी खुशी करने को तैयार हो जाता..इसमें तो फिर भी मुझे कुछ पाने की उम्मीद लग रही थी…..

वोह बोली ..अधिकतर मर्द, औरत के शारीर को समझ नहीं पाते और सीधे आखिरी लेवल (बाधा) पर कूद जाते है .. सोचो अगर तुम पहला लेवल ही ढंग से नहीं खेल सकते तो आखिरी लेवल पर कैसे खेल पाओगे ? ऐसा कहा कर वोह अपनी गहरी मुस्कराहट से मुझे जलाने लगी ! उसकी कातिल मुस्कराहट और नशीली आँखों का नशा मुझे बेहोश करने लगा .. अपने को मैं किस तरह संभल पा रहा था इसका अंदाजा सिर्फ मैं ही लगा सकता था ..यह वोह टोर्चेर था जिसमे ऐसी सजा थी जो खुबसूरत होते हुए भी असहनीय मीठा मीठा दर्द दे रही थी ... वोह बोली ..तुम्हारा पहला लेवल (बाधा) मेरे सर से शुरू होता है ..मेज पर रखी उस तेल की कटोरी को यंहा ले आओ ..

पहला लेवल ………………
मैं गया और झट उस कटोरी को उठा लाया उसमे कोई खुशबूदार तेल था जिसकी खुशबु में इक अजीब सा नशा था ...उसने आँखे मूंदे मूंदे कहा तुम मेरे सर को अपनी गोद में रखो फिर तुम अपनी उंगलियों को तेल में डूबो लो और धीर धीर मेरे सर की मालिश करो ..मेने वैसा ही करना शुरू कर दिया .. मैं धीर धीरे उसके सर की मालिश करने लगा , थोड़ी देर बाद वोह बोली अब तुम मेरे सर में अपनी उँगलियाँ ऐसे फिराओगे जैसे तुम अपनी उंगलियों से किसी को कंघी कर रहे होयह सब धीर धीर और बड़े इत्मिनान से करो .... मेने उससे पुछा, मुझे कैसे पता लगेगा की मेरा पहला लेवल (बाधा ) पार हो गया है ?..
उसने धीरे से कहा, जब मैं मंद मंद मुस्कुराने लगुतो तुम समझ जाना की तुम्हारा वोह लेवल सफलता पूर्वक पार हो गया है और जब तक मैं मुस्कुराऊ तुम अपने प्रयास को जारी रखोगे ..अगर तुम्हे यह उबाऊ और तकलीफ वाला लगे तो तुम उसी वक़्त मेरे अपार्टमेंट से उसी हालत में चले जाओगे,यह बड़ा उबाओ और झल्लाने वाला काम था पर

जन्नत की चाहत में जहनुम जाने को तो हर मर्द तैयार हो जाता है और मुझ जैसा तो जहनुम की आग में जिन्दा जलने को तैयार था........
जब यह करना ही था तो रोते हुए क्यों करू क्यों का ना इसमें मजा लूँ! यह सोच कर मैं अपना चेहरा उसके चेहरे के करीब ले आया!..उसकी गर्म गर्म  साँसे  मेरी सांसो से टकरा कर  मुझे और मजबूर करने लगी। आज मुझे समझ रहा था कि कैद का मतलब क्या होता है और कैसे कैदी को मनोविज्ञानिक तरीके से भी प्रताड़ित किया जा सकता है ...... पर यह कैद तो मेने खुद आपनी मर्जी से और जोश में चुनी थी........मेने धीर धीर उसके सर पे उँगलियाँ फेरते हुए अपने  होटों  को उसके होटों के करीब ले आया और उन्हें चूमने के किये जैसे ही झुका उसकी ऊँगली ना जाने कैसे ,मेरे जैसे प्यासे मुसाफिर के रास्ते की दिवार बन कर खड़ी हो गयी ..उसने धीरे से कहा ..फिर यह गलती दुवारा ना करना…..वर्ना तुम्हे यंहा से जाना पड़ेगा |

तुमने अभी दौड़ना भी शुरू नहीं किया और तुम्हे अभी से प्यास लगने लगी .. पहले इतनी मेहनत तो कर लो की तुम मेरे होटो से अपनी प्यास बुझा सको…...बड़ी बेबसी से मैं उसके सर पे धीरे धीरे मालिश करने लग…..
मुझ जैसा बदनसीब ही शायद कोई होगा जिसके सामने अमृत का झरना हो और उसे इक बूंद के लिए तरस तरस कर मरना पड़ रहा हो….
और कोई चारा देख अब मेने भी ठान लिया की अगर वोह अप्सरा है तो मैं भी कामदेव का अवतार बनके रहूँगा और बिना उसकी खूबसूरती से रीझे उसे तडपा देने वाली कोमल कोमल मसाज अपनी उंगलियों के पोरवो से करने लगा ..थोड़ी देर बाद उसके मुंह से इक मीठी सी चीत्कार निकली और वोह मंद मंद मुस्कुराने लगी….. मेरा पहला लेवल पार हो चूका था .. उसने मुस्कुराते हुए कहा तुम अब अपना दूसरा लेवल शुरू कर सकते हो |पर उससे पहले अपना इनाम लेलो....
मेरी हालत उस भूखे भिकारी की थी उसे कोई भी फैंका हुआ टुकड़ा उस वक़्त बिना कीसी ना नुकुर के मंजूर था ..
उसने अपने होट मेरे होटो से छुआ भर दिए और बोली तुम्हारा दूसरा लेवल मेरे  पैरो से शुरू होता है ..मैं लुटे पिटे की मुसाफिर की भांति कांपती आवाज में बोला ..पर मेरा इनाम ..वोह हंसी और बोली ..यह चुम्बन तुम्हारा इनाम था ..जैसे जैसे तुम लेवल पार करोगे तुम्हारे इनाम भी बढ़ता जायेगा ..जाओ और शुरू हो जाओ .....................*

दूसरा लेवल ………………
मैं इक हारे हुए जुआरी की तरह उस पत्थर दिल अप्सरा के पैरो के पास आकर खड़ा हो गया .. उसका प्राकृतिक रूप में खुला संगमरमर जैसा चिकना बदन ,मेरी दिल की  फिर से परीक्षा लेने लगा और मेरा नादान कैद मर्द अपने पिंजरे से लड़ने की असफल कोशिश करने लगा ..
उसने कहा ,तुम्हे थोडा सा तेल अपने हाथो में ले पहले मेरे पैर के तलुओ  की हलकी हलकी मालिश करनी होगी  फिर धीरे धीरे यह मालिश तुम्हे पैरो से लेकर घुटने तक करनी है ..  मैं उसके बताये तरीके से उसके पेरो की और तलुओ की मसाज करने लगा .. थोड़ी देर बाद वोह बोली .. 
अब तुम अपनी जिह्वा की नोक से मेरे पैर की हर ऊँगली को धीरे धीरे थोड़ी देर के अन्तराल पे छुओगे .. मैं उसकी आज्ञा का पालन इक वफादार की तरह करने लगा ..कुछ समय बाद वोह बोली अब तुम अपने होटो से मेरे तलुओ को चुमते हुए मेरे घुटने तक आओ और यह तुम्हे तब तक दुहराना है जब तक मेरे चेहरे पे मुस्कराहट ना आजाये ..

जैसे ही मेरे प्यासे होट उसके पावं के अंगूठे से छुए उसने इक लम्बी मीठी सीत्कार सी निकाली ,लगता था उसे भी आनंद में हल्की हल्की पीड़ा लग रही थी ..मेरे हॉट उसके पावँ  से अपनी प्यास बुझाने लगे ..और थोड़ी देर में ,कमरे में उसकी मीठी मीठी चीत्कार गूंजने लगी ..मैं उसकी पसलियों को चूमने में इतना मस्त हो गया की मुझे पता भी चला वोक कब से आनंद में डूबी मुस्कुरा रही है ...
उसने मेरे बालो को पकड़ मेरे सर को अपनी तरफ खिंचा और मेरे गले में अपनी बांहों का हार सा बना कर बोली तुम्हारा दूसरा लेवल (बाधा) ख़त्म हो चूका है और ऐसा कह उसने मेरे दोनों होटो को  अपने मुंह के अन्दर कुछ पल के लिये कैद का लिया ...

तीसरा लेवल ………………
अब मेरी साँस काफी हद तक मेरे काबू में चुकी थी और हमारे विश्वामित्र को समझ में चूका था की उनका रास्ता काफी लम्बा और मुश्किल हैं उन्हें आज घनघोर तपस्या करनी होगी उसने कहा अब तुम थोड़े प्यासे से लगते हो तुम्हारा तीसरा लेवल मेरे चेहरे से शुरू होता है |

तुम्हे मेरे चेहरे पे अपनी पहली दो उँगलियाँ को इस तरह फिराना है जैसे लगे की तुम किसी वीणा को हलके हलके सुर में बजा रहे हो तुम्हारी उँगलियाँ मेरे माथे से शुरू होकर मेरे कपोलो से होती हुयी सिर्फ मेरी गर्दन तक आनी चाहिए !इक बार गर्दन तक पहुचने के बाद तुम मुझे गर्दन पे , मेरी आँखों की पलकों पे , मेरे कपोलो (गालोऔर कान की लो को चुमते हुए माथे तक आओगे ..इस तरह तुम इक बार उँगलियाँ से मुझे हलके से सहलाओगे और दूसरी बार अपने होटो से चुमते हुए वापस उसी जगह जाओगे! इसे बार बार करोगे, जब तक मैं मुस्कुराने लंगु और याद रहे इस क्रिया के दौरान मेरे होटो को चूमने की गलती नहीं करना उन्हें तुम सिर्फ छु भर सकते हो ....
यह कैसा आनंद है जिसमे तडप ही तड़प थी आज से पहले जब जी चाहा जन्हा जी चाहा औरत को चूम लेता था पर उस अप्सरा की यह अजीबोगरीब शर्त मेरे धर्य का बहुत बड़ा इम्तिहान ले रही थी .....

मेने धीरे धीरे उसके माथे पे अपनी उँगलियाँ नचानी  शुरू कर दी ..अपनी पहली ऊँगली से उसके माथे पे इक लकीर सी खींचता हुआ उसके गालो पे आकर रुक गया पहले उन्हें चूमा और फिर उन्हें धीरे धीरे अपने हाथो से सहलाने लगा ,फिर उसके कान की लो को मेने अपने दांतों की बीच  बंद करके उन्हें धीरे अपनी जिव्हा से सहलाने लगा .. मेरी इस हरकत से उसका शरीर इक मीठी प्यास से तडपने लगा और वोह अपने पैरो को झटका दे कर उपर निचे करने लगी .....
उसकी यह तडप देख मुझे अब उसकी कमजोरी समझ आने लगी मेने अपनी जिव्हा उसके कान के अन्दर डाल अपनी गर्म गर्म सांस उसके अन्दर छोड़ने लगा, फिर उसकी पलकों को अपने होटों से चूम उन्हें भी अपनी सांस की गर्मी से जलाने लगा उसकी तड़प बहुत बढ़ चुकी थी .. फिर अपने अंगूठे को उसके माथे पे टिका उसकी गर्दन पे अपने हॉट रख कर उन्हें चुसने लगा ..मेरी इन हरकतों से वोह पूरी तरह बिन पानी की मछली की तरह बिस्तर पे तडपने लगी और जोर जोर से उसकी सांसो के साथ उसके मुंह से मीठी मीठी सीत्कार की आवाज कमरे में गूंजने लगी............

जब उससे मेरे होट अपनी गर्दन पे नाकाबिले बर्दास्त हो गए तो उसने मुझे अपनी तरफ खिंच लिया और अपनी जिव्हा बहार निकल मेरे होटो पे फेरने लगी.. उस वक़्त वोह मंद मंद मुस्कुरा रही थी! उसकी यह हालत देख अब मुझे उसे तडपाने में मजा आने लगा और मैं अगले लेवल के शुरू होने का इंतजार करने लगा... लगता था अब खेल का पासा पलट चूका था और उसके पास अपनी प्यास को बुझाने के सिवाय कोई और चारा ना था मैं बचैनी की आग में तडप तडप कर सोने की तरह निखर चूका था..उसका सोन्दर्य मेरे ऊपर अब वोह जादू नहीं कर पा रहा था....
पर वोह भी पक्की खिलाडी थी उसने मैदान इतनी आसानी से नहीं छोड़ना था…..उसके तरकस में अभी वोह तीर बाकि थे जिनका जबाब तो शायद ब्रह्मा के पास भी नहीं था….. 

 चोथा लेवल………..
अब तक वोह पीठ के बल लेटी थी और उसका फूलो जैसा कोमल बदन मेरे सामने था पर अब उसने अपनी करवट बदल अपनी पीठ मेरे सामने करदी और बोली तुम्हे गर्दन से हलकी मालिश करते हुए मेरी कमर से होते हुए मेरे नितंब  तक आना है और फिर उसे चुमते हुए वापस कंधे तक आना है बाकी तुम्हे पता है यह लेवल कब ख़त्म होगा ....

यह सबसे कठिन लेवल था पर जब ओखली में सर दे दिया तो मुसल से क्या डरना .. मेने भी जी जान लगाने का फैसला कर उसके कंधो की हलकी हलकी मालिश करने लगा , फिर अपनी उंगलियों को उसकी पीठ पर ऐसा फेरने लगा जैसे उसका शारीर इक गिटार हो और मुझे उसमे से कोई धुन  निकालनी है .. मेरी उंगलियों की करामत उसे मदहोश करने लगी , फिर मेने अपने प्यासे होटो से उसकी गर्दन और कंधे के बिच वाले स्थान पर रख अपनी जिव्हा से गर्दन से नितम्ब का रास्ता तैय करने लगा......
मेरा यह प्रयास जल्दी ही रंग लाया और उसने अपनी करवट बदला कर मेरे होटो को खोल उसमे अपने दोनों हॉट रख दिए अपनी जिव्हा से मेरी जिव्हा को  छुने लगी ......
उसकी इस अदा ने मेरे विश्वामित्र का जिना  हराम कर दिया और मैं दर्द से बुरी तरह तड्पने लगा
मेरा दर्द देख वोह जालिम  अप्सरा हलके हलके मुस्कुराने लगी और मेरा सबसे कठिन लेवल पार होगया ..

 पांचवा लेवल………..
उसने कहा तुम्हारा अगला लेवल मेरी छाती से शुरू होकर नाभि पर पर ख़त्म होता है ..पहले तुम अपने इक हाथ से मेरे उरोज सहलाओगे और फिर उन्हें धीरे धीरे चूमोगे....उन्हें चुमते हुए तुम्हे नाभि तक आना है और फिर नाभि को चुमते  हुए मेरे उरोज तक जाना है ..
यह लेवल हम दोनों के लिए बराबरी का था अगर मुझे तडपना था तो उसे उस आग में जलना था जिसकी तपस और खुशबु मैं दूर से महसूस कर सकता था....
मेने भी उसे सबक सिखाने का फैसला कर लिया मेने उसके इक उरोज को इक कच्चे अंडे की भांति अपनी मुठी में कैद कर उन्हें इक स्पंज बोल की तरह धीर धीरे दबाने लगा और दुसरे को कभी अपने होटो से और कभी अपनी जिव्हा से सहलाने लगा और बाद में उसे ऊपर से चूमता हुआ उसकी नाभि पर आकर रुक जाता.......
मेने अपनी जिव्हा की नोक उसकी नाभि के अन्दर डाल उसे धीरे धीरे हिलाने लगा मेने ऊपर से निचे का सफ़र मुश्किल से दो या तीन बार किया होगा की उसकी हालत ख़राब होने लगी ..उससे मेरी यह हरकत बर्दास्त से बहार हो गयी और उसने मेरे मुंह को अपनी तरफ खिंच अपना इक उरोज को मेंरे मुंह में ठूस सा दिया और पागलो की भांति मुझे चूमने लगी अब वोह जोर जोर से ख़ुशी में सीत्कार मार रही थी!
और अपनी लडखडाती हुयी आवाज में बोली तुम अपना अगला लेवल जल्दी से शुरू करो....

छठा लेवल (आखिरी)………..
मैं उसके शारीर के इक इक अंग को भली भांति परख चूका था ..मेरे पास अब खोने के लिए कुछ नहीं था ..मेरी जिज्ञासा इस बात की थी अब वोह मुझे क्या करने के लिए कहेगी .. उसका पूरा शरीर मेरे होटो और उंगलियों की करामत देख चूका था .. उसने अपनी नीली नशीली आँखे खोली और मुझे अपने पास खिंचा और बोली यह लेवल बहुत नाजुक और संवेदनशील है इसलिए तुम्हे अपने हाथो और मुंह को काबू में रखना होगा .......

वोह बोली जाओ और मेरे पेरो के पास खड़े हो जाओ और इक वफादार की तरह मेरे उस हिस्से को चुम्मो जिसके लिए तुम शुरू से तड़प रहे थे इसे चुमते हुए तुम्हे अपनी जिव्हा की नोक को उपर से निचे लाते हुए अधिक से अधिक गहरई तक ले जाना है   फिर अपनी दो उंगलियों से उस गहराई को धीरे धीरे नापना है और ऐसा कह उसने अपनी टांगो का हार बना कर मेरे गले में डाल दिया और अपनी आँखे आने वाले आनंद की कल्पना में बंद कर ली .. .....
इस लेवल का तो मैं मास्टर था और वोह मेरी शिष्या ..कुछ ही पलो में मेने उसकी वोह हालत करदी की उसकी आँखों से ख़ुशी के आशु छलकने लगे और उसकी सीत्कार की आवाज पुरे अपार्टमेंट में गूंजने लगी ....
अब शिकारी खुद शिकार हो रहा था .. मैं इस आग में जल जल कर इतना पक चूका था की वोह कुछ भी कर लेती पर मेरा संयम ना डिगा सकती थी .......
जब उससे दर्द असहनीय होगया .. उसने मुझे अपनी तरफ खिंचा और इक ही झटके में मेरे उस चमड़े की कैद के चीथड़े चीथड़े कर दिए और मुझे अपने ऊपर खिंच कर बोली .....
मैं अब तुम्हारी गुलाम हूँ यह राजकुमारी तुम्हारे आगे अपने को समर्पित करती है कृपया करके मुझे जल्दी से जल्दी से इस दर्द से मुक्ति दो .........


   
By


Kapil Kumar 


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”



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